Friday, 19 September 2025
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क्या चिट्टों पर भर्ती का दौर शुरू हो रहा है महेन्द्र सिंह के पत्रों से उठा सवाल

शिमला/शैल। क्या प्रदेश में फिर से चिटों पर भर्ती का दौर शुरू हो रहा है? यह चर्चा बागवानी मन्त्री महेन्द्र सिंह के इस आशय से लिखे गये कुछ पत्रों के वायरल हो जाने से उठ निकली है। महेन्द्र सिंह ने यह पत्रा अपने चुनाव क्षेत्र धर्मपुर के तीन गांवो के चार लोगों को लिखे हैं। इन पत्रों में इन लोगों से कहा गया है कि वह संलग्न प्रपत्र को भरकर बागवानी विकास परियोजना निदेशक को 20 जून तक भेजें। इस प्रपत्र के मुताबिक आवेदन करने वाले को अपना अनुभव प्रमाण पत्र भी साथ लगाना होगा। मंत्री ने अपने पत्र में इन लोगों को केवल इतना ही आश्वस्त किया है कि यदि उन्हे यह अनुभव प्रमाण पत्र प्राप्त करने में कठिनाई हो तो वह मंत्रा को इससे अवगत करवायें। मंत्री यह अनुभव प्रमाण पत्र प्राप्त करवाने में उनकी सहायता करेंगे। 

मन्त्री ने अपने पत्र में यह नही कहा है कि यह अनुभव प्रमाण पत्र हालिस करने से निश्चित रूप से उन्हे नौकरी भी मिल ही जायेगी। अपने चुनाव क्षेत्र का प्रतिनिधि होने से विधायक के नाते यह उनका दायित्व बनता है कि वह अपने क्षेत्र के लोगों की सहायता करें और यह सहायता करने में कुछ भी अनुचित नही है। क्योंकि यह पत्र उन्होने अपने लोगों को लिखा है। यदि यही पत्र उन्होने परियोजना के निदेशक को निर्देश देते हुए लिखे होते तो स्थिति पूरी तरह बदल जाती। तब इन पत्रों को सीधे तौर पर सिफारिश और निदेशक पर दबाव करार दिया जा सकता था। लेकिन महेन्द्र सिंह इस समय केवल अपने क्षेत्र के विधायक ही नही वरन् पूरे प्रदेश के मंत्री है। इस नाते जितनी चिन्ता रोज़गार को लेकर उन्होने अपने क्षेत्र के लोगां के प्रति दिखायी है उनकी और वैसी ही चिन्ता उनसे पूरे प्रदेश को लेकर अपेक्षित है। यदि वह ऐसी चिन्ता प्रदेश के सभी बेरोज़गारों के प्रति नही दिखाते हैं तो उनके इन पत्रों को 1993 के दौर की तरह चिट्टों पर भर्ती का प्रयास ही करार दिया जोयगा।
महेन्द्र सिंह के यह पत्र परियोजना निदेशक को नही लिखे गये हैं जिससे यह कहा जाये कि उस कार्यालय के माध्यम से यह पत्र वायरल हुए हैं। यह पत्र उनके अपने कार्यालय या आवास से सीधे संबंधित लोगां को लिखे गये हैं और फिर भी वायरल हो गये हैं। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि उनके हर कदम पर बारिकी से नज़र रखी जा रही है। यह स्थिति अकेले महेन्द्र सिंह की ही नही है बल्कि अन्यों के साथ भी यह हो रहा है। बागवानी मन्त्री ने पिछले दिनों जिस तरह की चिन्ता बागवानी विकास परियोजना को लेकर व्यक्त की हैं और यह सवाल उठाया है कि जिस विभाग ने विकास को लेकर परामर्श पर ही सौ करोड़ रूपया खर्च कर दिया है उसके अनुरूप उन्हे प्रदेश में विकास दिखाई नही दिया है। विभाग की एक सोसायटी में रखे गये सेवानिवृत कर्मचारियों को दिये जा रहे 50,000 से 80,000 हजार तक के वेतन को लेकर भी सवाल उठाये गये हैं। बल्कि दिसम्बर के अन्तिम सप्ताह में इस सरकार द्वारा सत्ता संभालने के बाद जनवरी के पहले ही सप्ताह में विभाग में हुई कुछ नियुक्तियों की मन्त्री तक को जानकारी न होने पर भी सवाल उठे हैं और इन्ही सवालों के परिदृश्य में मंत्री ने विभाग के कई कार्यों की जांच करवाने तक का भी दावा किया है।
मंत्रा के यह दावे कितने पूरे होते हैं और उनमें क्या निकलता है यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन इस समय मंत्री के जो पत्र वायरल हुए हैं। उनसे मंत्री के सारे दावों और प्रयासों की गंभीरता पर जहां प्रश्नचिन्ह लग रहा है वहीं पर यह भी आशंका बराबर बनी हुई है कि उनके प्रयासों को बीच में रोकने का भी पूरा प्रबन्ध किया रहा है।



























 



























 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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