Friday, 19 September 2025
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क्या जयराम सरकार भ्रष्टाचार के आगे लाचार है

शिमला/शैल। हर राजनेता और राजनीतिक दल सत्ता में आने से पहले भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टालरैन्स के वायदे और दावे करता है। बल्कि विपक्ष में रहते हुए सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों के भारी भरकम आरोप पत्र भी राज्यपाल को सौंपते हैं लेकिन सत्ता में आने पर इसका एकदम अपवाद सिद्ध होते हैं। आज जयराम सरकार को सत्ता में आये तीसरा साल चल रहा है और यह सरकार भी अपने पूर्ववर्तीयों के ही नक्शे कदम पर चल रही है। भाजपा ने विपक्ष में रहते हुए जो आरोप पत्र तत्कालीन सरकार के खिलाफ सौंपे थे उन पर तीन वर्षों में कोई कारवाई सामने नही आयी है। उल्टा यह सरकार स्वयं ही अपने ही लोगों द्वारा लगाये जा रहे आरोपों के साये में घिरती जा रही है। इस सरकार के खिलाफ यह सिलसिला बेनामी पत्रों से शुरू हुआ था। इसकी पहली कड़ी धर्मा-धर्माणी के नाम पत्र से शुरू हुई। दूसरी कड़ी में शान्ता के नाम एक कार्यकर्ता का पत्र जारी हो गया। फिर उद्योग मन्त्री विक्रम ठाकुर को लेकर पत्र आ गया। गोविन्द ठाकुर ने तो यहां तक कह दिया था कि जितने पैसे धर्मशाला स्टेडियम के निर्माण पर खर्च किये गये हैं उतने पैसे से तो हर जिले में ऐसे स्टेडियम खड़े कर दिये जाते। फिर जब इन्दु गोस्वामी को महिला ईकाई के अध्यक्ष पद से हटाया गया था तब जो पत्र उन्होंने लिखा था उसने एक तरह से सारे आरोपों पर मुहर लगा दी थी। बिलासपुर में बन रहे हाईड्रो कालिज के निर्माण के ठेके में तो रिकार्ड ही कायम कर दिया गया। इसमें 92 करोड़ की निविदा देने वाली कंपनी को छोड़कर 100 करोड़ की निविदा वाले को काम दे दिया गया। यह आठ करोड़ क्यों ज्यादा खर्च किये गये इसका कोई जवाब आजतक नही आया है और जो निर्माण 18 माह में पूरा हो जाना था वह आज तीन वर्षों में भी पूरा नही हो पाया है।
अभी पिछले दिनो पूर्व मन्त्री विजय मनकोटिया ने मन्त्री सरवीण चौधरी के खिलाफ जमीन खरीद के आरोप लगाये तब इन आरोपों पर विजिलैन्स जांच करवाये जाने के खुले संकेत दिये गये लेकिन जैसे ही सरवीण ने दूसरे मन्त्रीयों की ओर सूई घुमाई तो जांच के सारे दावे हवा हो गये। आज कई मन्त्रीयों के परिजनों पर आऊटसोर्स के माध्यम से नौकरियां बांटने और उनका कमीशन खाने के आरोप लगने शुरू हो गये हैं। स्वास्थ्य विभाग की खरीदारियों पर तो कैग रिपोर्ट गंभीर सवाल उठा चुकी है और विभाग की वर्किंग स्थिति क्या है यह प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा स्वतः संज्ञान में ली गयी याचिका के जवाब में सामने आ चुका है। वीरभद्र सरकार के समय नागरिक आपूर्ति निगम के माध्यम से खरीदी गयी स्कूल बर्दीयों पर उस समय भाजपा ने बड़ा सवाल उठाया था। इसकी जांच हुई थी और सप्लायर का पैसा रोक लिया गया था। लेकिन जयराम सरकार आने पर यह पैमेन्ट कर दी गयी और यह सामने नही आ पाया कि वास्तव में दोष सप्लायर का था या सरकारी तन्त्र का।
भ्रष्टाचार के आरोपों की यह कहानी अब उस समय और मुखर होकर सामने आ गयी है जब जयराम सरकार द्वारा बैंक के अध्यक्ष पद की ताजपोशी से नवाजी गयी महिला नेत्री शशी बाला के खिलाफ संघ की ही ईकाई हिन्दु जागरण मंच द्वारा आरोपों का गंभीर पिटारा जनता में रख दिया गया है। यह पिटारा सामने आने से भाजपा का पुराना सारा इतिहास एकदम ताजा होकर सामने आ जाता है। वर्ष 2004 में सुरेश भारद्वाज पार्टी के अध्यक्ष थे तब इनके नेतृत्व में 6 मार्च 2004 को सरकार के खिलाफ एक आरोप पत्र सौंपा गया था। उसके बाद 2006 में जयराम पार्टी के अध्यक्ष थे तब इनके नेतृत्व में करीब 40 पन्नों का एक आरोप पत्र तत्कालीन सरकार के खिलाफ सौंपा गया था। यह आरोप पत्र तैयार करने वालो में महेन्द्र सिंह ठाकुर और राजीव बिन्दल भी शामिल थे। आज जयराम प्रदेश के मुख्यमन्त्री हैं। महेन्द्र सिंह ठाकुर और सुरेश भारद्वाज दोनों उनके मन्त्रीमण्डल में शामिल हैं जो आरोप पत्र 2004 और 2006 में इन लोगों ने सौंपे थे उन पर क्या कारवाई हुई और कितने आरोप प्रमाणित हो पाये थे यह आज तक प्रदेश की जनता के सामने नहीं आ पाया है। आज यह लोग स्वयं सत्ता में हैं इसलिये जनता का यह जानने का हक बनता है कि इन आरोपों की सच्चाई क्या थी और आज जो आरोप लग रहे हैं उनपर क्या यह कोई कारवाई कर पायेंगे क्योंकि यह सरकार तो 2018 में सर्वोच्च न्यायालय के राजकुमार, राजेन्द्र सिंह बनाम एसजेवीएनएल मामले में फैसले के अनुसार कारवाई करने का साहस नही कर पा रही है।
शशि बाला पर हिन्दु जागरण मंच के सवाल
भ्रष्टाचार में डूबी बाला है पूरी की पूरी...... कौन जाने सरकार के बड़े-बड़ों की है क्या मजबूरी...
# शशी बाला को बर्खास्त करो।
अभी तो बहुत लम्बी है तुम्हारे
घोटालों की लिस्ट...
सब पता है हमें कौन भर रहा है
गाड़ियों की किश्त....
# शशी बाला को बर्खास्त करो।
जिसने पंचायत के सामुदायिक
भवनों तक को खाया....
उस भ्रष्टाचारी को सरकार ने
गोद में बैठाया.....
# शशी बाला को बर्खास्त करो।
जो कहती है हमे बैंड बाजे वाले....
उसने किये हैं हर जगह घोटल पर
घोटाले....
# शशी बाला को बर्खास्त करो।
जो पंचायत के सामुदायिक
शौचालय को तक खा गयी..
वह देखो इस सरकार में चेयरमैन
बनकर आ गयी....
# शशी बाला को बर्खास्त करो।
5181216 रूपये का जिसने किया
है पंचायत में घोटाला....
बेशर्म सरकार की दरियादिली
देखिए उसे ही चेयरमैन बना
डाला...
# शशी बाला को बर्खास्त करो।
सरकार की ऐसी भी क्या है
मजबूरी...??
क्यों नही बना पा रहे भ्रष्टाचारियों
से दूरी....??
# शशी बाला को बर्खास्त करो।
क्यों बिठाया है उसको सिर पर...
जो तुष्टिकरण कर रही है कदम
कदम पर....
# शशी बाला को बर्खास्त करो।
इसाईकरण की जिसके गांव में चल
रही है फैक्ट्री...
वो बनी फिर रही है भाजपा की
नेत्री...
# शशी बाला को बर्खास्त करो।
दोषियों को बचाना ही क्या सरकार
की धूरी है....?
भ्रष्टाचारी बाला को रखने की ऐसी
भी क्या मजबूरी है...?
# शशी बाला को बर्खास्त करो।
जिसने पंचायत में भी किया है
घोटाला.....
सरकार ने उसे चेयरमैन बना
डाला..
# शशी बाला को बर्खास्त करो।
हिन्दू जागरण मंच रोहडू में भ्रष्टाचार और तुष्टिकरण मामले में सरकार की ओर से समुचित कार्यवाही की प्रतिक्षा में है....
यदि शीघ्र कार्......  

                                                            2004 का आरोप पत्र


































                                                              2006 का आरोप पत्र

 

क्या प्रदेश का राजस्व विभाग कोरोना से बाहर नहीं निकल पा रहा है

शिमला/शैल। कोरोना के कारण लगे लाकडाऊन के बाद अब इसके अनलाक का भी पांचवा चरण चल रहा है। लेकिन प्रदेश राजस्व विभाग अभी भी इससे बाहर नहीं निकल पा रहा है। इसके कारण लोगों के सैंकड़ों भूमि सम्बन्धी मामले फिल्ड में लंबित पडे़ हुए हैं।
आठ महीने गुजरने के बाद भी लोगों को हिमाचल प्रदेश में भूमि रिकार्ड के म्यूटेशन का इंतजार है। इस समय शिमला ग्रामीण के तहत ही 500 से अधिक म्यूटेशन कार्यवाही लंबित पडी हैं। फाइलें धूल खा रही हैं क्योंकि कोविड महामारी के कारण राजस्व अधिकारी इस प्रक्रिया का संचालन करने के लिए मैदान में नहीं जा रहे हैं, जिससे स्थानीय ग्रामीणों में हड़कंप मच गया है।
इसके बारे में बात करते हुए, घनाहट्टी निवासी सोहन सिंह ने कहा कि महामारी के डर से तहसीलदार और नायब-तहसीलदार इस साल मार्च से उत्परिवर्तन प्रक्रिया का संचालन नहीं कर रहे हैं। जानबूझकर देरी के कारण मामलों की संख्या अंतिम निपटान के लिए लंबित है।
राज्य के अन्य उपखंडों में भी उत्परिवर्तन की इसी तरह की स्थिति है क्योंकि लोग रिकार्ड के उत्परिवर्तन के लिए उत्सुकता से इंतजार कर रहे हैं। सिंह ने कहा कि पटवारी म्यूटेशन की तारीख की घोषणा करने में असमर्थता जता रहे हैं क्योंकि लंबे समय से वरिष्ठ राजस्व अधिकारी खेतों में नहीं आ रहे हैं। हमें जल्द ही म्यूटेशन प्रक्रिया की आवश्यकता है, लेकिन यह मुद्दा अधिकारियों के पास लंबित है।
उन्होंने कहा, ‘लोगों ने संबंधित प्राधिकरण के साथ म्यूटेशन फीस जमा की है और निष्पादित करने का आदेश विभिन्न मामलों में वरिष्ठ राजस्व अधिकारियों द्वारा पहले ही पारित कर दिया गया है।
ग्राम पंचायत शानन के एक अन्य निवासी रूप राम वर्मा ने कहा कि पटवारी ने म्यूटेशन कार्यवाही दर्ज करने के लिए अपना काम पूरा कर लिया है, लेकिन नायब तहसीलदार और तहसीलदार रैंक के राजस्व अधिकारियों द्वारा इसे स्वीकार किया जाना बाकी है। आम तौर पर पटवारी राजस्व रिकार्ड में म्यूटेशन पेपर में प्रवेश करता है, कानूनगो (पटवारी से वरिष्ठ) प्रविष्टियों का सत्यापन करता है और नायब तहसीलदार और तहसीलदार के रजिस्टर से मेल खाता है या रूटीन फैशन में कार्यवाही को देखता है।
स्थानीय निवासियों ने तर्क दिया कि महामारी के दौरान अतिरिक्त सावधानी दिखाने के लिए राजस्व प्राधिकरण का रवैया स्वीकार्य नहीं है। जब अदालत ने नियमित रूप से फैशन में काम करना शुरू किया और लोग कोविड प्रोटोकाॅल के बाद अपने कर्तव्य में भाग ले रहे हैं, तब म्यूटेशन कार्यवाही भी किसी भी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाएगी जिससे सामाजिक संतुलन बना रहे। उन्होंने कहा कि अब पशु चिकित्सा विभाग, स्वास्थ्य, शिक्षा, आईपीएच और सार्वजनिक कार्य भी नियमित काम के लिए दूरदराज के गांवों का दौरा कर रहे हैं। ‘लेकिन राजस्व अधिकारियों की सनक और कल्पना उनके लोगों को अपने राजस्व कार्यों को पूरा करने के लिए लंबे समय तक प्रतीक्षा करने के लिए मजबूर कर रही है।
यह दिलचस्प है कि राजस्व विभाग को सीमांकन, गालदेवरी और म्यूटेशन और अन्य कार्यों का संचालन करना पड़ता है, लेकिन वे अभी भी पिछले आठ महीनों से लाकडाउन मोड में हैं, सिंह ने कहा। वर्मा ने कहा कि इसे समयबद्ध प्रक्रिया बनाने के लिए म्यूटेशन को नागरिक रजिस्टर के तहत लाया जाना चाहिए।
इस पर क्षेत्र के निवासियों ने निष्कर्ष निकाला है कि राज्य में कम्प्यूटरीकृत राजस्व प्रणाली होने के बावजूद राज्य का राजस्व विभाग अभी भी सुस्त, अपारदर्शी और लालफीताशाही शासकीय क्षेत्र है जिसे दुरूस्त किए जाने की आवश्यकता है।

प्रदेश में हर दिन हो रहा है बलात्कार

तीन वर्षों में घट गये 1134 बलात्कार और 43 गैंगरेप

शिमला/शैल। जयराम सरकार का सत्ता में तीसरा वर्ष चल रहा है। दिसम्बर मे तीन वर्ष पूरे हो जायेंगे। विधानसभा के इस सत्र के पहले ही दिन नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री का एक अतारंकित प्रश्न लगा था कि गत तीन वर्षों में बलात्कार की कितनी घटनाएं हुई, इनमें से कितने गैंगरेप कहां-कहां हुए, बलात्कार के कितने मामले अदालत तक पहंुचे और कितने मामलों में अपराधियों को सज़ा हुई। अतारंकित प्रश्न था इसलिये लिखित सूचना ही आनी थी। इस सूचना के मुताबिक प्रदेश में बीते तीन वर्षों में 31-7-2020 तक 1134 मामले बलात्कार के दर्ज हुए जिनमें से 925 में चालान अदालत में दायर हुए और 30 मामलों में सज़ा हो चुकी है। गैंगरेप के 43 मामले हुए हैं। गैंगरेप के मामलों में कांगड़ा पहले स्थान पर शिमला दूसरे स्थान पर है।
यह आंकडे प्रदेश की कानून और व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़ा करते हैं क्योंकि प्रतिदिन औसतन बलात्कार की एक घटना हो रही हैं प्रदेश में मई 2017 में शिमला के ही कोटखाई में गुड़िया कांड घटा था। प्रारम्भिक जांच के पहले ही दिनों में  पुलिस पर सवाल खडे हो गये थे। उच्च न्यायालय को मामले में दखल देना पड़ा और जांच सीबीआई को सौंप दी गयी। भाजपा उस समय विपक्ष मेें थी और इस मामले पर शिमला से लेकर दिल्ली तक धरने प्रदर्शन और कैण्डल मार्च आयोजित हो गये थे। दिसम्बर के विधानसभा चुनावों में यह सरकार के खिलाफ बड़ा मुद्दा बना था। लेकिन आज भाजपा सत्ता में है लेकिन गुड़िया को न्याय अब तक नही मिल पाया है। बल्कि आज भाजपा के ही शासनकाल में गैंगरेप के 43 मामले घट गये हैं। कांगड़ा के फतेहपुर में एक दलित लडकी की गैंगरेप के बाद हत्या कर दी गयी है। कोई बड़ी कारवाई इस मामले पर सामने नही आयी है। जिन लोगों ने गुड़िया कांड के समय सरकार और उच्च न्यायालय तक को हिलाकर रख दिया था वह सब अब चुप है। मीडिया के लिये भी यह गैंगरेप और फिर हत्या कोई बड़ी खबर नहीं है। अदालत भी अब दखल देने के लिये तैयार नही है।

कांगड़ा सहकारी बैंक में कांग्रेस की हार से नेतृत्व की सक्रियता पर उठे सवाल

शिमला/शैल। पिछले दिनों प्रदेश में कांगडा केन्द्रिय सहकारी बैंक के निदेशक मण्डल के लिये हुए चुनावों में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है। यह हार कितनी बड़ी रही है इसका अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कांग्रेस से बैंक के अध्यक्ष रहे सिपाहिया भी निदेशक का चुनाव हार गये हैं जबकि इसी चुनाव में भाजपा सरकार के वर्तमान मन्त्री राकेश पठानिया, सरवीण चैधरी, विक्रम ठाकुर और गोविन्द ठाकुर भी अपने-अपने जोन में भाजपा के उम्मीदवार को जीत नहीं दिला पाये हैं। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि भाजपा के पक्ष में भी कोई बड़ा माहौल नहीं था। कांगड़ा केन्द्रिय सहकारी बैंक के चुनाव उस समय हुए जब किसान कृषि उपज विधेयकों के खिलाफ आन्दोलन में है। किसान आन्दोलन की बात कर चुका है और सहकारी क्षेत्र ने इस फैसले पर देशभर में अपना विरोध जताया है। इस तरह पूरे सहकारी क्षेत्र में भाजपा सरकार के खिलाफ रोष है लेकिन यह रोष होते हुए भी प्रदेश कांग्रेस इसका लाभ नही ले पायी।
कांगड़ा बैंक के इन चुनावों में भी कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की ओर से यह शिकायत रही है कि प्रदेश कांग्रेस के नेतृत्व ने इन चुनावों को गंभीरता से नहीं लिया और न ही चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों को कोई सहयोग दिया। जब आधा हिमाचल इस बैंक के कार्यक्षेत्र में आता है और इसका प्रबन्धन यहां की राजनीति को प्रभावित करता है। इस परिदृश्य में बैंक के इन चुनावों में मिली हार प्रदेश कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व पर एक बड़ा असर डालेगी। क्योंकि यह बैंक प्रदेश के 30 विधानसभा क्षेत्रों और दो लोकसभा क्षेत्रों पर सीधा असर डालता है। फिर इस समय कांगड़ा में भाजपा की गुटबाजी धवाला-पवन राणा और सरवीण चैधरी प्रकरण में खुलकर सामने आ चुकी है। कांगड़ा प्रदेश का सबसे बड़ा जिला है और अब तक इतिहास भी यही रहा है कि जो दल यहां से दस सीटें जीत लेता है प्रदेश में सरकार उसी की बनती है। फिर इसका असर ऊना और हमीरपुर जिलों पर भी पड़ता है।
इस परिदृश्य में कांगड़ा बैंक के चुनावों में भी कांग्रेस के प्रदेश नेतृत्व पर पार्टी उम्मीदवारों को वांच्छित सहयोग न देने का आरोप लगना संगठन के भीतरी समीकरणों पर बहुत कुछ कह जाता है। बल्कि आज तक यह आरोप लगता आया है कि शिमला में बैठा नेतृत्व हमेशा कांगड़ा को कमजोर करता आया है। बल्कि कांगड़ा के अपने नेताओं पर जिले के हितों के लिये भी इकट्ठे न होने का आरोप लगता रहा है। इस समय यदि कांगड़ा से विप्लव ठाकुर, जीएसबाली, चन्द्र कुमार, सुधीर शर्मा, संजय रत्न और अजय महाजन ईमानदारी से इकट्ठे हो जायें तो उसी से प्रदेश की राजनीति बदल जाती है। क्योंकि कांगड़ा की इस एकता का सीधा प्रभाव ऊना और हमीरपुर पर पड़ता है। इस समय यदि कांग्रेस लोकसभा क्षेत्र से नेता पर सहमति बना लेती है और जिस तरह की आक्रामकता विप्लव ठाकुर ने संसद में दिखाई है यदि वही आक्रामकता प्रदेशभर में अपना ली जाये तो प्रदेश में सत्ता परिवर्तन को कोई नही रोक पायेगा। लेकिन इस समय भी जब यह आरोप लग रहे हैं कि जयराम को सबसे ज्यादा सहयोग वीरभद्र सिंह से मिल रहा है तो वहीं से कांग्रेस के भविष्य पर सवाल उठने शुरू हो जाते हैं।

क्या प्रदेश का दलित असुरक्षित और प्रताड़ित है भनालग प्रकरण से उठी चर्चा

शिमला/शैल। जिला शिमला के कुमारसेन क्षेत्र के भनालग महिला मण्डल में 28 जुलाई के दलित और ऊंची जाति की सदस्यों में एक विवाद खड़ा हो गया था। यह विवाद किसी समारोह में कोरोना बन्दिशो और आर्थिक साधनों की कमी के चलते स्वर्ण जाति के लोगोें को न बुलाये जाने के कारण हुआ था। समारोह में न बुलाये जाने से नाराज हुए स्वर्ण जाति के लोगों ने दलितों को महिला मण्डल से ही निकालने का फरमान सुना दिया। इस पर दोनो पक्षों मे 

जुबानी जंग शुरू हो गया जो हाथापाई के मुकाम तक पहुंच गया और उसमें जातिसूचक शब्दों तक का भी प्रयोग किया गया। दलित समाज ने इसके खिलाफ स्थानीय पुलिस थाना में शिकायत भी दी लेकिन इस पर कोई कारवाई नही हुई। अन्ततः 17 सितम्बर को इन लोगों ने एसपी शिमला से भेंट कर उन्हें यह शिकायत सौंपी। शिकायत सौपनें के बाद इन सदस्यों ने मीडिया से भी बात की। शैल ने इनकी बात को स्थान दिया और पाठकों के सामने रखा जिसे 60,000 से ज्यादा पाठकों ने देखा पढ़ा है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि प्रदेश के दलित समाज के भीतर का लावा सुलग रहा है। 

भनालग प्रकरण पर जब दलित समाज की महिलाओ ने एसपी शिमला से भेंट की तब पुलिस प्रशासन हरकत में आया लेकिन अभी तक कोई ठोस कारवाई सामने नही आयी है। लेकिन भनालग की घटना के बाद दलितों के खिलाफ पूर्व में इसी सरकार के कार्यकाल में जो मामले घट चुके हैं वह फिर से चर्चा में आ गये हैं। इन मामलों में कर्मचन्द भाटिया द्वारा दर्ज कारवाई गयी एफआईआर से लेकर दलित नेता नरेन्द्र कुमार एडवोकेट द्वारा उठाये मामले फिर से चर्चा में आ गये हैं क्योंकि इन पर अबतक कोई प्रभावी कारवाई सामने नही आयी है। सबसे बड़ा आरोप तो यह लग रहा है कि स्कूलों में दिये जाने वाले मीड डे मील में कई स्थानों पर दलित समाज के बच्चो को स्वर्णों से अलग बैठाया जाता है। इस भेदभाव का शिकार तो दलित मन्त्री तक हो चुके हैं जब उन्हें मन्दिर में प्रवेश नहीं मिला था। स्कूलों में दलित और ऊंची जाति के बच्चों को अलग अलग भोजन परोसने के मामले कुल्लु, मण्डी ही नहीं बल्कि लगभग सभी जिलों में घट चुके हैं। ऐसे मामलों मे दलित उत्पीडन अधिनियम के तहत मामला दर्ज करवाने के लिये CRPC156 (3) के माध्यम से अदालत का भी सहारा लेना पडा है। 
दलित महिलाओं के मामलो में कांगड़ा के फतेहपुर में नाबालिग लड़की के साथ हुए गैंगरेप का मामला सबसे बड़ा मामला बन गया है। इसके बाद चुराह की बिमला देवी की हत्या, दरंग की लीला देवी और उसके बेटे के साथ मारपीट सराज की उमा देवी के अपहरण का मामला ऐसे प्रकरण हैं जो सभी के लिये गंभीर चिन्ता के मामले हैं। कई स्थानों पर दलितों का स्वर्णों के मन्दिरो में प्रवेश आज भी वर्जित है। दलित और स्वर्ण एक ही रास्ते से नहीं गुजर सकते ऐसा दरंग में है और उल्लघंन करने पर देवता दलितों से बकरे की मांग करता है। स्वभाविक है कि जब इस तरह का आचरण व्यवहार होगा तो दलित समाज मेें ऐसी मानसिकता के प्रति रोष और घृणा एक साथ उभरेंगे। लेकिन हैरानी इस बात की है कि सरकार का महिला सशक्तिकरण और समाज कल्याण विभाग ऐसे मामलों का गंभीरता से संज्ञान नहीं ले रहा है जबकि वह उसके अधिकार और कर्तव्य क्षेत्र में आता है। 
ऊना का एक मामला रविदास समाज को लेकर विधानसभा के इस सत्र में विधायक राकेश सिंघा एक प्रश्न के माध्यम से उठा चुके हैं। इसमें अदालत के आदेश के बावजूद इन लोगों के खिलाफ बनाये गये आपराधिक मामलों को वापिस नहीं लिया जा रहा है। यह स्वभाविक है कि जब प्रशासन इस तरह करेगा तो इस समाज में रोष और बढ़ेगा ही। सिरमौर मेे एक वकील की हत्या का प्रकरण भी अभी तक किसी मुकाम तक नहीं पहुंचा है।











 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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