कांग्रेस और भाजपा आये आमने-सामने
शीर्ष प्रशासन बना दर्शक
जयराम ठाकुर मुद्दे को भुनाकर बने नेता प्रतिपक्ष
नये संस्थानों से प्रदेश पर पड़ा तीन हजार करोड़ का अतिरिक्त भार
शिमला/शैल। निवर्तमान जयराम सरकार ने चुनावी वर्ष के अंतिम छः माह में प्रदेश में नौ सौ से ज्यादा विभिन्न संस्थान खोलने की घोषणाएं करके सरकारी खजाने पर तीन हजार करोड़ का अतिरिक्त भार डाला था। जयराम सरकार जब यह कर रही थी तो कांग्रेस सहित कुछ लोग सरकार के इन फैसलों पर नजर भी रख रहे थे। क्योंकि यह फैसले सरकार के कार्यकाल के अन्तिम छः माह में उस समय लिये जा रहे थे जब प्रदेश के पास कर्ज लेने के अतिरिक्त और कोई साधन इन्हें पूरा करने के लिये नहीं बचा था। जबकि प्रदेश का कर्ज भार पहले ही 75,000 करोड़ का आंकड़ा पार कर चुका था। यही नहीं केन्द्र सरकार इससे पहले ही राजस्व घाटा अनुदान और जीएसटी प्रतिपूर्ति बन्द कर चुकी थी। अटल ग्रामीण सड़क योजना बन्द हो चुकी है। इनसे ही प्रदेश को करीब तीन हजार करोड़ का नुकसान हो चुका है। इस परिदृश्य में प्रदेश पर और तीन हजार करोड़ का बोझ डालना हर समझदार के सामने एक बड़ा सवाल बनता जा रहा था। क्योंकि जो शीर्ष प्रशासन प्रदेश की वित्तीय स्थिति से अवगत था वह इस सब पर मौन चल रहा था। सरकार की इन गतिविधियों से यह लगातार स्पष्ट होता जा रहा था कि जो सरकार अन्तिम छः माह में यह सब कुछ कर रही है उसने इससे पहले कुछ नहीं किया और अब चुनाव जीतने के लिये एक हथियार के रूप में घोषणाओं का इस्तेमाल किया जा रहा है। यदि चुनावी परिणाम न भी मिले तो आने वाली कांग्रेस के लिये यह सब एक बड़ा फन्दा साबित होंगे। दूसरी ओर जब कांग्रेस इस सब पर नजर रख रही थी तब उसने चुनाव प्रचार के दौरान ही यह ऐलान कर दिया था कि वह इन फैसलों की समीक्षा करके इन्हें डिनोटिफाई करेगी। सरकार बनने के बाद कांग्रेस ने अपने वायदे पर अमल करते हुये फैसलों की समीक्षा करके इन्हें डिनोटिफाई करना शुरू कर दिया है। संयोगवश इसी दौरान भाजपा की यह चर्चाएं सामने आना शुरू हो गयी कि नेता प्रतिपक्ष के लिए जयराम की जगह सतपाल सत्ती और विपिन परमार के नाम चलने शुरू हो गये हैं। जयराम ठाकुर ने इस स्थिति का संज्ञान लेते हुये सुक्खू सरकार के खिलाफ फैसले पर मोर्चा खोल दिया है। पूरे प्रदेश में प्रदर्शनों का दौर शुरू हो गया जो जसवां प्रागपुर में शालीनता और सभ्यता की सारी सीमायें लांघ गया। जयराम ने सुक्खू सरकार के फैसलों को उच्च न्यायालय तक में चुनौती देने की घोषणा तक कर दी। जयराम अदालत जाते हैं या नहीं यह तो आने वाला वक्त ही बतायेगा। लेकिन यह सब करने से जयराम नेता प्रतिपक्ष अवश्य चुन लिये गये। अब इन फैसलों को लेकर किसका पक्ष कितना सही है यह तो आने वाला समय ही बतायेगा कि वित्तीय और प्रशासनिक अनुमतियां कितने फैसलों में रही हैं। लेकिन प्रशासनिक सूत्रों के मुताबिक 25% फैसलों में सारी आवश्यक औपचारिकताएं पूरी हैं। प्रशासन के इसी फीडबैक के सहारे जयराम ने सुक्खू को चुनौती देने का साहस किया है। क्योंकि जिस प्रशासन के सहयोग से जयराम ने यह फैसले लिये थे उसकी रिपोर्ट पर ही सुक्खू उन्हें डिनोटिफाई करने के फैसले ले रहे हैं।
इन फैसलों के संद्धर्भ में शीर्ष प्रशासन से यह सवाल बनता है कि जब इन घोषणाओं के लिये बजट का प्रावधान ही नहीं था तो इन घोषणाओं को फील्ड में घोषित करने के लिये जो आयोजन किये गये उनके लिये धन का प्रावधान कहां से किया गया। क्योंकि इन आयोजनों पर ही कई करोड़ों का खर्च हुआ है। धन के इस प्रबन्धन की जानकारी प्रदेश के वित्त विभाग से आनी चाहिये थी। इसके लिये प्रदेश के मुख्य सचिव और वित्त सचिव को पत्रकार वार्ता के माध्यम से स्थिति स्पष्ट करनी चाहिये थी। लेकिन इसका जवाब कांग्रेस विधायकों सर्वश्री हर्षवर्धन चौहान, रोहित ठाकुर और अनिरुद्ध सिंह की ओर से दिया गया। शायद इसीलिये यह सवाल भी उछला कि जब संस्थान खोलने का फैसला पूरे मंत्रिमंडल द्वारा लिया गया है तो इन्हें डिनोटिफाई करने के लिये पूरे मंत्रिमंडल की आवश्यकता क्यों नहीं? यदि मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री ही मंत्रिमंडल बन जाते हैं तो फिर दूसरों के फैसलों में देरी क्यों की जा रही है। विश्लेषकों का मानना है कि पूर्व मुख्यमंत्री प्रशासन के माध्यम से सुक्खू सरकार को उलझाने का प्रयास कर रहे हैं।
शीर्ष प्रशासन की निष्ठाओं और ईमानदारी पर उठेंगे सवाल
शिमला/शैल। कांग्रेस ने चुनावों में वायदा किया था कि वह जयराम द्वारा पिछले छः माह में लिये गये फैसलों की समीक्षा करेगी। सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने विधायकों की एक कमेटी बनाकर इन फैसलों की समीक्षा करवाई। इस समीक्षा में विभागों से ऐसे फैसलों की सूची लेकर प्रशासनिक सचिवों और वित्त विभाग से जानकारी ली गयी जो फैसले प्रशासनिक अनुमति और बजट प्रावधानों के बिना लिये गये थे। उन्हें अन्ततः रद्द करने का फैसला लिया गया। इस सैद्धान्ति फैसले के बाद बिना प्रावधानों के खोले गये कार्यालयों/संस्थानों को बन्द करने के आदेश जारी किये गये हैं। इनमें बिजली बोर्ड और लोक निर्माण तथा शिक्षा विभाग प्रभावित हुए हैं। सुक्खू सरकार के इन फैसलों को बदले की भावना से की गई कारवाई करार देते हुए पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने इन फैसलों को प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती देने की घोषणा की है। जयराम ठाकुर ने यह भी कहा है कि इन फैसलों के लिये सभी वांछित अनुमति ली गयी है।
जयराम ठाकुर के इस ब्यान से स्थिति रोचक हो गयी है क्योंकि सुक्खू सरकार को वित्त विभाग ने यह जानकारी दी है कि इन फैसलों की अनुपालना करने के लिये बजट ही नहीं है। जयराम ठाकुर इसमें सारी औपचारिकताएं पूरी होने का दावा कर रहे हैं और इसी आधार पर इन फैसलों को प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती देकर बदले की भावना से की जा रही कारवाई करार देना चाहते हैं। यह अपने में ही रोचक स्थिति हो जाती है कि जो वित्त विभाग इन फैसलों को बिना बजट के लिये गये करार दे रहा है उसी के सामने जयराम सरकार ने यह फैसले लिये हैं। ऐसे में किसका दावा कितना सही है इसका सच तो अदालत में ही सामने आयेगा। इसी के साथ यह भी स्पष्ट हो जायेगा कि प्रशासन राजनेताओं को कितनी सही जानकारी और राय देता है। क्योंकि जयराम शासन में बहुत सारे अधिकारियों को शीर्ष पदों पर बैठाने के लिये बहुत सारे नियमों/कानूनों को ताक पर रखा गया था। आज यदि उन अधिकारियों द्वारा दी गयी राय और जानकारी सही नहीं निकलती है तो इसके प्रभाव दूरगामी होंगे यह तय है।
शिमला/शैल। चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस ने जनता से वायदा किया था कि यदि वह सत्ता में आये तो जयराम सरकार द्वारा पिछले छःमाह में लिये गये फैसलों के समीक्षा की जायेगी। यह वायदा इसलिये किया गया था कि एक ओर तो सरकार करीब हर माह भारी कर्ज लेकर अपना काम चला रही थी तो दूसरी ओर हर विधानसभा क्षेत्र में लोगों को लुभाने के लिये सैंकड़ों करोड़ों की नई घोषणाएं कर रही थी। पिछले छः माह में की गयी हर तरह की घोषणा को पूरा करने पर होने वाले कुल खर्च का यदि जोड किया जाये तो यह विधानसभा द्वारा पारित वार्षिक बजट के आंकड़े से भी ज्यादा बढ़ जायेगा। शैल ने उस दौरान भी इस पर विस्तार से चर्चा की हुई है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक था कि या तो सरकार सत्ता में वापसी के लिये जनता को जुमलों का झुनझुना थमा रही है या बिना सोचे समझे प्रदेश को कर्ज के दलदल में धकेल रही है। अब सरकार में आने पर कांग्रेस की यह आवश्यकता हो जाती है कि वह वायदे के अनुसार इन फैसलों की पड़ताल करती। इस पड़ताल के लिये मुख्यमंत्री सुक्खू ने विधायकांे की एक टीम बनाकर इन फैसलों की समीक्षा की। सबंधित विभागों और वित्त विभाग से जानकारी ली गई और यह सामने आया कि घोषणाएं बिना बजट प्रावधानों के की गयी हैं। वित्त विभाग ने स्पष्ट किया है कि इन घोषणाओं को पूरा करने के लिये कोई बजट उपलब्ध नहीं है। वित्त विभाग की इस स्वीकारोक्ति से यह और सवाल खड़ा हो गया है कि जब वित्त विभाग के पास पैसा ही नहीं है तो फिर इन घोषणाओं के उद्घाटनों आयोजनों के लिए धन का प्रावधान कैसे और कहां से किया गया?