शिमला/शैल। पूर्व मुख्यमन्त्री प्रेम कुमार धूमल ने अन्ततः शिमला सरकारी आवास खाली कर दिया है। चुनाव हारने के बाद धूमल यह आवास खाली कर देना चाहत थे। लेकिन मुख्यमन्त्री के आग्रह पर उन्होने ऐसा नही किया। सरकार ने धूमल के पीए से यह मकान रखने की अवधि बढ़ाने का आग्रह का पत्रा मांगा और पीए ने दे दिया। इस पर सरकार ने केवल 31 मार्च तक समय बढ़ाया। 31 मार्च से पहले ही धूमल ने मकान खाली करने का फैसला ले लिया। इस फैसल की भनक लगते ही मुख्यमन्त्री ने फिर आग्रह किया। फिर समय बढ़ाने के लिये आग्रह पत्र लिया गयाऔर
धूमल के यह फैसला लेने के साथ ही संयोगवश यह भी घट गया की एक दिन उनके आवास पर पानी ही समाप्त हो गया। देर रात इसका प्रबन्ध हो पाया। इसी के साथ यह भी घटा कि जयराम सरकार जो केन्द्र की मोदी सरकार के चार साल पूरे होने का पीटर आॅफ में 26 मई को जश्न मनाने जा रही थी उसके लिये 25 तारीख रात तक धूमल को इसका आमन्त्रण ही नही दिया गया था। 25 तारीख शाम को भाजपा अध्यक्ष सतपाल सत्ती और विधायक नरेन्द्र बरागटा तथा कुछ अन्य नेता धूमल से उनके आवास पर मिलने आये थे। शायद इन लोगों के माध्यम से सरकार तक यह सूचना पहुंची कि 26 तारीख के आयोजन के लिये धूमल को आमन्त्रण नही जा पाया है। इसलिये 26 मई को सबुह 10ः30 बजे ही जयराम अपने कुछ सहयोगी मन्त्रीयों को लेकर उनके आवास पर पहुंच गये और उन्हें अपने साथ ले गये। 26 तारीख का आयेाजन पार्टी का नही सरकार का था। पार्टी में जब इस पर चर्चा हुई थी तब यह तय किया गया था कि यह आयोजन प्रत्येक जिलास्तर पर किया जायेगा। लेकिन पार्टी का यह फैसला जयराम के कुछ सरकारी और गैर सरकारी सलाहकारों को रास नही आया। इसमें कुछ नौकरशाहों ने भी भूमिका निभाई और जिलों की बजाये इसे राज्य स्तर पर सीमित कर दिया। अब पार्टी अगले लोकसभा चुनावों की तैयारी कर रही हैै। ऐसे में यदि यह आयेाजन जिलास्तर पर होता तो इसका संदेश कुछ ज्यादा प्रभावी होता । यही नही इस आयेाजन के जो विज्ञापन समाचार पत्रों को जारी किये गये हैं उनमें भी सरकार का रूख पक्षपात पूर्ण रहा है बल्कि बड़े सुनियोजित तरीके से प्रैस को बांटने का प्रयास किया जा रहा है। ऐसा ही प्रयास राष्ट्रपति की यात्रा के दौरान भी हुआ। ऐसा लगता है कि कुछ लोग बड़े ही सुनियोजित तरीके से यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि मीडिया को बांटकर रखा जाये ताकि मुख्यमन्त्री के सामने हरा ही हरा परोसा जाये और जमीनी हकीकत की जानकारी न होने दी जाये।
जयराम सरकार को सत्ता में पांच माह हो गये हैं। इस दौरान जिस तरह और जिस स्तर पर प्रशासनिक फेरबदल को अंजाम दिया गया है। उससे आज सचिवालय के गलियारों से लेकर सड़क तक यह चर्चा है कि जयराम की सरकार को तीन ही अधिकारी चला रहे हैं। इन अधिकारियों के साथ ही पत्रकारों का एक स्वार्थी टोला भी कुछ भूमिका निभा रहा है। जिसने धूमल को मकान खाली करवाने की स्थितियां पैदा कर दी जाने की घोषणा बहुत पहले ही कर दी थी जो सही भी साबित हुई है। क्योंकि किश्तों में मकान रखने का समय दिया जाना निश्चित रूप से धूमल के कद से मेल नही खाता है। इसी के साथ अब यह भी चर्चा में आ रहा है कि विभिन्न निगमों /बोर्डो में कार्यकर्ताओं की ताजपोशीयां भी एक योजना के तहत ही रोकी जा रही हैं। बल्कि यह भी कहा जाने लग पड़ा है कि जैसे वीरभद्र शासन में शिमला को ही हर जगह अधिमान दिया जाता था ठीक उसी तरह अब मण्डी को दिया जा रहा है। क्योंकि अब तक जो भी ताजपोशीयां हुई उनमें मण्डी का ही वर्चस्व रहा है।
भ्रष्टाचार के जितने मामलों का भाजपा के आरोप पत्रों में जिक्र किया गया है। उन पर अब बड़े सुनियोजित तरीके से प्रशासन यूटर्न लेता जा रहा है। माना जा रहा है कि भ्रष्टाचार के मामलों पर यह सरकार भी उतनी ही गंभीर है जितनी की वीरभद्र सरकार थी। इससे यह संदेश जा रहा है कि भाजपा सत्ता पाने के लिये किसी पर भी भ्रष्टाचार का कोई भी आरोप लगा सकती है जो कि वास्तव में कहीं होता ही नही है या फिर सत्ता में आने पर उनको इन आरोपों से डराकर अपने स्वार्थों के लिये प्रयुक्त करती है। आज लोकसभा के चुनाव सिर पर हैं और सरकार की विश्वसनीयता तथाकार्यकुशलता पर अभी से प्रश्नचिन्ह लगने शुरू हो गये हैं। यह सरकार अभी तक लोकायुक्त और मानवाधिकार आयोग के पद नही भर पायी है। फूड सिक्योरिटी कमीशनर को हटा तो दिया गया लेकिन उसकी जगह नयी नियुक्ति नही हो पायी है। इसी तरह प्रशासनिक ट्रिब्यूनल के भी दोनों पद खाली चल रहे हैं। इन सारे पदों का भरा जाना सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी है जिस ओर कोई ध्यान ही नही जा रहा है। सरकार केवल अधूरे प्रशासनिक तबादले करने तक ही सीमित होकर रह गयी है।