शिमला/शैल। जयराम के ऊर्जा मंत्री अनिल शर्मा के बेटे आश्रय मण्डी लोकसभा सीट से कांग्रेस के प्रत्याशी बन गए। आश्रय के कांग्रेस का उम्मीदवार होने से भाजपा के लिये अनिल शर्मा को मंत्रीमण्डल और पार्टी में बनाये रखना गले की फांस बनता जा रहा है। क्योंकि जब तक अनिल शर्मा भाजपा के लिखित आदेशों की अनुपालना करने से इन्कार नहीं करते हैं तब तक उनके खिलाफ दल बदल एंवम् अनुशासनहीनता के तहत कारवाई नही की जा सकती है। अभी तक सूत्रों के मुताबिक रिकार्ड पर ऐसा कुछ नही आया हालांकि अनिल शर्मा लोकसभा क्षेत्रा के लिये आयोजित कार्यक्रम ‘‘मै भी चैकीदार हूं’’ में जाहू में शामिल नही हुए हैं। लेकिन इसके लिये कोई लिखित आदेश नही थे। ऐसे में अनिल शर्मा का निष्कासन पेचीदा होता जा रहा है। क्योंकि अनिल शर्मा मुख्यमन्त्री के अपने ही गृह जिला से ताल्लुक रखते हैं और वरिष्ठ मंत्री है। इस नाते उन्हें सरकार के अन्दर की जानकारियों का ज्ञान होना स्वभाविक है। फिर यह बाहर आ ही चुका है कि अनिल शर्मा मुख्यमन्त्री के सलाहकारों के प्रति बहुत सन्तुष्ट नही रहे हैं। इससे यह इंगित हो जाता है कि जब चुनाव के दिनों में भाजपा अनिल को बाहर करती है तब सरकार को लेकर बहुत सारी असहज स्थितियां पैदा हो सकती हंै।
अभी पंडित सुखराम को लेकर जिस तरह का ब्यान शान्ता कुमार का आया है उससे भाजपा पर ही सवाल खड़े हो जाते हैं कि जब 1998 और 2017 में सुखराम का सहयोग भाजपा ने लिया था और उनके साथ मिलकर सरकार बनाई थी तब सुखराम अच्छे थे और उससे भाजपा की कोई बदनामी नही हुई थी जो आज उनके भाजपा के साथ छोड़ने से हो गयी है। यह निश्चित है कि भाजपा जितना ज्यादा सुखराम और अनिल को कोसेगी उतना ही ज्यादा भाजपा का नुकसान होगा। आज राजनीतिक परिस्थितियों में विष्लेशकों के मुताबिक अनिल शर्मा को यह सुनिश्चित करना है कि भाजपा जल्द से जल्द उन्हें पार्टी से निकाले और वह खुलकर बेटे के लिये चुनाव प्रचार करें। अभी अनिल शर्मा के खिलाफ संगठन की अनुशंसा पर दल बदल कानून के तहत कितनी कारवाई संभव है इस पर स्थिति स्पष्ट नही है। क्योंकि संगठन में लोकतान्त्रिक अधिकारों के तहत मत भिन्नता की पूरी छूट रहती है। आज जब पूरी भाजपा ‘‘मै भी चैकीदार हूं’’ हो रही है तब इसके कई वरिष्ठ सांसदों/मन्त्रीयों ने चैकीदार होने से मना कर दिया है। यह कार्यक्रम संगठन का है और इसे न मानने से दल बदल के तहत कारवाही आकर्षित नही होती है। यह कारवाही सामान्यतः सदन में विहिप की उल्लघंना पर ही होती है और अभी प्रदेश विधानसभा का कोई सत्र होने नही जा रहा है। ऐसे में अनिल के लिये सदन की सदस्यता से वंचित होने और फिर उपचुनाव का सामना करने की स्थिति लोकसभा चुनावों के बाद ही आयेगी ऐसे में यह भाजपा को देखना है कि वह अनिल के निष्कासन का जोखिम अभी उठाती है या बाद में।