Thursday, 18 September 2025
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एम्टा से 2.60 करोड क्यों नही वसूले गये?

शिमला/शैल।
सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआई के पूर्व निदेशक रंजीत सिन्हा के खिलाफ एसआईटी गठित करके जांच किये जाने के आदेश दिये हैं। सिन्हा के खिलाफ प्रशांत भूषण ने आरोप लगाया था कि उन्होने कोल ब्लाक्स आंवटन के लाभर्थीयों के खिलाफ जांच को प्रभावित किया है। आरोप है कि कोल ब्लाक्स के लाभार्थी सिन्हा के घर पर उनसे मिलते रहे हैं। इस प्रसंग में सिन्हा के घर की विजिलैन्स डायरी भी अदालत में पेश हो चुकी है। अब सीबीआई के निदेशक के तहत ही यह एसआईटी गठित हुई है। कोल ब्लाक्स के आवंटन में यूपीए सरकार पर लाखों करोड़ का घपला होने का आरोप है। जब यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में पहुंचा था तब नवम्बर 2012 में सरकार ने यह आवंटन रद्द कर दिया था। सीबीआई ने इसमें हर मामले की जांच शुरू की थी। कुछ मामलों में लाभार्थी कंपनीयों के खिलाफ चालान अदालत तक भी पहंुच चुके हैं। लेकिन इन मामलों में कोई और बड़ी कारवाई सामने नही आयी है।
हिमाचल सरकार ने भी संयुक्त क्षेत्र में सितम्बर 2006 में एक थर्मल पावर प्लांट स्थापित करने की प्रक्रिया शुरू की थी। इसके लिये इन्फ्रास्टक्चर विकास बोर्ड के माध्यम से निविदायें मांगी थी। इसमें छः पार्टीयों ने निविदायें भेजी लेकिन प्रस्तुति पांच ने ही दी और उनमें से दो को शार्ट लिस्ट किया गया। लेकिन अन्त में एम्टा के साथ ही ज्वाईंट वैंचर हस्ताक्षरित हुआ। क्योंकि एम्टा ने बंगाल और पंजाब में थर्मल प्लांट लगाने का दावा किया था। इसी आधार पर जनवरी 2007 में हिमाचल पावर कारपोरेशन और एम्टा के बीच एमओयू साईन हुआ। दोनों की 50ः50 की भागीदारी तय हुई और 48 महीनों में यह प्लांट लगाना तय हुआ। इसके तहत दो करोड़ की धरोहर राशी एम्टा को पावर कारपोरेशन में जमा करवानी थी।
एमओयूम साईन होने के बाद एम्टा ने जे एस डब्ल्यू स्टील के साथ सांझे में भारत सरकार से गौरांगढी में कोल ब्लाक हासिल कर लिया। यह कोल ब्लाक हासिल करने के लिये वीरभद्र ने एक ही दिन में विभिन्न मन्त्रालयों को पांच सिफारिशी पत्र भी लिखे थे जिनके कारण इन्हें यह कोल ब्लाक मिला था। एम्टा और जे एस डब्ल्यू स्टील में इसके लिये एक और सांझेदारी मई 2009 में साईन हुई। लेकिन जब नवम्बर 2012 में केन्द्र सरकार ने कोल ब्लाक्स का आवंटन रद्द कर दिया तो यह काम रूक गया। दिसम्बर 2012 में ही एम्टा के निदेशक मण्डल ने इसमें और निवेश न करने का फैसला ले लिया। 26 नवम्बर 2014 को एम्टा ने फिर फैसला लिया की जब तक विद्युत बोर्ड बिजली खरीदने का अनुबन्ध नही करता है तब तक इस पर आगे नही बढेंगे। मार्च 2015 में बोर्ड ने यह अनुबन्ध करने से इन्कार कर दिया।
लेकिन पावर कारपोरेशन ने 26 दिसम्बर 2012 को 40 लाख और 9-5-2013 को 20 लाख का निवेश भाग धन के रूप में कर दिया। इस पूरे प्रकरण में जो सवाल उभरते हंै उनके मुताबिक जब एम्टा के साथ जनवरी 2007 में एमओयू साईन हुआ और 48 माह में यह प्लांट लगना था तो फिर यह सुनिश्चित नही किया गया कि इसमें कितना काम धरातल पर हुआ है। जब नवम्बर 2012 में कोल ब्लाक्स का आवंटन ही रद्द हो गया और दिसम्बर 2012 में एम्टा ने स्वयं इसमें और निवेश न करने का फैसला ले लिया तो फिर उसके बाद पावर कारपोरेशन ने 26 दिसम्बर 2012 और 9-5-2013 को इसमें 60 लाख का निवेश क्यों कर दिया। 26 नवम्बर 2014 को एम्टा ने किस आधार पर पावर परचेज एग्रीमैन्ट करने का आग्रह किया। सीबीआई की जांच में एम्टा के सारे दावे गल्त पाये गये हैं। एम्टा के साथ एमओयू साईन होने से पहले उसके बारे में विस्तृत जानकारी क्यांे नही जुटायी गयी। बिना पूरी जानकारी के कोल ब्लाक्स के लिये एम्टा की सिफारिश क्यांे की गयी? पावर कारपोरशन और इन्फ्र्रास्ट्रक्चर बोर्ड ने एम्टा से दो करोड़ का भागधन क्यों नही लिया? माना जा रहा है कि इस मामले में अब नये सिरे से जांच खूल सकती है। ईडी में यह मामला अभी तक लंबित है चर्चा है। कि इस संद्धर्भ में हिमाचल के भी कुछ लोगों ने सिन्हां से उसकेे घर पर मुलाकात की है।

लगातार कम होती जा रही है प्रदेश को बिजली से आय

शिमला/बलदेव शर्मा
हिमाचल प्रदेश में जल विद्युत की अपार क्षमता है और इस क्षमता का दोहन भी किया जा रहा हैै। इसी क्षमता के आधार पर प्रदेश को विद्युत राज्य प्रचारित और प्रसारित किया गया। यही प्रचार-प्रसार उद्योगपतियों के आकर्षण का केन्द्र बना। विद्युत उत्पादन में भी निजि क्षेत्र ने हिमाचल का रूख किया और आज प्रदेश में कुल उत्पादित विद्युत- में से राज्य के बिजली बोर्ड के पास केवल 487 मैगावाट ही है और शेष सारीे संयुक्त क्षेत्र या निजि क्षेत्र के पास है। प्रदेश में विद्युत उत्पादन के क्षेत्र में 1990 में शान्ता के शासन काल में जेपी उद्योग समूह ने पैर रखा था। शांता सरकार ने जे पी को स्थापित करने के लिये बसपा- जिस पर बिजली बोर्ड काम कर रहा था, बोर्ड से लेकर जेपी को थमा दिया था। उस वक्त तक बोर्ड इस पर करीब 16 करोड़ खर्च कर चुका था। जे पी के साथ हुए अनुबन्ध में जेपी ने बोर्ड को यह पैसा ब्याज सहित वापिस करना था लेकिन जब जेपी ने यह पैसा नही लौटाया तो यह राहत दी गयी कि जब प्रौजैक्ट उत्पादन में आ जायेगा तब इस पैसे की वापसी होगी। 2003 से इसमें उत्पादन भी शुरू हो गया लेकिन जेपी से यह वसूली नही की गयी। इसके लिये तर्क दिया गया कि यदि यह वसूली की जायेगी तो इसका भार अन्ततः उपभोक्ता पर पडे़गा। इस तरह करीब 92 करोेड़ रूपया बट्टेे खाते में डाल दिया गया। कैग रिपोर्ट में इस पर गंभीर आपत्ति उठायी गयी है। लेकिन कोई भी सरकार जेपी से यह वसूली नहीं कर पायी है। इसी तरह जेपी ने कडछम बांगतू परियोजना में भी दो सौ मैगावाट की क्षमता अपनेे आप बढ़ा ली और सरकार को उस पर अपफ्रन्ट प्रिमियम नही मिला। कैग नेे इस पर भी सवाल उठायेे है लेकिन सरकार पर कोई असर नही हुआ है।
1990 में जब जेपी उद्योग नेे प्रदेश में विद्युत उत्पादन में पैर रखा था उस समय निजि क्षेत्र की परियोजनाओं से 12% विद्युत राॅयल्टी के रूप में फ्री लेने का फैसला शान्ता सरकार ने लिया था और इस फैसलेे की बहुत सराहना हुई थी बल्कि इसी के आधार पर यह दावे किये गये थे कि अब सरकारी खजाने मेें पैसे की कोई कमी नही रहेगी। लेकिन 12% फ्री राॅयल्टी के साथ यह भी फैसला हुआ कि शेेष बची 88% बिजली को भी बोर्ड ही खरीदेगा और उसके बाद निजि क्षेत्र की सारी परियोजनाओं के साथ विद्युत खरीद के समझौतेे साईन हुए। लेकिन यह पीपीए किस रेट पर साईन हुए है। इसको कभी सार्वजनिक नही किया गया है। इसी के साथ ट्रांसमिशन की जिम्मेदारी भी सरकार की है। ऐसेे मेें ट्रांसमिशन में हो रहे नुकसान की कीमत भी सरकार को चुकानी पड़ रही है। 12% मुफ्त रायल्टी के फैसले के साथ 88% केे लियेे पीपीए साईन करना और ट्रासमिशन की जिम्मेदारी लेना ऐसे पक्ष है जिनकेे कारण बोर्ड लगातार घाटे में चल रहा है। आज स्थिति यह हो गयी है। बोर्ड को इन परियोजनाओं से पीपीए के कारण मंहगी दरों पर बिजली खरीदनी पड़ रही है और आगे सस्ती दरों पर बेचनी पड़ रही है क्योंकि अब दूसरे राज्यों ने भी पावर प्रौजैक्टस स्थापित कर लिये है बल्कि इस कारण हर वर्ष बोर्ड की बहुत सारी बिजली बिकने के बिना रह रही है। इसका असर बोर्ड की अपनी परियोजनाओं पर भी रहा है बोर्ड के सारे प्रौजैक्टस में हर वर्ष हजारो घन्टो का शटडाऊन कई वर्षो से लगातार चलता है बोर्ड के सूत्रों के मुताबिक इस शटडाऊन से प्रतिदन करोड़ो का नुकासान हो रहा है लेकिन बोर्ड प्रबन्धन और सरकार इस शटडाऊन को लेकर संबधित अधिकारियों के खिलाफ कोई भी कारवाई नही कर पा रही है। जबकि निजि क्षेत्र की किसी भी परियोजना में इतने बडे स्तर पर कभी शटडाऊन सामने नही आया है। माना जा रहा है कि इस शटडाऊन के पीछे निजि क्षेत्र का दवाब है क्योंकि यदि बोर्ड के अपने प्रौजैक्टस में उत्पादन सुचारू रहता है तो प्रबन्धन को उस उत्पादन की बिक्री पहले सुनिश्चत करनी होगी जिसका असर निजि क्षेत्र पर भी पडेगा। इस सुनियोजित शटडाऊन को लेकर विजिलैन्स के पास भी पिछले करीब तीन वर्षो से शिकायत लंबित है। इस शिकायत पर सचिव पावर की ओर से जो जवाब विजिलैन्स को गया है उससे सरकार ने यह स्वीकार किया है कि इसमें लापरवाही हो रही है लेकिन इस पर न तो सरकार ओर न ही विजिलैन्स कोई कड़ी कारवाई कर पा रही है क्योंकि इसकी गहन जांच मे कई चैकाने वाले खुलासे सामने आने का डर है।
लेकिन आज इस स्थिति के कारण सरकार को बिजली से होने वाली आमदनी में हर वर्ष लगातार कमी होती जा रही है जबकि हर वर्ष सरकार बजट से पहले या बाद में बिजली के रेट बढ़ाती रही है। जबकि हर वर्ष सरकार बजट और नाॅन टैक्स के रूप के मे जो आय होे रही है। वह एक बडे खतरे का संकेत है। इस आय के आंकडे यह है।

      Non Tax Revenue 

वर्ष          आय   कुल राजस्व 
                        का प्रतिपक्ष

12-13       637.15    46.281%

13-14      696.29     37.08 %

14-15     1121.15    54.01 %

15-16     650.00      43.13 %

16-17     700.00      41.95 %


   

          Tax Revenue

वर्ष          आय   कुल राजस्व
                        का प्रतिपक्ष

12-13       262.62      5.68%
13-14      191.36      3.74%
14-15      332.82      5.60%
15-16      308.45      4.86%
16-17      339.30       4.54%

राज्य सरकार को अपने साधनों से टैक्स और नाॅन टैक्स के रूप मे जो राजस्व प्राप्त होता है उसमें विद्युत बड़ा स्त्रोत है इस स्त्रोत मे वर्ष 12-13 में कुल नाॅन टैक्स राजस्व का 46.28%विद्युत से मिला था जो कि 16-17 में घटाकर 41.95% रह गया है। इसी तरह का कुल टैक्स राजस्व सरकार ने समय रहते बिजली नीति में परिवर्तन न किया तो आने वाले समय में एक बड़ा संकट खड़ा हो जायेगा

 

 

1.76 करोड़ की संपति बेचने के बावजूद विधायक वर्मा ने अदा नही किया प्रापर्टी टैक्स

शिमला/शैल
चैपाल के विधायक बलवीर वर्मा के खिलाफ नगर निगम शिमला द्वारा जारी किये प्रापर्टी टैक्स के नोटिस आने वाले विधानसभा चुनावों में एक बडा मुद्दा बन सकते है। स्मरणीय है कि बलवीर वर्मा 2012 में निर्दलीय रूप से चुनाव जीत कर आये थे और फिर कांग्रेस के सहायक सदस्य बन गये थे। इसके लिये उनके खिलाफ विधानसभा अध्यक्ष के पास दल बदल कानून के तहत भाजपा की याचिका भी लंबित है। इसमें वर्मा के साथ कुछ और निर्दलीय विधायक भी शामिल है। इस याचिका पर फैसला कब आता है इसको लेकर भी राजनीतिक हल्कों में कई चर्चाएं है। लेंकिन वर्मा के मामले में सबसे गंभीर मुद्दा यह खड़ा हो गया है। कि नगर निगम शिमला 2015 से लगातार उन्हें प्रापर्टी टैक्स जमा करवाने के नोटिस भेज रहा है। बल्कि टैक्स न चुकाने पर धारा 124 के तहत संपत्ति अटैच करने की कारवाई अमल में लाने की बात कही गयी है। वर्मा से निगम ने 45 लाख की वसूली करनी है वर्मा की गिनती बडे बिल्डरों में की जाती है। वीरभद्र परिवार के साथ उनके रिश्ते राजनीतिक हल्कों में चर्चा का विषय भी बने हुए है। बल्कि यह माना जा रहा है कि नगर निगम भी इन्ही रिश्तो के कारण नोटिस देने से आगे नहीं बढ़ पा रहा है।
इसमें सबसे रोचक तो यह है कि वर्मा ने टैक्स अदायगी में निगम को करीब 20लाख के चार अलग-अलग चैक भी जारी किये थे लेकिन निगम के सूत्रों के मुताबिक यह चैक बाऊंस हो गये हैं परन्तु इसके बाद भी निगम अगली कारवाई करने का साहस नही कर पा रहा है। यह भुगतान न होने के कारण वर्मा की वित्तिय स्थिति और उनकी नीयत को लेकर भी सवाल उठने शुरू हो गये है। क्योंकि वर्मा ने 2016 में ही शिमला में 1.76 करोड़ में चार संपत्तियां बेची है। 11.5.2016 को रजि., संख्या 274 के तहत कुसुम्पटी कोठी में एक जीतेन्द्र पाल को 157.99 वर्ग मीटर संपत्ति 40 लाख में 17.5.2016 को रजि. संख्या 304 के तहत चंचलपाल को 33 लाख में 1.6.2016 को रजि. संख्या 352 के तहत गाजियाबाद की वन्दना सोनी को 33 लाख और 12.7.2016 को रजि. संख्या 463 के तहत रीना बन्याल को कुसुम्पटी में 70 लाख की संपत्तियां बेची है। संपत्तियों की इस बेच के बाद ही 5.11.2016 को नगर निगम ने विधायक को अन्तिम नोटिस भेजा है। लेकिन इस नोटिस के बाद भी टैक्स का भुगतान न हो पाने को लेकर कई तरह की चर्चाओं की उठना स्वाभाविक है।
स्मरणीय है कि इस बार भी वर्मा को चैपाल से सशक्त उम्मीदवार माना जा रहा है। मुख्यमन्त्राी का कांग्रेस टिकट के लिये उनकी ओर झुकाव माना जा रहा है। ऐसे में उनके राजनीतिक विरोधी उनकी स्थिति को उनके खिलाफ इस्तेमाल करने का पूरा - पूरा प्रयास करेंगे यह तय है। ऐसी स्थिति में वीरभद्र भी टिकट के लिये उनकी वकालत कैसे कर पाते है। इसको लेकर भी सवाल उठने शुरू हो गये है।

घातक हो सकता है प्रशासन के शीर्ष अधिकारियो में उभरा टकराव

शिमला/बलदेव शर्मा
1983 बैच के आई ए एस अधिकारी वी सी फारखा को प्रदेश का मुख्य सचिव बना दिये जाने पर उनसे वरिष्ठ 1982 के अधिकारियों में रोष पनपना और सरकार की कारवाई को अन्याय करार देना स्वभाविक हैं क्योंकि इन वरिष्ठ अधिकारियों को बड़ी पोस्ट के लिये न कवेल नजर अन्दाज ही किया गया बल्कि इन्हें अपने कनिष्ठ के अधीन ही काम करने के लिये बाध्य किया गया। मुख्य सचिव मुख्यमन्त्री का विश्वस्त ही होना चाहिए यह सही है लेकिन इसमे यह भी उतना ही आवश्यक है कि एक वरिष्ठ अधिकारी को अपने से कनिष्ठ के नियन्त्रण में काम करने की भी स्थिति न खड़ी कर दी जाये जिससे की उनके आत्म सम्मान को ठेस न पहुंचे। वैसे भी प्रशासन को सुचारू रूप से चलाने के लिये यह आवश्वयक भी है इससे पहले भी प्रदेश में मुख्य सचिव की तैनाती के मौके पर दो बार वरिष्ठो को नजरअन्दाज किया गया है। पहली बार रेणु साहनीधर और दूसरी बार ओपी यादव और सीपी सुजाया नजर अन्दाज हुए थे परन्तु उन्हे मुख्य सचिव के साथ ही उसके नियन्त्रण से बाहर भी कर दिया गया था और इसी कारण वह लोग अदालत तक नही गये थे। लेकिन इस बार ऐसा नही हुआ और मामला अदालत तक जा पहुंच है। अदालत ने इन अधिकारियों को अन्तरिम राहत देते हुए अपने कनिष्ठ के नियन्त्रण में काम करने की स्थिति से बाहर रखने के निर्देश देते हुए सरकार को पोस्टिंग देने के आदेश दिये थे। सरकार ने इन आदेशों पर अमल करते हुए इन्हे निर्देशित पोस्टिंग भी दे दी है। अभी इस मामले में सरकार ने विस्तृत जवाब दायर करना है और उसके बाद इसमें उठाये गये कानूनी और प्रशासनिक सवालों पर फैसला आयेगा। यह भी तय है कि फैसला आयेगा इसका प्रभाव दूरगामी होगा।
कैट में गयी इस याचिका में कहा गया है कि 31.5.2016 को फारखा को सिविल सर्विस बोर्ड की बैठक बुलाये बिना ही मुख्य सचिव बना दिया गया है। यह भी कहा गया है कि फारखा 4.3.2014 को स्क्रीनिंग कमेटी की सिफारिश के बिना ही मुख्य सचिव को वेतन मान दे दिया गया है। जबकि उस समय अतिरिक्त मुख्य सचिव के नियमित काडर के सदस्य नही थे और इस नाते मुख्य सचिव के चयन के दायरे में ही नही आते है। इसके लिये आई ए एस काडर रूल्ज 1954 और 1955 के रेगुलेशनज के प्रावधानों का हवाला दिया गया है। इसमें एक महत्वपूर्ण तथ्य यह दिया गया है। कि हिमाचल प्रदेश में एक मुख्य सचिव और एक अतिरिक्त मुख्यसचिव के पद काडर में स्वीकृत है और इनके समकक्ष दो ही पद अतिरिक्त मुख्यसचिव के एकक्ष काडर सृजित किये जा सकते है इस आश्य का आदेश 20.8.2007 का पारित हुआ है और इसके मुताबिक प्रदेश में चार ही अधिकारी उच्चतम वेतन मान के अधिकारी हैं लेकिन 26.5.2016 को कार्मिक विभाग ने मुख्यमन्त्री के सामने जो सूची रखी है इसमें 16 अधिकारियों को उच्चतम वेतनमान में दिखाया गया जबकि इनमें से केन्द्र की प्रति नियुक्ति में तैनात चार अधिकारी तो वास्तव में 67000-79000 के एच ए जी स्केल में हैं याचिका में रखे गये तथ्यों और तर्कोे से यह स्पष्ट हो जाता है कि जितने अधिकारियों को उच्चतम वेतन मान में रखा गया है। उन सबको मुख्य सचिव के चयन के दायरे में नही लाया जा सकता। इनके मुताबिक इस दायरे में केवल वरिष्ठतम चार ही अधिकारी आ सकते है।
प्रदेश सरकार ने इस याचिका में जो अन्तरिम जवाब दायर किया है उसमें कहा गया है कि 4.3.2014 के जिस आदेश को चुनौती दी गयी है। उसे एक वर्ष के भीतर ही चुनौती दी जा सकती थी अब नही। लेकिन यह नही कहा गया हैं कि 4.3.2014 को वह आदेश वैध था। इससे यह भी प्रमाणित हो जाता है। आगे चलकर अतिरिक्त मुख्य सचिवों के इतने पद सृजित करने में भी तय नियमों की अवेहलना हुई है। सरकार के अन्तरिम जवाब में यह भी कहा गया है कि दीपक सानन के जांच दर्ज होने और 19.5.2014 को उसकी सूचना प्रदेश सरकार को भी दिये जाने का भी जिक्र किया गया है सरकार ने चार्जशीट किया हुआ है। विनित चैधरी के खिलाफ 1.5.2014 को सीबीआई में प्रारम्भिक जांच दर्ज होने और 19.5.2014 का उसकी सूचना प्रदेश सरकार को दिये जाने का भी जिक्र किया गया है। इस जांच पर आगे क्या हुआ है। इस बारे में कुछ नही कहा गया है। लेकिन इस जांच को चैधरी के खिलाफ आधार बनाया गया है।
सरकार के अन्तरिम जबाव में उठाये गये इन सवालों का यह अधिकारी क्या जबाव देते है यह तो आने वाले समय में स्पष्ट हो पायेगा लेकिन याचिका में मुख्य सचिव के चयन के दायरे में केवल वरिष्टतम चार लोगों को ही रखने का जो पक्ष रखा गया है। उससे भविष्य के लिये एक लाईन तय हो जायेगी यह माना जा रहा हैं बहरहाल यह अंदेशा हैं कि प्रशासन के शीर्ष पर बैठे अधिकारियों में उभरा यह टकराव कंही व्यक्तिगत न हो जायेे।

बेटे को स्थापित करने के लिये वीरभद्र ने चला दांव शिमला ग्रामीण से घोषित की उम्मीदवारी

शिमला/बलदेव शर्मा
बेटा अक्सर बाप की विरासत संभालता है और हर बाप बेटे को स्थापित करने का हर संभव प्रयास करता है। यह एक ऐसा स्वीकृति सच है। जिसमें अपवाद की गुंजाईश बहुत कम रहती है। इसी परम्परा को निभाते हुए वीरभद्र ने पहले विक्रमादित्य को प्रदेश युवा कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया और अब शिमला ग्रामीण से विधायकी का एलान कर दिया है। प्रदेश की जनता और प्रशासनिक हल्कों के लिये यह ऐलान अप्रत्याशित नही है। लेकिन राजनीतिक दलों के भीतर इस ऐलान से कई समीकरणों में कई बदलाव देखने को मिलेंगे। इस समय कांग्रेस के भीतर ही जी एस बालीे और अनिल शर्मा के बेटे विधायकी की दावेदारी जताने लायक हो चुके है। चर्चा तो यह भी है। कि विद्यास्टोक्स भी अपनी राजनीतिक अपनी बेटी को सांैपने की ईच्छा रखती है और पिछले दिनों केहर सिंह खाची के साथ हुए झगड़े की पृष्ठभूमि में भी यही ईच्छा रही है। बहुत संभव है कि वीरभद्र सिंह के इस ऐलान के बाद पार्टी के कई और नेता भी ऐसा करने का प्रयास करें। वीरभद्र के इस ऐलान पर किस तरह की प्रतिक्रियाए उभरती है यह तो आने वाले समय में ही पता चलेगा ।
अब जब वीरभद्र ने शिमला ग्रामीण अपने बेटे के लिये छोड़ दिया है तो यह सवाल उठना स्वभाविक है। कि वीरभद्र स्वयं कहां से चुनाव लडेंगे। मुख्यमन्त्री ने यह भी ऐलान किया है कि वो ऐसे चुनाव क्षेत्र से लडे़ंगे जंहा से कांग्रेस लगातार हारती आ रही है। इस हार के गणित में जिला शिमला में शिमला ;शहरीद्ध सोलन में अर्की और ऊना में कुटलैहड़ ऐसे चुनाव क्षेत्र है जहां से लगातार कांग्रेस हार रही है। स्मरणीय हैं कि पिछले दिनों जब सुक्खु और वीरभद्र का वाक्युद्ध फिर सार्वजनिक हुआ था तब अपरोक्ष में सुक्खु ने ही वीरभद्र को यह चुनौती दी थी कि उन्हे अपने चुनाव क्षेत्र से बाहर जाकर प्रदेश के किसी अन्य भाग से चुनाव लड़ना चाहिये। इस परिदृश्य में सोलन का अर्की और ऊना का कुटलैहड ही सबसे पहले नजर में आते है। अर्की के कुनिहार में जब वीरभद्र के पिता स्व0 पदम सिंह के नाम पर जब कुनिहार पंचायत ने क्रिकेट स्टेडियम बनाने का प्रस्ताव रखा था उस समय ही राजनीतिक हल्कों में यह संदेश चला गया था कि आने वाले विधानसभा चुनावों में वीरभद्र परिवार की यहां पर नजर रहेगी। उस समय यह कयास लगाये जाने लगे थे कि शायद प्रतिभा सिंह यहां से उम्मीदवार बने। अर्की में वीरभद्र पूर्व मन्त्री स्व0 हरिदास के एक बेटे को अपने साथ गले लगाये हुए है तोे इसी के साथ यहीं से डिप्टी स्पीकर रहे स्व0 धर्मपाल के बेटे की भी पीठ थपथपाते रहे है। यहीं से पूर्व मन्त्री स्व हीरा सिंह पाल के बेटे डा अमरचन्द पाल भी वीरभद्र के विश्वस्तों में रहे है यह भी यहां से चुनाव लड़ना चाहते है। इनके अतिरिक्त पिछली बार यहां से संजय अवस्थीे को और उससे पहले प्रकाश करड़ यहां से उम्मीदवार रह चुके है लेकिन इस सब मे जिस कदर के आपसी मतभेद है उसी के कारण कांग्रेस यहां से हारती रही है। फिर स्व. हरिदास ठाकुर का एक बेटा इन्दर सिंह ठाकुर पहले प0 सुखराम और अब ठाकुर कौल सिंह का विश्वस्त है। यही सारे लोग यहां से पार्टी के स्थानीय नेता और प्रमुख कार्यकर्ता है। अब डा0 मस्त राम का नाम भी इस सूची में जुड गया है। इन सारे स्थानीय लोगों को आपस में ईनामदारी से इकट्ठे करने पर ही यहां से कांग्रेस की जीत सुनिश्चित की जा सकती है।
इसी तरह शिमला शहरी में भी वामपंथियों और भाजपा का अपने -अपने कट्टर वोट का एक तय आंकडा है जो कभी भी इधर उधर नही होता है। फिर अब शिमला (शहरी) में ढली से ऊपर के पहाड़ी वोट की तुलना में यहां पर ऊना के वोटर की संख्या अधिक है। शिमला (शहरी) में सूद समुदाय का भीे अपना खास प्रभाव है। शहर का अधिकांश बिजनेस समुदाय इसी सूद समुदाय से है। फिर शिमला अर्बन कांग्रेस कमेटी में वीरभद्र समर्थको और विरोधीयों में निश्चित तय मतभेद है। यहां से कांग्रेस की जीत सुनिश्चित करने के लिये इन सब अलग-अलग वर्गो को एक सूत्रा में बांधकर रख पाना ही सबसे बड़ी चुनौती है फिर इस बार पहली बर्फबारी में जिस तरह से यहां पर सारी आवश्यक सेवायें चरमरा गयी थी उससे सरकार की कार्यप्रणाली और विकास के सारे दावों पर ऐसा प्रश्न चिन्ह लगा है। जिसका नुकसान चुनावों में होना तय है। बल्कि इसी गणित में यदि शिमला ग्रामीण को भी आंका जाये तो वहां भी स्थितियां बहुत सुखद नहीं है। शिमला ग्रामीण में किये गये सारे विकास कार्यों का जमीनी प्रभाव क्या और कितना रहा है। इसका खुलासा पिछले लोकसभा चुनावों में सामने आ चुका है। शिमला ग्रामीण में कांगे्रस संगठन पर जिन लोगों का कब्जा है उनका जनता से दूर-दूर तक कोई तालमेल नही हैं बल्कि यहां के कांग्रेस प्रधान का नाम तो भाजपा के आरोप पत्र में भी बडी सुर्खियों में दर्ज है।
ऐसे में माना जा रहा है कि वीरभद्र ने अभी से अपनेे बेटे और अपनी सांकेतिक उम्मीदवारी घोषित करके इन चुनाव क्षेत्रों में पूरे हालात को अपनेे नियन्त्रण रखने का दांव चला दिया है। अब यहां की कमान कौन संभालता है इस पर सबकी नजर रहेगी। क्योंकि एक समय तो दबी जुबान में यहां तक चर्चा उठ गयी थी कि शिमला ग्रामीण पर हर्षमहाजन की भी नजर है। क्योंकि हर्ष महाजन ने भी शिमला ग्रामीण में परोक्ष/अपरोक्ष में कई संपत्तियों पर निवेश किया हुआ है। अब चुनावों के दौरान इस तरह के कई खुलासे सामने आने की संभावनाएं है। इस सबका चुनावी गणित पर असर पडना स्वाभाविक हैं क्योंकि यही के प्रस्तावित क्रिकेट स्टेडियम के दो किलोमीटर के दायरे में कई बडे़ नौकरशाहों और राजनेताओ ने जमीनें खरीद रखी है। यह जमीन खरीद भी चुनावों में एक बडा मुद्दा बनना तय है। वीरभद्र और उनका बेटा इन चुनौतियों से कैसे निपटते है इस पर अभी से सबकी नजरें लग गयी है।

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