Friday, 19 September 2025
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कांगड़ा केन्द्रिय सहकारी बैंक की कार्यप्रणाली 174 करोड़ के ऋण में 64 करोड़ हुआ एनपीए

शिमला/शैल। कांगड़ा केन्द्रिय सहकारी बैंक ने पिछले तीन वर्षो में 547 ईकाईयों को 174,06,28,742.68 का ऋण दिया है जिसमें से 64,30,47,236.02 रूपये एनपीए हो चुका है। यह ऋण 1-4-2015 से 31-3-2018 के बीच दिया गया यह जानकारी विधानसभा के इस मानसून सत्र में हमीरपुर के विधायक नरेन्द्र ठाकुर के प्रश्न के उत्तर में दी गयी है। इस प्रश्न पर सदन में आयी चर्चा के दौरान मन्त्री विक्रम ठाकुर ने यह आश्वासन दिया है कि इस ऋण को दिये जाने की पूरी जांच करवाई जायेगी। मन्त्री ने सदन को यह भी बताया कि उनकी जानकारी के मुताबिक बहुत सारे साधन संपन्न लोग भी बैंक का ऋण वापिस नही कर रहे हैं। प्रदेश के सहकारी बैंको को लेकर बजट सत्र में भी एक सवाल आया था। उसमें पूछा गया था कि इन बैंकों का एनपीए कितना हो चुका है। इस प्रश्न के उत्तर में आयी जानकारी के अनुसार प्रदेश के दस सहकारी क्षेत्र के बैंकां का एनपीए 938.27 करोड़ था। जिसमें कांगड़ा केन्द्रिय सहकारी बैंक का एनपीए 560.60 करोड़ था। अन्य सहकारी बैंकों की स्थिति यह थी-राज्य सहकारी बैंक 250.48 करोड़ ,जोगिन्द्रा सहकारी बैंक 52.66 करोड़, हि.प्र्र. राज्य सहकारी सहकारी विकास बैंक 29.50 करोड़, शिमला अर्बन सहकारी बैंक 2.04 करोड़, परवाणु अर्बन सहकारी बैंक 6.06 करोड़, मण्डी अर्बन सहकारी बैंक 1.32 करोड़, बघाट अर्बन सहकारी बैंक 20.99 करोड़ और चम्बा अर्बन सहकारी बैंक 023 करोड़।
प्रदेश के सहकारी बैंकों की इस स्थिति से प्रदेश के सहकारिता आन्दोलन पर ही गंभीर सवाल खड़े हो जाते हैं क्योंकि हर छोटा बड़ा बैंक एनपीए का शिकार है। कांगड़ा बैंक ने 547 उद्योग ईकाईयों को 174 करोड़ ऋण 1-4-2015 से 31-3-2018 के बीच दिया है। जिसमें आज 64 करोड़ से अधिक का एनपीए हो चुका है। स्मरणीय है कि जब कोई ऋण तय समय सीमा के भीतर अदा नही हो पाता है तब वह एनपीए की श्रेणी में आ जाता है। इसलिये इसमें यह देखना आवश्यक हो जाता है कि ऋण की वापसी करने की नीयत ही नही हैं या फिर बाजिव कारणों से ऋणधारक ऋण को चुका नही पा रहे हैं। यह जांच से ही सामने आयेगा क्योंकि मन्त्री जब यह कहे कि साधन संपन्न लोग भी अदायगी नही कर रहे हैं तो स्थिति एकदम बदल जाती है।
कांगड़ा बैंक के सूत्रों के मतुबिक बजट सत्र से लेकर अब तक इसमें से केवल 28 करोड़ की ही रिकवरी बढ़ी है। बैंक ने जिन उद्योग ईकाईयों को ऋण दिया है उस सूची पर नज़र डालने से यह सामने आता है कि दर्जनों इकाईयां एसी हैं जिन्हें एक ही दिन में दो-दो बार ऋण दिया गया है ऐसा क्यों किया गया एक ही बार क्यों प्रोपोजल क्यों नही बनाए गये यह जांच का विषय बनता है।
अब जब मन्त्री ने सदन में जांच का आश्वासन दे दिया है उसके बाद अब इस पर निगाहें लगी हुई है कि वास्तव में इस जांच के आदेश कब होते हैं और विजिलैन्स इस जांच में कितनी गंभीरता दिखाती है। क्योंकि इससे पहले भी मुख्यमन्त्री और मुख्य सचिव विजिलैन्स को सहकारी बैंक में हुई भर्तीयों के मामले की जांच करने के आदेश कर चुके हैं लेकिन इस पर अभी तक कोई कारवाई शुरू नही हुई है। ऐसे में यह आशंका बराबर बनी हुई है कि इस मामले का अंजाम भी कहीं इसी तरह का न हो।


























 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

क्या सरकार के फैसले से गैर कृषक की बंदिश हट पायेगी उठा सवाल

शिमला/शैल। जयराम सरकार ने 25.7.18 को राजस्व विभाग की ओर से प्रदेश के सारे मण्डलायुक्तां और उपायुक्तों को एक पत्र जारी किया गया है। इस पत्र में गैर हिमाचली अधिकारियों /कर्मचारियों के पुत्र/पुत्री द्वारा हिमाचल प्रदेश मुजारियत एवम् भू-सुधार अधिनियम 1972 की धारा 118 के अन्तर्गत भूमि क्रय किये जाने की अनुमति प्रदान करने बारे मार्ग दर्शन किया गया है। इसमें यह कहा गया है कि ऐसा अधिकारी /कर्मचारी प्रदेश में अपने आवास हेतु भूमि क्रय करना चाहता है तो वह इसका पात्र है। यदि उसकी पात्रता के तहत उसके पुत्र/पुत्री भी आवास के लिये भूमि क्रय करना चाहते हैं तो वह भी इसके पात्र होंगे। भले ही वह प्रदेश के बाहर ही क्यों न रह रहे हां। इसके लिये उन्हे प्रदेश में तीस वर्ष तक कार्य करने का प्रमाणपत्र नही देना होगा।
सरकार के इस फैसले को कर्मचारियों /अधिकारियों के लिये बड़ी राहत करार दिया जा रहा है। लेकिन उन्हे प्रदेश के राजस्व नियमों के जानकारों के मुताबिक इस फैसले से कोई बड़ी राहत मिलने जैसी बात नही है। क्योंकि प्रदेश में कोई भी व्यक्ति चाहे वह हिमाचली हो या नही इस कानून की धारा 118 के तहत भूमि क्रय करने की अनुमति सरकार से ले सकता है। अब तक हजा़रों लोग ऐसी अनुमति लेकर प्रदेश में ज़मीने खरीदे हुए हैं। प्र्रदेश में किसी भी गैर कृषक को ज़मीन खरीदने पर पावंदी है चाहे वह हिमाचली है या नही। ऐसे व्यक्ति को धारा 118 के तहत अनुमति लेने की आवश्यकता है और वह सरकार के इस फैसले के बाद भी यथास्थिति लागू रहती है। क्योंकि इस फैसले से कोई गैर कृषक-कृषक नही बन जायेगा। ऐसे में यदि सरकार प्रदेश में कार्यरत गैर हिमाचलीयों पर से गैर कृषक की बंदिश हटाना चाहती है तो उसके लिये 1972 के एक्ट में विधानसभा के अन्दर संशोंधन लाना पडे़गा। क्योंकि इस एक्ट के तहत 1975 में बने नियमों में संशोधन करके कृषक का दर्जा नही दिया जा सकता।
स्मरणीय है कि जब जयराम सरकार ने कार्यभार संभाला था तब इस आश्य का एक ब्यान दिया था कि सरकार 1972 के मुजारियत और भूसुधार एक्ट में संशोधन करना चाहती है। बजट सत्र में सरकार के इस ब्यान पर सदन में काफी हंगामा हुआ था और कांग्रेस ने वाक्आऊट तक किया था। इस परिदृश्य में सरकार का यह फैसला एक और विवाद को जन्म दे सकता है कि जब सरकार गैर हिमाचली अधिकारियों/कर्मचारियों के बच्चों को यह सुविधा देना चाहती है तो उन लोगों को क्यों नही जो प्रदेश में लम्बे समय कारोबार कर रहे हैं और यहीं के बाशिंदे हो गये हैं।
गौरतलब है कि ऐसे कारोबारी लोग लम्बे अरसे से यह मांग भी करते आ रहे हैं। इन लोगों ने धारा 118 को प्रदेश उच्च न्यायालय में 1995 से लेकर 2010 तक छः अलग-अलग याचिकाएं डालकर चुनौती भी दी है लेकिन इन सभी याचिकाओं के फैसलों में उच्च न्यायालय ने धारा 118 की वैधता को स्वीकार किया है। लेकिन इसके बाद एक और याचिका पर सितम्बर 2016 में प्रदेश उच्च न्यायालय की जस्टिस राजीव शर्मा और जस्टिस सुरेशवर ठाकुर की पीठ ने सरकार को यह निर्देश दिये थे कि This court deems it fit and proper to direct the state government to make  suitable  amendments to Section 118 of the HP Tenancy and Land Reforms Act,1972 read with HP Tanancy and Land Reforms Rules, 1975 in order to Facilitate to purchase any land  (agricultural and non -agricultural)  in the state  by  non- agriculturist Himachalis residing in the state for decades, prior to the date of commencement of the HP Tanancy and Land Reforms Act, 1972  within a period of 90 days from today''
लेकिन उच्च न्यायालय के इन निर्देशों की अनुपालना के लिए अब तक कोई कदम नही उठाये गये है। आज भी जब सरकार ने यह फैसला लिया है तब शायद इन निर्देशों का कोई संज्ञान नही लिया गया है। धारा 118 के तहत गैर कृषकों पर लगाई गयी बंदिश हर सरकार के लिये एक बड़ा मुद्दा रही है। लेकिन इसे कोई भी हटा नही पाया है। ऐसे में यह समझना आवश्यक है कि यह धारा लगायी क्यों गयी थी। इस एक्ट के उद्देश्यों की घोषणा में कहा गया है STATEMENT OF OBJECTS AND REASONS:'' As a result of the re-organisation of the erstwhile state of Punjab in November, 1966,some areas were integrated in Himachal Pradesh under section 5 of the Punjab Re-organisation Act, 1966.

There are different enactments regarding tenancy and agrarian reforms in force in new and old areas of the Pradesh immediately before 1st November, 1966, the Himachal Pradesh Abolition of Big Landed Estates and Land Reforms Act, 1953 is in force which is a progressive legislation about the security of tenures of tenants and their other rights. in the areas added to Himachal Pradesh under section 5 of the Punjab Re-organisation Act,1966,however, occupancy tenants have been vested with proprietary rights under two Acts on the subject namely, the Punjab Occupancy tenants (Vesting of Proprietary rights) Act, 1953 and the Pepsu Occupancy Tenants (Vesting of Proprietary Rights) Act, 1954. in the old areas the occupancy tenants have to apply for ownership under section 11 of the Himachal Pradesh Abolition of Big Landed Estates and Land Reforms Act. Ithas therefore been considered necessary to unify the various laws relating to tenancies as in force in the pradesh and to provide for a measure of land reforms to remove disparities.
Restrictions have been imposed to purchase land by the non-agriculturists to avoid concentration of wealth in the hands of non-agriculturists moneyed class. The Bill is to achieve the above objects

इसके बाद 1987 में इस एक्ट की धारा 104 में संशोधन करके इसे कड़ा किया गया था। धारा 104 में संशोधन धारा 113 के परिप्रेक्ष में किया गया था। इस संशोधन के उद्देश्यों में भी यह कहा गया है कि Statement of Objects and Resasons of the Himachal Pradesh Tenancy and Land Reforms (Amendment) Bill 1987 provides as under:

STAREMENT OF OBJECTS AND REASONS:'' Under the existing provisions contained contained in the Himachal Pradesh Tenancy and Land Reforms Act, 1971 the right, title and interest of the Government in the lands owned by it and leased out to a person vest in tenants. It is imperative that the proprietary rights in Government lands, by and large regenerated through public funds, should not pass to private persons, it has, therefore, become necessary to make suitable amendment in section 104 of the said Act, Under the provison to section 113 of the said Act. The land in respect of which proprietary rights have been acquired by a non- occupancy tenant, can be transferred by way of sale, mortgage gift or otherwise only for productive purposes with the permission of the Collector. In odrder to aviod misuse of this provision and to ensure that such permission should be accorded rarely and only under genuine cricumstances, it has been decided that the said permission be given by the State Government alone Section 118 of the principal Act, which restricts transfer of land to non-agriculturists, does not apply to the transfer of lands situated in urban areas, nor does it apply to transfer of lands not used for purposes subservient to agriculture. The lands classified as "Gair-mumkin makan'' ''Gair mumkin dhank'' can be transferred in favour of non- agriculturists and thus the provisions as they exist leave a loop hole in law which is designed to prevent the transfer of land to non-agriculturists. it has therefore, become necessary to make suuitable amendments in the existing law. The Bill seeks to achieve the aforesaid objectives.

इस परिदृश्य में सरकार का अब लिया गया फैसला अपने में बेमानी हो जाता है। क्योंकि इससे गैर कृषक की बंदिश नही हटती है और जब तक की यह बंदिश नही हटती है ऐसे फैसले से किसी को कोई लाभ नही मिल पायेगा। सरकार के इस फैलसे से जो यह माना जा रहा है कि इससे गैर हिमाचली अधिकारियों/ कर्मचारियों और उनके पुत्र/ पुत्री को भूमि क्रय में लाभ मिलेगा इसके लिये जानकारों के मुताबिक सरकार को इस फैसले में संशोधन करना पड़ेगा।

आठ महीने में 3026 को मिला रोज़गार

शिमला/शैल। इस समय प्रदेश के विभिन्न रोज़गार कार्यालयों में 8,43,495 लोग बतौर बेरोज़गार पंजीकृत हैं स्मरणीय है कि वीरभद्र सरकार के दौरान जब यह आंकड़ा बारह लाख के करीब रोज़गार कार्यालयों के पंजीकरण के मुताबिक पंहुच गया था। तब इस पर बहुत बड़ा विवाद खड़ा किया था। उस समय सरकार की ओर से यह तर्क दिया गया था कि इस आंकड़े में वह लोग भी शामिल हैं जिनके पास कुछ रोजगार है परन्तु बड़े रोजगार की तलाश में उन्होनें अपना पंजीकरण जारी रखा हुआ है। इस तर्क के बाद रोज़गार कार्यालयों के इस आंकड़े की पुनः जांच की गयी और उसमें उन्ही लोगों को रखा गया जिनके पास कुछ भी रोज़गार नही है।
इस आधार पर आज प्रदेश में 8,43,495 विशुद्ध बेरोज़गार है। जयराम सरकार के आठ माह के कार्याकाल में विभिन्न उद्योगों द्वारा 119 कैंपस साक्षात्कार लिये गये हैं और दो रोज़गार मेले आयोजित किये गये है इन सारे प्रयासों से केवल 3026 लोगों को ही रोज़गार मिल पाया है इस समय सरकारी और प्राईवेट क्षेत्र में जितने भी लोगों को रोज़गार मिला हुआ है यदि उन सबको एक मुश्त हटा दिया जाये और उनके स्थान पर सारी नयी भर्ती कर ली जाये तब भी बेरोज़गारी के इस आंकड़े को पार करने के लिये चार बार इस तरह के प्रयास करने पड़ेंगे जो कि कभी संभव नही होगा। ऐसे में इस बड़ती बेरोज़गारी के लिये सरकार को अपनी नितियों में आमूल परिवर्तन करना होगा।

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