शिमला/शैल। राजस्व एवम् भूसुधार अधिनियम की धारा 118 में 1988 में संशोधन करके उपधारा 3 जोड़ी गयी थी। इस संशोधन के मुताबिक जो भी जमीन धारा 118 के तहत अनुमति लिये बिना खरीद ली जाती है वह ऐसा सामने आने पर सरकार में विहित हो जायेगी। यह संशोधन 14-4-1988 से लागू हो गया था। इस संशोधन में ही यह प्रावधान कर दिया गया था कि कोई भी रजिस्ट्रार या उप रजिस्ट्रार ऐसा पंजीकरण नही करेगा जिसमें इसी अधिनियम की उपधारा एक की उल्लघंना की गयी हो। इस संशोधन में यह स्पष्ट कर दिया गया कि धारा 118 के तहत वांच्छित औपचारिकताओं की अनुपालना की सुनिश्चितता यह संबंधित राजस्व अधिकारी करेंगे। यह मूल अधिनियम 1972 से लागू है और इसमें यह प्रावधान किया गया कि कोई भी गैर कृषक प्रदेश में सरकार की अनुमति के बिना जमीन नही खरीद सकता। यह इस अधिनियम की धारा 118 में दर्ज है लेकिन इसमें राजस्व अधिकारियों की सीधी जिम्मेदारी नही लगायी गयी थी क्योंकि इसमें उपधारा तीन उस समय थी ही नही। लेकिन राजस्व अधिकारी राजस्व नियमों की अनुपालना सुनिश्चित करेंगे इसके लिये समय समय पर स्टैण्डिंग आर्डर जारी होते रहे हैं। इसका उद्देश्य यह रहा था कि यदि किसी खरीददार को धारा 118 के तहत अनुमति लेने की अनिवार्यता का पता नहीं है तो यह अधिकारी उसे इसकी जानकारी देंगे। लेकिन 14-4-1988 से पहले यह स्पष्ट प्रावधान नही था कि यदि 118 की अनुमति नही है तो ऐसी जमीन सरकार में विहित हो जायेगी।
एक व्यक्ति बलदेव किरण भल्ला ने 1984 में मकान के लिये जमीन खरीदी और उस पर मकान बना लिया उसने 118 में तहत खरीद की अनुमति नही ली थी और रजिस्ट्रार ने उसके बिना ही पंजीकरण कर दिया। रजिस्ट्रार ने 118 के बारे में कोई जिक्र ही नही किया। अब तीस वर्ष बाद इस आदमी की शिकायत हो गयी कि उसने बिना अनुमति के यह जमीन खरीदी है। अब यह आदमी राजस्व अदालतों के चक्कर काट रहा है। इसमें यह दिलचस्प हो गया है कि 118 की अनुमति के बिना रजिस्ट्रार ने जब पंजीकरण कर लिया जब इस व्यक्ति की गलती क्या है। फिर सरकार ने 2002 और 2003 में कुछ लोेगों को जमीन खरीद के बहुत बाद 118 की अनुमतियां दी हैं। ऐसे में यह सवाल खड़ा हो जाता है कि जब कुछ लोगों को ऐसी अनुमति दी जा सकती है तो फिर भल्ला को यह अनुमति क्यों नहीं मिल सकती।
शिमला/शैल। स्वामी रामदेव के पतंजलि योग पीठ को 2010 में दी गयी 96.2 बीघे जमीन को जयराम सरकार ने फिर से बहाल कर दिया है। स्मरणीय है कि वर्ष 2010 में धूमल सरकार द्वारा दी गयी इस जमीन को सत्ता बदलने के बाद बाकी वीरभद्र सरकार ने इसकी लीज का रद्द को रद्द दिया था। यह लीज रद्द होने के पंतजलि योगपीठ अदालत में चला गया था और अदालत ने इस पर यथास्थिति बनाये रखने के निर्देश दिये थे। लेकिन इन निर्देशों से आगे यह मामला नही बढ़ा। लेकिन वीरभद्र शासन के ही अन्तिम वर्ष में सरकार और पतंजलि योगपीठ के बीच बात-चीत का दौर कुछ अधिकारियों की भूमिका के परिणामस्वरूप चला। इस बात बातचीत में यह रास्ता निकाला गया कि योगपीठ उच्च न्यायालय से बिना शर्त अपनी याचिका वापिस ले और उसके बाद सरकार इस पर विचार करेगी। इसके बाद सरकार ने योगपीठ के आग्रह को स्वीकारते हुए यह जमीन रामदेव केे पतंजलि योगपीठ को वापिस दे दी। लेकिन जब वीरभद्र सिंह सरकार ने इस आवंटन की जांच शुरू करवायी थी तब इसके खिलाफ एक एफआईआर भी दर्ज हुई थी। इस एफआईआर में यह आरोप है कि राजस्व रिकार्ड में जो जमीन आवंटित की गयी है व्यवहार में पीठ का कब्जा किसी और जमीन पर है। यह सब कैसे और किसकी मिलिभगत के कारण हुआ है इसी की जांच की जानी थी जो आज तक नही हो पायी है। दिलचस्प यह है कि यह एफआईआर आज भी खड़ी है। इस एफआईआर को न तो वीरभद्र सरकार ने वापिस लिया और न ही जयराम सरकार अब तक ऐसा कर पायी है बल्कि इसी एफआईआर के सहारे वीरभद्र शासन में कुछ अधिकारियों ने सरकार और योगपीठ के बीच बातचीत की जमीन तैयार की थी। अब भी चर्चा है कि कुछ अधिकारी हरिद्वार में हाजरी भर आये हैं और उन्होंने यह वकालत भी की कि योगपीठ से पुरानी लीज राशी 17,31,214 रूपये ही वसूल की जाये। लेकिन इस बार ऐसा हो नही पाया और यह राशी दो करोड़ से ऊपर चली गयी।
इस प्रकरण मे जो एफआईआर दर्ज है उसे सरकार आगे बढ़ाती है या वापिस लेती है इसका फैसला अदालत से ही आयेगा। सरकार यदि एफआईआर वापिस लेती है तो इसका आवदेन भी अदालत के समक्ष जायेगा और अदालत पर निर्भर करेगा कि वह इसे मान लेती है या नहीं। नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने इस आवंटन पर एतराज भी उठाया है। लेकिन इस सबसे बड़ा सवाल इसमें सर्वोच्च न्यायालय के जगपाल सिंह बनाम स्टेट आॅफ पंजाब मामले में आये फैसले से खड़ा होता है। सर्वोच्च न्यायालय ने विलेज काॅमन लैण्ड के आवंटन पर पूरी तरह प्रतिबन्ध लगा दिया है। 15. In many states Government orders have been issued by the State Government permitting allotment of Gram Sabha land to private persons and commercial enterprises on payment of some money. In our opinion all such Government orders are illegal, and should be ignored.
22. Before parting with this case we give directions to all the State Governments in the country that they should prepare schemes for eviction of illegal/unauthorized occupants of Gram Sabha/Gram Panchayat/Poramboke/Shamlat land and these must be restored to the Gram Sabha/Gram Panchayat for the common use of villagers of the village. For this purpose the Chief Secretaries of all State Governments/Union Territories in India are directed to do the needful, taking the help of other senior officers of the Governments. The said scheme should provide for the speedy eviction of such illegal occupant, after giving him a show cause notice and a brief hearing. Long duration of such illegal occupation or huge expenditure in making constructions thereon or political connections must not be treated as a justification for condoning this illegal act or for regularizing the illegal possession. Regularization should only be permitted in exceptional cases e.g. where lease has been granted under some Government notification to landless labourers or members of Scheduled Castes/Scheduled Tribes, or where there is already a school, dispensary or other public utility on the land.
23. Let a copy of this order be sent to all Chief Secretaries of all States and Union Territories in India who will ensure strict and prompt compliance of this order and submit compliance reports to this Court from time to time
24. Although we have dismissed this appeal, it shall be listed before this Court from time to time (on dates fixed by us), so that we can monitor implementation of our directions herein. List again before us on 3.5.2011 on which date all Chief Secretaries in India will submit their reports.
...............................J.
(Markandey Katju)
…………………..……J.
(Gyan Sudha Mishra)
New Delhi; January 28, 2011
यह फैसला 28 जनवरी 2011 को आ गया था। इस फैसले के रिव्यू मे नही गयी है बल्कि प्रदेश की तत्कालीन मुख्य सचिव नेे 29 अप्रैल 2011 को ही वाकायदा शपथपत्र देकर इसकी अनुपालना रिपोर्ट सर्वाेच्च न्यायालय को सौंप दी थी। सर्वोच्च न्यायालय को भेजीे रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इस संबंध में सभी जिलाधीशों को 10 मार्च 2011 को ही आवश्यक निर्देश जारी कर दिये गये हैं। उस समय राजस्व, पर्यटन, कार्मिक और विधि विभाग के अधिकारियों की इस संबंध में एक बैठक भी हुई थी। इस एक्ट में 1981 में संशोधन करके धारा 8(1) जोड़ी गयी थी और उसमें यह प्रावधान किया गया था कि इसमें 50% भूमि स्थानीय निवासीयों के उपयोग के लिये और शेष 50% सरकार के पास रहेगी जिसमें से पात्र व्यक्तियों को आवंटन किया जा सकेगा। यह पात्र व्यक्ति कौन होंगे इस पूरी तरह परिभाषित किया गया है।
अब सरकार ने इसमें 2016 में संशोधन किया है। इसी संशोधन के आधार पर रामदेव से लीज राशी ली गयी है। इसके बाद 2017 में भी संशोधन किया है और इस संशोधन के तहत राजनीतिक दलों को भी एक बीघा जमीन दिये जाने का प्रावधान किया है। दोनो संशोधनों मे Village common Lands Vesting and utilization Act 1974 में संशोधन किया है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि जब सर्वोच्च न्यायालय ने विलेज काॅमन लैण्ड के आवंटन पर ही प्रतिबन्ध लगा दिया है और इसकी अनुपालना सुनिश्चित करने के लिये मुख्य सचिव की जिम्मेदारी लगा रखी है तब सरकार ऐसे संशोधन क्यों कर रही है। क्या सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों पर तभी अमल होगा जब कोई इस संबंध में आवाज उठायेगा? सरकार किन लोगों को किन उद्देश्यों के लिये कितनी जमीन लीज पर दे सकती है यह पूरी तरह परिभाषित है और रामदेव तथा उनका योगपीठ किसी भी गणित से उस परिभाषा में नही आता है। अब जब रामदेव के योगपीठ के खिलाफ दर्ज एफआईआर अदालत के सामने जायेगी तब अदालत सर्वोच्च न्यायालय के फैसलेे के परिदृश्य में इस आवंटन को कैसे जायज ठहरा पायेगी इस सबकी नज़रें लगी हैं।
महिला नेत्री के शिकायत पत्र को ‘‘मीटू’’ का अन्दाज देने वाले पत्रकारों को धर्मा ने भेजे एक करोड़ के नोटिस
शिमला/शैल। क्या प्रदेश की भाजपा सरकार और संगठन के भीतर कोई लावा उबलना शुरू हो गया है? यह सवाल पिछलेे कुछ अरसे में वायरल हुए कुछ पत्रों के बाद उठना शुरू हुआ है। क्योंकि सबसे पहले एक पत्र वायरल हुआ मुख्यमन्त्री के दोनों ओएसडी धर्मा और धर्माणी को लेकर। इस पत्र में दोनोें की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाये गये थे और पत्र लिखने वाले ने स्वयं को आरएसएस का सक्रिय कार्यकर्ता होनेे के दावा किया था। यह पत्र कई दिन तक मीडिया में चर्चा का विषय बना रहा लेकिन संघ या सरकार की ओर सेे इस पर कोई प्रतिक्रिया नही आयी।
इस पत्र के बाद कुल्लु की एक महिला नेत्री आशा महंत का एक भाजपा के प्रदेश संगठन मन्त्री पवन राणा के नाम लिखा शिकायती पत्र सामनेे आ गया। मीडिया के कुछ हल्कों में इस पत्र को ‘‘मीटू’’ का अन्दाज दे दिया गया। वैसे इस पत्र में महिला नेत्री ने ऐसा कुछ नही कहा है जिसे ‘‘मीटू’’ की संज्ञा दी जा सके। इस पत्र को लेकर मुख्यमन्त्री की प्रतिक्रिया आ गयी। उन्होंने इस शिकायत को नकारते हुए इसे पिछले चुनावों में रही इस नेत्री की भूमिका से जोड़ दिया। लेकिन मुख्यमन्त्री की प्रतिक्रिया में यह स्पष्ट नही किया गया कि इसमें ‘‘मीटू’’ जैसा कुछ नही है। शायद इसी कारण से कुछ मीडिया इसे ‘‘मीटू’’ के अन्दाज में ले बैठा जिस पर शिशु धर्मा ने उस मीडिया को माफी मांगने और एक करोड़ का हर्जाना भरने का नोटिस दिया गया। इस नोटिस के बाद स्थिति और रोचक हो गयी है कि मीडिया और शिशु धर्मा में से कौन अपने स्टैण्ड पर कायम रहेगा। वैसे माना जा रहा है कि यह नोटिस मुख्यमन्त्री के संकेत के बाद ही दिये गये हैं।
अभी इन दो पत्रों की आंच शान्त भी नही हुई है कि एक तीसरा पत्र वायरल हो गया है। इस पत्र में जयराम सरकार के दस माह के कार्यकाल में ही सीमेन्ट की कीमतों का अप्रत्याशित रूप से बढ़नेे का मुद्दा उठाया गया है। यह सही है कि इन दस महीनों में ही प्रदेश की सीमेन्ट कंपनीयों ने दो बार सीमेन्ट के दाम बढ़ाये हैं यह दाम बढ़ने से पहले सीमेन्ट कंपनीयों के प्रबन्धकों और उद्योग मन्त्री तथा मुख्यमन्त्री के बीच बैठकें होने का जिक्र किया गया है। उससे स्पष्ट हो जाता है कि इस तरह की बैठकें होने की जानकारी मुख्यमन्त्री के कार्यालय और उनकेे आवास के सूत्रों के सहयोग के बिना सामने नही आ सकती है। इस पत्र में उद्योग मन्त्री और देहरा के विधायक होशियार सिंह के बीच सीमेन्ट कीमतों को लेकर हुए विवाद की ओर भी संकेत किया गया है। होशियार सिंह आज भाजपा के सहयोगी विधायक हैं। यह पत्र ऊना, हमीरपुर और देहरा में काफी चर्चा का विषय बना हुआ है। इस पत्र के वायरल होने के बाद पार्टी प्रमुख सत्तपाल सत्ती और उद्योग मन्त्री के बीच लंबी बैठक भी चर्चा का विषय है। यही नहीं इसके बाद सत्तपाल सत्ती और मुख्यमन्त्री के अतिरिक्त प्रधान सचिव संजय कुण्डु के बीच भी लंबी बैठके हुई हैं। विजिलैन्स का काम कुण्डु ही देख रहे हैं। इन बैठकों के बाद गुप्तचर ऐजैन्सीयां भी इस पत्र को लेकर काफी गंभीर हो गयी हैं। माना जा रहा है कि यह पार्टी के उन हल्कों से आया है जो आज सरकार और संगठन में मुख्य भूमिका में नही रह गये हैं लेकिन पार्टी और सरकार के भविष्य को लेकर बहुत गंभीर हैं। यह भी माना जा रहा है कि निकट में इस तरह के कई खुलासे दस्तावेजी प्रमाणों के साथ सामने आयेंगे।
अगले वर्ष के शुरू में ही लोकसभा चुनाव आने हैं। आज इस तरह के पत्र वायरल होने से यह स्पष्ट हो गया है कि संगठन और सरकार में सब कुछ ठीक- ठाक नही है। आज कांग्रेस विपक्ष के नाते सरकार पर जितनी भारी पड़ती जा रही है उसके मुकाबले में भाजपा, कांग्रेस को घेरने में पूरी तरह असफल सिद्ध हो रही है। मुख्यमन्त्री के अतिरिक्त इस संद्धर्भ में कोई भी गंभीर नज़र नही आ रहा है लेकिन इसी के साथ यह माना जा रहा है कि विजिलैन्स ने जिस तरह से कुछ पुराने मुद्दों को कुरेदने का काम शुरू किया है उनका अन्जाम भी ही कहीं एचपीसीए जैसा ही न हो।
शिकायत और उस पर गया नोटिस
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