शिमला/शैल। पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर लगातार हर मंच से यह दावा कर रहे हैं कि इन चुनावों के बाद सुक्खू सरकार गिर जायेगी और भाजपा की सरकार बन जायेगी। यह सब किस गणित से संभव होगा इसका खुलासा नहीं किया जा रहा है। क्योंकि वर्तमान में यदि भाजपा छः के छः उपचुनाव भी जीत जाये तो भी उनकी संख्या 31 ही होती है और इससे वह बहुमत में नहीं आते। इसलिए जयराम का सरकार गिरने का दावा एक पहेली बनकर रह जाता है। संभव है कि भाजपा किसी और योजना पर भी काम कर रही हो जयराम के इन दावों का इतना असर अवश्य हुआ है कि भाजपा के जिन विधायकों के खिलाफ विशेषाधिकार हनन के तहत निष्कासन तक की स्थिति पहुंच गई थी उस अध्याय पर फिलहाल विराम लग गया है। सुक्खू सरकार विधानसभा पटल पर बजट पारण के दौरान ही गिर जाती यदि भाजपा के पन्द्रह विधायकों को सस्पेंड न कर दिया जाता। सुक्खू सरकार को सदन में गिरने से बचने का श्रेय नेता प्रतिपक्ष जयराम को ही दिया जा रहा है। लेकिन जयराम इस विषय पर खामोश हैं
इस चुनाव के मुद्दे क्या होंगे? क्या उन मुद्दों पर जन बहस हो पायेगी? क्या कांग्रेस के बागियों द्वारा उठाये गये सवाल आधारहीन है? ऐसे बहुत से मुद्दों पर जन बहस का वातावरण क्यों नहीं बन पा रहा है? कांग्रेस की सरकार ने आते ही भाजपा पर वित्तीय कुप्रबंधन का आरोप लगाया था। इस आरोप को प्रमाणित करने के लिए सरकार श्वेत पत्र लेकर भी आयी। श्वेत पत्र का जवाब देने के लिए भाजपा अध्यक्ष डॉ. बिंदल आरटीआई के माध्यम से सुक्खू सरकार द्वारा लिये गये कर्ज की जानकारी लेकर आये। यह सामने आ गया कि इस सरकार ने चौदह माह में चौदह हजार करोड़ का कर्ज ले लिया है। यह कर्ज कहां खर्च हुआ इस पर चुनाव के दौरान खंलासे और जवाब सामने आने चाहिए थे। लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है। यहां तक की भाजपा में शामिल हुये कांग्रेस के बागियों द्वारा उठाये गये सवालों को भी भाजपा नेतृत्व आगे नहीं बढ़ा रहा है। क्या नेता प्रतिपक्ष बागियों द्वारा पूछे जा रहे सवालों से सहमत नहीं है?
सरकार द्वारा प्रतिमाह औसतन एक हजार करोड़ का कर्ज लेना एक बड़ा मुद्दा है क्योंकि इसका भार प्रदेश के हर आदमी पर पढ़ रहा है। आम आदमी को यह जानने का हक है कि यह पैसा खर्च कहां हो रहा है। राजेंद्र राणा ने शिमला को 24 घंटे पानी आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए विश्व बैंक द्वारा 460 करोड़ की स्वीकृत डीपीआर का ठेका 860 करोड़ में कैसे पहुंच गया? शिमला की जनता पर इतना कर्ज बोझ क्यों डाल दिया गया? सुधीर शर्मा ने बिजली की खरीद बेच का काम बिजली बोर्ड के बजाये निदेशक बिजली के माध्यम से एक प्राइवेट आदमी को क्यों दे दिया। इसका प्रदेश की वित्तीय स्थिति पर कितना प्रभाव पड़ेगा? सुधीर शर्मा ने यह भी खुलासा सामने रखा कि इस सरकार ने सत्ता संभालते ही विभागों के पास पड़े पैसे को सरकार में वापस मांग लिया। इस कारण से विभागों में देनदारियां खड़ी हो गयी। बागियों द्वारा उठाये गये यह सवाल न केवल गंभीर हैं बल्कि प्रदेश पर दूरगामी प्रभाव डालने वाले हैं। आज चुनाव के समय में इन सवालों को सार्वजनिक बहस का मुद्दा बनाना नेता प्रतिपक्ष और पूरी भाजपा का है। लेकिन इन सवालों को भाजपा नेतृत्व द्वारा आगे न बढ़ाया जाना कई तरह की नई आशंकाओं को जन्म दे रहा है। ऐसा लग रहा है कि इस चुनाव को विधायकों के बिकने, दोषीयो को जेल की सलाखों में डालने, बिकाऊओं को हराने और सरकार गिराने के जुमलों तक ही बंाधकर रखने की योजना पर काम हो रहा है। विश्लेषकों का मानना है कि कांगड़ा और हमीरपुर के टिकट आवंटन कांग्रेस द्वारा की जा रही देरी भी एक बड़ी योजना का हिस्सा हैै।