ऊना में हुई बैठक में आया सुझाव
शिमला/शैल। प्रदेश कांग्रेस में इन दिनों संगठनात्मक चुनावों की प्रक्रिया चल रही है। ब्लॉक स्तर से लेकर जिला स्तर तक संगठन के पदाधिकारियों का चुनाव होगा। इस चुनाव में कार्यकर्ता जिसे प्रदेश अध्यक्ष चुनेंगे वह सर्वमान्य होगा क्योंकि वह चयन से आयेगा मनोनयन से नहीं। चुनाव की इस प्रक्रिया के संचालन के लिये हाईकमान की ओर से चुनाव अधिकारी तैनात हैं। दीपा दास मुंशी चुनाव की मुख्य अधिकारी हैं। चुनाव प्रक्रिया के पहले चरण में सदस्यता अभियान हैं। प्रदेश विधानसभा के लिए इसी वर्ष के अंत तक चुनाव होने हैं। वर्तमान मनोनीत अध्यक्ष के तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा हो चुका है। प्रदेश में यदि बतौर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस की भूमिका का आकलन किया जाये तो विधानसभा के अंदर जितनी प्रभावी है बाहर फील्ड में उसका आधा भी नहीं। विधानसभा का यह बजट सत्र वर्तमान कार्यकाल का एक तरह से यह अंतिम प्रभावी सत्र होगा। इस सत्र के बाद व्यवहारिक रूप से सारे दलों की चुनावी गतिविधियों शुरू हो जायेंगी। इस चुनावी गणित को सामने रखकर कांग्रेस में पिछले कुछ अरसे से अध्यक्ष को बदलने की मांग उठनी शुरू हो गई है। विधायकों का एक वर्ग इस संबंध में दिल्ली के चक्कर भी लगा चुका है। अध्यक्ष को बदलने की मांग का यदि निष्पक्षता से विश्लेषण किया जाये तो इसके लिए वर्तमान पदाधिकारी के आकार पर नजर डालना आवश्यक हो जाता है। इस समय संगठन में राज्य स्तरीय प्रवक्ता ही शायद डेढ़ दर्जन है। अन्य पदाधिकारी भी इसी अनुपात में हैं। बारह जिलों और चार लोकसभा क्षेत्रों वाले प्रदेश में यदि पदाधिकारी इतनी बड़ी संख्या में होंगे तो निश्चित है कि वहां संगठन कोई प्रभावी भूमिका अदा नहीं कर पायेगा। क्योंकि वहां पर पदों के सहारे नेताओं को संगठन में बनाये रखने की बाध्यता बन चुकी होती है।
अब जब संगठन के चुनाव हो रहे हैं तब चुनाव के माध्यम से ही नये अध्यक्ष का चयन होने देना भी लाभदायक माना जा रहा है। लेकिन जब संगठन में बैठे कुछ लोग इस प्रयास में लग जायें कि वर्तमान ढ़ांचे को ही चुनावों की शक्ल दे दी जाये तो उससे कुछ सवाल उठने स्वाभाविक हैं। क्योंकि प्रदेश विधानसभा के चुनाव से पहले ही राष्ट्रीय स्तर तक संगठन के चुनाव की प्रक्रिया पूरी हो जायेगी तब इस तरह के प्रयासों को स्वीकार किया जा सकता है। सूत्रों के मुताबिक पिछले दिनों जब प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप राठौर दीपा दास मुंशी के साथ संगठन चुनाव के संबंध में ऊना आये थे तब यहां के संगठन द्वारा यह राय दी गई थी कि वर्तमान पदाधिकारियों को ही चयनित मान लिया जाये। इसके लिए यह तर्क दिया गया कि चुनावी वर्ष में संगठन के चुनाव करवाने से कई लोगों में नाराजगी पैदा हो सकती है। दीपा दास मुंशी से यह आग्रह किया गया कि वह इस सुझाव को हाईकमान के पास रखें और उसके लिये हाईकमान की सहमति प्राप्त करने का प्रयास करें। यदि यह प्रयास सुझाव मान लिया जाता है तो फिर से पुराने पदाधिकारियों का ही कब्जा संगठन पर बना रहेगा और इससे नीचे तक रोष व्याप्त हो जायेगा
इस पर एक चर्चा और शुरू हो गयी है कि क्या ऐसा सुझाव सारे विधायकों तथा पूरे संगठन का है या कुछ ही लोगों का है। क्योंकि इसका एक अर्थ यह भी लगाया जा रहा है कि जो लोग संगठन पर अपना कब्जा चाहते हैं वह संगठन के चुनाव के माध्यम से ऐसा कर पाने में अपने को असमर्थ पा रहे हैं। इस समय जहां पूरी पार्टी को विधानसभा चुनावों की तैयारियों में लगना है वहीं पर संगठन के चुनावों को यह मोड़ देने से एक नया विवाद खड़ा होने की आशंका उभरती नजर आ रही है। क्योंकि इस समय पार्टी के अंदर दलित नेतृत्व के नाम पर कोई बड़ा चेहरा नहीं बचा है। ओबीसी वर्ग में भी चंद्र कुमार के बाद कोई बड़ा नेता नहीं है। ट्राईबल एरिया में भी जगत सिंह नेगी ही एक बड़ा नाम बचा है। राजपूत नेतृत्व के नाम पर सबसे बड़ा नाम कौल सिंह ठाकुर अपना विधानसभा चुनाव हारने के बाद लगातार कमजोर होते जा रहे हैं। मंडी नगर निगम हारने के बाद कांग्रेस का प्रदर्शन लोकसभा उपचुनाव में भी मंडी जिले में कमजोर रहा है। यहां तक की द्रंग में भी बढ़त नहीं मिल पायी है। कॉल सिंह के बाद राजपूत नेताओं में आशा कुमारी, हर्षवर्धन चौहान, रामलाल ठाकुर और सुखविंदर सिंह सुक्खू आते हैं। ब्राह्मण नेताओं में मुकेश अग्निहोत्री के बाद दूसरा बड़ा नाम है ही नहीं। नेता प्रतिपक्ष के तौर पर मुकेश का प्रदर्शन सराहनीय रहा है। जातीय आंकड़ों में भी राजपूतों के बाद ब्राह्मण दूसरी बड़ी जाति है प्रदेश में। ऐसे में विधानसभा चुनावों के लिये भी मुख्यमंत्री के चेहरे का चयन करना आसान नहीं होगा। यह सही है कि इस समय पार्टी के पास सबसे बड़ा नाम आनंद शर्मा का है लेकिन उनके लिए विधानसभा क्षेत्र का चुनाव करना ही बड़ा सवाल है।