शिमला/बलदेव शर्मा
वीरभद्र सरकार के चार वर्ष पूरे होन पर जहां सरकार ने इस अवसर पर धर्मशाला में अपनीे उपलब्धियों का ब्योरा प्रदेश की जनता के सामने रखा है वहीं शिमला में भाजपा ने इन चार वर्षों में हुए भ्रष्टाचार को एक आरोप पत्र के माध्यम से राज्यपाल के संज्ञान में लाकर इस पर जांच की मांग की है। सरकार का मुख्य दायित्व होता है जनता के विकास के लिये काम करना, उनके जानमाल की रक्षा करना और कानून एवम व्यवस्था बनाये रखना। लोकतन्त्रिक व्यवस्था में सरकार का यह सवैंधानिक दायित्व होता है। अपना दायित्व निभाकर सरकार लोगों पर कोई मेहरबानी नही करती इसलिये सरकार द्वारा किये गये कार्यों को सरकार की उपलब्धि कहना सही नही है। इसी तरह विपक्ष का दायित्व रहता है कि सरकार के हर काम पर बारीक नजर रखे और किसी भी काम में कोई भ्रष्टाचार न होने दे। जहां भी भ्रष्टाचार सामने आये उस पर कड़ी कारवाई सुनिश्चित करवाये किसी भी सरकार ओर उसके विपक्ष का आकलन इन्ही मानकों पर होता है।
सरकार की उपलब्धियां कितनी सही मायनों में जमीन पर है और कितनी केवल कागजों पर ही हैं इसकी प्रत्यक्ष जानकारी जनता को
प्रदेश भाजपा ने वीरभद्र सरकार के खिलाफ आरोप पत्र राज्यपाल को सौंप कर अपनी जिम्मेदारी का पक्ष निभाया है। सरकार में फैले भ्रष्टाचार को जनता की अदालत में लाकर रख दिया है। लेकिन क्या भाजपा की बतौर विपक्ष जिम्मेदारी इसी से पूरी हो जाती है। सरकार के चार वर्ष के कार्यकाल में भाजपा का यह तीसरा आरोप पत्र है। इस कार्यकाल से पहले भी जब भी भाजपा विपक्ष में रही है वह सरकार के खिलाफ आरोप पत्र राज्यपाल को सौंपती रही है। ठीक इसी तरह कांग्रेस ने भी हर बार विपक्ष में आने पर सरकार के खिलाफ आरोप पत्र सौंपने की रस्म पूरी ईमानदारी से अदा की है। लेकिन दोनों ही पार्टियों ने सत्ता में आने पर अपने ही सौंपे हुए आरोप पत्रों पर कभी कोई कारवाई नही की है। इन राजनीतिक दलों के इस आचरण से जनता का विश्वास टूटा है। जनता की नजर में भ्रष्टाचार के इस हमाम में यह सब बराबर के नंगे है। यह आरोप पत्र भ्रष्टाचार को मुद्दा बनानेे की भूमिका तो अदा करते है और सरकार बदलने का कारण बनते हैं। लेकिन भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी अपनेे स्थान पर यथास्थिति बने रहते हैं। बल्कि भ्रष्टाचार पर जन चर्चा को रोकने के लिये आरोप लगाने वालों के खिलाफ मानहानि के दसवे दायर करने तक आ जाते हैं।
इस परिदृश्य में क्या भाजपा के इस आरोप पत्र का परिणाम भी यही रहेगा यह सवाल अहम है। हर आरोप पत्र राज्यपाल को सौंपा जाता है। बल्कि कांग्रेस ने तो 2012 में महामहिम राष्ट्रपति को आरोप पत्र सौंपा था। लेकिन ऐसे आरोप पत्र सौंपने का कोई परिणाम नही आता है। क्योंकि राजभवन के से यह आरोप पत्र सरकार के सचिवालय को भेज दिये जाते हैं और आरोप पत्र सौंपने वाले खामोश होकर अपनी राजनीति में व्यस्त हो जाते हैं। राजभवन के पास ऐसे मामलों की जांच के लिये अपना कोई स्वतन्त्र तन्त्र नहीं होता और सरकार तथा उसकी विजिलैन्स इन पर कोई कारवाई करती नहीं है। जबकि विजिलैन्स इन आरोप पत्रों को सोर्स रिपोर्ट बनाकर इन पर कारवाई करने के लिये अधिकृत है। जो आरोप पत्र भाजपा ने सौंपा है उसमें बहुत
संगीन आरोप है। संभवतः इसी संगीनता को सुंघते हुए मुख्यमन्त्री ने इन आरोपों पर मानहानि का दावा दायर करने की धमकी भी दी है। मुख्यमन्त्री की धमकी के परिदृश्य में यह और भी आवश्यक हो जाता है कि भाजपा की आरोप पत्र कमेटी इस आरोप पत्र के साथ अपना एक शपथ पत्र लगाकर इसे प्रदेश के लोकायुक्त को सौंपे। लोकायुक्त के अतिरिक्त दूसरा विकल्प इन आरोपों पर धारा 156(3) के तहत अदालत का दरवाजा खटखटाकर इन पर सीधे एफआईआर दर्ज करवाने का रास्ता अपनाये। यदि ऐसा नही होता है तो स्पष्ट हो जायेगा कि भाजपा भ्रष्टाचार के खिलाफ कतई गंभीर नही है बल्कि इसके माध्यम से केवल राजनीति करना चाहती है।