Friday, 19 September 2025
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बजट प्रावधानों के हुये फैसलों पर लगी रोक

शिमला/शैल। चुनावों प्रचार के दौरान कांग्रेस ने जनता से वायदा किया था कि यदि वह सत्ता में आये तो जयराम सरकार द्वारा पिछले छःमाह में लिये गये फैसलों के समीक्षा की जायेगी। यह वायदा इसलिये किया गया था कि एक ओर तो सरकार करीब हर माह भारी कर्ज लेकर अपना काम चला रही थी तो दूसरी ओर हर विधानसभा क्षेत्र में लोगों को लुभाने के लिये सैंकड़ों करोड़ों की नई घोषणाएं कर रही थी। पिछले छः माह में की गयी हर तरह की घोषणा को पूरा करने पर होने वाले कुल खर्च का यदि जोड किया जाये तो यह विधानसभा द्वारा पारित वार्षिक बजट के आंकड़े से भी ज्यादा बढ़ जायेगा। शैल ने उस दौरान भी इस पर विस्तार से चर्चा की हुई है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक था कि या तो सरकार सत्ता में वापसी के लिये जनता को जुमलों का झुनझुना थमा रही है या बिना सोचे समझे प्रदेश को कर्ज के दलदल में धकेल रही है। अब सरकार में आने पर कांग्रेस की यह आवश्यकता हो जाती है कि वह वायदे के अनुसार इन फैसलों की पड़ताल करती। इस पड़ताल के लिये मुख्यमंत्री सुक्खू ने विधायकांे की एक टीम बनाकर इन फैसलों की समीक्षा की। सबंधित विभागों और वित्त विभाग से जानकारी ली गई और यह सामने आया कि घोषणाएं बिना बजट प्रावधानों के की गयी हैं। वित्त विभाग ने स्पष्ट किया है कि इन घोषणाओं को पूरा करने के लिये कोई बजट उपलब्ध नहीं है। वित्त विभाग की इस स्वीकारोक्ति से यह और सवाल खड़ा हो गया है कि जब वित्त विभाग के पास पैसा ही नहीं है तो फिर इन घोषणाओं के उद्घाटनों आयोजनों के लिए धन का प्रावधान कैसे और कहां से किया गया?

कांग्रेस को मिली प्रदेश की सरकार सुखविन्दर सिंह सुक्खु बने मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री होंगे उप मुख्यमंत्री

मंत्रीमण्डल विस्तार में लग सकता है समय
पार्टी में गुटबाजी का सन्देश जाना हो सकता है नुकसानदेह
शैल का चुनावी आकलन हुआ सही साबित


शिमला/शैल। हिमाचल में सत्ता परिवर्तन हो गया है कांग्रेस 40 सीटें जीत कर सत्ता पर काबिज हो गयी है। सोलन और हमीरपुर में भाजपा शून्य हो गयी है। शिमला, ऊना और कांगड़ा में भी कांग्रेस का प्रदर्शन शानदार रहा है। यदि मंडी और बिलासपुर में भी इसी स्तर का प्रदर्शन रहता तो निश्चित रूप से कांग्रेस का आंकड़ा 50 से भी बड़ जाता। मंडी और बिलासपुर का परिणाम भाजपा तथा कांग्रेस दोनों दलों के लिये अपने-अपने तौर पर चिन्तन और चिन्ता का विषय है। जबकि आम आदमी के लिए बिलासपुर सदर में जो कुछ घटा है वह चुनावी व्यवस्था पर सवाल खड़े करने का पर्याप्त आधार दे देता है। शैल के पाठक जानते हैं कि हमारा आकलन पूरी तरह सही साबित हुआ है। हम लगातार सत्ता परिवर्तन को लेकर आश्वस्त रहे हैं। लेकिन इस सत्ता परिवर्तन के बाद बड़ा सवाल यह होगा कि यह सरकार अपना कार्यकाल पूरी सफलता के साथ पूरा करे और प्रदेश की जनता को दी 10 गारन्टियों को शीघ्र से शीघ्र पूरा करे। नई सरकार पर यह सवाल इसलिये खड़ा हो रहा है कि जब पर्यवेक्षकों ने नेता चुुनने को लेकर जब विधायकों के साथ बैठक की तब कार्यकर्ताओं ने अलग-अलग नेताओं के समर्थन में नारेबाजी कर दी। इस नारेबाजी के परिदृश्य में विधायकों की बैठक के बाद यह सामने आया कि सुखविन्दर सिंह मुख्यमंत्री और मुकेश अग्निहोत्री तथा विक्रमादित्य सिंह उपमुख्यमंत्री नामित हुये हैं। मीडिया में इस आश्य के समाचार भी प्रसारित हो गये। लेकिन जब शपथ ग्रहण समारोह हुआ तो सिर्फ सुखविन्दर सिंह सुक्खु और मुकेश अग्निहोत्री की ही शपत हुई। विक्रमादित्य का नाम गायब हो गया। ऐसा क्यों हुआ इसकी कोई अधिकारी जानकारी आने की बजाये पार्टी में गुटबाजी होने के समाचार आने लग गये। यह सब आम आदमी के सामने घटा है और अनचाहे ही चर्चा का विषय बन गया है। इसी चर्चा के कारण मंत्रिमण्डल के गठन में समय लगने की बात हो रही है। बल्कि कुछ अन्य आवश्यक नयुक्तियां होने में भी समय लग रहा है। यह समय लगना और पार्टी के भीतर पहले दिन से गुटबाजी होने के समाचार आना आगे चलकर क्या रंग दिखाएंगे यह अभी से एक चिन्तन का विषय बन गया है क्योंकि विपक्ष में भाजपा है। गैर भाजपा सरकारों को तोड़ने के लिये ऑपरेशन लोटस कैसे चलता रहा है यह किसी से छिपा नहीं है। इसी परिदृश्य में यह चर्चा करना प्रसांगिक हो जाता है कि इस समय प्रदेश कांग्रेस में स्व. वीरभद्र के कद का कोई नेता नहीं है। उस कद का नेता बनने के लिये सभी को समय लगेगा। अभी कांग्रेस को अगले लोकसभा चुनावों तक स्व. वीरभद्र सिंह को अधिमान देकर चलना होगा। क्योंकि जब भी जयराम सरकार के फैसलों और उसके कार्यों पर सवाल उठेंगे तो उनका आकलन वीरभद्र सरकार के कार्यकाल से ही करना होगा। अगले लोकसभा चुनाव तक सुक्खु सरकार का केवल एक वर्ष की पूरा हुआ होगा। इस वर्ष में ओ.पी.एस., महिलाओं को 1500 रूपये प्रतिमाह तथा 300 यूनिट बिजली मुफ्त और एक लाख रोजगार सृजित करना ऐसे आर्थिक फैसले होंगे जिनमें साधन आवश्यक होंगे। यह साधन कैसे जूटाये जाते हैं इस पर सबकी निगाहें रहंेगी। चुनावों के दौरान कांग्रेस अपना आरोप पत्र जनता के बीच जारी कर चुकी है। इस पर ही कैसे अगली कारवाही शुरु होगी इस पर भी सबकी नजरें रहेंगी। आरोप पत्र पर कारवाई का सीधा प्रभाव राजनेताओं से पहले प्रशासन पर पड़ेगा। अभी शिमला नगर निगम के चुनावों का सामना करना पड़ेगा। इन चुनावों में एन.जी.टी. का फैसला और उस फैसले की अवहेलना के मामले एक बड़ा सवाल रहेंगे। क्योंकि अवहेलना का आरोप सरकार पर भी लग चुका है। इस संद्धर्भ में सरकार के स्टैण्ड का असर पूरे प्रदेश पर पड़ेगा। यह सब लोकसभा चुनाव से पहले हो जायेगा। इसका प्रभाव लोकसभा चुनाव पर अवश्य पड़ेगा। इसलिये सरकार को एक दूरगामी चिन्तन करके चलना होगा। इस वस्तुस्थिति में यह पहली आवश्यकता होगी की पार्टी में गुटबाजी होने का कोई भी परोक्ष/अपरोक्ष सन्देश नहीं जाना चाहिये। अभी कांग्रेस के हर नेता को हर आयोजन के मंच पर स्व. वीरभद्र सिंह को याद करना पड़ता है क्योंकि सरकार की अपनी परफॉरमैन्स को सामने आने में समय लगेगा। इसलिये विश्लेष्कों की नजर में 2024 के लोकसभा चुनाव तक वीरभद्र परिवार के सम्मान को किसी भी तरह की ठेस पहुंचाना नुकसानदेह हो सकता है। इन चुनावों में पार्टी को मण्डी लोकसभा क्षेत्र में कोई बड़ी सफलता नहीं मिली है। लेकिन बिलासपुर में भी चार में से 3 सीटें कांग्रेस हार गयी है। वहां पर सदर चुनाव क्षेत्र में चुनाव आयोग का आचरण जिस तरह का रहा है उसको बम्बर ठाकुर ने सीधा जगत प्रकाश नड्डा पर आरोप लगाया है। परन्तु कांग्रेस पार्टी की ओर से इस पर कोई प्रतिक्रिया न आना अपने में कई सवाल खड़े कर जाता है। मुख्यमंत्री सुखविन्दर सिंह सुक्खु का संगठन लम्बा अनुभव है वह यह अच्छी तरह से समझते हैं कि संगठन की छोटी घटनाएं भी कई बार बड़ा आकार ले लेती हैं। ऐसे में यह सुक्खु और मुकेश के लिये टैस्ट होगा कि वह गुटबाजी के सन्देश को कैसे रोक पाते हैं।

क्या एनजीओ भवनों का दुरुपयोग हो रहा है अराजपत्रित कर्मचारी सेवाएं महासंघ के पत्र से उठा मुद्दा

शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश अराजपत्रित कर्मचारी सेवाएं महासंघ ने प्रदेश के मुख्य सचिव को एक ज्ञापन देकर आरोप लगाया है कि प्रदेश के विभिन्न जिलों में बने एनजीओ भवनों का दुरुपयोग हो रहा है। मांग की गई है कि सामान्य प्रशासन इन भवनों को शीघ्र अपने नियंत्रण में ले। स्मरणीय है कि कर्मचारी संगठनों को अपना दायित्व ठीक से निभाने के लिये कर्मचारी महासंघ के नाम पर जमीनों का आवंटन करके इन भवनों का निर्माण करवाया था। सरकारी धन से बने इन भवनों का उद्देश्य कर्मचारी नेतृत्व को सुविधा प्रदान करना था। ताकि वह कर्मचारियों के कल्याण से जुड़े मुद्दों को सुचारू ढंग से उठा सके। कर्मचारी संगठनों के लिए प्रक्रिया और नियमावलि तय है। इसी के अनुसार चयनित संगठन को सरकार मान्यता प्रदान करती है। जयराम सरकार पर यह आरोप लगाया गया है कि वह प्रक्रिया और नियमों की अनदेखी करके बने संगठन को ही मान्यता देकर कर्मचारी मुद्दों पर वार्ता के लिए आमंत्रित करती है। सरकार के इस पक्षपातपूर्ण व्यवहार से वर्तमान महासंघ एक प्रायोजित संगठन बनकर रह गया है। यह आरोप उस समय लगाये जा रहे हैं जब चुनाव के बाद नई सरकार का गठन होना है। यह स्वभाविक है कि इन आरोपों और मांगों के परिदृश्य में प्रदेश के कर्मचारी राजनीति में नये समीकरण बनेंगे और इससे संगठनों में आगे चलकर एक टकराव की स्थिति भी पैदा हो सकती है। ऐसे में यह देखना रोचक होगा कि बनने वाली सरकार इस मांग पर किस तरह का रुख अपनाती है।

यह है सौंपा गया ज्ञापन

क्या एनजीओ भवनों का दुरुपयोग हो रहा है अराजपत्रित कर्मचारी सेवाएं महासंघ के पत्र से उठा मुद्दा

शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश अराजपत्रित कर्मचारी सेवाएं महासंघ ने प्रदेश के मुख्य सचिव को एक ज्ञापन देकर आरोप लगाया है कि प्रदेश के विभिन्न जिलों में बने एनजीओ भवनों का दुरुपयोग हो रहा है। मांग की गई है कि सामान्य प्रशासन इन भवनों को शीघ्र अपने नियंत्रण में ले। स्मरणीय है कि कर्मचारी संगठनों को अपना दायित्व ठीक से निभाने के लिये कर्मचारी महासंघ के नाम पर जमीनों का आवंटन करके इन भवनों का निर्माण करवाया था। सरकारी धन से बने इन भवनों का उद्देश्य कर्मचारी नेतृत्व को सुविधा प्रदान करना था। ताकि वह कर्मचारियों के कल्याण से जुड़े मुद्दों को सुचारू ढंग से उठा सके। कर्मचारी संगठनों के लिए प्रक्रिया और नियमावलि तय है। इसी के अनुसार चयनित संगठन को सरकार मान्यता प्रदान करती है। जयराम सरकार पर यह आरोप लगाया गया है कि वह प्रक्रिया और नियमों की अनदेखी करके बने संगठन को ही मान्यता देकर कर्मचारी मुद्दों पर वार्ता के लिए आमंत्रित करती है। सरकार के इस पक्षपातपूर्ण व्यवहार से वर्तमान महासंघ एक प्रायोजित संगठन बनकर रह गया है। यह आरोप उस समय लगाये जा रहे हैं जब चुनाव के बाद नई सरकार का गठन होना है। यह स्वभाविक है कि इन आरोपों और मांगों के परिदृश्य में प्रदेश के कर्मचारी राजनीति में नये समीकरण बनेंगे और इससे संगठनों में आगे चलकर एक टकराव की स्थिति भी पैदा हो सकती है। ऐसे में यह देखना रोचक होगा कि बनने वाली सरकार इस मांग पर किस तरह का रुख अपनाती है।

यह है सौंपा गया ज्ञापन

कांग्रेस का आंकड़ा पचास तक पहुंचने का अनुमान

उपचुनावों के बाद भी महंगाई और बेरोजगारी में कोई कमी नहीं आयी
मतदान के दूसरे ही दिन मुख्यमन्त्री के प्रधान सचिव का दिल्ली चले जाना क्या संकेत है?
सरकार के वित्त सचिव का कांग्रेस नेता से सहायता मांगना क्या संकेत है?
कांग्रेसी की गारन्टीयों के परिणाम स्वरूप महिला मतदाताओं की संख्या रही ज्यादा
सरकार की उज्जवला पर महिलाओं को प्रतिमाह पन्द्रह सौ का वायदा
ओ.पी.एस. बहाली की गारन्टी ने बदले कर्मचारी
शिमला/शैल। मतदान और मतगणना के बीच जितना अन्तराल इस बार आया है इतना शायद पहले कभी ही रहा है। यह अन्तराल इतना लम्बा क्यों रखा गया इसका कोई समुचित तर्क सामने नहीं आ पाया है। इसी अन्तराल के कारण ई.वी.एम. मशीनों की सुरक्षा पर सवाल उठे। चुनाव आयोग को ऊना में इनकी सुरक्षा के लिये स्वयं टैन्ट लगाने पड़े। पोस्टल बैलट भी सवालों के घेरे में आ गये हैं। ऐसा क्यों हुआ है इसके लिये कोई संतोषजनक कारण सामने नहीं आये हैं। इस मतदान के दूसरे ही दिन मुख्यमन्त्री के प्रधान सचिव ने दिल्ली जाने की अनुमति सरकार से हासिल कर ली। चुनाव परिणामों तक भी इन्तजार नहीं किया। सरकार के वित्त सचिव ने कांग्रेस की प्रचार कमेटी के अध्यक्ष से सहायता की गुहार लगा दी। गुहार का यह आग्रह वायरल भी हो गया। चुनाव परिणामों से पहले ही यह सब घट जाने को कैसा राजनीतिक संकेत माना जाना चाहिये यह पाठक स्वंय तय कर सकते हैं।
2017 में जयराम ठाकुर के नेतृत्व में बनी भाजपा सरकार ने 2019 में लोकसभा चुनाव का सामना किया। हिमाचल समेत पूरे देश में इन चुनावों में भाजपा ने इतिहास रचा। इन चुनावों के कारण सुरेश कश्यप और किशन कपूर की विधानसभा सीटें खाली हुई और यह उपचुनाव भी भाजपा जीत गयी। लेकिन इसके बाद जब सरकार की परफारमैन्स जनता के सामने व्यवहारिक रूप से आती चली गयी तो इसका पहला प्रभाव नगर निगम चुनावों में देखने को मिला और सरकार चार में से दो नगर निगम हार गयी। इसके बाद हुये एक लोकसभा और तीन विधानसभा उपचुनावों में भाजपा चारों उपचुनाव हार गयी। इस हार पर तात्कालिक प्रतिक्रिया में महंगाई को मुख्यमंत्री ने हार का कारण माना था। क्या इन उपचुनावों के बाद महंगाई कम हुई है? क्या युवाओं को बड़े स्तर पर रोजगार उपलब्ध हो पाया है? क्या मनरेगा में सरकार रोजगार उपलब्ध करवा पायी है? जब चारों उपचुनावों के बाद परिस्थितियों में कोई व्यवहारिक रूप से बदलाव आया ही नहीं है तो आज जनता का समर्थन किस आधार पर मिल पायेगा?
केन्द्र और प्रदेश में दोनों जगह भाजपा की सरकार होने के नाम पर क्या कोई आर्थिक पैकेज प्रदेश को मिल पाया है शायद नहीं। बल्कि आज मुख्यमन्त्री को चुनावों के बाद केन्द्र से जी.एस.टी. की प्रतिपूर्ति की मांग करनी पड़ी है। बल्कि जो कुछ भी कथित रूप से मिला है वह सैद्धान्तिक स्वीकृतियों से आगे नहीं बढ़ा है। प्रधानमन्त्री ग्रामीण सड़क योजना बन्द होने से दो सौ ग्रामीण सड़कें अधर में लटकी हुई हैं। क्या ग्रामीण इस स्थिति को भोग नहीं रहे हैं। इस परिदृश्य में हुए चुनावों में पार्टी को दो दर्जन बागियों का सामना करना पड़ा है। जिन सिद्धान्तों के नाम पर अन्य दलों से अपने को भिन्न होने का दावा करते थे इस चुनाव में उन सबकी बलि ले ली है और आम आदमी इस बात को समझ चुका है कि इनकी करनी और कथनी में कितना अन्तर है। कांग्रेस में तोड़फोड़ की नीति भी नामांकन भरे जाने तक ज्यादा कारगर सिद्ध नहीं हुई है। बल्कि कांग्रेस से भाजपा में गये नेताओं को भाजपाइयों का कितना सहयोग मिल पाया है इसका खुलासा पवन काजल के वायरल हुए पत्र से लग जाता है।
उज्जवला जैसी योजनाओं के लाभार्थियों की प्रदेश भर में हुई रैलीयों में जितनी परेड जगह-जगह करवाई गयी उसकी काट कांग्रेस ने महिलाओं को प्रतिमाह पन्द्रह सौ रुपए देने की जो गारन्टी दी है वह निश्चित तौर पर भाजपा की योजनाओं पर भारी पड़ी है। इसी कारण महिला मतदाताओं की संख्या करीब पांच प्रतिश्त पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा रही है। ओ.पी.एस. की बहाली की गारन्टी ने कर्मचारियों की बहूप्रतिक्षित मांग को पूरा किया है जबकि भाजपा इस अहम मुद्दे पर अन्त तक स्पष्ट नहीं हो पायी है। इस परिदृश्य में हुये रिकॉर्ड तोड़ मतदान को बदलाव का सीधा संकेत माना जा रहा है। बल्कि बदलाव के लिये इस मतदान को एक तरफ माना जा रहा है। आंकड़ों के गणित में यह माना जा रहा है कि कांग्रेस इसमें पचास सीटों पर जीत दर्ज कर सकती है। शिमला, सोलन, कुल्लू, बिलासपुर और ऊना में भाजपा को ज्यादा नुकसान होने का अनुमान है। भाजपा इस स्थिति से बाहर निकलने के लिये कांग्रेस के अन्दर बड़े स्तर पर तोड़फोड़ की रणनीति पर चल रही है और इसका संकेत अब निर्दलीयों के सर्वे का आंकड़ा उछाले जाने को माना जा रहा है। यह लग रहा है कि मीडिया के माध्यम से एक नयी पृष्ठभूमि तैयार की जा रही है। जबकि विश्लेषक इस चुनाव में निर्दलीयों को नहीं के बराबर मान रहे हैं।

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