शिमला/बलदेव शर्मा
प्रदेश वित्त निगम लगभग डूब चुका है। एक अरसे से निगम नई ईकाईयों को फाईनैन्स नहीं कर कर पा रहा है। धर्मशाला आदि कई स्थानों पर इसके कार्यालय व्यवहारिक रूप से बन्द हो चुके हैं। वैसे तो प्रदेश के लगभग सभी निगम और बोर्ड घाटे में चल रहे हैं केवल खाद्य एवम् आपूर्ति निगम को छोड़कर। लेकिन प्रदेश के वित निगम का बदहाल होना अपने में कुछ अलग ही सवाल खडे करता है। क्योंकि इसके प्रबन्धन में दूसरे निगमों/बार्डो से भारी अन्तर है। इस निगम के प्रबन्धन बोर्ड में कोई गैर सरकारी सदस्य नही होता है और प्रदेश के मुख्य सचिव ही इसका अध्यक्ष होता है। मुख्य सचिव के साथ सरकार के अन्य वरिष्ठ अधिकारी इसके प्रबन्धकीय बोर्ड के सदस्य होते हैं। यह व्यवस्था इसलिये है ताकि किसी को ऋण देने और उसकी वसूली करने में कोई राजनीतिक दबाव आड़े न आये और सारा काम नियमों कानूनो के मुताबिक हो। वित्त निगम का एक ही काम उद्योग ईकाईयों को ऋण देना और उसकी वसूली करना है। इसकी स्थापना राज्य वित्त निगम अधिनियम 1951 के तहत हुई है और इस अधिनियम की धाराओं 29,30,31 और 32 में ही यह सक्ष्म प्रावधान है कि किसी भी ऋण की वसूली के लिये सीपीसी का सहारा न लेना पडे़।
वित्त निगम के आन्तरिक रैगुलेटर सिडवी इसके निरीक्षण और संचालन की व्यवस्था के लिये प्रदेश के वित्त विभाग के पास इसके प्री आडिट की जिम्मेदारी है। अधिनियम में रखी गयी इस व्यवस्था का अर्थ है कि इसके हर लेन-देन को अमली शक्ल लेने से पहले प्री आडिट से होकर गुजरना आवश्यक है। वित्त विभाग को आन्तरिक आडिट की जिम्मेदारी का अर्थ है कि ऋण आदि की किसी भी अदायगी से पूर्व यह सुनिश्चित करना कि इसमें वांच्छित सारी आवश्यक औपचारिकतांए पूरी की ली गयी हैं। किसी भी ऋण के दिये जाने से पूर्व सुनिश्चित किया जाता है कि इसकी वापसी कैसे होगी। इसके लिये ऋण लेने वाले की अचल संपति आदि के सारे दस्तावेज धरोहर के रूप में रखे जाते हैै और इनका संबधित राजस्व अधिकारी के रिकार्ड में इन्दराज करवाया जाता है ताकि निगम की अनुमति के बिना इसे बेचा न जा सके। धरोहर रखी गयी संपति की कीमत दिये गये ऋण से कम नहीं होनी चाहिये। यदि इस व्यवस्था की अनुपालना सुनिश्चित रही होती तो प्रदेश के वित्त निगम के डूबने की नौवत कभी न आती।
आज वित्त निगम की कुल रिकवरी का आंकडा 1700 करोड़ तक पंहुच गया है। इस 1700 करोड़ की रिकवरी का मूलधन केवल 75 करोड़ है। लेकिन इस 75 करोड़ के मूलधन की वसूली के लिये धरोहर रूप में रखी गयी संपति की कीमत 25 करोड़ भी नही है। स्वााभाविक है कि जब 25 करोड़ की धरोहर के एवज़ में 75 करोड़ का ऋण दे दिया जायेगा तो वह 1700 करोड़ तक पहुंच ही जायेगा। इस समय डीआरटी चण्डीगढ़ के पास रिकवरी के लिये दायर हुए केसों में निगम ने 119 लाख के तो स्टांप पेपर आदि ही लगा रखे हैं लेकिन रिकवरी केवल 60 लाख है जबकि चण्डीगढ़ में इन मामलों की पैरवी करने के लिये नियमित रूप से दो कर्मचारियों की तैनाती की है और उन्हें एक गाडी भी दी गयी हैै। इसके अतिरिक्त इन मामलों में वकीलों को जो फीस दी गयी वह भी करोड़ो में है। रिकवरी के मामले सीपीसी के प्रावधानों के तहत दायर किये गये। जब डीआरटी की स्थापना हुई और इसका कार्यालय चण्डीगढ़ में भी स्थापित हुआ तब एचपीएफसी ने भी इसका रूख कर लिया ऋणधनों की बसुली के लिये लैण्ड रैवन्यू एक्ट के तहत प्रावधान है इसके लिये 1983 में HP Public Money ( Recovery of Dues) Act 1973 में संशोधन किया गया था। यही नहीं 1985 में लैण्ड रैवन्यू एक्ट के तहत रिकवरी सुनिश्चित करने के लिये सारी वित्तिय निगमों को अधिकृत करने के लिये वित्त निगम अधिनियम 1951 की धारा 32 में 32Gजोड़ा गया था । लेकिन इस प्रावधान के तहत वांच्छित नियम बनाने में 18 वर्ष का समय लगा दिया गया। 2003 में यह नियम बनाये गये। यह नियम बनने के बाद इनके तहत कितनी कारवाई हुई यह देखने का भी किसी ने कष्ट नही किया। 1994 से 2009 के बीच निगम के अधिनियम की 31 के तहत दायर हुए 80 मामलों में एक्ट के तहत अधिकृत वैधानिक आदेश तक हासिल करने का प्रयास नही किया गया है। कई मामलों में तो धरोहर के रूप में रखी संपति को बेच लिया गया है क्योंकि संबधित राजस्व रिकार्ड में इन्दराज ही नही थे।
वित्त निगम की इस जमीनी हकीकत से यह सवाल उभरते हैं कि जब निगम के अधिनियम की धाराओं 29,30,31 और 32 ऋण वसूली की प्रक्रिया और प्रावधान स्पष्ट परिभाषित हैं तो फिर उनको नजर अन्दाज करके सीपीसी की प्रक्रिया और प्रावधानों को लम्बा सहारा क्यों लिया गया? जब ऋण वसूली के लिये लैण्ड रैवन्यू एक्ट का प्रावधान सारी वित्तिय निगमों को उपलब्ध है तो इसके तहत कारवाई क्यों नही की जा रही? वित्त निगम के प्रबन्धन की जो कार्यशैली रही है उससे यह भी सवाल उभरता है कि क्या निगम के अधिनियम के प्रति इसका प्रबन्धन सही में अनभिज्ञ रहा है या फिर जानबूझ कर राजनीतिक आकाओं को खुश करने के लिये यह नजर अन्दाजी की गयी है। आज प्रबन्धन की इस कार्यशैली के कारण निगम का 1700 करोड़ रूपया डूब रहा है। क्या इसके लिये किसी की जिम्मेदारी तय की जा सकेगी। वित्त निगम की यह वस्तुस्थिति इसके अध्यक्ष मुख्य सचिव के संज्ञान में है लेकिन वह इस दिशा में कोई कदम नहीं उठा पा रहे हैं। इससे यह संकेत उभरता है कि उनपर भारी दबाव चल रहा है क्योंकि बहुत सारे मामले ऐसे हैं जो प्रदेश के बडे़ राजनेताओं या उनके संबधियों से ताल्लुक रखते हैं।
शिमला/जे.पी.भारद्वाज
रोहडू के पूर्व विधायक खुशी राम बालनाटाह ने कहा है कि वीरभद्र सरकार द्वारा धर्मशाला को दूसरी राजधानी घोषित करने से अनावश्यक रूप से क्षेत्रीय टकराव बढ़ेगा और वित्तीय संकट खड़ा होगा। बालनाटाह ने कहा कि मुख्यमंत्री द्वारा यह कहना कि उस क्षेत्र की जनता को लाभ देने के लिए यह निर्णय लिया गया है न केवल हास्यास्पद है अपितु राजनीति बेईमानी भी है। अंग्रेजो के राज में जब सारे देश की राजधानी शिमला थी। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक के सभी प्रान्त इसी राजधानी से शासित होते थे तब देश के किसी कोने से भी इसका विरोध नहीं हुआ था। किन्तु आज जब शिमला से 6 घण्टों में धर्मशाला पहुँच सकते हैं तो दूसरी राजधानी का औचित्य क्या है। शिमला अंतराष्ट्रीय महत्व का शहर है यहाँ पर पहले से राजधानी की सारी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध है जबकि दूसरी जगह पर यह सब नव निर्माण करना पड़ेगा।
बालनाहटा ने कहा कि जिस छोटे से प्रदेश पर 40,000 करोड़ रूपये से ऊपर का कर्जा हो और हर वर्ष सैकड़ों करोड़ का अनुत्पादक खर्च बढ़ रहा हो ऐसे में दूसरी राजधानी का निर्णय प्रदेश हित में नहीें बल्कि आगामी विधान सभा चुनावों को ध्यान में रख कर लिया गया निर्णय है।
बालनाहटा ने माँग की कि मुख्यमंत्राी बताएं कि शिमला धर्मशाला में कितने-2 समय के लिए सरकार बैठेगी? इस पर कुल कितना धन व्यय किया जाएगा, क्या धर्मशाला के लिए कर्मचारियों की नियुक्ति स्थानीय स्तर पर होगी या शिमला से कर्मचारियों को स्थानान्तरित किया जाएगा?
बालनाहटा ने आरोप लगाया कि वीरभद्र सरकार सारा समय मंत्रीयों व मुख्यमंत्री विधायकों के आपसी टकराव में बीत गया इसलिए जनता को भ्रमित करने के लिए यह निर्णय लिया गया क्योंकि यह सरकार बेरोज़गारी दूर करने व भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने जैसी समस्याओं पर पूरी तरह विफल रही है। बालनाहटा ने कहा कि लम्बे समय के पश्चात् सभी प्रदेशवासियों के सहयोग से नया-पुराना हिमाचल नीचे-ऊपर का हिमाचल जैसे जुमलों को भुलाकर संभी सौहार्दता के साथ प्रदेश में रह रहे है, किन्तु लोगों को बांटने वाला यह निर्णय दुर्भाग्य पूर्ण है जिस जनहित में वापिस लिया जाए।
शिमला/शैल। आठ नवम्बर को लागू हुई नोटबंदी के तहत 500 और 1000 रूपये के नोटों का चलन बन्द कर दिया गया था। इसके बाद इन पुराने नोटों को बैंक में जाकर बदलवाने या अपने खाते में जमा करवाने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नही था। इसके लिये सरकार ने 30 दिसम्बर तक का वक्त दिया था। इसके बाद 31 मार्च तक इन पूराने नोटों को रिर्जव बैंक की चिन्हित शाखाओं में ही जमा करवाया जा सकता है। 30 दिसम्बर तक करोड़ो खातों में यह नोट जमा हुए हैं। 31 मार्च तक और समय है लेकिन इसके वाबजूद कुछ लोगों ने यह समय सीमा बढ़ाये जाने के लिये सर्वोच्च न्यायालय में दस्तक दी है। सर्वोच्च न्यायालय ने इन याचिकाओं पर केन्द्र सरकार से जबाव मांगा था। इस पर केन्द्र सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि वह इसमें समय बढ़ाने के हक मेें नही है। सर्वोच्च न्यायालय में यह याचिकाएं आने से यह स्पष्ट हो जाता है कि कुछ लोगों के पास अभी पुराने 500 और 1000 के नोट है। इस वस्तुस्थिति को सामने रखते हुए सरकार ने एक बार फिर प्रधानमन्त्री गरीब कल्याण योजना के तहत 50% टैक्स और 25% तक चार वर्ष के लिये बिना ब्याज के इस योजना में निवेश करने का मौका दिया है यह खुलासा प्रदेश के प्रधान चीफ कमीश्नर ने एक पत्रकार वार्ता में किया है।
इस वार्ता में यह भी खुलासा हुआ कि प्रदेश में 30 दिसम्बर तक हजारों की संख्या में पुराने नोट जमा करवाये गये हैं। इनकी कुल संख्या और जमा करवाने वालों की कुल संख्या का अभी तक आंकलन किया जा रहा है। लेकिन इसमें जिन लोगों ने 15 लाख और इससे अधिक की राशी जमा करवाई है ऐसे लोगों से उनकी आय का स्त्रोत पूछा जा रहा है। इसके लिये विभाग ने वाकायदा लोगों को नोटिस भेजे हैं। विभाग द्वारा भेजे गये नोटिसों पर अभी तक 550 लोगों का जबाव नही आया है। माना जा रहा है कि इन लोगों में ऐसे भी हैं जिन्होनें एक करोड़ या इससे भी अधिक पैसा जमा करवाया हैं। शिमला में भी ऐसे लोग हैं जिन्होने इस तरह का पैसा जमा करवाया है। जनधन खातों के माध्यम से भी कुछ लोगों द्वारा भारी संख्या में पैसा जमा करवाये जाने भी संभावना है। कोई व्यक्ति अपने घर में कितना कैश रख सकता है इसको लेकर कोई सीमा तय नही है। इसमें केवल यही आवश्यकता है कि ऐसे कैश का वैध स्त्रोत होना चाहिए। इसे संबधित व्यक्ति की आयकर रिर्टन के साथ मिलाकर फैसला लिया जायेगा। इसमें उन लोगों के लिये थोडी कठिनाई आ सकती है जिन्होने अपनी आय का स्त्रोत कृषि या बागवानी बता रखा है। क्योंकि कृषि और बागवानी से होने वाली आय पर कोई इन्कम टैक्स नही लगता है।
सूत्रों के मुताबिक प्रदेश के सहकारी बैंक के माध्यम से 500 और 1000 के 653 करोड़ के पुराने नोट जमा हुए है। इसमें अकेले सोलन में ही 153 करोड़ जमा हुए है शिमला, चम्बा, मण्डी, किन्नौर आदि सेब उत्पादक क्षेत्रों में राज्य सहकारी बैंक की शाखाएं दूसरे बैंकों से कहीं ज्यादा हैं और इन सबमें करोड़ो के हिसाब से पुराने नोट जमा हुए हैं। इनके कई खाता धारकों को आयकर विभाग के नोटिस मिल चुके हैं। जिनमें से कई लोगों ने अभी तक जबाब दायर नहीं किये हैं। सूत्रों की माने तो बहुत सारे लोगों के पास सेब/फल बेचने और इस आधार पर दिखायी गयी आय को प्रमाणित करने के वैध दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं। कुछ मामलों में सेब आढतियों/कमीशन ऐजैन्टों के पास भी उचित रिकार्ड उपलब्ध नही है। ऐसे मामलों में कभी भी बड़ी कारवाई की संभावना से इन्कार नही किया जा सकता। शिमला में पिछले दिनों जिन सोना व्यापारियों का रिकार्ड खंगालने आयकर विभाग की टीेम ने दस्तक दी थी। सूत्रों के मुताबिक उनके खंगाले गये दस्तावेजो में सोने की खरीद और बेच के रिकार्ड में काफी अन्तर पाया गया है। चर्चा है कि एक ज्वैलर के पास 20 करोड़ की खरीद/बेच के जो दस्तावेज मिले हैं उनकी प्रमाणिकता को लेकर गंभीर सवाल खडे हो गये है। इस खरीद/बेच का संबध प्रदेश के दो राजनेताओं और कुछ बड़े अधिकारियों के साथ जोड़ा जा रहा है। पुराने नोटों के जमा करवाये जाने के साथ ही बेनामी संपत्तियों को लेकर भी बड़े पैमाने पर कारवाई चल पडी है। इसमें भी कई लोगों को नोटिस जारी हो चुके हैं।
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