ओक ओवर और सचिवालय के निर्माणों से उठी चर्चा
एन.जी.टी. ने उच्च न्यायालय और सरकार के आवेदनो को अस्वीकारा
कैग और सरकार की अपनी रिपोर्टों पर आधारित है यह फैसला
शिमला/शैल। क्या जयराम सरकार अदालती आदेशों के अनुपालन में भी गंभीर और ईमानदार नहीं है? यह सवाल एन.जी.टी. के 16-11 -2017 को आये फैसले के संदर्भ में इन दिनों फिर चर्चा का विषय बन गया है। क्योंकि इसी वर्ष नगर निगम शिमला के चुनाव होने हैं और एन.जी.टी. के फैसले का सबसे बड़ा सरोकार भी शिमला ही रहा है। एन.जी.टी. ने अपने आदेश में शिमला में नये निर्माणों पर प्रतिबंध लगाते हुये स्पष्ट कहा है कि We hereby prohibit new construction of any kind, i.e. residential, institutional and commercial to be permitted henceforth in any part of the Core and Green/Forest area as defined under the various Notifications issued under the Interim Development Plan as well, by the State Government.
Wherever the old residential structures exist in the Core area or the Green/Forest area which are found to be unfit for human habitation and are in a seriously dilapidated condition, the Implementation Committee constituted under this judgement may permit construction/reconstruction of the building but strictly within the legally permissible structural limits of the old building and for the same/permissible legal use. The Competent Authority shall sanction the plans and/or approve the same only to that extent and no more; under any circumstances such plans must not be beyond two storeys and an attic floor and only for residential purpose.
एन.जी.टी. ने यह आदेश कैग रिपोर्ट का संज्ञान लेते हुये किया है। जिसमें यह कहा गया है कि हिमाचल के पहाड़ी क्षेत्रों में निर्माणों को रगुलेट करने के लिये समुचित नियम नहीं हैं। इस कारण से यहां पर भूकंप और दूसरी आपदायें घटती रहती हैं। इस संदर्भ में एन.जी.टी. ने आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के प्रावधानों और हिमाचल सरकार द्वारा गठित विशेषज्ञ कमेटी जिसमें प्रदेश के वरिष्ठ अधिकारी, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अथॉरिटी, हिमालयन जियोलॉजी संस्थान देहरादून, जी बी पंत संस्थान और नई दिल्ली स्थित स्कूल ऑफ प्लानिंग के प्रोफेसर शामिल थे की रिपोर्ट में आयी सिफारिशो का संज्ञान लेते हुए अपना फैसला दिया है। कमेटी की रिपोर्ट और एन.जी.टी. के फैसले में यह तथ्य आये हैं कि प्रदेश में अब तक 90 भूकंप आ चुके हैं और शिमला नगर निगम द्वारा 27318 घरेलू और 4900 कमर्शियल पानी के कनेक्शन ही हैं। जबकि इसके मुकाबले में सीवरेज के सिर्फ 13752 कनेक्शन ही है। शिमला के प्रबंधन पर यहां एक बड़ा खुलासा है। पिछले कुछ अर्से से चंबा से लेकर शिमला तक लगभग प्रदेश के हर जिले में भूकंप महसूस किये गये हैं और इसे एक बड़ी आपदा के पूर्व संकेतों के रूप में देखा जा रहा है।
एन.जी.टी. का आदेश नवंबर 2017 में आया था और दिसंबर में चुनाव होने के बाद सरकार बदल गयी थी। जयराम ठाकुर मुख्यमंत्री बन गये थे। इस नाते एन.जी.टी. के फैसले के अनुपालन की जिम्मेदारी जयराम सरकार की हो जाती है। लेकिन क्या यह सरकार इस फैसले पर अमल कर पा रही है। क्योंकि इस फैसले के बाद कुछ निर्माण मुख्यमंत्री के सरकारी आवास पर हुआ है। यहां पर लिफ्ट तक लगाई गयी है। जबकि मुख्यमंत्री का आवास कोर एरिया में आता है। जिसमें निर्माणों पर पूर्ण प्रतिबंध है। इस निर्माण की स्वीकृति नगर निगम टीसीपी और एन.जी.टी. के फैसले के तहत बनी कमेटी के द्वारा दी गयी है या नहीं इस पर प्रशासन खामोश है। जबकि 25 फरवरी 2021 को हुई कमेटी की बैठक में न्यू शिमला में प्राइमरी हेल्थ सेंटर शिमला के देहा में चुनाव आयोग का वेयरहाउस नाभा में चार मंजिला दो ब्लॉक, पुराने बस स्टैंड के पास रेलवे की जमीन पर कमर्शियल परिसर, सचिवालय में विकलांगों के लिए लिफ्ट और रैंप, मुख्यमंत्री के कार्यालय के आगन्तुकों के लिये हॉल आर्मजडेल भवन में कार पार्किंग संजौली में वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल भवन उच्च न्यायालय में कैंटीन सहायक सालिसिटर जनरल कार्यालय के पांच मंजिला भवन निर्माण के प्रस्ताव को अनुमोदित किया गया। इनमें कुछके निर्माणों को कमेटी के अनुमोदन के बाद एन.जी.टी. को भेजने की अनुशंसा की गयी थी। इन्हीं प्रस्तावों में एक प्रस्ताव स्व. नरेंद्र बरागटा के भवन में लिफ्ट लगाने का आया था और इसे भी एन.जी.टी. में ले जाने की सिफारिश की गयी थी।
एनजीटी ने सचिवालय में और ब्रागटा के घर में लिफ्ट लगाने तथा बहुमंजिला पार्किंग के प्रस्तावों को अस्वीकार कर दिया है। बहुमंजिला पार्किंग में जितना भी निर्माण हुआ है उसकी कोई अनुमति कहीं से भी नहीं है। इसी बीच प्रदेश उच्च न्यायालय ने पुराने भवन को गिरा कर उसके स्थान पर नया निर्माण करने की अनुमति के लिए एन.जी.टी. में आवेदन किया था उच्च न्यायालय का यह आवेदन एन.जी.टी. ने 8-10-2021 को अस्वीकार कर दिया है। एनजीटी में इस फैसले में फिर स्पष्ट किया है Wherever unauthorised structures, for which no plans were submitted for approval or NOC for development and such areas falls beyond the Core and Green/Forest area the same shall not be regularised or compounded. However, where plans have been submitted and the construction work with deviation has been completed prior to this judgement and the authorities consider it appropriate to regularise such structure beyond the sanctioned plan, in that event the same shall not be compounded or regularised without payment of environmental compensation at the rate of Rs. 5,000/- per sq. ft. in case of exclusive selfoccupied residential construction and Rs. 10,000/- per sq. ft. in commercial or residential-cum-commercial buildings. The amount so received should be utilised for sustainable development and for providing of facilities in the city of Shimla, as directed under this judgement. यह फैसला पूरे प्रदेश पर लागू है। लेकिन हर हिस्से में इसकी अनुपालना इमानदारी से नही हो रही है। शिमला में तो इस फैसले के बाद दर्जनों बहुमंजिला निर्माण बन गये हैं। जबकि इस फैसले के तहत केवल वही निर्माण नियमित किए जाने थे जो यह फैसला आने तक पूरी तरह तैयार हो चुके थे। पिछले दिनों कच्ची घाटी में गिरे आठ मंजिला निर्माण से सरकार सहित सभी संवद्ध संस्थानों की नीयत और नीति पर गंभीर सवाल खड़े हो गये हैं। इस परिदृश्य में यह देखना रोचक होगा कि आने वाले नगर निगम शिमला के चुनावों में इस विषय पर कौन क्या पक्ष लेता है।
आरोप पत्र की गंभीरता तय करेगी कांग्रेस का भविष्य
क्या आरोप पत्र रस्म अदायगी से आगे बढ़ेगा
शिमला/शैल। प्रदेश कांग्रेस के नेता उपचुनावों में चारों सीटें जीतने के बाद आने वाले विधानसभा चुनावों में साठ सीटें जीतकर 60ः 8 होने का दावा करने लगे हैं। यह सही है कि इस समय प्रदेश के जो हालात चले हुये हैं उनके चलते यदि 68ः0 भी परिणाम हो जाये तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। क्योंकि उपचुनावों के बाद मण्डी आये प्रधानमंत्री प्रदेश को कुछ देकर नही गये हैं और प्रदेश सरकार की हालत यह है कि वह उस काल में भी जनहित से जुड़ी 96 योजनाओं पर एक पैसा तक खर्च नहीं कर पायी है जब कोरोना का संकट भी सामने नही था। जबकि इसी बीच मुख्यमंत्री के सरकारी आवास दो मंजिला और ओवर में लिफ्ट लगाई गयी। आगन्तुकों से मिलने के लिये अलग से एक निर्माण करवाया गया और गाय के लिये आवास और सड़क बनाये गये। ओक ओवर शहर के कोर एरिया में पड़ता है और कोर एरिया में एनजीटी ने हर तरह के निर्माण पर नवंबर 2017 में ही पूर्ण प्रतिबंध लगाया हुआ है। स्वभाविक है कि यह निर्माण अदालत के फैसले की अवहेलना है। एनजीटी के इस फैसले की जानकारी संभव है कि मुख्यमंत्री को न रही हो लेकिन प्रशासन के शीर्ष पदों पर बैठे हर अधिकारियों को अवश्य रही है। ऐसे में यह निर्माण ही एक ऐसा सवाल बन जाता है जो प्रशासनिक समझ का खुलासा जनता के सामने रख देता है। यही नहीं कुछ ऐसे अधिकारियों को मुख्यमंत्री को बचाना पड़ा है जिन्हें एनजीटी और उच्च न्यायालय तथा सर्वोच्च न्यायालय ने नामतः चिन्हित करते हुये दोषी करार देकर उनके खिलाफ कारवाई करने के आदेश दिये हैं। लेकिन इन आदेशों की अनुपालना नहीं हुई है। इस चुनावी वर्ष में जब इस तरह के मामले जनता के बीच उछलेंगे तो इस सबका परिणाम क्या होगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसे दर्जनों मामले जब पूरे दस्तावेजी साक्ष्यों के साथ सामने आयेंगे तो उसका चुनावी परिदृश्य पर निश्चित रूप से नकारात्मक प्रभाव ही पड़ेगा।
इसी परिदृश्य में अब कांग्रेस ने पांच सदस्यों की एक कमेटी बनाकर नौ मुद्दों पर सरकार की असफलताओं और भ्रष्टाचार पर एक प्रमाणिक आरोप पत्र तैयार करने का ऐलान किया है। इस आरोप पत्र में क्या-क्या सामने आता है यह तो आरोप पत्र आने पर ही पता चलेगा। लेकिन यह तथ्य तो आम आदमी के सामने ही है कि यह सरकार बेरोजगारों युवाआें को रोजगार नहीं दे पायी है। इस समय प्रदेश के रोजगार कार्यालय में बारह लाख लोग रोजगार के लिए पंजीकृत हैं। जबकि यह सरकार अब तक केवल 23804 लोगों को ही अनुबंध के आधार पर नौकरी दे सकी है। कोरोना के कारण ही 17142 लोगों का रोजगार खत्म हुआ जिनमें से 17033 को सरकारी क्षेत्र और 4311 को प्राइवेट क्षेत्र में रोजगार दिया जा सका है। रोजगार के इन आंकड़ों से स्पष्ट हो जाता है कि सरकार इतने लोगों को रोजगार नहीं दे पायी है जितने इस काल में रिटायर हुये हैं। गांवों में जहां लोगों को मनरेगा के तहत रोजगार उपलब्ध होता था वहां पर भी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 127637 कार्य निष्पादन के लिए चयनित हुए जिनमें से 74527 कार्यों पर काम नहीं हुआ है। मनरेगा में जो काम हुए हैं उनमें से 4726.88 लाख मजदूरी के और 5383.40 लाख सामान के भुगतान के लिये अब तक लंबित पड़े हैं।
रोजगार की स्थिति से स्पष्ट हो जाता है कि सरकार रोजगार उपलब्ध करवाने में कितनी सफल हुई है। आउट सोर्स के माध्यम से जो रोजगार दिया जा रहा है वह बेरोजगारों के उत्पीड़न का माध्यम बनकर रह गया है। क्योंकि आउट सोर्स का संचालन कर रही कंपनियों के संचालकों को बैठे-बिठाये मोटा कमीशन मिल रहा है। जबकि जिन लोगों को इनके माध्यम से रोजगार मिल रहा है उनके प्रति और रोजगार देने वाले विभाग के प्रति इन कंपनियों की कोई जिम्मेदारी नहीं है। क्योंकि इनके पंजीकरण में राज्य सरकार की कोई भूमिका ही नहीं है। बल्कि आज आउट सोर्स कंपनियां कुछ राजनेताओं और बड़े अधिकारियों की आय का एक बड़ा साधन बन गये हैं । जब स्व. वीरभद्र प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तब आउट सोर्स कंपनियों का बड़ा जखीरा शिमला था। अब क्योंकि मुख्यमंत्री मण्डी से ताल्लुक रखते हैं तो दर्जनों कंपनियों के कार्यालय मण्डी में हो गये हैं और कमीशन के रूप में करोड़ों की कमाई कर रहे हैं। आउटसोर्स कर्मचारियों को सरकार कभी भी नियमित न कर सकती है क्योंकि यह लोग सरकारी कर्मचारी है नही। सरकार हर बार इन्हें आश्वासन देकर केवल छलने का काम कर रही है ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस के प्रस्तावित आरोप पत्र में क्या मुद्दे रहते हैं।
शिमला/शैल। क्या आज आम आदमी पार्टी हिमाचल में भी कोई सफलता हासिल कर पायेगी। यह सवाल पार्टी के नगर निगम चंडीगढ़ के चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने से चर्चा में आ गया है। क्योंकि आम आदमी पार्टी ने शिमला में अपना कार्यालय स्थापित करके प्रदेश प्रभारी के रूप में भी दिल्ली के एक नेता को यह बिठा दिया है। वैसे तो 2014 के लोकसभा चुनाव से ही प्रदेश की चारों सीटों पर चुनाव लड़कर पार्टी अपना स्थान बनाने में लगी हुई है। लेकिन 2014 के चुनाव के बाद आज तक पार्टी ने प्रदेश में अधिकारिक रूप से कोई बड़ा चुनाव नहीं लड़ा है। चंडीगढ़ के चुनाव में भी पार्टी को कांग्रेस भाजपा के मुकाबले सबसे कम वोट प्रतिशत मिला है। इसमें सबसे अधिक वोट शेयर कांग्रेस और दूसरे नम्बर पर भाजपा रही है। इसलिए चंडीगढ़ में मिली आप की सफलता को एक बड़ी जनस्वीकार्यता भी नही माना जा सकता। चंडीगढ़ नगर निगम पर भाजपा का कब्जा था और इन चुनाव में उसके मेयर का भी आप के हाथों हार जाना निश्चित रूप से एक बड़ी राजनीतिक घटना है। पंजाब में जब से अमरिन्दर कांग्रेस छोड़कर अपनी पंजाब लोक कांग्रेस बनाकर भाजपा के साथ गठबंधन में गये हैं उसके बाद ही चंडीगढ़ के यह चुनाव हुये हैं। ऐसे में इन चुनावों के परिणामों को इस नये गठबंधन के भविष्य के रूप में भी देखा जा रहा है। इसका पंजाब के चुनाव पर क्या असर पड़ेगा यह तो आने वाला समय ही बतायेगा।
लेकिन इस समय जिस तरह का राजनीतिक परिदृश्य पूरे देश में उभरता जा रहा है उससे यह बात विशेष रूप से सामने आ रही है कि सभी जगह सत्तारूढ़ भाजपा की बजाये कांग्रेस का ज्यादा विरोध किया जा रहा है। जो राजनीतिक दल भाजपा से सत्ता छीनने के दावेदार बन रहे हैं उन सबका पहला विरोध कांग्रेस का हो रहा है। सपा टीएमसी और आम आदमी पार्टी सभी इस कड़ी में शामिल राजनीतिक दल है। जहां जहां भाजपा कमजोर हो रही है उन्हीं राज्यों में यह दल चुनाव लड़ने को प्राथमिकता दे रहे हैं। इस परिपेक्ष में यदि हिमाचल में आप का आकलन किया जाये तो यह स्पष्ट हो जाता है कि इन उपचुनावों में आप के नेताओं का समर्थन भाजपा के साथ था। बल्कि आप के कई बड़े नेता तो भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्रीयों के साथ अपनी नजदीकियां बढ़ा रहे थे। अब प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पूर्व नगर निगम शिमला के चुनाव आ रहे हैं। भाजपा भी चारों उपचुनाव हार कर काफी कमजोर हुई है। नगर निगम शिमला में भी भाजपा की स्थिति बहुत नाजुक है इस परिदृश्य में आप ने शिमला नगर निगम के चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि आप यह चुनाव इमानदारी से भाजपा के खिलाफ लड़ती है या सिर्फ कांग्रेस को हराने के लिये ही लड़ती है। नगर निगम शिमला में आप का प्रदर्शन उसका प्रदेश में भविष्य तय करेगा।
क्योंकि अभी तक आप की ओर से यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि उसका पहला राजनीतिक प्रतिद्वंदी कांग्रेस है या भाजपा। आप पूरे देश में दिल्ली मॉडल पर काम करने के दावे कर रही है। जबकि व्यवहारिक पक्ष यह है कि जितना राजस्व दिल्ली सरकार का है उतना किसी और प्रदेश का नहीं है। फिर दिल्ली का आधे से ज्यादा काम नगर निगमों के पास है जिन पर आज भी भाजपा का कब्जा है।
शिमला/शैल। मोदी सरकार ने देश की जनता को नये वर्ष पर बहुत सारी चीजों पर जीएसटी 5% से बढ़ाकर 12% करके महंगाई का उपहार दिया है। सरकार के इस महंगाई उपहार को मुद्दा बनाकर कांग्रेस पार्टी ने इस पर तीखा हमला किया है। महंगाई से बेरोजगारी भी बढ़ेगी इस पर भी कांग्रेस ने विस्तार से चर्चा की है। महंगाई और बेरोजगारी ऐसे मुद्दे हैं जिन से हर आदमी प्रभावित हो रहा है। हर आदमी इन्हें समझ भी रहा है। लेकिन आज जिस तरह से सरकार और उसके शुभचिंतक इस समस्या के लिए पूर्व की कांग्रेस सरकारों को दोष देकर राम मंदिर, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर, मथुरा तथा तीन तलाक और धारा 370 के हटाये जाने को सबका साथ सबका विश्वास और सबका विकास बता कर अपना पक्ष रख रहे हैं। उसके कारण आम आदमी महंगाई बेरोजगारी को स्वाभाविक प्रतिफल मानकर अपना तीव्र रोष व्यक्त नहीं कर पा रहा है। जब तक आम आदमी का रोष पूरी तरह मुखर होकर सड़क पर नहीं आ जाता है तब तक सरकार इस पर लगाम लगाने का कोई प्रयास नहीं करेगी।
महंगाई और बेरोजगारी के आंकड़े परोसने के साथ ही कांग्रेस को इसके कारण भी जनता के सामने रखने होंगे। सरकार के कौन से ऐसे फैसले रहे हैं जिन का परिणाम महंगाई के रूप में सामने आया है। कांग्रेस ने नये साल के अवसर पर महंगाई बेरोजगारी को लेकर एक विस्तृत चार पन्नों की प्रतिक्रिया जारी की है लेकिन इसमें इसके कारणों पर कोई प्रकाश नहीं डाला है। कांग्रेस की प्रतिक्रिया से यही संकेत उभरता है कि यह एक रस्म अदायगी मात्र है। जबकि केंद्र से लेकर राज्य सरकार तक सभी के ऐसे फैसले उपलब्ध हैं जिनको लेकर सरकारों को कटघरे में खड़ा किया जा सकता है। हिमाचल सरकार के खिलाफ तो सीएजी ने ही बड़ा फतवा दिया है कि सरकार ने 96 योजनाओं पर एक नया पैसा तक खर्च नहीं किया है। जबकि यह सारी योजनायें जनहित से जुड़ी हुयी है। दूसरी ओर मुख्यमंत्री आवास से लेकर मंत्रियों अधिकारियों के आवास तक ऐसे कार्यों को अंजाम दिया गया है जिनको शायद नियम भी अनुमति नहीं देते हैं। लेकिन प्रदेश कांग्रेस इन सारे मुद्दों पर खामोश रही है।
भ्रष्टाचार पर तो शांता कुमार ने ही अपनी आत्मकथा में सरकार को बुरी तरह घेरा हुआ है। शांता कुमार के इन आरोपों को यदि प्रदेश कांग्रेस मुद्दा बनाती तो राष्ट्रीय स्तर पर सरकार को घेरा जा सकता था। क्योंकि 2014 में भ्रष्टाचार ही सबसे बड़ा मुद्दा था जो सत्ता परिवर्तन का कारण बना था। जयराम सरकार के भ्रष्टाचार पर भी कांग्रेस अभी तक पूरी तरह हमलावर होकर सामने नहीं आयी है। बल्कि विधानसभा के अंदर जिन मुद्दों पर कांग्रेस सरकार को घेर पा रही है उन मुद्दों को भी जनता में पूरी ईमानदारी से नहीं रख पायी है। जबकि इस समय एक सशक्त विपक्ष की जरूरत है यह सही है कि प्रदेश की जनता ने उपचुनावों के माध्यम से सरकार को कड़ा संदेश दे दिया है। लेकिन इसमें कांग्रेस की ओर से कोई बड़ा योगदान भी नहीं है।
इस समय कांग्रेस में जिस तरह की खीचातानी प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष होने के लिए शुरू होकर बाहर आ गयी है वह कालांतर में पार्टी की सेहत के लिए कोई बड़ा अच्छा संकेत नही है। इस समय अध्यक्ष के साथ दो कार्यकारी अध्यक्ष तथा नेता प्रतिपक्ष के साथ उप नेता बनाये जाने के प्रयासों का आम जनता पर कोई अच्छा प्रभाव नहीं पड़ रहा है। नेता प्रतिपक्ष के तौर पर मुकेश अग्निहोत्री को सफल माना जा सकता है और उसी तर्ज पर दो नगर निगमों के बाद आये विधानसभा तथा लोकसभा के चारों उपचुनाव जीतना कुलदीप राठौर के पक्ष में जाता है। यह सही है कि इस समय सुक्खू ही एक ऐसे नेता है जो छः वर्ष तक पार्टी का अध्यक्ष रहा है और वह भी स्व. वीरभद्र सिंह के विरोध के बावजूद। इस नाते प्रदेश के हर विधानसभा क्षेत्र में सुक्खू के समर्थक हैं। इस नाते आज प्रदेश के बड़े नेताओं के नाम पर यदि प्रतिभा सिंह, आशा कुमारी, सुखविन्दर सिंह सुक्खू, मुकेश अग्निहोत्री और प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप राठौर किसी भी कारण से एकजुटता का संदेश न दे पाये तो यह पार्टी के लिए घातक होगा। शक्ति परीक्षण की कोई भी कवायद किसी के भी हक में नहीं होगी यह तय है।