Friday, 19 September 2025
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संशोधित अधिनियम के बाद भाजपा के आरोप पत्र पर कारवाई की संभावनाएं हुई संदिग्ध

शिमला/शैल। भाजपा के आरोप पत्र पर अभी तक विजिलैन्स ने कोई मामला दर्ज नही किया है। बल्कि जयराम सरकार ने वीबरेज कॉरपोरेशन प्रकरण में जो पहली ही मन्त्री परिषद की बैठक में जांच करवाने का फैसला लिया था उस पर भी कोई केस दर्ज नही हुआ है। इसके अतिरिक्त प्रदेश के तीन सहकारी बैंको में हुई धांधलियों को लेकर केस दर्ज करके जांच करने के जो निर्देश मुख्य सचिव और मुख्यमन्त्री की संस्तुति के बाद गृहविभाग के माध्यम से विजिलैन्स को भेजे थे उस मामले में भी अभी तक कोई कारवाई नही हो पायी है। जबकि इस मामले में तो प्रारम्भिक जांच सरकार के स्तर पर ही कर ली गयी थी। सर्वोच्च न्यायालय ने ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश मामले में स्पष्ट कर रखा है जिस भी शिकायत से संज्ञेय अपराध का बोध होता हो उसमें तत्काल प्रभाव से एफआईआर दर्ज कर ली जानी चाहिये। यदि किसी कारण से किसी मामले में प्रारम्भिक जांच किये जाने की भी आवश्यकता समझी जाये तो उसमें भी सात दिन के भीतर यह जांच पूरी करके इस बारे में शिकायतकर्ता को सूचित करना होगा। सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश सीधे और स्पष्ट है। यदि जांचकर्ता सात दिन के भीतर वांच्छित कारवाई नही करता है तो उसके खिलाफ भी कारवाई किये जाने के निर्देश किये गये हैं।
लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के इन निर्देशों के वाबजूद विजिलैन्स ने अभी तक किसी भी मामले में कोई ठोस कारवाई नही की है। जबकि भाजपा के आरोप पत्रा में संज्ञेय अपराधों का पूरा बोध होता है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि विजिलैन्स इन आरोपों पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुसार कारवाई क्यों नही कर रही है। क्या विजिलैन्स स्वयं ही पूर्व कांग्रेस सरकार के लोगों कें खिलाफ कारवाई नहीं करना चाहती है या फिर सरकार की ओर से ऐसा कोई मौखिक निर्देश है। क्योंकि अब 26 जुलाई से संशोधित भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम लागू हो गया है। इस संशोंधित अधिनियम के तहत भ्रष्टाचार के मामलों पर कारवाई करना बहुत आसान नही होगा। क्योंकि इसके तहत मामला स्थापित करने के लिये प्रक्रिया अब सरल नही रह गयी है। क्योंकि कोई भी व्यक्ति भ्रष्टाचार या तो किसी स्वार्थ /लालच/लाभ के लिये करता है या फिर नियम/कानून की पूरी समझ न होने के कारण अज्ञान वश करता है। यदि यह भ्रष्टाचार स्वार्थ/लाभ के लिये किया गया है तो अनुचित लाभ देने वाला भी भ्रष्टाचार का बराबर का दोषी हो जायेगा। यदि वह सात दिन के भीतर इसकी शिकायत सक्ष्म अधिकारी के पास नही करता है। ऐसे में बहुत कम लोग होंगे जो काम होने के सात दिन के भीतर ऐसी शिकायत कर पायेंगे और आठवें दिन या बाद में शिकायत करने पर स्वयं भी भ्रष्टाचार के तहत तीन से सात वर्ष की सज़ा के दोषी हो जायेंगे।
ऐसे में भ्रष्टाचार की शिकायत लेकर कितने लोग सामने आयेंगे यह तो समय ही बतायेगा लेकिन इससे यह तो स्पष्ट हो जाता है कि भाजपा के आरोप पत्र पर अब संशोधित अधिनियम के तहत ही मामले दर्ज करने होंगें संशोधित अधिनियम के तहत मामला दर्ज करके उसे अजंम तक पंहुचाना अब सरल नही होगा क्योंकि उसके लिये बड़ी मेहनत करनी पड़ेगी। माना जा रहा है कि भाजपा के आरोप पत्रा पर संबधित विभागों से रिपोर्ट लेने की नीति भी इसलिये अपनाई गयी थी ताकि पूराने अधिनियम के तहत मामले दर्ज न करने पड़े। भाजपा ने यह आरोप पत्रा विपक्ष में रहते हुए महामहिम राष्ट्रपति को सौंपा था लेकिन आज सात माह बीत जाने के बाद भी एक भी मामले पर कारवाई न हो पाना सरकार की भ्रष्टाचार के प्रति नीयत और नीति पर ही सवाल खड़े कर देता है। क्योंकि जब सर्वोच्च न्यायालय के स्पष्ट निर्देशों के बाद भी विजिलैन्स उसके पास आयी शिकायतों पर तय समय सीमा के भीतर वांच्छित कारवाई न करे तो क्या उससे यही निष्कर्ष नही निकाला जायेगा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ केवल भाषण दिया जाना है और कारवाई नही करनी है। फिर अब तो केन्द्र सरकार ने भ्रष्टाचार निरोधक कानून में संशोधन करके जांच ऐजैन्सीयों की राह और आसान कर दी है। लेकिन इसी के साथ यह भी महत्वपूर्ण होगा कि जयराम सरकार इस आरोप पत्रा को लेकर प्रदेश की जनता को क्या जवाब देती है। केन्द्र सरकार भष्ट्राचार निरोधक अधिनियम में संशोधन करने जा रही है। यह जानकारी वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों और जांच ऐजैन्सीयों को पहले से ही थी। इससे यह भी स्पष्ट था कि अब मामले नये अधिनियम के तहत ही दर्ज होंगे और इन्हें किसी अन्तिम अंजाम तक पंहुचाना आसान नही होगा। वैसे तो आज तक भ्रष्टाचार को लेकर आरोप पत्र सौपना एक राजनीतिक रस्म अदायगी से अधिक कुछ नही रहा है। लेकिन इससे प्रशासन को डर बना रहता था जो अब संशोधित अधिनियम से काफी कम हो जायेगा और जब प्रशासन पर से डर खत्म हो जाता है तब इसकी कीमत राजनीतिक नेतृत्व को ही चुकानी पड़ती है। माना जा रहा है कि इस समय जो राजनीतिक वातावरण बनता जा रहा है उसमें जांच ऐजैन्सीयां भी किसी भी राजनीतिक दल से बुरा नही बनना चाहती हैं। इस परिदृश्य में प्रशासन पर अपनी पकड़ मजबूत करने के साथ सरकार के पास सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गये निर्देशों के तहत कारवाई करने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नही बचा है।

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