Friday, 19 September 2025
Blue Red Green

ShareThis for Joomla!

क्या पृथ्वी सिंह की गिरफ्तारी के बाद खरीद कमेटी से भी पूछताछ होगी

शिमला/शैल। विजिलैन्स ने अन्ततः आडियो क्ल्पि के दूसरे पात्र पृथ्वी सिंह को गिरफ्तार कर लिया है। इस गिरफ्तारी से कई और सवाल खड़े हो गये हैं क्योंकि यह गिरफ्तारी डा.ए.के.गुप्ता की गिरफ्तारी के करीब पन्द्रह दिन बाद हुई है। एक पखवाड़े के बाद हुई गिरफ्तारी से सबसे पहले तो यही आता है कि विजिलैन्स की नजर में इस खरीद प्रकरण में निश्चित रूप से रिश्वत जैसा कुछ अवश्य घटा है। इसलिये अब विजिलैन्स के लिये यह जानना आवश्यक हो जायेगा कि इस खरीद में प्रक्रिया संबंधी भी कोई गड़बड़ी तो नही हुई है। क्योंकि जिस वायो-एड से यह 84 लाख की खरीद की गयी है वह पीपीई किट्स बनाने या सप्लाई करने वाली अकेली कंपनी नही है। प्रदेश सरकर ने कोरोना के परिदृश्य में इस संबंध में की जाने वाली हर खरीद के लिये आपूर्ति नियमों में चार अप्रैल से संशोधन कर दिया था। इस संशोधन के तहत विभाग को एचपीएफआर के नियम 103 और 104 में काफी सुविधा दे दी गयी थी। लेकिन इसमें भी सप्लायर तक पहंुचने के लिये एक न्यूनतम आवश्यकता तो यह थी ही की वह दो चार दस सप्लायरों से ईमेल या किसी अन्य डिजिटल माध्यम से संपर्क करता। उनसे सामान की दर और उपलब्धता के बारे में जानकारी लेता। इस जानकारी के बाद वह इनमें से किसी को भी आर्डर देने के लिये स्वतन्त्रत था। विभागीय सूत्रों के मुताबिक शायद प्रक्रिया के इन पक्षों को नजरअन्दाज कर दिया गया था। यह प्रक्रिया इसलिये महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि कुछ ही समय बाद उससे बड़ा आर्डर कुरूक्षेत्र की कंपनी को और वह भी कम दामों में दे दिया जाता है। थोड़े से अन्तराल में ही दूसरी कंपनी का सामने आना यह सवाल तो खड़े करेगा ही कि ऐसा कैसे संभव हो पाया।
प्रक्रिया के प्रश्न में ही यह भी विचारणीय होगा कि जब विभाग में खरीद के लिये एक उच्चस्तरीय कमेटी गठित थी तो क्या इस कमेटी ने निदेशक को ऐसा कुछ अधिकृत कर रखा था कि वह कुछ मामलों में अपने स्तर पर ही फैसला ले सकता था। क्योंकि जब डा. ए.के.गुप्ता की गिफ्तारी हुई थी तब उसके बाद गुप्ता की पत्नी ने ही एक ब्यान के माध्यम से इस कमेटी की ओर ध्यान आकर्षित किया था। इस ब्यान से यह संकेत दिया गया था कि विभाग में जो भी खरीददारीयां हो रही है वह सब इस कमेटी के संज्ञान में हैं। अब जब एक पखवाड़े के बाद यह गिरफ्तारी हो रही है तो निश्चित रूप से पूरी खरीद को लेकर ही कुछ गंभीर सवाल जांच ऐजैन्सी के सामने आये होंगे। क्योंकि यह तो पहले ही जमानत आदेश के माध्यम से सामने आ चुका है कि इसमें पैसे का लेन देन हो नही पाया था और इसलिये कोई रिकवरी किसी से होनी थी। ऐसे में अब क्या खरीद कमेटी के अन्य सदस्यों से भी इस सबंध में कोई जानकारी ली जायेगी या नही यह भी अहम हो जायेगा क्योंकि जिस दूसरी कंपनी से 73.5 लाख की सप्लाई ली गयी है उसके बारे में विभाग में ही यह सन्देह है कि शायद यह कंपनी केवल कागजी कंपनी है।

मुख्यमन्त्री को भी कुन्दन होकर निकलने की आवश्यकता हैः विक्रमादित्य

शिमला/शैल।  प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग में इन दिनों भ्रष्टाचार एक बड़ी चर्चा का विषय बन गया है। ऐसा इसलिये हुआ है कि विभाग में पिछले दिनों हुई कुछ खरीदीयों को लेकर विजिलैन्स में ही सैनेटाईज़र और पीपीई किट्स को लेकर दो मामले दर्ज हो चुके हैं। एक मामलें में सचिवालय के अधीक्षक को निलंबित भी कर दिया गया है। दूसरे मामलें में विभाग के तत्कालीन निदेशक की गिरफ्तारी के बाद एक और व्यक्ति की गिरफ्तारी हो चुकी है। इस दूसरे व्यक्ति को तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष डा.राजीव बिन्दल का नज़दीकी करार दिया गया था। इस निकटता के आरोप पर राजीव बिन्दल ने नैतिकता के आधार पर अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। तीसरे मामले वैंन्टीलेटर खरीद में एक बेनामी पत्र के माध्यम से आरोप लगे। इन बेनामी आरोपों पर भी एक जांच कमेटी बैठानी पड़ गयी है। ऐसे में यह स्वभाविक है कि जब विभाग में तीन मामलों को लेकर जांच की स्थिति आ पहुंची हो तो न केवल विपक्ष ही बल्कि आम आदमी भी विभाग की कार्यप्रणाली को लेकर शक करने पर विवश हो जायेगा।
फिर जब मुख्यमन्त्री विपक्ष की मांग पर यह कहने तक आ जाये कि यदि उन्हें ज्यादा विवश किया जायेगा तो वह नेता प्रतिपक्ष के खिलाफ आ रहे पत्रों पर भी जांच के आदेश दे देंगे। लोकतान्त्रिक प्रणाली में विपक्ष ही नही बल्कि हर नागरिक को सत्ता से सवाल पूछने का हक हासिल है। लेकिन इस हक पर जब सत्तापक्ष की ओर से यह कहा जायेगा कि वह आपके खिलाफ भी जांच आदेशित करने को बाध्य हो जायेंगे तब सारे मामले का प्रंसग ही एक अलग मोड़ ले लेता है। क्योंकि ऐसे कथन का अर्थ तो होता है कि ‘‘तुम मेरे भ्रष्टाचार पर चुप रहो और मैं तुम्हारे पर चुप रहूंगा’’।  जबकि नैतिकता की मांग तो यह है कि हरेक के भ्रष्टाचार को सज़ा के अन्जाम तक ले जाया जाना चाहिये। लेकिन मुख्यमन्त्री की ऐसी प्रतिक्रिया तो समझौते की याचना की श्रेणी में आती है।
मुख्यमन्त्री ने जब वैन्टीलेटर खरीद प्रकरण में एक बेनामी पत्र पर जांच कमेटी गठित कर दी है तो उसी तर्क पर अन्य मामलों में भी जांच किया जाना आवश्यक हो जाता है। इस समय स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी स्वयं मुख्यमन्त्री के पास है। इसी के साथ विजिलैन्स भी मुख्यमन्त्री के ही पास है और जिस तर्ज पर मुख्यमन्त्री ने अपरोक्ष में विपक्ष को चुप रहने की सलाह दी है उसके परिदृश्य में यह स्वभाविक हो जाता है कि कोई भी आदमी सहजता से विजिलैन्स और सरकार द्वारा गठित जांच कमेटी की रिपोर्टो पर विश्वास नही कर पायेगा। इसी परिप्रेक्ष में कांग्रेस विधायक विक्रमादित्य ने मुख्यमन्त्री से त्यागपत्र की मांग करते हुए यह कहा है कि उन्हें भी राजीव बिन्दल की तरह इस प्रकरण में कुन्दन हो कर बाहर निकलने की जरूरत है। इस प्रकरण में जिस तरह से मुख्यमन्त्री और अन्य भाजपा नेता विपक्ष के आरोपों का जवाब दे रहें उस परिदृश्य में कांग्रेस के पास इस सारे मामले को प्रदेश उच्च न्यायालय के समक्ष ले जाने की बाध्यता आ जायेगी। क्योंकि मुख्यमन्त्री ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुलदीप राठौर नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री को व्यक्तिगत स्तर पर चुनौती दी है। उनके खिलाफ भी जांच करवाने की बात की है। ऐसे में कांग्रेस के लिये अपने को जनता में प्रमाणित करने के लिये इस मामले को अन्तिम अजांम तक ले जाना जरूरी होगा। क्योंकि भ्रष्टाचार के यह सारे मामले उस समय घटे हैं जब पूरा देश और प्रदेश कोरोना के प्रकोप से जुझ रहे है।

73.5 लाख की सप्लाई देने वाली कुरूक्षेत्र की बंसल कारपोरेशन भी सन्देह के घेरे में

स्वास्थ्य विभाग में

शिमला/शैल। एक आडियो के सामने आने से स्वास्थ्य विभाग जिस तरह से सवालों और आक्षेपां के घेरे में आ खड़ा हुआ था उसका पहला शिकार विभाग का निदेशक डा.गुप्ता हुआ था। सेवानिवृति से दस दिन पहले उनकी गिरफ्तारी हो गयी। इस आडियो के दूसरे शिकार भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डा.राजीव बिन्दल हुए। उन्हें अध्यक्ष पद से त्याग पत्र देना पड़ा जो चुनाव प्रभाव से राष्ट्रीय अध्यक्ष ने स्वीकार कर लिया। इस तुरन्त स्वीकार से यह यह सन्देश दिया गया कि भाजपा भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टाॅलरैन्स के लिये प्रतिबद्ध है। डा. बिन्दल ने यह त्यागपत्र भी नैतिकता के आधार पर दिया क्योंकि यह आरोप लगा था कि डा. गुप्ता से आडियो किल्प में बातचीत करने वाला व्यक्ति एक भाजपा नेता का करीबी है। इस चर्चित आडियो किल्प के आधार पर विजिलैन्स ने डा.गुप्ता के खिलाफ 20 तारीख को भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा 7 और 8 के तहत एफआईआर दर्ज की गयी। Dr.Ajay Kumar Gupta
Vs. State of H.P.
Bail application No. 163/2020
Bail petition under Section 439  of the Criminal Procedure Code 1973 in                     FIR No. 4/2020  dated 20.05.2020 U/Ss 7 and 8 of Prevention of  Corruption (Amended) Act 1988, registered at Police Station S.V. & A.C.B., Shimla. उसी रात करीब दो बजे डा. गुप्ता को गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तारी के बाद आईजीएमसी अस्पताल ले जाया गया जहां उन्हे स्वास्थ्य कारणों पर दाखिल कर लिया। अस्पताल में डा. गुप्ता 26 तारीख तक रहे और फिर अदालत में पेश किये गये। अदालत से पांच दिन की पूछताछ के लिये कस्टडी मिल गयी और अब  31.5.20 को नियमित जमानत मिल गयी क्योंकि अदालत की नजर में विजिलैन्स ऐसा कुछ सामने नही ला पायी जिसके आधार पर जमानत न दी जाती। सरकारी वकील ने अदालत में यह स्वीकारा है कि
16. In the present case learned Public Prosecutor has candidly  submitted that as of date the only evidence incriminating the accused is the audio clip wherein the accused is  reflected as demanding bribe of Rs.5 lacs. There is no evidence that the alleged bribe money was paid to the accused. However, further  interrogation in this regard is stated to be required. जिस ढंग से यह आडियो सामने आया और सरकार ने इसे विजिलैन्स को तथा विजिलैन्स ने इस पर उसी दिन एफआईआर दर्ज करके रात को ही निदेशक को गिरफ्तार कर लिया उससे प्रदेश के राजनीतिक तथा प्रशासनिक हल्कों में तूफान की स्थिति पैदा होनी ही थी। क्योंकि महामारी के दौर में जब स्वास्थ्य विभाग के निदेशक के खिलाफ ही पांच लाख की रिश्वत मांगने का मामला सामने आयेगा तो हर आदमी उस पर रोष में आयेगा ही यही हुआ भी। भाजपा के ही प्रदेश के वरिष्ठतम नेता शान्ता कुमार ने इस पर गंभीर चिन्ता जताते हुए राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा को पत्र लिख दिया। भाजपा के ही पूर्व मन्त्री सोफत ने भी कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की। विपक्षी दल कांग्रेस के वरिष्ठतम नेता पूर्व मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह, नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री और राष्ट्रीय सचिव पूर्व मन्त्री सुधीर शर्मा और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप राठौर सहित सभी नेताओं ने इसकी जांच सीबीआई उच्च न्यायालय के न्यायधीश या कोर्ट की निगरानी में एसआईटी से करवाने की मांग कर दी। सीपीएम नेता विधायक राकेश सिंघा ने भी विजिलैन्स से हटकर निष्पक्ष जांच की मांग की है। विपक्ष ने इस पर नैतिकता के आधार पर मुख्यमन्त्री से भी त्यागपत्र की मांग की है क्योंकि पिछले पांच माह से स्वास्थ्य मन्त्री का कार्यभार भी मुख्यमन्त्री के पास ही है। यह स्पष्ट है कि इस मामले में डा. बिन्दल के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र के साथ ही मुख्यमन्त्री की अपनी नैतिक जिम्मेदारी बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। क्योंकि आडियो संवाद में आये दूसरे व्यक्ति पृथ्वी सिंह को बिन्दल का करीबी बताया जा रहा था। लेकिन पृथ्वी सिंह को विजिलैन्स गिरफ्तार नही  कर पायी है जिसका अर्थ है कि विजिलैन्स के सामने ऐसा कोई सक्ष्म आधार आया ही नही जिस पर यह गिरफ्तारी हो पाती।
ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि जब विजिलैन्स के पास पृथ्वी सिंह की गिरफ्तारी के लिये ही पर्याप्त आधार नही बन पाये तो उसी पृथ्वी सिंह के कारण डा. बिन्दल का त्यागपत्र क्यों और कैसे। डा. गुप्ता की जमानत याचिका पर सुनवायी के दौरान विजिलैन्स ने माना है कि उसके पास दस दिन की जांच के बाद भी डा. गुप्ता के खिलाफ आॅडियो किल्प के अतिरिक्त और कोई विशेष साक्ष्य नही हैं। ऐसे में यह जानना आवश्यक हो जाता है कि जब कोरोना के कारण 24 मार्च से प्रदेश में कफ्र्यू लग गया तब उसके बाद स्वास्थ्य विभाग में कोरोना के संद्धर्भ में क्या खरीददारी हुई और कैसे हुई। इसमें सबसे पहले सरकार ने 3 अप्रैल को वित्त विभाग से एक अधिसूचना जारी करके वस्तुओं और सेवाओं की खरीद से जुड़े नियमों में संशोधन कर दिया। इस संशोधन में एचपीएफआर के नियम 94, 94A की अनिवार्यता नियम 103 और 104 के लिये नही रखी।
इस संशोधन के बाद विभाग ने अप्रैल माह में ही पीपीई किटस की खरीद की। पहले पंजाब के मोहाली स्थित कंपनी वायो एड से 6000 किट्स 1400 रूपये प्रति किट की दर से 84 लाख में खरीदी। इसके बाद दूसरी बार कुरूक्षेत्र स्थित कंपनी बंसल कारपोरेशन से 7000 किट्स 1050 रूपये प्रति किट की दर से 73.5 लाख में खरीदी। इसके बाद 21 अप्रैल को भी यह पीपीई किट्स की खरीद के लिये निविदायें आमन्त्रित की गयी थी जिन्हे बाद में रद्द कर दिया गया था। इसके बाद सरकारी उपक्रम एचएलएल से खरीद का निर्णय लिया गया। यहां पर विभागीय सूत्रों के मुताबिक कुरूक्षेत्र की जिस कंपनी बंसल कारपोरेशन से 73.5 लाख की खरीद की गयी है वह शायद इस नाम से वहां पर मौजूद ही नही हैं। कुरूक्षेत्र में बंसल सेल्ज कोरपोरेशन और बंसल पालीमर्ज नाम से दो और कंपनीयां हैं जो पीपीई किट्स का काम ही नही करती हैं। अब जब विजिलैन्स इस मामले की जांच कर रही थी तब वायो एड के जी एस कोहली से तो पूछताछ की गयी है लेकिन बंसल कारपोरेशन को लेकर कोई पूछताछ नही हुई है जबकि दोनांे के रेट में 350 रूपये प्रति किट्स का अन्तर है। फिर बंसल कारपोरेशन के होने पर ही सन्देह व्यक्त किया जा रहा है। यदि सही में ही यह बंसल कारपोरेशन मौजूद ही नही है और इससे 73.5 लाख की खरीद कर ली गयी है तो यह अपने में एक बहुत बड़ा मुद्दा बन जाता है। इससे उन सारे आरोपों को स्वतः ही बल मिल जाता है जिनको लेकर नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री विधानसभा में सरकार पर हमलावर रहे हैं।

संशोधित खरीद नियम

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

क्या भाजपा विस्फोट की ओर बढ़ रही है

 शिमला/शैल। प्रदेश भाजपा में जो कुछ इन दिनों घट रहा है यदि उसके राजनीतिक अर्थ लगाये जायें तो कोई भी विश्लेषक यह मानेगा कि निकट भविष्य में कोई बड़ा विस्फोट होने वाला है। क्योंकि कांगड़ा में पिछले दिनो सांसद किशन कपूर और पूर्व मंत्री रविन्द्र रवि कि कुछ अन्य नेताओं के साथ हुई बैठक को जिस तरह से बागी गतिविधि करार देकर कांगड़ा, चम्बा के दस विधायकों और अन्य नेताओं ने राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को पत्र लिखकर बागीयों के विरूद्ध कारवाई करने की मांग की उससे पार्टी के भीतर की स्थिति स्वतः ही बाहर आ गयी है। क्योंकि इस बैठक को लेकर जब पहली बार सवाल उठे थे तब किश्न कपूर ने यह स्पष्ट किया था कि सांसद से मिलने के लिये कार्यकर्ताओं को पहले से समय लेने की आवश्यकता नही होती है। लेकिन कपूर के इस स्पष्टीकरण के बावजूद दस विधायकों द्वारा राष्ट्रीय अध्यक्ष को पत्र लिखकर कारवाई की मांग करना पार्टी के भीतर की कहानी को ब्यान कर देता है।
 इस स्थिति को समझने के लिये यदि थोड़ा और पीछे जायें तो यह सामने आता है कि पार्टी के आठ विधायकों ने नेता प्रतिपक्ष के साथ एक संयुक्त पत्र लिख कर विधानसभा सत्र बुलाने की मांग की थी। सभी लोगों ने सामूहिक रूप से यह पत्र विधानसभा अध्यक्ष को सौंपा था। विधानसभा अध्यक्ष ने इस पर और विधायकों के हस्ताक्षर करवाने का सुझाव दिया था। विधानसभा सत्र बुलाने की यह मांग जब सार्वजनिक हुई तब पार्टी अध्यक्ष राजीव बिन्दल ने एक ब्यान जारी करके विधायकों की इस मांग को अनुचित करार दिया था। लेकिन बिन्दल के इस ब्यान से यह प्रमाणित हो गया था कि इन आठ विधायकों ने सत्र बुलाने की मांग की थी। सत्र बुलाने के लिये कोरोना पर सदन में चर्चा करने का तर्क दिया गया था। कोरोना पर चर्चा की आवश्यकता क्यों महसूस की गयी थी वह सैनेटाइज़र खरीद और पीपीई किट्स खरीद के विजिलैन्स में पहुंचने से स्पष्ट हो जाती है।
इसी के साथ एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि लोकसभा चुनावों के दौरान जो दो मन्त्री पद रिक्त हुए थे वह अब तक खाली चले आ रहे हैं। फिर विपिन परमार के विधानसभा अध्यक्ष बनने के बाद एक और पद खाली हो गया था। एक मन्त्री पद पहले ही खाली रखा गया था। इस तरह मन्त्रीमण्डल में चार मन्त्री पद भरे जाने हैं। प्रदेश में मुख्यमन्त्री  के अतिरिक्त बारह मन्त्री हो सकते हैं। सरकार का आधा कार्यकाल समाप्त हो चुका है। कार्यकाल के अनितम छः महीने तो चुनाव का समय होता है। इस समय कोरोना के कारण पूरे देश की अर्थव्यवस्था संकट में चल रही है। प्रदेश सरकार ही अब हर माह कर्मचारियों का एक-एक दिन का वेतन दान में ले रही है। ऐसे में यदि चारों मन्त्री पद भरे जाते हैं तो निश्चित रूप से जनता इस पर सवाल उठायेगी ही। उधर मन्त्री बनने की ईच्छा पाले हुए विधायक झण्डी पाने के लिये कुछ भी करने को तैयार हैं। और इस कुछ भी में विरोध और विद्रोह को नकारा नही जा सकता।
उधर प्रशासनिक स्तर पर यह मुख्यमन्त्री के अपने ही कार्यालय की स्थिति यह है कि अढ़ाई वर्ष के कार्यकाल में प्रधान सचिव के पद पर चैथी नियुक्ति करनी पड़ी है। इसी के साथ एक सेवानिवृत अधिकारी को अब सलाहकार के रूप में नियुक्त करना पड़ा है। प्रधान सचिव के पद पर जनवरी 2022 में पांचवी नियुक्ति करनी पड़ेगी या सेवानिवृत के बाद पुनः नियुक्ति देनी पड़ेगी। तब कार्यालय के अन्त तक  पहुंचते पहुंचते यह सरकार भी वीरभद्र शासनकाल के टार्यड और रिटार्यड के मुकाम तक पहुंच जायेगी। इस परिदृश्य में यह सवाल उठने स्वभाविक है कि क्या मुख्यमन्त्री कार्यकाल के पहले दिन से ही इन अधिकारियों को अपने पास तैनाती नही दे सकते थे। अब तो जैसे जैसे कार्यकाल आगे बढ़ेगा उसी अनुपात में विपक्ष आक्रामक होता जायेगा क्योंकि भ्रष्टाचार के बहुत सारे मामलों में यह सरकार कोई कारवाई नहीं कर पायी है।

 

क्या प्राईवेट स्कूल फिर सरकार को गुमराह करने में सफल हो गये है

 

शिमला/शैल। प्राईवेट स्कूलों में बच्चों को पढ़ाना अधिकांश अभिभावकों की मजबूरी है। क्योंकि शहरों में सरकारी स्कूल इतनी मात्रा में नही हैं जिनमें सारे बच्चों को दाखिला मिल पाये। सरकार इस तथ्य को भलीभांति जानती है। शिक्षा सबको चाहिये यह भी एक सच है। सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर क्या है इसकी जानकारी सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण में दर्ज रिपोर्ट में से मिल जाती है। वर्ष 2019-20 के आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक विभिन्न ग्रेडों के भीतर बच्चों के पढ़ने के स्तर में भिन्नता दर्शाती है। उदाहरण के लिए, कक्षा III में 2 प्रतिशत बच्चे अक्षर भी नहीं पढ़ सकते हैं, 9.2 प्रतिशत अक्षर पढ़ सकते हैं, लेकिन शब्द या उससे ज्यादा नहीं पढ़ सकते हैं, 15.7 प्रतिशत शब्द पढ़ सकते हैं, लेकिन कक्षा एक स्तर के पाठ या उससे ऊपर नहीं पढ़ सकते, 25.4 प्रतिशत कक्षा एक के स्तर का पाठ पढ़ सकते हैं लेकिन कक्षा द्वितीय स्तर का पाठ नहीं पढ़ सकते। प्रत्येक कक्षा के लिए, सभी स्तरों की कुल संख्या 100 प्रतिशत है।
2012 में कक्षा तीन के निजी और सरकारी स्कूल केवल 39 प्रतिशत बच्चे कक्षा दूसरी के स्तर का पाठ पढ़ पाए थे, जबकि इस स्थिति में 2018 में सुधार हुआ और बढ़कर 48 प्रतिशत बच्चे कक्षा दूसरी स्तर के पाठ पढ़ने में सक्षम हो गए।
सरकारी स्कूलों की यह स्थिति है जो अभिभावकों को प्राईवेट स्कूलों में जाने के लिये बाध्य करती है। इसी व्यवहारिक स्थिति के कारण बड़े शहरों में प्राईवेट स्कूलों की संख्या अधिक होती है। इसी का फायदा उठाकर प्राईवेट स्कलों के प्रबन्धकों ने शिक्षा को एक बड़ा बाज़ार बनाकर रख दिया है। प्लसटू तक के इन स्कूलों में बच्चों से इतनी अधिक कीमत फीस और अन्य शुल्कों के नाम पर वसूली की जाती है जितनी शायद कालिज, विश्वविद्यालय या प्रोफैशनल संस्थानों में भी नही वसूली जाती है। सरकार भी इस तथ्य से परिचित है। सरकार ने जहां प्रोफैशनल संस्थानों के लिये नियामक आयोग बना रखे हैं वहां पर इन स्कूलों के लिये नियामक के नाम पर कुछ नही है। यह स्कूल बच्चों को किताबें, कापियां और वर्दी तक खुले बाज़ार से नही लेने देते हैं। पढ़ाई के अतिरिक्त यह एक अलग व्यापार यहां पर चलता है जिस पर कोई नियन्त्राण नही है।
यह प्राईवेट स्कूल अभिभावकों पर कितना आर्थिक बोझ डालते हैं इसका अन्दाजा लगाना आसान नही है। कई बार इनके व्यापारीकरण के खिलाफ आवाज़ भी उठ चुकी है। सरकार ने कई निर्देश भी जारी किये हैं। लेकिन इन निर्देशों पर अमल कितना हुआ है इसकी जानकारी सरकार के पास नहीं है। यह स्कूल फरवरी, मार्च में बच्चों को दाखिला दे देती हैं और उसी समय सारे वार्षिक शुल्क ले लेते हैं। ऐसे में अब जब सारे स्कूल मार्च से बन्द चल रहे हैं तब इन स्कूलों को लेकर यह मांग उठी थी कि इस दौरान की फीस बच्चों से न ली जाये। सरकार ने इस मांग को मानते हुए यह आदेश कर दिये कि केवल टयूशन फीस ही ली जायेगी। जबकि इसी टयूशन फीस को न लेने की मांग थी क्योंकि बाकी चार्जज तो स्कूल पहले ही ले चुके हैं। ऐसे में लगता है कि यह स्कूल सरकार को गुमराह करने में सफल हो गये है और सरकार से यह घोषणा करवा दी कि अभिभावकों को बड़ी राहत दे दी है। जबकि व्यवहार में कुछ नही मिला है।

 

Facebook



  Search