Friday, 19 September 2025
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लोस चुनावों में आसान नही होगी राठौर की राह वीरभद्र के तेवरों से उभरे संकेत

शिमला/शैल। क्या कांग्रेस के नव नियुक्त अध्यक्ष कुलदीप राठौर पार्टी को लोकसभा चुनावों में पूरी एकजुटता के साथ उतार पायेंगे? क्या कांग्रेस इन चुनावों में 2014 के मुकाबले अपना प्रदर्शन सुधार पायेगी? यह सवाल कांग्रेस के भीतर एक बार फिर उभरते नजर आ रहे हैं क्योंकि वीरभद्र सिंह ने अब प्रदेश युवा कांग्रेस के अध्यक्ष के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। वीरभद्र सिंह ने मनजीत ठाकुर के अध्यक्ष होने पर यह कहकर सवाल उठाया है कि उसने विधानसभा चुनावों के दौरान पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ काम किया है जिसके कारण वहां हार मिली। युवा कांग्रेस के अध्यक्ष को पद संभाले काफी अरसा हो गया है और विधानसभा चुनाव भी 2017 में हुए थे। ऐसे में आज वीरभद्र सिंह द्वारा यह मुद्दा सार्वजनिक तौर पर उस समय उठाया जाना जब पार्टी के नये अध्यक्ष राठौर ने भी संगठन के भीतरी मामलों को ऐसे न उठाने के निर्देश जारी किये हुए हैं। इस परिपेक्ष में राजनीतिक विश्लेष्कों के लिये कांग्रेस के भीतर उभरती यह स्थिति एक रोचक विषय बन जाती है।
वीरभद्र का यह एतराज उस समय सामने आया है जब युवा कांग्रेस ने अभिषेक राणा के खिलाफ अनुशासनात्मक कारवाई करते हुए उनसे युवा कांग्रेस की जिम्मेदारीयां छीन ली हैं। अभिषेक राणा सुजानपुर के विधायक राजेन्द्र राणा के बेटे हैं और वीरभद्र सिंह अभिषेक राणा को हमीरपुर से लोकसभा के लिये भावी प्रत्याशी घोषित कर चुके हैं। जब अभिषेक ने लोस टिकट के लिये आवदेन किया था तब वह इसके लिये वीरभद्र सिंह का आर्शीवाद लेने विशेष रूप से गये थे। ऐसे में जिस व्यक्ति के खिलाफ उसका संगठन एक ओर अनुशासन की कारवाई कर रहा हो और दूसरी ओर पार्टी का वरिष्ठतम नेता छः बार मुख्यमन्त्री रह चुका व्यक्ति ऐसे व्यक्ति की उम्मीदवारी का सार्वजनिक ऐलान करे तो निश्चित रूप से यह सोचना ही पड़ेगा कि क्या यही पार्टी की एक जुटता और अनुशासन है। यहां यह उल्लेख करना भी संगत हो जाता है कि वीरभद्र सिंह के खिलाफ चण्डीगढ़ के ईडी कार्यालय मे मनीलाॅड्रिंग की शिकायत करने वाले भी राजेन्द्र राणा ही थे। बाद में राजेन्द्र राणा ने इस शिकायत को यह कहकर वापिस लिया था कि ‘‘किसी ने उनके नाम से यह शिकायत कर दी थी’’। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि राजेन्द्र राणा और वीरभद्र के सियासी रिश्तो की गहनता कुछ अलग ही है।
लेकिन इस समय पार्टी को लोकसभा चुनाव को सामना करना है। वीरभद्र एक लम्बे समय से सुक्खु को अध्यक्ष पद से हटाने की मांग कर रहे थे। इस मांग के समर्थन में जब आनन्द शर्मा ‘‘वीरभद्र सिंह, मुकेश अग्निहोत्री और आशा कुमारी जैसे सारे वरिष्ठ नेताओं ने इकट्ठे होकर प्रयास किया सुक्खु हट गये और राठौर को कमान संभाल दी गयी। राठौर के पदग्रहण करते समय जो कुछ घटा वह सबके सामने है। उस पर जांच बिठाई गयी थी जिसकी रिपोर्ट आ गयी है अब यह सामने आना है कि इस पर क्या कारवाई होती है। जबकि चर्चा यहां तक है कि जो लोग इस घटना की पृष्टभूमि मे थे उनमें से किसी को संगठन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी तक भी मिल सकती है। राठौर ने यह तो कहा ही है कि जिन कार्यकर्ताओं के साथ पूर्व में न्याय नही हुआ है उनके साथ न्याय किया जायेगा और संगठन मे कुछ नये लोगों को जिम्मेदारीयां दी जायेंगी। तय है कि यह सबकुछ यदि लोस चुनावों से पहले होता है तो इसका संगठन पर प्रभाव बहुत ज्यादा सकारात्मक नही रहेगा।
इस समय लोकसभा चुनावों में संगठन की परीक्षा सीटें जीतने के रूप में होगी। यह सीटें जीतने के लिये पार्टीे को पूरी आक्रामकता के साथ चुनाव में आना होगा और आक्रमकता मुद्दों पर निर्भर करेगी। अबतक कांग्रेस की जो आक्रामकता उसके आरोप पत्र के माध्यम से सामने आ चुकी है उसके आधार पर चुनावी सफलता मिल पाना सम्भव नहीं होगा। फिर वीरभद्र तो जयराम सरकार को अभी और वक्त दिये जाने की बात कह चुके है। संभवतः वीरभद्र के इसी निर्देश के कारण कांग्रेस का आरोप पत्र बहुत कमजोर दस्तावेज के रूप में सामने आया है। ऐसे में क्या पार्टी हिमाचल में केवल राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर ही चुनाव में जायेगी? यदि ऐसा होता है तो अभी तक प्रदेश का कोई भी नेता ऐसा सामने नहीं आया है जिसने राष्ट्रीय मुद्दों पर पूरी गहनता और गम्भीरता से अध्ययन किया हो। इसी के साथ यह भी रहेगा कि अभी प्रदेश सरकार को चार साल सत्ता में रहना है और लोगों को इसी से अपने काम करवाने हैं। इस परिदृश्य में नये अध्यक्ष की चुनौतियां बहुत बढ़ जाती है क्योंकि इस समय वीरभद्र सिंह ने जिस तरह युवा कांग्रेस के अध्यक्ष के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है उसका निश्चित रूप से युवा कार्यकर्ताओं पर असर पड़ेगा। इंटक में पहले से ही धढ़ेबन्दी खुलकर सामने आ चुकी है।
ऐसे में चुनावी सफलता के लिये उम्मीदवारों का चयन ही एक मात्र विकल्प रह जाता है। उसमें भी वीरभद्र हमीरपुर और कांगड़ा से अभिषेक राणा और सुधीर शर्मा की उम्मीदवारी का ऐलान कर चुके हैं। इनमें से सुधीर शर्मा ने तो टिकट के लिये आवेदन तक नही किया है। मण्डी से चुनाव लड़ने को लेकर वीरभद्र कई बार अपने ब्यान बदल चुके हैं। बल्कि सबसे पहले जब उन्होंने यह कहा था कि कोई भी मकरझण्डु चुनाव लड़ लेगा तो उसी से उनकी नीयत और नीति सामने आ गयी थी। इसी तरह जब हमीरपुर से सुक्खु की उम्मीदवारी को लेकर उनसे सवाल पूछा गया था तब उन्होने यहां तक कह दिया था कि वह नही समझते की हाईकमान में कोई इतना मूर्ख होगा। इस तरह यदि कांग्रेस के अन्दर अब तक जो कुछ घटा है और उसमें वीरभद्र सिंह की भूमिका किस तरह की रही है उसका निश्पक्ष आंकलन करने से यही सामने आता है कि यदि मण्डी से वीरभद्र स्वयं या उनके परिवार का कोई सदस्य चुनाव में आता है तभी पूरे चुनाव में कांग्रेस की गंभीरता और ईमानदारी झलकेगी अन्यथा नही। क्योंकि इस समय वीरभद्र परिवार राजनीति की जिस ऐज और स्टेज पर आ खड़ा है वहां से वह अब कोई चुनाव हारने के लिये नही लड़ेगा। यही स्थिति हमीरपुर मे मुकेश अग्निहोत्री की है। इस तरह यदि कांग्रेस इन दोनों को चुनाव लड़ने के लिये तैयार कर पाती है तोे प्रदेश का पूरा चुनावी परिदृश्य ही बदल जायेगा अन्यथा कांग्रेस को कोई सफलता मिलना आसान नही होगा। कुलदीप राठौर की राजनीतिक समझ की परीक्षा भी इसी से हो जायेगी अन्यथा बाद में सारा ठीकरा उनके सिर आसानी से फोड़ दिया जायेगा।

पन्ना प्रमुखों के सम्मेलन में राहुल-प्रियंका पर अमित शाह की प्रतिक्रिया क्या सियासी घबराहट है

शिमला/शैल। भाजपा द्वारा आयोजित पन्ना प्रमुख सम्मेलनों के बाद राजनीतिक और प्रशासनिक हल्कों में यह सवाल उठने लगा है कि क्या इन सम्मेलनों के सहारे ही चुनाव जीता जा सकता है? यह सवाल इसलिये उठने लगा है क्योंकि एक लोकसभा क्षेत्र में कई लाख मतदाता होते हैं। एक विधानसभा क्षेत्र में ही औसतन एक लाख से अधिक लोग होते है। चुनाव आयोग जब मतदाता सूचियां तैयार करता और छापता है तब एक पृष्ठ पर कई मतदाताओं के नाम छप जाते हैं और इस छपे हुए पृष्ठ को पन्ना की संख्या दी गयी है। इस तरह एक चुनाव क्षेत्र के मतदाताओं के नाम हजारों पन्नो पर छपे होंगे और एक पन्ने पर भी दर्जनो नाम दर्ज होंगे। ऐसे में इन पन्ना प्रमुखों को ही भाजपा का प्रतिनिधि मानकर चलना कितना लाभकारी सिद्ध होगा यह तो चुनाव परिणाम ही बतायेंगे। इसी के साथ जब यह पन्ना प्रमुख अपने गांव, गली, मोहल्ले में पार्टी का प्रचार करने निकलेंगे तो सबसे पहले आम आदमी के सवालों का इन्ही को जबाव देना होगा। अच्छे दिनो के नाम पर हर आदमी के खाते में आने वाले पन्द्रह लाख कहां गये? पैट्रोल डीज़ल के दाम क्यों बढ़े? मंहगाई क्यों कम नही हुई? उनके आसपास कितने युवाओं को रोजगार मिल पाया? और नोटबंदी में कितना कालाधन सामने आया? यह सारे सवाल इन्ही से पूछे जायेंगे और इन सवालों का जबाव जब बड़े नेताओं के पास नही है तो यह लोग कहां से जवाब दे पायेंगे। इस तरह से यह सम्मेलन अन्ततः घातक भी सिद्ध हो सकता है। यह आशंका भी कुछ हल्कों में उतरने लग पड़ी है।
अभी जब से कांग्रेस ने प्रियंका गांधी को पार्टी का महासचिव बनाकर पूर्वी उत्तर प्रदेश की कमान संभाली है तभी से भाजपा के हर छोटे-बड़े नेता की प्रतिक्रिया इस पर आनी शुरू हो गयी है। इन प्रतिक्रियाओं में तथ्यों के साथ -साथ भाषायी मर्यादा का स्तर भी बहुत नीचे आ गया है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रियंका के आने से हर छोटा -बड़ा नेता अपने-अपने स्तर पर बुरी तरह हिल गया है। क्योंकि यह एक स्थापित सत्य है कि राजनीति मे गाली उसी को दी जाती है जिससे डर लगता है। जिससे डर नही होता है उसे नज़रअन्दाज कर दिया जाता है। उसका सभाओं में नाम नही लिया जाता है क्योंकि नाम लेने से ही उसका आप अपरोक्ष में प्रचार कर जाते हैं। प्रियंका के महासचिव बनने के बाद पहली बार हिमाचल के ऊना में पन्ना प्रमुखों के सम्मेलन को सम्बोधित करने आये भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमितशाह की प्रतिक्रिया इस तथ्य की पुष्टि कर जाती है। क्योंकि यह प्रमाणित हो चुका है कि भाजपा नेतृत्व ने राहुल का जितना नेगेटिव प्रचार किया उसी के कारण वह हर आदमी के फोकस में आये और उनका आकंलन होना शुरू हुआ। इसी आंकलन के परिणामस्वरूप गुजरात और कर्नाटक में कांग्रेस की स्थिति में भारी सुधार हुआ तथा राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकारें बन गयी।
ऊना के सम्मेलन में अमित शाह, राहुल- प्रियंका से लेकर वीरभद्र सिंह पर निशाना साध गए। यही नहीं वह कांग्रेस नेताओं को डीलर कहने से भी नहीं चूके। भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर और उनके पिता पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के जलवे की जगह मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का जलवा दिखाने की कोशिश भी इस सम्मेलन के जरिए की गई। इस मौके पर अमित शाह ने कहा कि राहुल गांधी की ओर इशारा करते हुए कहा कि देश को ऐसी सरकार चाहिए जिसे कोई लीडर चलाए। ऐसी सरकार नहीं चाहिए जिसे कोई डीलर चलाए।
यही नहीं फौजी बहुल हमीरपुर संसदीय हलके को देखते हुए उन्होंने वन रैंक वन पैंशन मसले को भी अलग रंग दिया और कांग्रेस पार्टी पर निशाना साधा कि कांग्रेस के लिए ओआरओपी का मतलब हैं ओनली राहुल-ओनली प्रियंका। कांग्रेस पार्टी पर यह फौजियों की आड़ में यह तीखा हमला हैं। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार के केंद्र में सता में आने के बाद ओआरओपी का अपना वादा पूरा किया। अमित शाह ने जयराम ठाकुर की जमकर पीठ थपथपाई। उन्होंने कहा कि उन राज्यों में से जिनके जवान देश की सीमा को बचाने के लिए जान देता हैं। एक ही प्रदेश ऐसा है देश में जिसे चार-चार परम वीर चक्र मिले हैं। उन्होंने कहा कि 70 सालों तक फौजियों के सम्मान की किसी ने सुध नहीं ली। लेकिन मोदी सरकार ने सता में आते ही यह सम्मान दिया।
मोदी ने दिया ओआरओपी सेना के जवानों को दिया। शहीद की विधवा को दिया। उन्होंने दिया ओनली राहुल ओनली प्रियंका को वन रैंक-वन पैंशन दिया। नए किसम का वन रैंक वन पैंशन हैं। हमारे जवानों के लिए उनका वन रैंक वन पैंशन वाड्रा गांधी परिवार को दिया।
भाजपा व कांग्रेस में यही अंतर हैं। प्रदेश की कंदराओं में मोदी ने काम किया। चप्पे-चप्पे में काम किया। दुनिया के लिए रेबीज की बीमारी होती है उपचार की पद्धति पर काम किया उन्हें अवार्ड दिया। दिल्ली के गलियारों में घूमते थे उनको मिलते थे। मोदी सरकार ने उमेश कुमार भारती को अवार्ड दिया। हजारों वैज्ञानिकों का सम्मान किया।
उन्होंने अपने व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मित्र वीरभद्र सिंह को भी नहीं छोड़ा। वीरभद्र सिंह को कांग्रेस पार्टी ने प्रदेश चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बना रखा है। शाह ने कहा कि कांग्रेस की पांच साल की सरकार में राजा, रानी और राजकुमार के अलावा किसी का स्थान नहीं था, अब जयराम ठाकुर की सरकार में जनता को लगता हैं कि जनता की खुद की सरकार हैं। शाह ने राहुल गांधी को निशाने पर लेते हुए कहा कि जो लोग 650 करोड़ रुपए की चोरी में जमानत पर घूम रहे हैं, वह मोदी पर झूठे आरोप लगा रहे हैं। उन्होंने कहा कि अगर कोई भारत मां के टुकड़े करने की बात करेगा तो मोदी सरकार उसे सलाखों के पीछे भेज देगी।
इस मौके पर आश्चर्यजनक तौर पर भाजपा के वरिष्ठ नेता शांता कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जमकर तारीफ की। उन्होंने कहा कि पिछली बार तो भाजपा के पास कुछ नहीं था। लेकिन इस बार तो केंद्र में ही नहीं प्रदेश में भी भाजपा की सरकार हैं। उन्होंने कहा के मोदी का कोई विकल्प हैं। जयराम सरकार की एक साल की सरकार की तारीफ की। जयराम सरकार का कोई विकल्प नहीं हैं। शांता कुमार ने आगह किया कि चुनाव चुनाव होता हैं। इसलिए लापरवाही न हो। एक पल की खता सदियों की सजा दे जाती हैं। उन्होंने कहा कि भारत, व प्रदेश की चिंता न करे केवल अपने पन्ने की चिंता करे।
सम्मेलन में भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर ने कहा कि इस बार भी नया इतिहास रचेंगे व दोबारा चारों सीटें जीतेंगे। पिछले पांच साल की सरकार में कोई एक रुपए का भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा पाए। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने इस मौके पर कहा कि प्रदेश में भाजपा की सरकार को बने हुए एक साल एक महीना एक दिन हुआ हैं। 68 में से 65 हलकोें का दौरा पूरा कर चुका हूं।
समस्याओं का समाधान के लिए लोगों के बीच जाने की जरूरत है। सरकार लोगों के पास पहुंचे इसलिए जनमंच कार्यक्रम शुरू किए। कांग्रेस के लोग जनमंच के नाम पर परेशान हैं।
समझ लीजिए की अगर कांग्रेस परेशान हैं तो काम ठीक हो रहा है। आने वाले समय में जनमंच कार्यक्रम को और मजबूत करेंगे। मुख्यमंत्री ने कहा कि जब भी जरूरत पड़ी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आगे बढ़ कर मदद की। उन्होंने कहा कि प्रदेश से चारों सीटों पर भाजपा जीतेगी।

अन्ततः कालरा काॅम्लैक्स का कटा बिजली,पानी और लगा 50 हजार का जुर्माना

शिमला/शैल। शिमला के माल रोड पर बन रहे कालरा कम्पलैक्स का अन्ततः नगर निगम शिमला के आयुक्त की अदालत ने बिजली पानी काटने के आदेश सुनाने के साथ ही इस पर पचास हजार का जुर्माना भी लगा दिया है। यही नही इसके निर्माण पर भी रोक लगा दी है और अपने आदेशों की अनुपालना सुनिश्चित करने के लिये यहां पर इसी व्यवसायी के खर्च पर निगम का कर्मचारी भी तैनात कर दिया है। अभी यह कम्पलैक्स निर्माणाधीन स्टेज के दायरे में आता है और निगम के नियमों के मुताबिक ऐसे निर्माण में कोई व्यवसायी गतिविधियां शुरू नही की जा सकती हैं। लेकिन निगम के नियमों को नजरअन्दाज करते हुए यहां पर सरेआम व्यवसायी गतिविधियां भी चल रही हैं। निगम कोर्ट के फैसले पर अमल करते हुए बिजली बोर्ड ने यहां की बिजली जो काट दी है लेकिन बिजली काटने के बाद यहां पर जैनरेटर से काम चलाया जा रहा है लेकिन यहां पर एक रोचक सवाल यह खड़ा हो गया है कि बिजली काटने के आदेश कोई बिल की अदायगी न हो पाने के कारण नही हुए हैं बल्कि यह निर्माण स्वीकृत नक्शे के अनुरूप न होने पर सज़ा के तौर पर हुए हैं। अब इस काॅम्पलैक्स में जैनरेटर से बिजली दी जा रही है ऐसे में इस पर सबकी निगाहें लगी हुई है कि इस पर क्या प्रावधान समाने आता है।
कालरा काॅम्पलैक्स माल रोड़ पर स्थित है और यह हैरिटेज जोन में आता है। इस क्षेत्र में प्रदेश सरकार ने वर्ष 2000 से ही नये निर्माणों पर प्रतिबन्ध लगा रखा है। सरकार के इसी प्रतिबन्ध पर एनजीटी ने दिसम्बर 2017 में दिये फैसले में मोहर लगा दी है। एनजीटी के फैसले का अनुमोदन सर्वोच्च न्यायालय भी कर चुका है। प्रदेश उच्च न्यायालय ने भी पिछले दिनों अवैध निर्माणों का कड़ा संज्ञान लेते हुए इनके बिजली, पानी काटने के आदेश किये हुए हैं और इन आदेशों की अनुपालना भी हुई है। इस तरह यह कालरा काॅम्पलैक्स हैरिटेज जोन में आता है और यहां पर केवल ओल्ड लाईनज़ पर ही निर्माण करने की अनुमति है। यहां पर भी गौरतलब है कि यहां के पुराने भवन में 1991 में आग लगी थी। उसके बाद जब यहां पर पुनः निर्माण की बात आयी थी तब यह मामला प्रदेश उच्च न्यायालय तक पहुंच गया था और अदालत ने नये निर्माण के लिये कुछ शर्ते लगा दी थी। तब इन शर्तों पर अमल न हो पाने के कारण यहां कोई निर्माण नही हो पाया था।
उसके बाद यह काॅम्पलैक्स कालरा के पास आ गया और 25.5.2008 को इसके निर्माण का नक्शा पास करवाया गया। अब जब सरकार ने वर्ष 2000 में ही हैरिटेज जोन में नये निर्माणों पर पूरी तरह प्रतिबन्ध लगा दिया था तब स्वभाविक है कि इसका नक्शा भी ओल्ड लाईनज पर ही स्वीकृति हुआ होगा। लेकिन अब जब यह निर्माण सामने आया तब इस पर स्वीकृत नक्शें से हटकर निर्माण करने के आरोप लगने शुरू हो गये। इन आरोपों का संज्ञान लेते हुए निगम ने कालरा को कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए तुरन्त प्रभाव से काम बन्द करने के आदेश दिये। लेकिन इन आदेशों पर कोई अमल नही हुआ। निगम ने पहला नोटिस 11-7-2018 और अन्तिम नोटिस 2-11-18 को दिया तथा इस तरह चार नोटिस दिये। इस निर्माण में स्वीकृत नक्शे से हटकर कितना निर्माण हुआ है इस पर संबंधित जेई से लेकर निगम के वास्तुकार तक से रिपोर्टे ली गयी। जब लगातार नोटिस दिये जाने के बाद भी काम बन्द नही किया गया तब यह मामला आयुक्त की कोर्ट में आया और अन्ततः यह फैसला सुनाया गया। इस फैसले की अपील की जा रही है। अब सबकी नज़रें इस अपील पर आने वाले फैसले पर लगी हैं।
स्मरणीय है कि इस समय नगर निगम के पास इस तरह के निर्माणों के 960 मामले लंबित हैं इनमें कई मामले तो ऐसे भी है जहां पर रिटैन्शन पाॅलिसी आने के बाद निर्माण बढ़ाये गये हैं लेकिन संयोगवश ऐसे निर्माणों की कम्पलीशन रिपोर्ट न तो गिनम में दायर हो पायी और न ही स्वीकृत हो पाये। अब एनजीटी का फैसला उन्ही निर्माणों पर लागू नही होगा। जिनकी कम्लीशन फैसला आने तक स्वीकार हो चुकी है अन्य पर नही। ऐसे में कालरा कम्पलैक्स के मामले में सबकी निगाहें इस पर लगी है कि निर्माणों में अवैधतता को रोकने के लिये अदालत, प्रशासन और सरकार क्या रूख अपनाते हैं क्योंकि कालरा को सरकार का नजदीकी माना जाता है।

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