Friday, 19 September 2025
Blue Red Green

ShareThis for Joomla!

क्या कानून पर भारी पड़ेगी आस्था न्यू शिमला के मन्दिर पर आये फैसले से उठी चर्चा

शिमला/शैल। राजधानी के उप नगर न्यू शिमला मे मुख्य सड़क के किनारे बने दुर्गा मन्दिर को लेकर नगर निगम शिमला के कलैक्टर कोर्ट से आये फैसले के अनुसार यह पूरा मन्दिर सरकार/नगर निगम की जमीन पर बना है। इस जमीन पर मन्दिर बनाने के लिये सरकार/नगर निगम से यह जमीन नही ली गयी है। इस तरह जब मन्दिर निर्माता किसी भी तरह से इस जमीन के मालिक ही नही है तो स्वभाविक है कि सरकारी जमीन पर अतिक्रमण करके अवैध रूप से इस मन्दिर का निर्माण हुआ है। मन्दिर निर्माण के लिये कोई नक्शा आदि भी निगम से स्वीकृत नही करवाया गया है। नगर निगम की जमीन के खसरा न. 3244/22 में 29.88 वर्ग मीटर और खसरा न. 3251/ में 21.63 वर्ग मीटर भूमि पर मन्दिर का निर्माण हुआ है। इस जमीन की निशानदेही 3-2-2010 को सम्बन्धित नायब तहसीलदार कानूनगो और हल्का पटवारी की देखरेख में हो गयी थी। निशानदेही के वक्त मन्दिर का निर्माण करवाने वाले भी मौके पर मौजूद रहे हैं। इस निशानदेही में यह स्पष्ट रूप से आ गया था कि यह जमीन सरकार/नगर निगम की है। इसी कारण से मन्दिर निर्माताओं ने इस निशानदेही को कोई चुनौती नही दी और यह स्वीकार कर लिया कि यह निर्माण अवैध रूप से सरकारी जमीन पर हो रहा है।
3.2.2010 को निशानदेही हो जाने के बाद नगर निगम ने कलैक्टर की कोर्ट में 2-11-2010 इस संबंध में मामला दायर कर दिया। इस मामले में दीपक रोहाल और अश्वनी ठाकुर को प्रतिवादी बनाया गया। 18-11-2010 को प्रतिवादियों को इस बारे में नोटिस भेजे गये। लेकिन नोटिस के बाद प्रतिवादी इसमें कोई जवाब दायर नही कर पाये। जवाब के लिये सात बार मौका दिया गया लेकिन कोई जवाब नही आया। इसी बीच प्रदेश उच्च न्यायालय में आयी एक जनहित याचिका CWP12 No. 08/2018 में उच्च न्यायालय ने कलैक्टर नगर निगम को ऐसे 36 मामलों को तुरन्त निपटाने के आदेश दिये। यह मामले दो माह में निपटाये जाने थे। उच्च न्यायालय के इन निर्देशों के बाद इस मामले में कारवाई आगे बढ़ी और अन्ततः 13-6-2018 को कलैक्टर नगर निगम ने प्रतिवादियों के खिलाफ फैसला सुना दिया। फैसले में इस निर्माण को गैर कानूनी/अवैध कारार देकर इसे गिराने और इस जमीन को नगर निगम को सौंपने के आदेश किये हैं। इन आदेशों की अनुपालना सुनिश्चित करने के लिये नगर के अधीक्षक एस्टेट, लीज़ निरीक्षक और इन्सपैक्टर तहबाज़ारी की जिम्मेदारी लगाई गयी है।
निगम के कलैक्टर कोर्ट से यह फैसला आये आठ माह का समय हो गया है। कलैक्टर के फैसले पर किसी ऊपरी अदालत का कोई स्टे नहीं है। लेकिन इसके बावजूद इस फैसले पर अब तक अमल नहीं हो पाया है। जब यह मामला 2010 में निशानदेही के बाद कलैक्टर के कोर्ट में दायर हुआ था तब इस मन्दिर का निर्माण चल रहा था और आज तक इसमें कुछ न कुछ काम चला ही रहता है। निशानदेही में ही स्पष्ट हो गया था कि यह जमीन सरकार/नगर निगम की है। इसमें नगर निगम प्रशासन इस निर्माण को कभी भी बलपूर्वक बन्द करवा सकता था जैसा कि अन्य मामलों में अक्सर होता है। लेकिन इस मामले में आज तक ऐसा कुछ भी नही हुआ है। अब भी जून 2018 में आये फैसले पर आजतक अमल न हो पाने से यही सन्देश उभर रहा है कि आस्था कानून पर भारी पड़ती जा रही है।

























क्या हिमखण्ड में दबे जवानों की अहमियत पुलवामा में शिकार हुए जवानों से कम है

 शिमला/शैल। 20 फरवरी को किन्नौर के पूह से आगे चीन सीमा पर सेना के पांच जवान हिमखण्ड के नीचे दब गये थे। इन जवानों को निकालने के लिये चलाये जा रहे राहत कार्य का जायज़ा लेने के लिये सरकार की ओर से मुख्यमन्त्री या उनका कोई भी मन्त्री मौके पर नही जा पाया है। इन जवानों में एक सोलन के नालागढ़ का भी है। जब इसके दबे होने की खबर परिवार तक पहुंची तब से परिवार का बुरा हाल है लेकिन परिवार की सुध लेने कोई नही पहुंचा। प्रशासन और राजनीतिक नेतृत्व की संवेदनहीनता को हिलाने के लिये इस जवान के ही गांव के एक युवक ने सोशल मीडिया का सहारा लेकर लोगों का ध्यान इस ओर आकर्षित किया है। इनका एक वीडियो वायरल हुआ है इसमें रायफलमैन राजेश की मां की गुहार है।
वीडियो में ऋषि की मां मायादेवी कह रही है कि उसके बच्चे को फटाफट निकाला जाए। वह कह रही है कि इतनी ढील क्यों पाई गई है। उनके साथ कोई नहीं है। वीडियो में एक युवक कह रहा है कि गांव में कोई मीडिया वाला भी नहीं आ रहा है। हम आने जाने का खर्च देने को तैयार है। ये युवक सवाल भी उठा रहा है कि क्या मीडिया वाले तभी आते है जब कोई अमीर का बच्चा ऐसे बर्फ में दबा हो। ये युवक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से गुहार लगा रहा है कि ऋषि को तुरंत निकाला जाए।
ऋषि के चचेरे भाई धर्मवीर ने कहा कि वह वीडियो उन्होंने ही बनाया है। उनकी कोई सुन ही नहीं रहा है। ऋषि की शादी अभी हाल ही में दिसंबर में हुई थी। उन्होंने कहा कि वीडियो में गांव की महिलाएं है व जो युवक कुछ कह रहा है वह भी गांव का ही है। धर्मवीर ने कहा कि ट्टषि परिवार का एक ही कमाने वाला सदस्य है। दूसरा भाई मानसिक तौर पर कमजोर है। पूरा परिवार सदमे में है।
ऋषि की यूनिट से संपर्क कर रहे ऋषि के ताया रणदीप सिंह ने कहा कि सेना की ओर से उनसे लगातार बातचीत की जा रही है। सचिवालय की ओर से कोई मिलने नहीं आया है न ही किसी मंत्री का फोन आया है। उन्होंने कहा कि बीते रोज उन्होंने एसडीएम नालागढ़ को फोन किया था कि हमारा बच्चा आठ दिन से गायब है। प्रशासन की ओर से कोई नहीं आया। ऐसे में अब एसडीएम नालागढ़ घर आए थे। इससे पहले पूर्व भाजपा के पूर्व विधायक के एल मेहता व कांग्रेस विधायक लखविंदर राणा भी एक दिन घर आए थे।
उन्होंने कहा कि ऋषि के पिता चल फिर नहीं सकते। मां को पोलियो था जबकि उसका भाई इतना तेज नहीं है कि किसी स्तर पर बातचीत कर सके। उन्होंने कहा कि वह शादी के बाद 28 जनवरी को ही डयूटी पर वापस लौटा था। अब घर में सबका बुरा हाल है।
बचाव व राहत टीम को मिला मोबाईल- राहत व वचाव कार्य के बीते रोज आठवें दिन राहत व बचाव दल को मौके पर से एक मोबाईल मिला है। यह भी खोजी कुतों की मदद से मिला। इसके अलावा एक गैंती और टोपी मिली थी। आज जो मोबाईल मिला है वह बंद था जब उसे आन किया गया तो वह चल पड़ा। संभवतः वह यहां दबे रायफलमैन नीतिन राणा का है। लेकिन इस बावत कहीं से कोई पुष्टि नहीं हो रही है। एडीएम पूह शिव मोहन सिंह सैणी ने कहा कि उन्हें इतनी ही जानकारी है कि एक मोबाईल मिला है। उन्होंने कहा कि अब भी राहत व बचाव कार्य दिन भर चलता रहा। मौसम खराब था लेकिन बाद में मौसम साफ हो गया। उन्होंने उम्मीद जाहिर की कि संभवतः कल कुछ सफलता मिलने की संभावना है। उन्होंने कहा कि मौके पर 25 से 30 फुट ऊंची बर्फ है और नाला बेहद तंग है। इसके अलावा लगातार बर्फबारी पड़ रही है।
सेना के यह पांचो जवान भी चीन की सीमा पर देश के ही काम से सेना द्वारा भेजे गये थे। वहां पर उसी तरह अचानक हिम खंड हादसे के शिकर हो गये जिस तरह पुलवामा में सीआरपीएफ के जवान आतंकी हमले के शिकार हुए। पुलवामा में शिकार हुए सीआरपीएफ के जवानों के परिवारों को उनके संबधित राज्य सरकारों और केन्द्र सरकार ने भरपूर सहायता दी है। पुलवामा में हिमाचल के कांगड़ा का तिलक राज भी शिकार हुआ है। जयराम सरकार ने तिलक राज की विधवा पत्नी को डीसी आफिस धर्मशाला में लिपिक की नौकरी दी है। इसके अलावा और भी कई लोगों ने परिवार को सहायता का आश्वासन दिया है। लेकिन रायफल मैन राजेश के परिवार को वैसी ही सहायता न तो केन्द्र सरकार और न ही प्रदेश सरकार की ओर से दी गयी है। आज पुलवामा में जो कुछ घटा है उनके फोटो चुनावी सभाओं में लगाये जाने के समाचार सामने हैं। अनचाहे ही यह एक राजनीतिक मुद्दा बन गया है। लेकिन जब पुलवामा के साथ ही किन्नौर के हिमखण्ड में दबे सेना के ही पांच जवानों का हादसा सामने रखा जायेगा तो क्या उसमें अपने आप ही राजनीतिक आचरण पर सवाल नही उठेंगे। क्या यह नही पूछा जायेगा कि इनकी अहमियत कम क्यों?

उद्योगों को आमन्त्रण के साथ ही उनकी लूट पर भी नज़र रखनी होगी CGTMSE योजना के नाम पर बैंक की मिलीभगत से हो रहा फ्राॅड शिकायत मिलने के बावजूद पुलिस नही कर रही मामला दर्ज

शिमला/शैल। जयराम सरकार प्रदेश की आर्थिक सेहत को सुधारने तथा बढ़ती बेरोजगारी पर लगाम लगाने के लिये राज्य में नये उद्योग स्थापित करने की योजना पर काम कर रही है। क्योंकि सरकार की नजर में उद्योग ही एक ऐसा अदारा है जिनके माध्यम से निवेश आने पर जीडीपी सुधरेगा और रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे। इस नीति पर काम करते हुए सरकार ने शिमला में आयोजित इन्वैस्टर मीट में उद्योगों के साथ 18 हजार करोड़ से अधिक के निवेश के उद्योपतियों के साथ एमओयू साईन किये हैं इस 18 हजार करोड़ के संभावित निवेश में से कितना सही में जमीनी हकीकत बन पायेगा यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। क्योंकि पूर्व में धूमल और वीरभद्र शासन में भी ऐसे प्रयास और प्रयोग हो चुके हैं लेकिन उनमें कितनी सफलता हासिल हुई है और कितना निवेश प्रदेश को मिल पाया है इसके सही आंकड़े संवद्ध प्रशासन नही दे पाया है। माना जाता है कि शीर्ष प्रशासन इस तरह की योजनाएं जीडीपी के आंकड़े सुधारने के लिये लाता है ताकि कर्ज लेने की सीमा बनी रही।
इस समय प्रदश में कितने उद्योग कार्यरत है और उनमें कितना निवेश है तथा कितने लोग काम कर रहे है इसको लेकर उद्योग विभाग ने 2017 में एक प्रपत्र तैयार किया था। इसके मुताबिक प्रदेश में 40 हजार उद्योग पंजीकृत हैं जिनमें 17 हजार करोड़ का निवेश है तथा इन उद्योगों में 2,58,000 कर्मचारी कार्यरत हैं। इस बार सदन में आये एक प्रश्न के उत्तर में उद्योगों की संख्या 49 हजार बतायी गयी है लेकिन इनमें कितना निवेश है और कितने कर्मचारी हैं इस पर कुछ नही कहा गया है। इसी बीच आयी एक कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि हिमाचल के 2009 से 2014 के बीच विभिन्न करों में 35 हजार करोड़ की राहत मिल चुकी है। लेकिन इसके बावजूद यह उद्योग प्रदेश के युवाओं को वांच्छित रोजगार नही दे पाये हैं। 35 हजार करोड़ का यह आंकड़ा सरकारी फाईलों में दर्ज रिटर्नज पर आधारित है। यह दावा है केन्द्र के वित्त विभाग का जिसे प्रदेश की अफसरशाही मानने को तैयार नही हैं लेकिन कैग में दर्ज इस रिपोर्ट को प्रदेश के बड़े बाबू खारिज भी नही कर पाये हैं। कैग रिपोर्ट में दर्ज आंकड़ो और प्रदेश के उद्योग विभाग के 2017 के प्रपत्र के अनुसार इन उद्योगों के माध्यम से 52 हजार करोड़ निवेश से केवल तीन लाख लोगों को ही रोजगार मिल पाया है कि क्या प्रदेश की उद्योग नीति सही दिशा में है या नही।
आज उद्योगों को आमन्त्रित करने के लिये उन्हे कई तरह के प्रोत्साहन दिये जाते हैं। सबसे बड़ा तो यह है कि यह उद्योगपत्ति प्रदेश के बैंको से ही कर्ज लेकर निवेश करते हैं। जब यह कर्ज लौटाया नही जाता है तब एनपीए हो जाता है। आज प्रदेश के सारे सहकारी बैंक तक एनपीए में है। प्रदेश की वित्त निगम इन्ही उद्योगों के कारण डूब चुका है लेकिन प्रदेश की शीर्ष अफसरशाही और राजनीतिक नेतृत्व इस गंभीर पक्ष की ओर एकदम आंखे बन्द करके बैठा है। बल्कि कई जगह तो केन्द्र की योजनाओं के नाम पर कुछ शातिर लोग बैंक प्रबन्धन से मिलकर लोगों को लूट रहे हैं और संवद्ध प्रशासन इस बारे में आंख कान बन्द करके बैठा हुआ है। यहां तक की पुलिस भी ऐसी शिकायतों पर इन लोगों के प्रभाव में आकर कोई कारवाई नही कर रही है। इसलिये आज यह बहुत आवश्यक हो जाता है कि उद्योगों को आमन्त्रित करने के साथ ही उनकी लूट पर भी नजर रखनी होगी।
केन्द्र सरकार की स्माॅल, माईक्रो और मीडियम उद्य़ोगों को प्रोत्साहन एवम् संरक्षण देने की योजना है। यह योजना 2006 में अधिसूचित हुई थी। इसके तहत उद्योग लगाने वाले व्यक्ति को दो करोड़ ऋण लेने के लिये किसी भी तरह की धरोहर/संपत्ति को बैंक में गिरवी रखने की आवश्यकता नही थी क्योंकि इसके लिये सरकार ने एक CGTMSE(Credit Guarntee Fund trust for Micro and small Entetprises) स्थापित कर रखा था। इस योजना के तहत स्थापित यदि कोई इकाई डिफाल्टर हो जाती है तो यह ट्रस्ट ऋण देने वाले बैंक को उसकी 50/75/80/85 प्रतिशत तक भरपाई करता है। इस योजना में 7-1-2009 को संशोधन करके ट्रस्ट की जिम्मेदारी 62.50% से 65% तक कर दी गयी थी। इसके बाद 16-12-2013 को इसमें फिर संशोधन हुआ और ट्रस्ट की जिम्मेदारी 50% तक कर दी गयी। इस योजना के तहत स्थापित हो रही इकाई और उसको स्थापित करने वाले का आकलन करना और उससे पूरी तरह आश्वस्त होना यह जिम्मेदारी ऋण देने वाले बैंक प्रबन्धन की थी। अभी पिछले दिनों मोदी सरकार ने भी इसी योजना के तहत 59 मिनट में एक करोड़ का ऋण देने की घोषणा की है। यह इसी आधार पर संभव है कि ऋण लेने वाले को कुछ भी धरोहर के रूप में बैंक के पास गिरवी नही रखना है केवल बैंक प्रबन्धन को ऋण लेने वाले और उसकी योजना से आश्वस्त होना है। केन्द्र सरकार की यह एक बहुत बड़ी योजना है और इसके लिये एक पूरा मन्त्रालय स्थापित है। वीरभद्र सिंह भी इसके केन्द्र में मन्त्री रह चुके हैं। इस योजना की पूरी जानकारी आम आदमी से ज्यादा बैंको के पास है और एक तरह से उन्हें ही लोगों को इसके लिये प्रोत्साहित करना है।
जब सरकार उद्योग स्थापित करने के लिये इस तरह की सहायता का आश्वासन देगी तो यह स्वभाविक है कि कोई भी आदमी इसका लाभ उठाना चाहेगा। इसी का फायदा उठाकर मोहम्मद शाहिद हुसैन ने पांच अलग नामों से उद्योग इकाईयां स्थापित की। शाहिद हुसैन हिमाचल का निवासी नही था और यहां पर उसके पास कोई संपत्ति नही थी। इसलिये उसे यहां पर उद्योग लगाने के लिये स्थानीय लोगों की हिस्सेदारी चाहिये थी। इस हिस्सेदारी को हासिल करने के लिये उसने स्थानीय लोगों से मित्रता बनानी आरम्भ कर दी और सबको अपना परिचय एक मुस्लिम बुद्धिजीवि शायर के रूप में दिया। उसकी शायरी से प्रभावित होकर कुछ लोग उसके प्रभाव में आ गये। प्रभाव में आने के बाद उसने इन लोगों को केन्द्र की इस उद्योग योजना की जानकारी देना शुरू किया। इसका विश्वास दिलाने के लिये केनरा बैंक के प्रबन्धक एस के भान से मिलाना शुरू किया। बैंक मैनेजर ने भी लोगों को इस योजना की जानकरी दी और बताया कि इसमें उन्हे ऋण लेने के लिये कुछ भी गिरवी रखने की आवश्यकता नही है। स्वभाविक है कि जब ऋण देने वाला बैंक भी ऐसी योजना की पुष्टि करेगा तब आदमी उद्योग लगाने के लिये तैयार हो ही जायेगा। उद्योग इकाईयां स्थापित कर ली यह इकाईयां आर आर वी क्रियेशनज़, रामगढ़िया इन्टरप्राईज़िज, बाला जी इन्टर प्राईज़िज, आर के इन्डस्ट्रीज और पारस होम एप्लांईसेज़ शाहिद के षडयन्त्र का असली चेहरा पासर होम एप्लाॅंईसैज मे सामने आया। यहां पर उसने पीयूष शर्मा को अपना हिस्सेदार बनाया। पीयूष के पिता कुलदीप शर्मा का यहां एक होटल और अपना बड़ा मकान है। शाहिद की नज़र इस संपत्ति पर आ गयी। उसने पीयूष को पार्टनर बनाकर जून 2013 में केनरा बैंक से ण स्वीकृत करवा लिया। फिर नवम्बर 2013 में पीयूष के पिता कुलदीन शर्मा को यह कहानी गढ़ी कि उसे 1.10 लाख यू एस डॅालर का आर्डर मिला है और इस आर्डर को पूरा करने के लिये उसे एक करोड़ के अतिरिक्त ऋण की आवश्यकता है यदि कुलदीप शर्मा इस ऋण के लिये अपना मकान कुछ समय के लिये बैंक में गिरवी रखने को तैयार हो जायें तो यह आसान हो जायेगा। बेटे के भविष्य को ध्यान में रखते हुए वह इसके लिये तैयार हो गये। शाहिद उन्हें केेनरा बैंक ले गया वहां बैंक प्रबन्धक ने भी इसकी पुष्टि कर दी और कुलदीप को मकान मारटगेज करने के लिये राजी कर लिया। 9.12.2013 को यह मारटगेज डीड साईन हो गयी। यह डीड साईन होने के बाद अन्य इकाईयों की जानकारी सामने आयी और कुलदीप के बेटे ने शाहिद के साथ अपनी पार्टनरशिप भंग कर दी। कुलदीप शर्मा ने बैंक को यह मारटगेज डीड रद्द करने के लिये लिखित में दे दिया क्योंकि इस डीड के एवज में बैंक ने कोई अतिरिक्त ऋण जारी नहीं किया था। बैंक के साथ ही कुलदीप ने संबन्धित तहसीलदार को भी सूचित कर दिया कि यह इस डीड पर अमल न करे। लेकिन तहसीलदार ने कुलदीप के आग्रह को नजरअन्दाज करके मकान बैंक के नाम लगा दिया। इस सारे किस्से की पुलिस को भी लिखित में शिकायत दे दी गयी लेकिन पुलिस ने आज तक शाहिद और बैंक प्रबन्धन के खिलाफ कोई मामला दर्ज नही किया है।
कुलदीप जैसा ही व्यवहार अन्य तीन लोगों के साथ भी हुआ है वह भी पुलिस को शिकायत कर चुके हैं लेकिन कोई कारवाई सामने नही आयी है। अब यह भी सामने आया है कि आर के इन्डस्ट्रीज़ शाहिद की पत्नी के नाम है लेकिन यह इकाई केवल कागजों में ही कही जा रही है और इसी केनरा बैंक प्रबन्धन ने इस ईकाई के नाम पर भी कोई 50 लाख का ऋण दे रखा है। इन सारे उद्योगों को इसी बैंक से करीब दो करोड़ का ऋण दिया जा चुका है और इन उद्योगों में हिस्सेदार बनाये गये सारे स्थानीय लोग इस षडयन्त्र का शिकार हो चुके हैं। यह सारे ऋण एक ही बैंक प्रबन्धक द्वारा दिये जाना यह प्रमाणित करता है कि यह एक सुनियोजित षडयन्त्र है जिसमें बैंक प्रबन्धक की सक्रिय भूमिका रही है। अब जब पुलिस शिकायत मिलने के बाद भी मामला दर्ज नही कर रही है तब पुलिस की भूमिका भी सन्देह के घेरे में आ गयी है। इस षडयन्त्र का शिकार हुए लोगों की हताशा कब क्या गुल खिला दे इसका अनुमान लगाना कठिन है।

CGTMSE -Credit Guarantee Fund trust for Micro and Small Enterprises:A special protection is given to the micro, small and Medium enterprises via the MSME Act, 2006. These are small scale industries which require immunity and special protection to flourish. These industries from the very backbone of our Indian Economy.One of the government- sponsored schemes for MSMEs is the CGTMSE (Credit Guarantee Fund Trust for Micro and small Enterprises).
What is the CGTMSE?
The whole idea behind this trust is to provide financial assistance to these industries without any third party guarantee/ or collateral. These schemes provide the assurance to the lenders that in case of default by them a guarantee cover will be provided by trust in the ration of 50/75/80/85 percent of the amount so given.


17 करोड़ की मुख्यमन्त्री राहत से सिराज को मिले 3 करोड़

शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री राहत कोष एक ऐसा साधन है जिससे किसी भी व्यक्ति की सहायता की जा सकती है। इसकी सहायता की पात्रता के लिये कोई बडे़ कडे़ नियम नही है जैसा की अन्य योजनाओं में होता है। इसके तहत दी गयी सहायता को किसी भी तरह से किसी अदालत में चुनौती नही दी जा सकती है। इसमें केवल यही देखा जाता है कि जिस दिन यह सहायता मांगी जाती है उस दिन मुख्यमन्त्री राहत कोष में धन उपलब्ध होना चाहिये और सहायता मांगने वाले के पास उस समय और कोई साधन उपलब्ध नही था। मुख्यमन्त्री राहत कोष से सामान्यतः आवदेन संबंधित एसडीएम कार्यालय के माध्यम से भेजे जाते हैं ताकि वह यह सुनिश्चित कर सके की सहायता मांगने वाला सही में इसका पात्र है। वैसे नियमों में ऐसी कोई बंदिश नही है क्योंकि यह सहायता मुख्यमन्त्री के अपने विवके पर निर्भर करती है और मुख्यमंत्री किसी भी ऐसे आग्रह को अस्वीकार भी कर सकते हैं।
मुख्यमंत्री राहत कोष शुद्ध रूप से केवल सरकारी धन ही नही होता है। इसमें कोई भी व्यक्ति मुख्यमंत्री को इसमें योगदान दे सकता है और मुख्यमंत्री अपने विवके से इसमें से कोई भी आंवटन कर सकते हैं। इस वित्तिय वर्ष में मुख्यमंत्री राहत कोष से 27 दिसम्बर 2017 से 15 जनवरी 2019 तक प्रदेश के विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों में 17,34,51,949 रूपये की सहायता दी गयी है। इसमें मुख्यमंत्री के अपने विधानसभा क्षेत्र सिराज में 3,03,17,140 रूपये की सहायता दी गयी है।































 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

प्रदेश का कर्जभार पंहुचा 52000 करोड़

शिमला/शैल। इस बार बजट सत्र में नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री और कांग्रेस के ही विधायक पूर्व मंत्री राम लाल ठाकुर का सवाल था कि 15 जनवरी 2019 तक जयराम सरकार ने कितना कर्ज लिया है। इस सवाल के जवाब में बताया गया कि 3451 करोड़ का कर्ज लिया गया और इसमें 3000 करोड़ खुले बाजार से लेना पड़ा है। इसी के साथ यह भी बताया गया कि इसमें सरकार ने कुछ कर्ज वापिस भी कर दिया है और इस तरह शुद्ध रूप से केवल 1838.75 करोड़ का ही ऋण लिया गया है। मुकश अग्निहोत्री के सवाल के जवाब में बताया गया कि सरकार की कर्ज लेने की सीमा 4524 करोड़ है और सरकार का कुल कर्ज 4975.45 करोड़ है। लेकिन मुख्यमन्त्री ने अपने बजट भाषण में सदन को बताया है कि इस वर्ष 5068 करोड़ का ऋण लेना पडे़गा। मुख्यमन्त्री के बजट भाषण के आंकड़ों को सही मानते हुए कुल कर्ज 52000 करोड़ से ऊपर चला जाता है। कर्ज का दस्तावेज 2003 से 2017-18 तक का शैल के पिछले अंक में पाठकों के सामने रखा जा चुका है।

कर्ज को लेकर सदन में आये राम लाल ठाकुर और मुकेश अग्निहोत्री के प्रश्नों पर चर्चा नही हो पायी है और इस तरह यह सरकार का लिखित जवाब ही रह गया है। लेकिन बजट भाषण पर हुई चर्चा में कर्ज  की स्थिति पर चिन्ता व्यक्त की गयी है। मुख्यमन्त्री ने इस चर्चा का जवाब देते हुए यहां तक कह दिया कि पूर्व में कर्ज लेकर मौज मस्ती होती रही है। मुख्यमन्त्री का यह आरोप कितना सही है इससे ज्यादा महत्वपूर्ण  यह है कि क्या जयराम सरकार इस बढ़ते कर्जभार का रोकने का कोई ठोस उपाय कर रही है? जयराम पहली बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने हैं इस नाते उनका दामन कर्ज करने के दाग से साफ था। ऐसे में यदि वह प्रदेश की वित्तिय स्थिति पर कोई श्वेतपत्र ले आते तो प्रदेश की जनता उनके कथन पर आसानी से विश्वास कर लेती। लेकिन वह कर्ज के लिये जिम्मेदार अफरशाही के हाथों में ऐसे खेल गये कि यह श्वेत पत्र नही ला सके। जबकि 1998 में धूमल यह श्वेतपत्र लेकर आये थे और इसी कारण से वह वीरभद्र शासन पर लगातार भारी पड़ते रहे।

अभी जो आंकड़े अफसरशाही ने मुख्यमन्त्री के सामने परोसे हैं उनमें अपने में अन्त विरोध है। सवाल के जवाब में कुछ है और बजट भाषण में कुछ। फिर बजट की विवरणिका में जो पूंजीगत प्राप्तियों का सकल ऋण कहा गया है वह क्या है इस पर कोई स्पष्टीकरण नही आ पाया है। भारत सरकार मार्च 2016 में भी कर्ज को लेकर चेतावनी पत्र भेज चुकी है। लेकिन इस पत्र पर कोई अमल नही हुआ है। क्योंकि एफआरबीएम अधिनियम की धारा दस के तहत अधिकारियों को यह छूट हासिल है कि उनके खिलाफ किसी भी तरह की कोई कानूनी कारवाई नही की जा सकती है।No suit, prosecution or other legal proceedings shall lie against the state government or any of its officers, for anything which is in good faith done or intended to be done under this Act or the rules made there under. लेकिन इसी अधिनियम की धारा 7(2) में सरकार की यह भी जिम्मेदारी है कि वह अपने संसाधन बढ़ाये

Whenever there is a prospect of either shortfall in revenue or excess of expenditure over pre-specified levels for a given year on account of any new policy decision of the state Government that affects either the State Government or its public sector undertakings, the State Government, prior to taking such policy decision, shall take measure to fully offset the fiscal impact for the current and future years by curtailing the sums authorized to be paid and applied from and out of the consolidated Fund of the State under any Act enacted by Legislative Assembly to provide for the appropriation of such sums , or by taking interim measure fro revenue augmentation, or by taking up a combination of both.

लेकिन एफआरवीएम के इन प्रावधानों के तहत क्या संसाधन बढ़ाने की ओर कोई ध्यान दिया जा रहा है शायद नही। केवल हर बार हर मुख्यमन्त्री के नाम से हर बजट में ऐसी घोषणाएं कर दी जाती हैं जिनको पूरा करने के लिये केवल कर्ज लेना ही एकमात्र विकल्प रह जाता है। इसी का परिणाम है कि आज प्रदेश 52000 करोड़ के कर्ज तले डूबा है। इसी कारण से आज हर काम आऊटसोर्से पर किया जा रहा है।

 

Facebook



  Search