शिमला/शैल। प्रदेश में पिछले वर्ष आयी आपदा ने जिस तरह का जान माल का नुकसान पहुंचाया है उससे प्रदेश का हर आदमी एक स्थायी भय का शिकार हो गया है। सरकार को इस आपदा से प्रभावितों के लिये 4500 करोड़ का राहत पैकेज जारी करना पड़ा है। लेकिन क्या सरकार की नीतियों और योजनाओं पर इस आपदा का कोई प्रभाव पड़ा है। यह सवाल सुप्रीम कोर्ट कि पर्यावरण को लेकर गठित मॉनिटरिंग कमेटी के पूर्व अध्यक्ष सेवानिवृत्ति आईएफएस अधिकारी वी.पी.मोहन द्वारा उठाये गये कुछ मुद्दों के बाद उठा है। शिमला पर्यावरण की दृष्टि से सत्रह हरित खण्डों में विभाजित है और इन खण्डों में निर्माणों के लिये बड़े-बड़े नियम है। यहां पर बहुमंजिला निर्माण नहीं हो सकते। लेकिन शिमला की ग्रीन बैलट छः में एक सात मंजिला भवन की तस्वीरें मीडिया को जारी करते हुये वी.पी.मोहन ने सवाल उछाला की ग्रीन बेल्ट में यह भवन किन नियमों के तहत बना है। यह भवन प्रदेश के मुख्यमंत्री का है और उन्होंने अपने चुनावी शपथ पत्र में दिखाया भी है। फिर मुख्यमंत्री तो स्वयं भी एक समय नगर निगम शिमला के पार्षद रह चुके हैं। इस भवन की तस्वीरें जारी करके वी.पी.मोहन ने यह प्रमाणित किया है कि नियमों कानूनों को किस स्तर पर अंगूठा दिखाया जा रहा है और ऐसे शिमला कैसे बच पायेगा?
वी.पी.मोहन ने शिमला की डेवलपमेन्ट प्लान को शिमला के विनाश की योजना बताया क्योंकि जिस दिन से यह योजना लागू हुई है उसी दिन से शिमला की हरित पट्टियों में निर्माण कार्य शुरू हो गये हैं। जबकि एन.जी.टी. के 2017 के फैसले से हरित पट्टियों में निर्माण पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था। एन.जी.टी. के फैसले से लोगों को तकलीफ हो गयी क्योंकि यहां पर हर कोई बिल्डर है। नेता नौकरशाह सभी यहां पर अवैध निर्माण कर भवन बनाना चाहते हैं क्योंकि यह पर्यटन नगरी है। उन्होंने सवाल उठाया की सरकार ने आठ और हरित पट्टियां बनाने की बात की है। लेकिन जब पहले ही सत्रह हरित पट्टियों में निर्माणों की अनुभूति दे दी गयी है तब इन आठ नयी पट्टियों से क्या लाभ होगा। शिमला को बचाने के लिये यहां के देवदारों को सुरक्षित रखना आवश्यक है। यह दावा किया जा रहा है। दो सौ सुखे देवदारों को कटवा दिया गया है लेकिन यह नहीं बताया गया कि यह पेड़ सुखे कैसे थे। वी.पी. मोहन ने शिमला डेवलपमेन्ट प्लान को निश्चित योजना के तहत तैयार करवाये जाने का आरोप लगाया ताकि नये निर्माणों का रास्ता खुल जाये। उन्होंने आरोप लगाया है कि यह विकास प्लान गुजरात की एक कन्सलटैन्ट कंपनी को करोड़ों की फीस देकर तैयार करवाया गया लेकिन प्लान तैयार करने वाले यह भूल गये की मैदान और पहाड़ में विकास के मानक अलग-अलग होते हैं। शिमला को लेकर उठायी गयी इन चिन्ताओं पर न तो कांग्रेस और न ही भाजपा की ओर से कोई प्रतिक्रियायें आयी हैं। जबकि मुख्यमंत्री के अपने निर्माण की तस्वीरें जारी की गयी हैं। कांग्रेस और भाजपा दोनों की ही सरकारों में रिटैन्शन पॉलिसियां लायी गयी तथा अवैधताओं को जारी रखवाया गया। शायद इसी कड़वे सच के कारण दोनों प्रमुख दल खामोश हैं।