Thursday, 18 September 2025
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निर्दलीयों का भविष्य और भाजपा की रणनीति सवालों में

  • नेता प्रतिपक्ष चुनावों के बाद भाजपा की सरकार बनने का दावा कर रहे हैं
  • मुख्यमंत्री बिकाऊ विधायकों के शीघ्र सलाखों के पीछे होने का दावा कर रहे
  • किसका दावा पहले पूरा होता है इस पर लगी निगाहें
  • इन दावों के बीच प्रदेश के मुद्दे हुए गायब

शिमला/शैल। निर्दलीय विधायकों के त्यागपत्र का मामला कानूनी चाल में फंसकर लटक गया है। सरकार और कांग्रेस यही चाहती थी की निर्दलीयों के उप चुनाव अभी न हो। इसमें कांग्रेस को सफलता मिल गयी है। लेकिन कांग्रेस की इस सफलता के साथ ही यह सवाल भी उठ गया है कि अब भाजपा का अगला कदम क्या होगा? क्योंकि इस सारे प्रकरण में राज्यसभा चुनाव में हुई क्रॉस वोटिंग से लेकर इन निर्दलीयों के त्यागपत्र तक भाजपा नेतृत्व की सक्रिय भूमिका रहना जग जाहिर हो चुका है। सामान्य राजनीतिक समझ वाला व्यक्ति भी यह प्रश्न कर रहा है की निर्दलीयों को त्यागपत्र देने और फिर भाजपा में शामिल होने की आवश्यकता ही कहां थी। बतौर निर्दलीय जब उन्होंने राज्यसभा के लिये भाजपा के पक्ष में वोट किया तो आगे भी वह भाजपा को समर्थन देना जारी रख सकते थे। क्योंकि भाजपा में त्यागपत्रों की स्वीकृति से पहले ही शामिल हो जाना निश्चित रूप से दल बदल के तहत आता है। फिर त्यागपत्र देते हुये नेता प्रतिपक्ष का उनके साथ रहना निश्चित रूप से उनकी स्वेच्छा पर प्रश्न चिन्ह लगाने का एक ठोस आधार बन जाता है।

इस परिपेक्ष में यह सवाल भी उठता है कि जब कांग्रेस अपने छः लोगों को क्रॉस वोटिंग करने के बाद निष्कासित करके उनकी रिक्तियों की सूचना तक चुनाव आयोग को भेज चुकी थी तब क्या निर्दलीयों के मामले में कोई भी कदम उठाते हुये सारे कानूनी पक्षों पर गंभीरता से विचार नहीं कर लिया जाना चाहिये था। इसी के साथ यह भी सवाल उठता है कि क्या निर्दलीयों के त्यागपत्रों का फैसला यहीं प्रदेश नेतृत्व के स्तर पर ही ले लिया गया। क्योंकि यदि यह फैसला केंद्रीय नेतृत्व की सलाह पर लिया गया है तो क्या वहां भी कानूनी संभावना पर किसी ने विचार नहीं किया। क्योंकि जो कुछ निर्दलीयों के साथ घटा है उसके बाद भाजपा के इन दावों की विश्वसनीयता पर स्वतः ही प्रश्न चिन्ह लग जाता है की चुनावों के बाद सरकार गिर जायेगी? इस समय कांग्रेस का भाजपा पर सबसे बड़ा आरोप ही यह है कि भाजपा धनबल के सहारे सरकार गिराना चाहती है। कांग्रेस सारा चुनाव इसी मुद्दे के गिर्द केंद्रित करने का प्रयास कर रही है। फिर निर्दलीयों के मामले पर भाजपा का कोई भी नेता कुछ भी नहीं बोल रहा है। ऐसी चुप्पी प्रदेश नेतृत्व में अपना रखी है कि जैसे निर्दलीयों के साथ उनका कोई रिश्ता ही न हो। वैसे भी भाजपा और कांग्रेस प्रदेश के मुद्दों पर चुप ही चल रहे हैं।
इस परिदृश्य में यह तय है कि चुनाव परिणाम के बाद बदली राजनीतिक परिस्थितियों में इन निर्दलीयों के लिये स्थितियां ज्यादा अनुकूल रहने वाली नहीं है। चुनाव परिणामों के बाद भाजपा की सरकार बनने के दावों को अमलीशक्ल देने के लिये कांग्रेस के अन्दर और सेन्धमारी करनी होगी। उस सेन्धमारी की भूमिका अभी बांधनी होगी। इस समय प्रदेश से केंद्र सरकार में एक ताकतवर मंत्री अनुराग सिंह ठाकुर हैं। इन्हीं के साथ भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा भी प्रदेश से ही ताल्लुक रखते हैं। संयोगवश अनुराग और नड्डा दोनों उसी हमीरपुर संसदीय क्षेत्र से हैं जिससे मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री आते हैं। यही संसदीय क्षेत्र कांग्रेस में हुये विद्रोह का केंद्र रहा है। कांग्रेस के चार निष्कासित और दो निर्दलीय इसी क्षेत्र से आते हैं। फिर इन सभी को भाजपा ने चुनावी उम्मीदवार भी बनाया है। इसलिये यह नहीं माना जा सकता कि कांग्रेस के जिस विद्रोह को धनबल से सरकार गिराने का प्रयास कहा जा रहा है उसकी पूरी जानकारी और सहमति इन दोनों भाजपा नेताओं को न रही हो। इस ऑपरेशन का मुख्य किरदार भले ही हर्ष महाजन रहे हों क्योंकि उन्ही को इसका पहला लाभ मिला है। लेकिन यह ऑपरेशन जिस ढंग से आधे में आकर रुक गया है उससे भाजपा के प्रदेश नेतृत्व से ज्यादा फजीहत केंद्रीय नेतृत्व की हुई है। क्योंकि एक राज्यसभा सीट के लिये यह सब कर दिया गया हो ऐसा नहीं लगता। निश्चित रूप से राज्य सरकार एजैण्डे पर रही होगी।
इसलिये जिस तरह की कानूनी चालों से निर्दलीयों का मामला लटकाया गया हो उसका जवाब देने के लिये भाजपा की ओर से किस तरह की रणनीति अपनाई जाती है यह देखना दिलचस्प होगा। क्योंकि ऊना में खनन माफिया एक अरसे से निशाने पर चल रहा है। कई प्रभावशाली लोगों के बेनामी टिप्पर चर्चा में हैं। अदालत के आदेशों से स्टोन क्रशर बन्द हुये हैं। बद्दी, बरोटीवाला, नालागढ़ क्षेत्र में स्क्रैप माफिया चर्चा में चल ही रहा है। कुछ अधिकारियों को लेकर पत्र बम्ब फूट ही चुके हैं। फिर मुख्यमंत्री बिकने वाले विधायकों के शीघ्र ही सलाखों के पीछे होने का हर जनसभा में दावा कर रहे हैं। मुख्यमंत्री का यह दावा भाजपा के लिये एक बड़ी ललकार माना जा रहा है। नेता प्रतिपक्ष सरकार बदलने के दावे कर रहे हैं। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा की किसके दावे में कितना दम निकलता है। विश्लेष्कों के मुताबिक इन्हीं चुनाव के बीच इन दावों को लेकर कुछ घटेगा।

क्या सुक्खू का आनन्द प्रयोग वांछित परिणाम दे पायेगा

  • आनन्द के लिये कांगड़ा और हमीरपुर एक जैसे हैं क्या हमीरपुर से उम्मीदवार होना ज्यादा सन्देशपूर्ण नहीं होता
  • उम्मीदवारों के चयन में लगे समय से भी यही सन्देश गया है कि आनन्द और रायजादा पहली पसन्द नहीं थे?

शिमला/शैल। कांग्रेस ने लम्बे मंथन के बाद कांगड़ा और हमीरपुर लोकसभा क्षेत्र के लिये अपने उम्मीदवार नामित किये हैं। कांगड़ा से पूर्व केंद्रीय मंत्री आनन्द शर्मा और हमीरपुर से ऊना के पूर्व विधायक सतपाल रायजादा को प्रत्याशी बनाया गया है। स्मरणीय है कि हमीरपुर से उपमुख्यमंत्री मुकेश अगिनहोत्री और उनकी बेटी आस्था अग्निहोत्री तथा कांगड़ा से विधायक आर.एस.बाली के नाम संभावित उम्मीदवारों के रूप में इतने चर्चित हुये की तीनों को रिकॉर्ड पर अपनी असमर्थता जाहिर करनी पड़ी। इस असमर्थता के बाद सतपाल रायजादा और आनन्द शर्मा के नाम सामने आये। इससे स्पष्ट हो जाता है कि यह नाम पार्टी की पहली पसन्द नहीं थे। हमीरपुर में कांग्रेस का मुकाबला वर्तमान केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर से है। अनुराग ठाकुर कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी के सबसे अधिक मुख्य आलोचक हैं और हमीरपुर से पांचवीं बार लोकसभा चुनाव लड़ने जा रहे हैं। हमीरपुर संसदीय क्षेत्र से ही मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री आते हैं। ऐसे में अनुराग ठाकुर को एक कड़ी चुनौती पेश करना कांग्रेस की राजनीतिक आवश्यकता मानी जा रही थी। लेकिन रायजादा यह चुनौती पेश कर पाएंगे इसमें संदेह माना जा रहा है। क्योंकि सुक्खू सरकार के अब तक के कार्यकाल में सरकार के किसी भी मंत्री और संगठन के पदाधिकारी ने प्रधानमंत्री तो दूर अनुराग ठाकुर तक से कभी कोई कठिन सवाल नहीं उठाया है। बल्कि कांग्रेस की इसी कार्यशैली के कारण हमीरपुर के चुनाव को कुछ क्षेत्रों में मैच फिक्सिंग की संज्ञा भी दी जाने लगी है।
इसी के साथ कांगड़ा से आनन्द शर्मा की उम्मीदवारी को लेकर भी कई सवाल उठने लग पड़े हैं। क्योंकि आनन्द शर्मा 1982 के बाद प्रदेश की चुनावी राजनीति में पहली बार कदम रख रहे हैं। आनन्द शर्मा के खिलाफ 1982 में ही हरियाणवी होने का सवाल उठा था। आनन्द शर्मा लम्बे अरसे तक राज्यसभा सदस्य रहे हैं। हिमाचल और राजस्थान से दो-दो बार राज्यसभा में नामित हो चुके हैं। केंद्र में बतौर मंत्री बहुत सफल रहे हैं। इसी सफलता के कारण वह गांधी परिवार के अति विश्वसतांे में गिने जाते रहे हैं। इसी विश्वसत्ता के कारण हिमाचल की राजनीति को भी प्रभावित करते रहे हैं। मुख्यमंत्री सुक्खू उन्हीं के आशीर्वाद से कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष तक पहुंचे थे। आनन्द शर्मा ने अपनी सांसद निधि से सुक्खू और विप्लव ठाकुर के चुनाव क्षेत्र में भी सहयोग किया है। हालांकि मुंबई में अंबानी के कैंसर इंस्टिटयूट को सांसद निधि देने पर सवाल भी झेल चुके हैं।
शायद इसी पृष्ठभूमि के चलते वह कांग्रेस के जी-23 समूह के बड़े नाम हो गये थे। अभी जब प्रदेश की राज्यसभा सीट के लिये उम्मीदवार तय होने की कसरत चल रही थी तब आनन्द शर्मा ने बड़ी बेबाकी से कांग्रेस के जाति जनगणना के प्रस्ताव पर गंभीर सवाल उठाते हुये हाईकमान को पत्र लिख दिया था। प्रदेश कांग्रेस की कई महत्वपूर्ण बैठकों से नदारद भी रहे हैं। यहां तक चर्चाएं आ गयी थी कि वह अब गांधी परिवार के विश्वस्तों की सूची से बाहर हो गये हैं। समरणीय है कि जब जी-23 समूह की चर्चा उठी थी तब उसमें एक नाम ठाकुर कॉल सिंह का भी सामने आया था। तब कॉल सिंह ने रिकॉर्ड पर यह कहा था कि उनसे किसी और प्रस्ताव के नाम पर दस्तखत करवाये गये थे। लेकिन उनका प्रयोग किसी और संद्धर्भ में कर लिया गया। कॉल सिंह के स्टैंड के बाद हिमाचल से किसी भी अन्य नेता का नाम जी-23 में शामिल नहीं हो पाया। इस कारण आनन्द शर्मा की जी-23 में भी सक्रियता आगे नहीं बढ़ पायी और वह एक तरह से तटस्थता की भूमिका में चले गये।
अब जब राज्यसभा चुनाव में सरकार को अप्रत्याशित हार का सामना करना पड़ा और तब शायद कांग्रेस हाईकमान को प्रदेश के बारे में अपना आकलन बदलना पड़ा। इसका संकेत पर्यवेक्षकों ने भी यह कह कर दे दिया था की नेतृत्व के प्रश्न पर चुनावों के बाद चर्चा होगी। उच्चस्थ सूत्रों के मुताबिक हाईकमान इस सवाल का जवाब अभी तक तलाश नहीं पाया है कि कांग्रेस में हुये विद्रोह का केंद्र हमीरपुर और ऊना ही क्यों बने हैं? इसी वस्तुस्थिति में हाईकमान में प्रतिभा सिंह और विक्रमादित्य सिंह को चुनाव लड़ने के लिए तैयार किया। इसी परिदृश्य में प्रदेश के सारे चुनाव की पूरी जिम्मेदारी मुख्यमंत्री पर छोड़ दी गयी थी। उम्मीदवारों का चयन और उनकी चुनावी जीत सुनिश्चित करना मुख्यमंत्री और उनके मित्रों की जिम्मेदारी हो गयी है। इसी परिप्रेक्ष में यदि आनन्द शर्मा की कांगड़ा से उम्मीदवारी का आकलन किया जाये तो स्पष्ट हो जाता है कि यह चयन मुख्यमंत्री का व्यक्तिगत फैसला रहा है। क्योंकि यदि आनन्द शर्मा हाईकमान की पसन्द होते तो उन्हें हिमाचल में भी अनुराग ठाकुर के मुकाबले हमीरपुर से उम्मीदवार बनाया जाता। आनन्द के लिये कांगड़ा और हमीरपुर दोनों एक जैसे ही हैं। हमीरपुर से उम्मीदवार बनने से यह सन्देश जाता कि कांग्रेस ईमानदारी से अनुराग को रोकना चाहती है। लेकिन यह सन्देश कांग्रेस दे नहीं पायी है।
इस समय आनन्द शर्मा राज्यसभा में नामित न हो पाने के कारण राजनीतिक हाशिये पर जा पहुंचे हैं। इसीलिये गगल हवाई अडडे पर उनके स्वागत के लिये कोई ज्यादा भीड़ नहीं हो पायी और न ही चम्बा के नेता आ पाये। कांगड़ा का नेतृत्व आनन्द को कितना सहयोग दे पायेगा यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। क्योंकि जब सुधीर शर्मा ने बैजनाथ से धर्मशाला शिफ्ट किया था तब उनके खिलाफ भी बाहरी होने का आरोप लग गया था। आनन्द तो हरियाणा और फिर शिमला से बंधे हैं। यही नहीं राज्यसभा सांसद रहते हुये वह किसी एक स्थान से बन्ध ही नहीं सकते। लेकिन लोकसभा के लिये इस तर्क से नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी तो छूट सकते हैं परन्तु आनन्द शर्मा नहीं। इसलिये यही माना जा रहा है की सुक्खू ने आनन्द को फिर से गांधी परिवार में स्थापित करने के लिये यह प्रयोग किया है।

क्या विधायकों की कथित खरीद फरोख्त का कोई साक्ष्य सार्वजनिक हो पायेगा

  • क्या बागियों के सवालों का कोई जवाब आ पायेगा
  • क्या नादौन में विलेज कामनलैण्ड खरीद बेच हो रही है?
  • कांग्रेस द्वारा विधानसभा चुनाव में जारी चार्जशीट पर कारवाई कब होगी

शिमला/शैल। प्रदेश सरकार की स्थिरता विधानसभा उपचुनाव के परिणामों पर निर्भर करेगी। यह विधानसभा में विभिन्न दलों के सदस्य आंकड़ों से स्पष्ट हो जाता है। इसलिये सत्तारूढ़ कांग्रेस छः उपचुनावों में से एक सीट जीतकर भी सुरक्षित हो जाती है। इस स्थिति को बनाये रखने के लिये ही शायद निर्दलीय विधायकों के मामले को लम्बा किया जा रहा है। यही तर्क और गणित मुख्य संसदीय सचिवों के मामले में अपनाया जा रहा है। उपचुनाव में एक सीट भी जीत जाने के लिये इस उप चुनाव का मुख्य मुद्दा छः विधायकों द्वारा राज्य सभा में क्रॉस वोटिंग करने के बाद भाजपा में शामिल होने को बनाया जा रहा है। इस दल बदल को इन विधायकों द्वारा पन्द्रह-पन्द्रह करोड़ में बिकने का आरोप लगाया जा रहा है। भाजपा पर यह आरोप लगाया जा रहा है कि वह धनबल के सहारे कांग्रेस की सरकार को गिराना चाहती है। इस आरोप को प्रमाणित करने के लिये पुलिस में भी मामला दर्ज करवाया गया है। लेकिन अभी तक पन्द्रह-पन्द्रह करोड़ के लेनदेन का कोई भी ठोस साक्ष्य जनता के सामने नहीं रखा गया है। जबकि इस लेन-देन के आरोप को लेकर मुख्यमंत्री के खिलाफ भी सुधीर शर्मा और राजेंद्र राणा ने विधिवत शिकायतें दर्ज करवा रखी हैं। ऐसा माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री इस कथित लेनदेन को चुनाव का मुख्य मुद्दा बनाना चाहते हैं। यदि इस कथित लेनदेन का कोई भी साक्ष्य चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री सार्वजनिक कर पाये तो निश्चित रूप से यह आरोप बागियों के साथ चिपक जायेगा। यदि ऐसा न हो पाया तो सरकार और मुख्यमंत्री दोनों का ही नुकसान होना तय है। क्योंकि इस चुनाव में जनता उसे दंडित करना चाहेगी जो इस स्थिति के लिये सही में जिम्मेदार है। समरणीय है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्षा लम्बे अरसे से यह शिकायत करती रही है कि वरिष्ठ कार्यकर्ता की अनदेखी हो रही है। यह शिकायत हाईकमान तक भी पहुंची और हाईकमान ने सरकार के सुचारू संचालन के लिये एक कमेटी का गठन भी कर दिया। लेकिन इस कमेटी के सदस्य कॉल सिंह ठाकुर और रामलाल ठाकुर के यह ब्यान भी रिकॉर्ड पर है कि इस कमेटी की कोई बैठक तक नहीं हुई है। इन लोगों से राय तक नहीं ली गयी है। कार्यकर्ताओं की अनदेखी का आरोप अंत तक चलता रहा। कांग्रेस अध्यक्षा को यहां तक कहना पड़ा कि कार्यकर्ता बाहर प्रचार के लिये निकलने को तैयार नहीं है। इसी वस्तुस्थिति में चुनाव लड़ने से इन्कार कर दिया। अभी वरिष्ठ मंत्री चंद्र कुमार का जो ब्यान वायरल होकर सामने आया है उसने वर्तमान संकट के लिये मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री दोनों को बराबर का जिम्मेदार ठहराया है। इसी परिदृश्य में जो प्रश्न सुधीर शर्मा और राजेंद्र राणा ने मुख्यमंत्री से सार्वजनिक रूप से पूछे हैं उनका कोई जवाब मुख्यमंत्री की ओर से नहीं आया है। जबकि आने वाले दिनों में और जोर से यह सवाल पूछे जाएंगे। मुख्यमंत्री ने दावा किया है कि खनन माफिया, भू माफिया और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं। लेकिन इस दावे के बाद यह सवाल उछला है कि मुख्यमंत्री के अपने ही गांव के पास स्थित स्टोन क्रेशर को अदालत के आदेशों से वहां से हटाने की नौबत क्यों आयी। मुख्यमंत्री के ही चुनाव क्षेत्र में राजा नादौन की एक लाख कनाल से ज्यादा अदालत द्वारा विलेज कामन लैण्ड घोषित जमीन की खरीद फरोखत क्यों हो रही है। इसी जमीन से लैण्ड सीलिंग सीमा से भी अधिक की खरीद बेच कैसे हो गयी? कांग्रेस द्वारा विधानसभा चुनाव के दौरान जारी की गयी चार्जशीट पर अब तक कोई कारवाई क्यों नहीं हो पायी।

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