शिमला/शैल। जयराम सरकार ने 3-10-18 को प्रदेश के सारे प्रशासनिक सचिवों, विभागाध्यक्षों, निगमों के प्रबन्ध निदेशकों, बोर्डों के सचिवों और सारे जिलाधीशों को एक पत्रा भेजकर निर्देश दिये हैं कि लोक संपर्क विभाग की अनुमति के बिना समाचार पत्रों एवम् अन्य मीडिया को विज्ञापन जारी न किये जायें। अतिरिक्त मुख्य सचिव लोक संपर्क विभाग की ओर से जारी पत्र में कहा गया है कि इस तरह के निर्देश सरकार द्वारा 6-7-1998, 9-01-02 और 16-09-10 को भी जारी किये गये थे लेकिन इनकी अनुपालना सुनिश्चित नहीं की जा रही है। पत्र में कहा गया है कि कुछ संस्थान कुछ विशेष समाचार पत्रों को ही विज्ञापन जारी करते हैं और इससे असन्तुलन पैदा हो जाता है। कुछ संस्थानों द्वारा लोक संपर्क विभाग की अनुमति के बिना विज्ञापन जारी कर दिये जाने का कड़ा संज्ञान लिया गया है। इस पत्र से पूर्व जो 1998, 2002 और 2010 में तीन बार ऐसे निर्देश जारी किये जाने का जो उल्लेख किया गया है तब भी भाजपा ही सत्ता में थी संयोगवश इससे यही संदेश जाता है कि भाजपा भी मीडिया नियन्त्रण करने का इसी तरह से प्रयास करती है। पिछले कुछ अरसे में राष्ट्रीय स्तर पर भी मीडिया पर नियन्त्रण करने के केन्द्र सरकार के प्रकरण सामने आ चुके है।
प्रदेश में इस सरकार को सत्ता में आये दस माह हो चुके हैं। इस दौरान मुख्यमन्त्री औपचारिक तौर पर मीडिया से बहुत कम मिले हैं। संयोगवश इस समय मुख्यमन्त्री की टीम में वरिष्ठ लोग बहुत नगण्य हैं। बल्कि मुख्यमन्त्री सहित अधिकांश लोग अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के नेतृत्व से निकले है। छात्र राजनीति से निकले युवा नेताओं में धीरता और गंभीरता आने में समय लगता है क्योंकि यह स्वाध्याय से आता है और छात्र नेता होना तथा साथ ही स्वाध्याय का भी होना अक्सर विरोधाभास ही रहता है। शायद प्रदेश का दोनों पक्षों का अधिकांश नेतृत्व इसी धीरता और गंभीरता के संकट से गुजर रहा है। ऊपर से प्रदेश का प्रशासनिक नेतृत्व भी अधिकांश में ‘‘आज तक’’ ही सोचने तक सीमित हो गया है और इस कारण से उसकी निष्ठाएं भी स्व के स्वार्थ तक की ही हो गयी है। अन्यथा यदि नेतृत्व में थोड़ी सी गंभीरता होती तो शायद ऐसा पत्र लिखने की कोई भी राय न देता। पत्र में अतिरिक्त मुख्य सचिव लोक संपर्क स्वयं स्वीकार कर रहे हैं कि सरकार के संस्थान इन निर्देशों की अनुपालना नही कर रहे हैं और इससे असुन्तलन पैदा हो रहा है। यहां यह सवाल उठता है कि जब यह असंन्तुलन की स्थिति आपके संज्ञान में आ गयी तब आपने क्या इस आश्य की कोई पॉलिसी बनाई? क्या लोक संपर्क विभाग ने जो विज्ञापन जारी किये वह दो तीन दैनिक पत्रों के अतिरिक्त क्या किसी साप्ताहिक पत्र को जारी हुए शायद नही। साप्ताहिक पत्रों के साथ निदेशक लोक संपर्क की एक बैठक हुई थी इस बैठक को हुए चार माह से ज्यादा का समय हो गया है। इसमें विज्ञापनों को लेकर एक नीति बनाने का निर्णय हुआ था लेकिन आज तक यह नीति नही बन पायी है। बल्कि उस बैठक के बाद तो बिल्कुल विज्ञापन बन्द कर दिये गये हैं। यहां यह उल्लेखनीय है कि आज डिजिटल होने के युग में डीएवीपी और आरएनआई ने सामचार पत्रों के लिये उनकी अपनी वैबसाईट होना अनिवार्य कर रखा है। ऐसे में जिन समाचार पत्रों की अपनी वैबसाइट है और उसी के साथ वह सोशल मीडिया की विधाओं फेसबुक और व्हाटसएप पर भी उपलब्ध है। उनके पाठकों की संख्या कई दैनिक पत्रों से भी अधिक होगी क्योंकि पाठक तो सूचना देखता और चाहता है। जब उसे दस्तावेजी साक्ष्यों के साथ कोई समाचार मिल जाता है तो वह स्वयं उसे अधिक से अधिक शेयर करता है और उसी से सरकार की एक छवि बन जाती है।
इस परिदृश्य में यदि सरकार के इस पत्र का आकलन किया जाये तो स्पष्ट हो जाता है कि यह पत्र जारी करने से पहले किसी ने भी इसके गुण दोषों पर विचार नही किया है। यहां यह स्पष्ट कर दिया जाना आवश्यक है कि विज्ञापन पर खर्च होने वाला धन प्रदेश के आम आदमी का पैसा है और सरकार इसको खर्च करने में एक तरफा नही चल सकती। सरकार का यह पत्र सरकार के अपने ही खिलाफ एक ऐसा साक्ष्य बन जायेगा कि आने वाले समय में सरकार को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर जो कुछ पिछले दिनों घट चुका है उस पर हिमाचल सरकार का यह पत्र मोहर लगा देता है। इससे जयराम सरकार ही नहीं राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा का मीडिया के प्रति दृष्टिकोण सामने आ जाता है।