Friday, 19 September 2025
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क्या नगर निगम आयुक्त का पद भी उगाही वाले दायरे में आ गया है?

शिमला/शैल। नगर निगम शिमला के आयुक्त का पद एक सप्ताह से खाली चला आ रहा है। सरकार ने पिछले दिनों 21 आईएएस अधिकारियों के तबादले किये थे और उनमें निगम के आयुक्त को जिलाधीश लाहौल- स्पिति भेजा था। उसके बाद से यह पद खाली है। सरकार कोई नियुक्ति इस पद पर नही कर पायी है। चर्चा है कि करीब आधा दर्जन अधिकारी इस पद की दौड़ में हैं एक समय तो यहां तक चर्चा आ गयी थी कि एक आईएफएस अधिकारी पर मुख्यमन्त्री और शहरी विकास मन्त्री जो शिमला के वर्तमान विधायक भी हैं दोनो सहमत हो गये थे। लेकिन इस चर्चित सहमति के बाद भी नियुक्ति न हो पाने से कई सवाल खड़े हो गये हैं। शिमला प्रदेश का सबसे पुराना और बड़ा नगर निगम है। शिमला के नगर निगम को एक तरह से प्रदेश की लघु विधानसभा माना जाता है। यहां पर प्रदेश के हर जिले का ही नही बल्कि देश के हर राज्य का आदमी मिल जायेगा। पर्यटन की दृष्टि से शिमला विश्वस्तरीय स्थलों में गिना जाता है। ब्रिटिश शासन में देश की ग्रीष्मकाल की राजधानी होने के नाते यहां के अनेक स्थलों और भवनों को हैरिटेज का दर्जा हासिल है।
इसी कारण से यहां पर कई लोगों का हित जुड़ा हुआ रहता है। इसी हित का परिणाम है कि यहां के अवैध निमार्णों को नियमित करने के लिये कांग्रेस और भाजपा की सरकारें नौ बार रिटेन्शन पालिसी ला चुकी है। प्रदेश उच्च न्यायालय से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक इस स्थिति का कड़ा संज्ञान लेकर सरकार और प्रशासन को गंभीर लताड़ लगा चुका है। एनजीटी तो वाकायदा फैसला सुनाकर शहर के कोर एरिया में निमार्णों पर प्रतिबन्ध लगा चुका है। कोर एरिया के बाहर भी अढ़ाई मंजिल से अधिक का कोई नया निर्माण नही किया जा सकता है। कई हित धारकों के दवाब में सरकार को यह वायदा करना पड़ा था कि वह एनजीटी के फैसलों की अपील सर्वोच्च न्यायालय में करेंगे। लेकिन ऐसा कर नही पायी है। परन्तु एनजीटी के फैसले के वाबजूद नगर निगम क्षेत्र में छः मंजिला निर्माण हो रहे है। सैंकड़ों निर्माणों को इस नाम पर अनुमति दी जा रही है कि इनके नक्शे एनजीटी का फैसला नम्बर 2016 में आने से पहले ही यह नक्शे पास हो चुके थे और अनुमति की सूचना नही दी जा सकी थी। यह सारे निर्माण अढ़ाई मंजिल से अधिक के ही हैं। फिर शिमला स्मार्ट सिटी घोषित हो चुका है। स्मार्ट सिटी के नाम पर सैंकड़ों करोड़ की नयी योजनाएं नियमित की जानी है। कई योजनाएं तो अधिकारीयों की डील से पहले ही बन्द हो चुकी हैं। शहर की सबसे बड़ी पेयजल योजना शहर के रिज से संचालित है इसके जिर्णोद्वार के लिये ही सौ करोड़ की योजना तैयार है। शहर में पार्किंग एक बड़ी समसया है। इसके लिये नगर निगम ने पीपीपी योजना के तहत कुछ पार्किंग स्थलों का निर्माण करवाया था। अब स्मार्ट सिटी के नाम पर इन्ही पार्किंग स्थलों को शायद निगम उन ठेकेदारों से वापिस ले रही है। जिस पर ठेकेदार ने 16 करोड़ खर्च किये हैं उसे 48 करोड़ में वापिस लिया जा रहा है।
स्मार्ट सिटी से अलग शहर में एशियन विकास बैंक के सहयोग से सौंदर्यकरण की योजना चल रही है। इस योजना के तहत शहर में स्थित दोनो चर्चों की रिपेयर के लिये 21 करोड़ खर्च किये जाने थे। इसके लिये प्रक्रिया संबंधी सारी औपचारिकताएं भी पूरी हो गयी थी। इसमें कुछ काम भी शुरू हुआ था। लेकिन क्यों और कैसे बन्द कर दिया गया इसकी कोई जानकारी आज तक बाहर नही आयी है। इसी सौंदर्यकरण की योजना के तहत ही टाऊनहाल की रिपेयर पर करीब दस करोड़ खर्च किये गये हैं। लेकिन रिपेयर के बाद इस बरसात में इसके अन्दर पानी आया है और इसको लेकर वर्तमान और पूर्व मेयर में वाक्युद्ध भी हो चुका है। इस तरह नगर निगम शिमला में स्मार्ट सिटी से लेकर सौंदर्यकरण जैसी कई बड़ी योजनाओं पर अमल होना है। इससे अन्दाजा लगाया जा सकता है कि प्रशासनिक दृष्टि से निगम के आयुक्त का पद कितना अहम हो गया है। इसी के साथ भाजपा के ही दो बड़े नेताओं के राजनीतिक हित भी नगर निगम क्षेत्र से जुडे हुए हैं। फिर निगम का जो भी आयुक्त होता है उसकी काम के कारण राजभवन से लेकर उच्च न्यायालय तक बराबर पैठ बन जाती है और सचिवालय तो इन दोनों के बीच ही स्थित है। नगर निगम शिमला के इस राजनीतिक भूगोल के कारण यहां के आयुक्त की नियुक्ति मुख्यमन्त्री और शहरी विकास मन्त्री के लिये भी काफी जटिल हो गयी है। वैसे तो पुलिस थानों, एक्साईज़ और फारैस्ट की चैक पोस्टों और प्रदूषण नियन्त्रण केन्द्रों पर होने वाली नियुक्तियों को लेकर मोलभाव होने के आरोप दबी जुबान में काफी असरे से चर्चा में चले आ रहे हैं। यह काम इस सत्ता के गलियारों से जुड़े दलालों के नाम लगते रहे हैं। इन चर्चाओं को उस समय अधिमान भी मिल जाता है जब किसी चैकिंग गार्ड की वाहन से कुचल कर हत्या कर दी जाती है और हत्यारे पकड़े नही जाते हैं। कई होशियार सिंह इन्साफ के लिये तरस्ते रहते हैं। आज तक नगर निगम शिमला के आयुक्त की नियुक्ति के लिये भी इतना समय लग जाये तो स्वभाविक है कि राजधानी नगर होने के नाते आम आदमी का ध्यान इस ओर जायेगा ही। अनचाहे ही यह चर्चा चल निकलेगी कि कहीं यह पद भी उगाही वाले दायरे में तो नही आ गया है और दलालों का इस पर सीधा दखल हो चुका है क्योंकि जितने काम स्मार्ट सिटी और सौंदर्यकरण के नाम पर होने हैं उनको देखकर इस तरह की आशंकाओं को एकदम आधारहीन भी नही कहा जा सकता है।

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