शिमला/शैल। लोकसभा चुनावों के साथ प्रदेश विधानसभा के लिये छः उपचुनाव हुये थे। यह उपचुनाव दो हमीरपुर दो ऊना एक कांगड़ा के धर्मशाला और एक लाहौल स्पिति में हुआ था। लोकसभा की चारों सीटें हारने के बावजूद विधानसभा की छः में से चार पर कांग्रेस की जीत हुई थी। अब एक माह के भीतर ही विधानसभा के लिये तीन उपचुनाव हुये हमीरपुर, देहरा और नालागढ़ में। इनमें देहरा और नालागढ़ में कांग्रेस तो हमीरपुर में भाजपा की जीत हुई है। देहरा में मुख्यमंत्री की पत्नी कमलेश ठाकुर कांग्रेस की उम्मीदवार थी और पूरा चुनाव सरकार बनाम होशियार सिंह हो गया था। इस चुनाव के दौरान ही प्र्रदेश सरकार में मंत्रिमण्डल की बैठक में देहरा में एस.पी. ऑफिस और लोक निर्माण विभाग का अधीक्षण अभियन्ता कार्यालय खोलने का फैसला लेकर देहरा की जनता को यह सफल सन्देश दे दिया था कि मुख्यमंत्री की पत्नी को सफल बनाकर देहरा में विकास के दरवाजे खुल जायेंगे। कमलेश ठाकुर ने भी स्पष्ट ऐलान किया कि यदि नादौन में सौ रूपये खर्च होंगे तो देहरा में एक सौ एक खर्च होंगे। इन सन्देशों का वांच्छित प्रभाव पड़ा और देहरा में शानदार जीत हासिल हुई।
लेकिन इसी के साथ अपने ही गृह जिला के मुख्यालय हमीरपुर की सीट कांग्रेस नहीं जीत पायी। हमीरपुर भाजपा के खाते में गया। आशीष शर्मा फिर सफल हो गये। इस तरह हमीरपुर में हुये तीन उपचुनावों में से दो में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है। लोकसभा में भी मुख्यमंत्री सुक्खू अपने चुनाव क्षेत्र नादौन में कांग्रेस को बढ़त नहीं दिला पाये हैं। नालागढ़ में अगर सैणी ने भाजपा से नाराज होकर निर्दलीय चुनाव न लड़ा होता तो शायद यहां भी कांग्रेस को जीत न मिल पाती। फिर इसी उपचुनाव में भाजपा के शीर्ष नेता पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने भाजपा के इस फैसले का समर्थन नहीं किया कि इन उपचुनावों में कांग्रेस के बागियों और निर्दलीय विधायकों को भाजपा में शामिल करके उनका चुनाव में प्रत्याशी बनाया जाता। इससे भाजपा देहरा में रमेश ध्वाला और रविंद्र रवि को सक्रिय रूप से चुनाव प्रचार में नहीं उतार पायी। इससे भाजपा में अनचाहे ही भीतरघात की परिस्थितियां पैदा हो गयी।
इस परिदृश्य में यह कहना ज्यादा सही नहीं होगा कि जनता ने कांग्रेस सरकार की नीतियों और नेतृत्व में विश्वास जताते हुये कांग्रेस को समर्थन दिया है। यदि ऐसा होता तो हमीरपुर में तीन में से दो सीटें भाजपा को न मिलती। इसलिये कांग्रेस और विशेष रूप से मुख्यमंत्री को आत्म चिंतन करने की आवश्यकता है। क्योंकि लोकसभा चुनावों के दौरान महिलाओं को पन्द्रह-पन्द्रह सौ देने की घोषणा की गयी उसके लिये फार्म भरवाने का काम चल पड़ा। अभी यह पन्द्रह सौ देने की योजना कब अमली रूप ले पाती है यह देखना दिलचस्प होगा। क्योंकि अभी उपचुनावों के परिणामों से पहले ही 125 यूनिट बिजली मुफ्त दिये जाने की योजना पर राईडर लगाने का फैसला मंत्रिमण्डल में ले लिया गया। यदि ऐसा फैसला इन उपचुनावों से पहले ही ले लिया जाता तो निश्चित तौर पर चुनाव परिणाम कुछ और होते। जब सरकार को 125 यूनिट बिजली मुफ्त दिये जाने के फैसले पर ही नये सिरे से समीक्षा करके संपन्न लोगों को इससे बाहर करना पड़ा है तो तय है कि तीन सौ यूनिट बिजली मुफ्त देने की गारन्टी का व्यवहारिक परिणाम क्या होगा।
इस चालू वित वर्ष के पहले तीन माह में ही सरकार तीन हजार करोड़ का कर्ज ले चुकी है और एक वर्ष में कर्ज लेने की सीमा 6200 करोड़ हो तो यह सीमा तो पहले छः महीने में पूरी हो जायेगी तो क्या छः महीने बाद सरकार को कर्मचारियों को वेतन और पैन्शनधारी को पैन्शन दे पाना भी कठिन नहीं हो जायेगा। भाजपा पहले ही सरकार पर पच्चीस हजार करोड़ का कर्ज अब तक ले चुकने का आरोप लगा चुकी है। लेकिन इस तरह की नाजुक वित्तीय स्थिति के चलते भी सरकार अपने खर्चे कम करने का कोई प्रयास नहीं कर रही है। आम आदमी को मिल रही सुविधाओं पर राईडर लगाकर आय बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। यदि सरकार ने अपने खर्चों पर लगाम न लगायी तो मित्रों के बोझ से सरकार इतनी दब जायेगी की उठना संभव हो जायेगा। इस समय ही देहरा की जीत से हमीरपुर की हार का आकार बड़ा हो गया है क्योंकि गृह जिला की हार है। इस राजनीतिक परिदृश्य में केंद्रीय जांच एजैन्सियों आयकर और ईडी का प्रदेश में आना सारी वस्तुस्थिति को और गंभीर बना देता है। ईडी का आना केंद्र सरकार का दखल माना जा रहा है। सुक्खू के मंत्रियों की प्रतिक्रियाओं से यह सन्देश गया है कि भाजपा इनके माध्यम से सरकार को अस्थिर करना चाहती है। लेकिन ईडी की कार्यशैली पर नजर रखने वाले जानते हैं कि बिना ठोस आधार के ईडी कदम नहीं रखता है। फिर यहां तो विलेज कामन लैण्ड और वह भी लैण्ड सीलिंग सीमा से अधिक खरीदने के दस्तावेजी साक्ष्य उपलब्ध है। इस तरह सारी स्थितियों का यदि एक साथ आकलन किया जाये तो लगता है कि निकट भविष्य में प्रदेश में कुछ बड़ा घटने वाला है। इसलिए अफसरशाहों की एक लम्बी कतार दिल्ली जाने के जुगाड़ में लग गयी है।