मैहरोली का फाॅर्म हाऊस हुआ अटैच
विक्रमादित्य की बढ़ सकती है पेरशानी
वीरभद्र के खिलाफ गलत शपथ पत्र का भी उभरा मामला
शिमला/बलदेव शर्मा
ईडी ने अन्ततः वीरभद्र के मनीलाॅंडरिंग प्रकरण में अपनी शेष बची जांच को पूरा करते हुए इसमें अटैचमैन्ट आदेश जारी करने के साथ मैहरोली स्थित फाॅर्म हाऊस अटैच कर लिया है। यह फाॅर्म हाऊस विक्रमादित्य और अपराजिता की कंपनी के नाम है। इस मामले की जांच के दौरान वीरभद्र सिंह ने यह ब्यान दिया है कि फाॅर्म हाऊस की खरीद विक्रमादित्य ने अपने पैसों से की है।लेकिन विक्रमादित्य ने इस दौरान जो आयकर रिटर्न दायर की है उसमें अपनी कुल आय 2,97,149 दिखाई है। इस फाॅर्म हाऊस की रजिस्ट्री 1.20 करोड़ की है और जिस गढ्ढे परिवार से यह खरीदा गया है। उसने आयकर विभाग को दिये ब्यान में यह स्वीकारा है। उसने इसमें 5 करोड़ कैश में लिया है और वह उसके लिये जुर्माना और टैक्स अदा करने के लिये तैयार है। अब ईडी ने इस फाॅर्म हाऊस की कीमत 27 करोड़ रूपये आंकी है। ऐसे में अब विक्रमादित्य को यह स्पष्टीकरण देना होगा कि उनके पास फाॅर्म हाऊस खरीदने के लिये इतना पैसा कंहा से आया। यदि इस धन का वैध स्त्रोत स्थापित हो सका तो यह सब मनीलाॅंड़रिंग बन जायेगा और इसमें विक्रमादित्य के लिये काफी कठिनाई बढ़ जायेगी। The submission of the petitioner no. 1 that his son has purchased the said farmhouse from his own source of income is fallacious, as the total income reflected by the son in the income tax return for the year 2012-13 is Rs. 2,97,149/- which is nowhere close to the amount required to purchase a farm house. He submits that the investigation has revealed that the farm house is included in the total assets of the petitioner no. 1, and that he had, amongst others, given around Rs. 90 lakhs for purchase of the same.
यही नहीं वीरभद्र सिंह के खिलाफ सीबीआई जांच में यह भी सामने आया है कि 2012 में प्रदेश विधानसभा का चुनाव लड़ते समय जो शपथ पत्र दायर किया है उसमें भी उन्होंने अपनी आय छिपाई है। क्योंकि जुलाई 2011 में जो आयकर रिटर्न दायर की थी उसमें कुल आय 25 लाख दिखाई थी लेकिन जब 02.03.2012 को इसे संशोधित करके दायर किया गया तो यह आय 1.55 करोड़ दिखायी। परन्तु जब अक्तूबर 2012 में विधानसभा चुनाव लड़ते समय जो शपथ पत्रा दायर किया गया उसमें कुल आय 18.66 लाख दिखायी गयी है। इस तरह चुनाव आयोग के पास भी वीरभद्र के खिलाफ अपनी आय कम दिखाने का आरोप आ जाता है। सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट में इस तथ्य को भी चुनाव आयोग के समक्ष रखने का जिक्र किया है। अब चालान दायर होने के बाद यह शपथपत्र का मामला भी आयोग में खुलने की संभावना बढ़ गयी है।It has come to light that that the first ITR for the AY 2011-12 was filed by Shri Vir Bhadra Singh on 11.07.2011 showing his agricultural income as Rs. 25 lakhs. The revised ITR for this year, showing an income of Rs.1.55 crores was filed by him on 02.03.2012. Thereafter, while contesting HP Assembly elections, he filed an affidavit on 17.10.2012 showing his income as Rs. 18.66 lakhs only. Thus, Shri Vir Bhadra Singh appears to have grossly suppressed his income in the said affidavit. This matter is proposed to be brought to the notice of the Election Commission of India, for taking necessary action as deemed fit.
शिमला/बलदेव शर्मा
धर्मशाला प्रदेश की दूसरी राजधानी होगी मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह के इस ऐलान से ही प्रदेश भर में इस पर एक बहस चालू हो गयी है। क्योंकि वीरभद्र के ऐलान के बाद यह मुद्दा विधानसभा पटल तक जा पहुंचा है। सरकार को इस आश्य की अधिसूचना तक जारी करनी पड़ गयी है। शिमला और मण्डी संसदीय क्षेत्रों के कई हिस्सों में वीरभद्र के इस फैसले का कड़ा विरोध भी सामने आने लग पड़ा है। संगठित तरीके से इसके विरोध की रूपरेखा तैयार की जा रही है। हमीरपुर और कांगड़ा के संसदीय क्षेत्रों में भी विधायक संजय रत्न और मन्त्री सुधीर शर्मा ही इस फैसले के मुखर पक्षधर होकर सामने आये हैं। जिन लोगों को प्रदेश की आर्थिक स्थिति का ज्ञान है वह इस फैसले पर वीरभद्र की राजनीतिक सूझबूझ पर ही प्रश्न उठाते नजर आ रहे हैं।
इस फैलसे के राजनीतिक आकलन के लिये इसमें जारी हुई अधिसूचना को ध्यान से पढ़ना आवश्यक है। अधिसूचना राज्यपाल को संविधान में धारा 154(1) प्रदत कार्यकारी शक्तियों के तहत मुख्यसचिव वीसी फारखा के आदेश से जारी हुई हैं। सरकार की सारी अधिसूचनांए राज्यपाल की इन शक्तियों के तहत ही जारी होती हैं। धर्मशाला को राजधानी बनाना एक ऐसा फैसला है जिसके वित्तिय और प्रशासनिक पक्ष भी हैं बल्कि सरकार के हर फैसले के यह पक्ष रहते ही हैं। इसलिये किसी भी फैसले का मसौदा मन्त्रीमण्डल की स्वीकृत के लिये ले जाने से पहले उस पर वित और विधि विभाग की भी राय ली जाती है। यह राय मन्त्रीमण्डल के समक्ष रखी जाती है। मन्त्रीमण्डल के पास लाये गये प्रारूप में इसका उल्लेख रहता है। लेकिन धर्मशाला को दूसरी राजधानी बनाने की घोषणा के बाद जब वीरभद्र पर इसकी विधिवत अधिसूचना जारी करने का दबाव आया तो जो प्रारूप मन्त्रीमण्डल के लिये तैयार किया गया उस पर वित्त और विधि विभाग की राय का कोई उल्लेख ही नहीं है। उच्चस्थ सूत्रों के मुताबिक विधि और वित विभाग के पास यह प्रारूप भेजा ही नहीं गया है। मन्त्रीमण्डल के समक्ष रखे गये प्रारूप में केवल यही कहा गया है कि धर्मशाला में 2005 से विधानसभा का शीतकालीन सत्र आयोजित किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त यहां पर गद्दी, गुज्जर, राजपूत, ब्रहामण आदि कल्याण बोर्डों की बैठकें भी आयोजित हो रही हैं। इसलिये धर्मशाला को दूसरी राजधानी अधिसूचित किया जाना अपेक्षित है। मन्त्रीमण्डल ने भी इसी प्रारूप को अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी है।
धर्मशाला को दूसरी राजधानी बनाने से प्रदेश के खजाने पर कितना अतिरिक्त बोझ पडे़गा? यहां पूरा सचिवालय कब स्थानान्तरित होगा? सचिवालय के साथ संवद्ध निदेशालय कब स्थानान्तरित होंगे? क्या इसके लिये धर्मशाला में अतिरिक्त भवन निर्माण की आवश्वकता होगी? ऐसे निर्माण के लिये कितनी भूमि अधिग्रहण करने की आवश्यकता होगी और यह अधिग्रहण प्रक्रिया कब से शुरू होगी? यहां पर राजधानी कितना समय कब से लेकर कब तक कार्यशील रहेगी। ऐसा कोई उल्लेख इस प्रारूप में नही है। सूत्रों के मुताबिक अभी तक इन पक्षों पर कोई विचार भी शुरू नही हुआ है। इसीलिये जारी हुई अधिसूचना में यह तक नही कहा गया है कि यह अधिसूचना कब से लागू होगी। जो अधिसूचनाएं जारी होने के साथ ही लागू हो जाती है। उनमें ऐसा लिखा जाता है लेकिन इसमें ऐसा कुछ भी नही है।
जारी हुई अधिसूचना की अस्पष्टता से यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या सरकार इस फैलसे को लेकर ईमानदारी से गंभीर है या नहीं ? क्योंकि इस अधिसूचना और इस आश्य के मन्त्रीमण्डल के पास लाये गये प्रारूप से यही इंगित होता है कि महज मुख्यमन्त्री की घोषणा का मान रखने और लोगों को भ्रम की स्थिति में रखने के लिये ही ऐसी अस्पष्ट अधिसूचना जारी की गयी है। क्योंकि इस अधिसूचना का यह भी अर्थ निकलता है कि धर्मशाला इसी समय से शिमला के बराबर राजधानी बन गयी है और सरकार का सारा प्रशासनिक ढांचा समानान्तर रूप से धर्मशाला में भी कार्यरत है। जबकि व्यवहार में ऐसा नही है। यदि आज धर्मशाला में कार्यरत कर्मचारी सरकार से शिमला की तर्ज पर राजधानी भत्ता और अन्य सुविधाओं की मांग करे तो क्या उनको यह दी जायेंगी ? स्वाभाविक है कि अधिसूचना में इसके प्रभावी होने के समय का कोई उल्लेख न रहने से कर्मचारियों को ऐसे लाभ से इन्कार किया जा सकता है। कार्यकारी शक्तियों के तहत जारी यह अधिसूचना कभी भी वापिस ली जा सकती है। क्योंकि यदि इस अस्पष्ट अधिसूचना को उच्च न्यायालय में चुनौती दी जाती है तो राजधानी के साथ जुड़े वित्तिय और प्रशासनिक प्रावधानों का प्रारूप में कोई स्पष्ट उल्लेख न रहने से इसका कानून की राय में टिका रहना कठिन हो जायेगा।
डीसी शिमला से आरटीआई में आयी सूचना बाहर
शिमला/शैल।
प्रियंका गांधी वाड्रा को हिमाचल सरकार से 10.08.2007 को पत्र संख्या Rev.BF(10)-284/2007 को 0-31-84 है. और 29.7.2011 को पत्र संख्या Rev.BF(10)- 283/2011 को 0.92.22 है. और वर्ष 2013 में 0.94.46 है. जमीन खरीद की अनुमतियां मिली है। यह जमीन रिट्रीट के साथ सटी है जहां गर्मीयों में राष्ट्रपति/प्रधानमन्त्री कभी अवकाश बिताने आते हैं। ऐसे स्थलों पर किसी अन्य व्यक्ति को सुरक्षा कारणों से जमीन खरीद की अनुमति अक्सर नही दी जाती है। प्रिंयका गांधी भी सुरक्षा के उसी दायरे में हैं लेकिन रिट्रीट के साथ जमीन खरीद की अनुमति पर सवाल उठ गये। दिल्ली के आरटीआई एक्टिविस्ट देवाशीष भट्टाचार्य ने इस खरीद की सूचना आर टी आई के तहत मांग ली। उन्हे सुरक्षा कारणों से यह जानकारी देने से इन्कार कर दिया गया। मामला सूचना आयोग तक पहुंचा। आयोग ने सूचना दिये जाने के आदेश कर दिये। लेकिन उसी दौरान सूचना दिये जाने पर प्रदेश उच्च न्यायालय से स्टे हासिल कर लिया गया था। सूचना आयोग का फैसला उच्च न्यायालय की अवमानना बन गया और परिणाम स्वरूप दोनों सूचना आयुक्तों ने उच्च न्यायालय में इसके लिये खेद व्यक्त किया। यह पूरा मामला आज भी उच्च न्यायालय में लंबित है।
लेकिन इसी बीच देवाशीष भट्टाचार्य ने 20.6.16 को सी बीआई के पास इस संद्धर्भ में एक शिकायत दायर कर दी। इस शिकायत पर कारवाई हुए सीबीआई ने यह शिकायत निदेशक लैण्ड रिकार्ड को भेज दी। डायरैक्टर लैण्ड रिकार्ड ने इसे डीसी शिमला को भेज दिया। डीसी शिमला ने इस पर कारवाई करते हुए इस खरीद से जुडी सारी जानकारी डायरैक्टर लैण्ड रिकार्ड को भेजते हुए उसकी कापी सी बीआई और देवाशीष भट्टाचार्य को भी भेज दी। देवाशीष इस जमीन खरीद की अधिकारिक सूचना ही मांग रहे थे जो उन्हे अब इस माध्यम से मिल गयी है। इस सूचना के बाद इससे जुडे अगले सवाल क्या और कब उठाये जाते हैं यह सब आगे सामने आयेगा। लेकिन इस सूचना को न देने के लिये जो लडाई लडी गयी उसमें सचिव राजस्व और डीसी शिमला को भी उच्च न्यायालय में देवाशीष के साथ पार्टी बनाया गया था। ऐसे में अब यह सूचना बाहर आने से और वह भी डीसी शिमला के हस्ताक्षरों से जो अदालत में स्वयं एक पार्टी हैं सवाल उठना स्वभाविक है कि क्या वीरभद्र सरकार ने प्रिंयका गांधी वाड्रा के मामलें में अपना स्टैण्ड बदल लिया है। इस मामले में आने वाले समय में प्रदेश उच्च न्यायालय क्या संज्ञान लेता हैै इस पर सबकी निगांहे लगी हैं। क्योंकि सूचना आने से यह माना जा रहा है कि सरकार जानबूझ कर इस मामले को लम्बा कर रही थी।
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