Friday, 19 September 2025
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सी बी आई प्रकरण केे परिदृश्य में फिर शुरू हुआ नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों का दौर


वीरभद्र के बाई सर्कुलेश्न विश्वास मत लेने से उठी चर्चा

शिमला/शैल। वीरभद्र सिंह के खिलाफ चल रहा आय से अधिक संपित का मामला भी ट्रायल कोर्ट में पंहुच गया है। इस मामलें का संज्ञान लेकर अदालत ने वीरभद्र सहित सभी अभियुक्तों को 20 मई को तलब किया था। अदालत में हाजिर होने के बाद जब वीरभद्र ने जमानत के लिये आग्रह किया तो सीबीआई ने इसका विरोध किया। सीबीआई के विरोध के बाद अदालत ने ऐजैन्सी को इसमें अपना जवाब विधिवत रूप से रखने के निर्देश देते हुए 29 मई को यह मामला लगाया है। 29 मई को इसमें वीरभद्र एवम् अन्य को जमानत मिल पाती है या नही या फिर इा पर बहस पूरी न होने के नाम पर एक पेशी और आगे लग जाती है इस पर सबकी निगाहें लगी हुई है।

इस मामलें में जमानत को लेकर सन्देह की स्थिति इस लिये पैदा हुई है क्योंकि इसमें एक सह अभियुक्त आनन्द चौहान पहले से ही मनीलाॅड्ररिंग प्रकरण में ईडी की कस्टडी में चल रहे है और दिल्ली उच्च न्यायालय उसकी जमानत याचिका को पहले ही अस्वीकार कर चुके हैं। यह मनीलाॅड्ररिंग मामला भी सीबीआई में आय से अधिक सपंति की एफआईआर दर्ज होने के बाद बना था। ईडी इस मामलें में दो अैटचमैन्ट जारी कर चुकी है। जिसके मुताबिक बीस करोड़ से अधिक की लाॅड्रंरिग हुई है। माना जा रहा है कि ईडी की जांच में जो आंकड़ा आया है। उतना आंकड़ा सीबीआई का अभी तक नहीं है। वैसे तो जितनी लाॅडंिरंग हुई है उतनी ही सीबीआई के पास आय से अधिक संपति होनी चाहिये। सीबीआई सूत्रों के मुताबिक यह ऐजैन्सी इस सबको आधार बनाकर अभी और जांच करने तथा उसके लिये अभियुक्तों की कस्टडी का आग्रह और अब तक जुटाये गये साक्ष्यों व गवाहों को प्रभावित किये जाने की संभावना के नाम पर जमानत का विरोध करेगी। ईडी सूत्रों के मुताबिक अब आनन्द चौहान ने भी यह खुलासा कर दिया है कि एलआईसी की पाॅलिसीयों में निवेश हुआ पैसा बागीचे की आय न होकर वीरभद्र सिंह द्वारा दिया गया नकद पैसा है। आनन्द चौहान के इस खुलासे की जानकारी मिलने के बाद इसी सारे मामलें में सह अभियुक्त बने चुन्नी लाल तो अस्पताल पहुंच गये हैं। इस समय सीबीआई और ईडी दोनों की ओर से ही गिरफ्तारी की आशंका बराबर बनी हुई है। यही नहीं वीरभद्र के दो मन्त्री भी इसी प्रकरण में ईडी के निशाने पर आ गये हैं।
कांग्रेस हाईकमान भी इस मामले में नजर बनाये हुए है। माना जा रहा है कि हाईकमान को भी यह आशंका हो गई है कि इस मामले में वीरभद्र को राहत मिलने की संभावना नहीं है। यदि इस प्रकरण में गिरफ्तारी हो ही जाती है तो यह हाईकमान के लिये भी एक बड़ी फजीहत होगी। सूत्रों की माने तो पिछले दिनों हाईकमान की ओर से संगठन चुनावों के लिये शिमला आये डा.कल्ला और राजाराम पाल तथा इनके बाद आये पंजाब के वित्त मन्त्री मनप्रीत बादल व राष्ट्रीय प्रवक्ता मनीष तिवारी के माध्यम से भी जो फीड वैक सुक्खू -वीरभद्र वाक्युद्ध और अन्य चीजों को लेकर हाईकमान को मिला है उसके बाद प्रदेश की प्रभारी अंबिका सोनी के माध्यम से वीरभद्र को पद त्यागने का सुझाव दिया गया है। अंबिका सोनी से ऐसा संकेत मिलने के बाद ही वीरभद्र ने विधायक दल से विश्वास हासिल करने की कवायद को अंजाम दिया है। वीरभद्र के निकटस्थ सूत्रों के मुताबिक इस सयम वीरभद्र पद त्यागने या विधानसभा भंग करने के विकल्प पर विचार कर रहे है। पद त्यागने की सूरत में वह अपने लिये पार्टी अध्यक्ष के पद की मांग रखने पर भी विचार कर रहे हैं। ऐसा माना जा रहा है कि यदि वीरभद्र हाईकमान के सुझाव पर पद त्याग देते है तो उस सूरत में विद्या स्टोक्स, कौल सिंह या जीएस बाली का नाम अगले नेता के रूप में समाने आ सकता है। वीरभद्र की ओर से विद्या स्टोक्स को नेता बनाकर कौल सिंह और जी एस वाली को उप-मुख्यमन्त्री बनाने का सुझाव है। यह माना जा रहा है कि अब बहुत जल्द इस पर हाईकमान दो टूक फैसला लेने जा रहा है।

सरकारी तन्त्र केे उत्पीडन से न्याय के लिये अनशन पर बैठने के कगार पर पहुंचे सुरेश तोमर

शिमला/शैल। पावंटा साहिब के ग्राम भैला के सुरेश तोमर ने देश के प्रधानमंत्री, मानवाधिकार आयोग, सर्वोच्च न्यायालय, मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह, मुख्य सचिव और प्रदेश उच्च न्यायालय के दरवाजे खटखटाकर सभी जगह न्याय के लिये गुहार लगाते हुए यह हताशा व्यक्त की है कि यदि अब भी उसे न्याय न मिला तो उसके पास अनशन पर बैठने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नही रह जायेगा। सुरेश तोमर इस स्थिति तक क्यों और कैसे पहुंचे हैं इसके लिये उनके पूरे मामले को समझने के साथ ही सारे संबद्ध तन्त्र की नीयत और नीति को समझना भी आवश्यक है।
तोमर की कहानी हिमाचल सरकार द्वारा कुमार हट्टी-सराहन -नाहन रोड़ को चैड़ा करने के लिये दिल्ली के सोमदत्त बिल्डरज़ प्रा.लि. को 14.10.2009 को 142 करोड़ का ठेका देेने से शुरू होती है। तोमर ने इस कंपनी के पास बतौर Sub contractor काम किया। तोमर को कंपनी ने 28 फरवरी को ही काम की साईट दे दी और उसने उसी दिन काम शुरू कर दिया। लेकिन लिखित में कान्ट्रैक्ट 16 अप्रैल को हस्ताक्षिरत किया। इस काॅन्ट्रेक्ट के मुताबिक तोमर को करीब आठ माह मे काम पूरा करके कपंनी को देना था। कान्ट्रैक्ट की शर्तों के मुताबिक जितना काम होता जायेगा उसको नाप कर हर माह की दस तारीख को पेमैन्ट कर दी जायेगी। कपंनी नियमित रूप से उसके काम को नापती रही लेकिन उसकी उसे पेमैन्ट नियमित नही दी गयी। केवल 24.5.2012 को उसे 3,65,662 रूपये की अदायगी की गयी। कपंनी से पेमैन्ट न मिलने के कारण तोमर को अपनी लेबर को पेमैन्ट करना कठिन होता गया। कंपनी से जब भी पेमैन्ट मांगी गयी तो कंपनी यह बहाना करती रही कि उसका काम measurable नही है और इस कारण इस समय तक तोमर ने करीब 70 से 80% काम भी पूरा कर दिया था। लेकिन पेमैन्ट न मिलने से उसे काम जारी रखना कठिन हो गया। पेमैन्ट के लिये कंपनी के अधिकारियों से लेकर संबद्ध विभाग के अधिकारियों तक सबको संपर्क किया गया। कंपनी वही बहाना काम के measurable न होने का करती रही और एचपीआरआईडीसी ने यह कहकर दखल देने से मना कर दिया कि तोमर कपंनी की ओर से नीमित सब कान्ट्रैक्टर नहीं है। सरकारी तन्त्र और कपंनी की बदनीयत से तोमर का करीब 80 लाख रूपया कपंनी के पास फंसा है। तोमर ने इस काम पर निवेश करने के लिये जो पैसा जुटाया था वह आज उसकी देनदारी बनकर उसके सिर पर खड़ा और परिवार का भरण-पोषण तथा बच्चों की पढ़ाई को चलाये रखना कठिन हो गया है। स्थिति के यहां तक पहुंचने के कारण ही तोमर को आमरण अनशन का कदम उठाने की नौबत आ गयी है।
तोमर को इस स्थिति तक धकेलने में एचपीआरआईडीसी कंपनी और पुलिस तक ने कैसे आपराधिक षडयंत्र रचा इसका खुलासा कंपनी को दिये कान्ट्रैक्ट की शर्तों को देखने से हो जाता है। सरकार ने एचपीआर आईडीसी के माध्यम से कंपनी को 142 करोड़ का ठेका दिया था जोकि 186 करोड़ में पूरा हुआ है। यह एक मैगा प्रौजैक्ट था। जिसे पूरा करने के लिये कंपनी को सब कान्ट्रैक्टर नियुक्त करने का भी अधिकार था लेकिन ऐसे उप ठेकेदारों के माध्यम से केवल 25% तक का ही काम करवाया जा सकता था। ऐसे उप ठेकेदारों को एचपीआरआईडी के पास नौमिनेट करना भी आवश्यक था। इस काम के लिये विभाग की ओर से एक कन्सलटैन्ट लूईस बर्जर भी नियुक्त थे जिन्हे सरकार ने लाखों रूपये दिये हैं। कन्सलटैन्ट का काम कंपनी के काम पर हर समय नजर रखना और उसकी गुणवता सुनिश्चित करना था। HPRIDC को कान्ट्रैक्ट की शर्तों के मुताबिक यह अधिकार हासिल था कि यदि कंपनी किसी भी शर्त की उल्लंघना करती है। तो यह कान्ट्रैक्ट रद्द किया जा सकता था।
जब तोमर और कंपनी में पेमैन्ट का विवाद आता है और उसकी शिकायत HPRIDC से ही जाती है तो यह जवाब दिया जाता है कि कंपनी ने आपको विभाग के पास उप ठेकेदार नामित नही किया है। तोमर और कंपनी के बीच उप- ठेकेदार का हस्ताक्षिरत कान्टैक्ट है कंपनी इसे अदालत में भी मान चुकी है। आरटीआई के तहत मिली जानकारी के मुताबिक कंपनी ने एक भी Sub contractor विभाग के पास nominate नहीं किया है। जबकि कंपनी में दो सौ से अधिक उप ठेकेदारों ने काम किया है और सबके हस्ताक्षरित कान्टैªक्ट हैं। 25% कार्य की शर्त के मुताबिक इतनेे उप ठेकेदार हो ही नही सकते थे यह शर्तों का उल्लंघन था और इसी पर यह कान्ट्रैक्ट रद्द हो जाना चाहिए था। जब अदालत में कंपनी तोमर को कान्टैक्ट देना स्वीकार कर चुकी है तो विभाग इस तथ्य को स्वीकार क्यों नहीं कर रहा है। जब उप-ठेकेदार होने का प्रमाण सामने है तो फिर विभाग ने कंपनी के खिलाफ कोई कारवाई क्यों नही की? क्या विभाग के अधिकारियों का कंपनी के साथ कोई बड़ा हित जुड़ा हुआ था। विभाग के प्रमुख सचिव तक सबके संज्ञान में यह ममाला था। लेकिन किसी ने भी तोमर को न्याय देना तो दूर उसे ठीक से सुना तक नही। कंपनी ने तोमर को जो काम अलाॅट किया था आरटीआई में मिली जानकारी के मुताबिक उसकी 1.18 करोड़ पेमैन्ट विभाग कर चुका है। कंपनी ने अदालत में स्वीकारा है कि तोमर के काम छोड़ देने के बाद उसके शेष बचे काम को एक अन्य से 18 लाख में पूरा करवाया है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि करीब एक करोड़ का काम तोमर ने किया था। जिसकी पैमेन्ट विभाग ने कंपनी को की है। जबकि कंपनी तोमर को पेमैन्ट न देने के लिये उसका काम measurable न होने का बहाना करती रही है। ऐसे में यदि तोमर का काम नापने योग्य था ही नही तो फिर विभाग ने एक करोड़ की पेमैन्ट कैसे कर दी? क्या यह पेमैन्ट बिना काम के की गयी और इसमें विभाग की कुछ मिलीभगत थी? आरटीआई में सामने आयी जानकारियों से यह स्पष्ट हो जाता है कि जितना बड़ा यह काम था कपंनी की नीयत भी उसी अनुपात में सही नही थी और इस सबमें विभाग के अधिकारियों की मिली भगत भी उतनी ही थी।
क्योंकि इसमें सवाल उठता है कि जब कंपनी Sub contractors से काम ले रही थी तो यह विभाग के संज्ञान में क्यों नही आया? विभाग का कन्सलटैन्ट क्या जिम्मेदारी निभा रहा था? जब पेमैन्ट का विवाद विभाग के संज्ञान में भी आ गया तो विभाग ने उसे सुलझाने का प्रयास क्यों नहीं किया? कंपनी जब नियमों का उल्लंघन कर रही थी तो उसके खिलाफ कारवाई क्यों नहीं की गयी? 142 करोड़ का ठेका बढ़कर 186 करोड़ कैसे हो गया? क्या यह सब विजिलैन्स जांच का विषय नहीं बनता है।

मनाली की अदालत में महिला प्रार्थियों ने बनाया पीएमओ और मुख्यमन्त्री को अदालत में गवाह

शिमला/शैल। ई गर्वनैस और ई समाधान की वकालत केन्द्र से लेकर राज्यों तक की जा रही है बल्कि अब ई माध्यम से ही सर्वोच्च न्यायालय तक में याचिका डालने का मार्ग प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने इसका बटन दबाकर प्रशस्त करने का दावा किया है। राज्य सचिवालय में भी ई-समाधान का सैल कार्यरत है परन्तु यह सब जमीनी हकीकत पर कितना सही है इसका खुलासा जेएमआईसी मनाली की कोर्ट में आये एक मामलें से हो जाता है। इस मामलें के मुताबिक मनाली जनपद की तीन महिलाओं पुष्प लत्ता आयु 35 वर्ष, पुर्णिमा 30 वर्ष और राधा देवी 63 वर्ष ने 19-1-2016 को एसएचओ मनाली को क्षेत्रा के कुछ राजस्व अधिकारियों के खिलाफ एक गंभीर शिकायत दी। लेकिन एसएचओ ने पूरा दिन इनको बैठाये रखने के वाबजूद मामला दर्ज नहीं किया। कई दिन तक चक्कर काटने के बाद भी जब मामला दर्ज नही हुआ तब इन्होने कोर्टे का सहारा लिया और सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत अदालत से गुहार लगायी। अदालत ने 12-9-2016 को संबधित पुलिस थाना को मामला दर्ज करने के निर्देश दिये। इन निर्देशों पर भी आठ दिन बाद 20-3-2016 को मामला दर्ज हुआ। लेकिन मामला दर्ज होने के बावजूद दोषी राजस्व अधिकारियों के खिलाफ अभी तक कोई कारवाई नही हो पायी है। बल्कि एसएचओ मनाली ने अदालत को भेजे अपने उत्तर में याचिकाकर्ताओं पर ही पुलिस को सहयोग न देने का आरोप लगाया है।
जबकि पीड़ित महिलाओं ने सारे मामले की शिकायत पूरे दस्तावेजी प्रमाणों के साथ डीएसपी मनाली, एसडीएम मनाली को दी जंहा से 19-1-2016 को ही यह सारे दस्तावेज एसएचओ मनाली को भेज दिये गये थे। इन दस्तावेजों के थाना मनाली में पहुंचने का प्रमाण भी पीड़ित महिलाओं के पास है। लेकिन इनकी शिकायत पर कोई कारवाई करने के लिये तैयार नही है। यही नहीं इन्होने अपनी शिकायत देश के प्रधानमन्त्री के कार्यालय को, प्रदेश के मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह, सुप्रीम कोर्ट और प्रदेश उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार को भी डाक और ई माध्यम से भेजी है लेकिन कहीं से भी इन्हे कोई जबाब या कारवाई नहीं मिली है।
अब 20-3-2017 को एक बार फिर से जेएमआइसी मनाली की अदालत का दरवाजा खटखटाकर इस शिकायत की जांच डीएसपी स्तर के अधिकारी से करवाये जाने की गुहार लगायी है। अदालत को दी याचिका में इन्होने प्रधानमन्त्री के सचिव, मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह, रजिस्ट्रार सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट, जेएमआईसी कार्यालय और एसएचओ मनाली के कार्यालय को याचिका में बतौर गवाह नामज़द किया है। अदालत इस पर क्या आदेश करती है और पुलिस तन्त्र की क्या प्रतिक्रिया होगी इस पर सबकी निगाहें लगी है।

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