Friday, 19 September 2025
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पिछले चार माह में हुए जमीन खरीद के बडे़ मामले जांच ऐजैन्सीयों के राडाॅर पर


शिमला/बलदेव शर्मा

आयकर और ईडी ने राजस्व प्रशासन से तलब किया रिकार्ड
शिमला शहर के 65 मामले जांच के दायरे में

कालेधन के खिलाफ अपनी कारवाई को आगे बढ़ाते हुए केन्द्र सरकार के आयकर विभाग के जांच विंग और ईडी ने जिलों के राजस्व प्रशासन से पिछले चार माह में जमीन खरीद-बेच के उन मामलों का रिकार्ड तलब किया है। जिनमें 25 लाख या इससे अधिक का लेन-देन हुआ है। स्मरणीय है कि केन्द्र सरकार ने इसी वर्ष स्वेच्छा से कालाधन/बेनामी संपत्तियों की घोषणा की योजना जारी की थी। यह येाजना 30 सितम्बर को समाप्त हुई और उसके बाद इस योजना के तहत हुए खुलासों का आकलन करने के बाद 8 नवम्बर को नोटबंदी की घोषणा की गयी। अब नोटबंदी के साथ ही जमीन खरीद के बड़े मामलों की जांच शुरू की जा रही है। राजस्व प्रशासन से रिकार्ड तलब करने के साथ ही 11 जनवरी को आयकर विभाग राजस्व अधिकारियों के साथ बैठक करने जा रहा है। इस बैठक में जमीन खरीद के आये रिकार्ड पर विस्तृत चर्चा की जायेगी ।
सूत्रों के मुताबिक शिमला जिला प्रशासन ने 1.4.16. से 30.11.16 तक हुए सारे जमीन खरीद-बेच सौंदो का रिकार्ड भेज दिया है। इसके मुताबिक 1.4.16 से 30.11.16 तक शिमला शहर में 25 लाख या इससे अधिक के लेन-देन की 123 रजिस्ट्रीयां हुई हैं। अगस्त से नवम्बर तक 65 रजिस्ट्रीयां हुई हैं । जबकि 8.11.2016 को नोटबंदी की घोषणा के बाद 2.27 करोड़ की खरीद बेच की पांच रजिस्ट्रीयां हुई है। इनमें 26.10.2016 और 4.11.2016 को शिमला के करेडू में कुल्लु-मनाली के डुंगरी निवासी बख्शी परिवार के सदस्यों के नाम रजिस्ट्रीयां हुई है। इनमें हरेक रजिस्ट्री में प्रत्येक प्लाट 325.75 वर्ग मीटर है और हर प्लाट की कीमत 28 लाख दर्ज है। इसी दौरान कलस्टन में गुडगांव निवासी चीमा परिवार ने 141.26 वर्ग मीटर 49.84 लाख में 10.10.2016 को खरीदी और 18.10.2016 गौतम नगर दिल्ली के अमित भारद्वाज ने पांजडी़ में 229.92 वर्ग मीटर 80 लाख में खरीदी है। इन दोनों मामलों में धारा 118 के तहत सरकार से अनुमति लिये जाने को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है। जबकि कुल्लु मनाली के डुंगरी निवासी बख्शी परिवार में पत्नी का कृषक प्रमाण पत्र मनाली का बना हुआ है और पति का कृषक प्रमाण पत्र नालागढ़ से बना है। नालागढ़ से कृषक प्रमाण पत्र बनाये जाने का आधार इनके दादा का कभी नालागढ़ में कृषक होना बताया गया है। क्योंकि हिमाचल सरकार ने 2014 में एक संशोधन करके उन लोगों को कृषक होने का लाभ दिया है जिनके पूर्वज कभी प्रदेश में कृषक रहे हों।
आठ नवम्बर को नोटबंदी की घोषणा के बाद शहर में 2.27 करोड़ के पांच मामले पंजीकृत हुए हैं। क्या इन मामलों में सारा लेन-देन चैक के माध्यम से हुआ है। इसका पूरा खुलासा समाने नहीं आया है। बहरहाल यह सारे मामले जांच ऐजैन्सी के राडाॅर पर आ गये हैं।

नोटबंदी के बाद हुई खरीद















चर्चा में है यह बैंक

शिमला। प्रदेश के सचिवालय के गलियारों से लेकर स्कैण्डल प्वाईंट तक यह चर्चा हर कहीं सुनी जा सकती है कि हिमाचल में शिमला सहित कई स्थानों पर कई बैंकों के कई अधिकारियों और कर्मचारियों ने पुराने नोटों को बदलने में काफी माल बना लिया है। पुराने नोट बिजली, पानी, टेलीफोन, ट्रांसपोर्ट, गैस खरीद आदि के भुगतान के लिये मान्य कर दिये गये थे। कई लोगों ने सुविधाओं का खुलकर दुरूपयोग किया है। पुराने नोट बदलने की सुविधा आरबीआई ने सहकारी बैंकों को छोड़कर अन्य सभी बैकों को दे रखी थी। सहकारी बैंक इस सुविधा से इस धारणा पर वांच्छित रखे गये थे कि वह सीधे राजनेताओं/बड़े लोगों के प्रभाव में रहते हैं। हिमाचल का राज्य सहकारी बैंक अब श्डयूल बैंक की श्रेणी में आ चुका है इस लिये उसके पास यह सुविधा थी।
नोट बदलने में बड़े लोगों ने गरीबों के जनधन योजना के तहत जीरो बैलेन्स से खुले खातों का दुरूपयोग किया है। यह अब जगजाहिर हो चुका है। शिमला के मालरोड़ स्थित एक बैंक के बाहर नोट बदलवाने के लिये लगी भीड़ में बार-बार वही मजदूर देखे जाते रहे हैं। तर्क यह दिया जा रहा था कि उनके मालिक ने उनको एक वर्ष का वेतन एडवांस में दे दिया है। गरीबों के खातों के इस तरह के दुरूपयोग की रिपोटों पर ही आयकर और ईडी ने बैंकों से ऐसे खातांे और उनमें हुए लेन देन की जानकारी मांग रखी है। राज्य के सहकारी बैंक प्रबन्धन से भी यह जानकारी मांगी गयी है।
नोटबंदी के बाद किस बैंक में कितने पुराने नोट बदले गये। यह नोट किससे आये किसके खाते में जमा हुए इसका पूरा विवरण बैंकों से मांगा गया है। चर्चा है कि राज्य के सहकारी बैंक में भी करीब छः सौ करोड़ के पुराने नोट बदले गये हैं। यह इतनी बड़ी धन राशी कितने लोगों की थी? क्योंकि इतनी बड़ी रकम नकदी में दो चार दस लोगों के ही पास होना संभव नही लगती। क्यांेकि इतनी राशी को साधारण से बदलना संभव ही नही था क्योंकि इसके लिये एक सीमा तय थी। इसलिये माना जा रहा है कि इसकी जांच में कोई बड़ा खुलासा सामने आ सकता है।
मजे की बात तो यह है कि नोट बदलने के पवित्र कार्य में हिमाचल हाईकोर्ट यूको बैंक की शाखा का नाम भी चर्चा में चल रहा है। कई बड़ो ने इस बैंक शाखा का भी पूरा-पूरा लाभ उठाया है क्योंकि शिमला में एसबीआई के बाद आरबीआई की चैस्ट केवल यूको बैंक के ही पास है। चर्चा है कि इसके प्रबन्धकों ने बड़ो के घरों में जा कर नोटों की डिलिवरीे दी है। इस कड़ी में आईसीआईसीआई बैंक का विवरण तो आयकर विभाग के पास जांच केे लिये पहुंच भी चुका है और उसमें काफी बडे़ खुलासे सामने आने की संभवना है।

सरकारी कॉलिजों में रिलांयस जियो ने पसारे पांव

शिमला/शैल। प्रदेश के सरकारी कॉलिजों में भी मुकेश अबांनी की कंपनी जियो ने अपने 4-जी सिम के ग्राहको की तर्ज पर अपनी फ्री सेवायें देना आरम्भ कर दिया है। इन सेवाओं के प्रयोग के लिये छात्रां की स्मार्ट क्लासज़ तक लगायी जा रही हैं। 4-जी सेवाओें के इस्तेमाल के लिये कॉलिज प्रबन्धन इन्हे आधारभूत ढांचा उपलब्ध करवा रहा है। इन सेवाओं के लिये अभी जियो स्मार्ट क्लासज़ के माध्यम से इन सेवाओं के उपयोग के प्रतिछात्र अच्छे ट्रेंड हो जायेंगे और इससे कम्प्यूटर के प्रयोग करने में भी सहायता मिलेगी। जियो ने अब ग्राहकों को मुफ्त सेवाएं देने की समय सीमा 31 मार्च 2017 तक बढ़ा दी है। इस समय सीमा तक इन कॉलिजो में छात्र और अध्यापक पूरी तरह इनके अभयस्त हो जायेंगे और यह उनकी आवश्यकता बन जायेगी। जब 31 मार्च को मुफ्त सेवा अवधि समाप्त हो जायेगी उसके बाद कॉलिजो को इसका उपभोक्ता शुल्क स्वंय उठाना पडे़गा। छात्रों के लिये स्मार्ट क्लासों का प्रबन्ध भी अपने स्तर पर ही करना होगा।
रिलायंस जियो की एंट्री एक सुनियोजित तरीके से कैसे हो गयी और आने वाले समय में प्रबन्धन पर इसका क्या प्रभाव पडेगा इसको लेकर शिक्षा विभाग के पास क्या प्रारूप है इसकी कोई जानकारी विभाग के पास उपलब्ध नही है। सूत्रों के मुताबिक सचिव स्तर पर इसकी कोई जानकारी ही नही है। सचिवालय सूत्रों के मुताबिक विभाग में निदेशक स्तर पर ही जियो को एन ओ सी जारी कर दिया गया है। लेकिन जब शैल ने निदेशक उच्च शिक्षा कार्यालय से इस बारे में बात की तो उन्होने भी इस बारे मे अनिभज्ञता जाहिर की और अतिरिक्त निदेशक से संपर्क करने को कहा। अतिरिक्त निदेशक ने भी इस सबंध में उनके पास जानकारी होने से इन्कार किया। रिलायंस के सूत्रों के मुताबिक उन्होने यह शुरू करने से पहले शिक्षा निदेशक से एन ओ सी हासिल किया है। बल्कि अब जियो की तर्ज पर अब कई और कंपनीयां भी प्रदेश सरकार के विभिन्न अदारों में इस तरह की एंट्री के लिये आगे आ रही हैं। इन कपंनीयों के साथ बैठकें भी चल रही हैं। इसमें क्या फैसला होता है यह तो आगे ही पता चलेगा। लेकिन रिलायंस जियो की एंट्री प्रदेश के पूरे कॉलिज सैक्टर में कैसे हो गयी इसकी पूरी जानकारी किसी के पास भी नहीं है। इसके बारे में मुख्यमंत्री कार्यालय को कितनी जानकारी है? क्योंकि शिक्षा विभाग स्वयं मुख्यमंत्री के पास है इस पर भी विभाग में कोई कुछ कहने को तैयार नहीं है। बहरहाल रिलायंस जियो को प्रदेश के कॉलिज एक सुनिश्चित बाजार के रूप में उपलब्ध हो गये हैं।

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