शिमला/शैल। राज्यसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में मतदान करने के कारण दल बदल कानून के तहत सदन की सदस्यता खो चुके कांग्रेस के छः विधायक विधानसभा अध्यक्ष के फैसले की न्यायिक समीक्षा के लिये सर्वोच्च न्यायालय में पहुंच चुके हैं। 241 पन्नों की याचिका में अध्यक्ष के फैसले के खिलाफ न्यायिक समीक्षा हेतु संलगन किये गये दस्तावेजों में पहले ही दस्तावेज सचेतक परिपत्र हैं यह परिपत्र कौन सी तारीख को जारी किया गया यह परिपत्र में स्पष्ट नहीं है। क्योंकि इस पर तारीख का जिक्र ही नहीं है। जबकि इन विधायकों के खिलाफ की गयी कारवाई में आरोप ही यह है कि इन्होंने सचेतक परिपत्र की उल्लघंना की है। यदि सचेतक परिपत्र पर कोई तारीख ही अंकित नहीं है तो उसकी प्रमाणिकता स्वतः ही संदिग्ध हो जाती है। फिर 27-28 की रात को 12ः35 पर निष्कासन का नोटिस भेज कर 28 को सुनवायी करके फैसला देने की शीघ्रता भी न्यायिक समझ में संदेह के घेरे में आ जाती है। इस वस्तुस्थिति में यह माना जा रहा है की इन विधायकों का निष्कासन न्यायिक समीक्षा की कसौटी पर ठहर नहीं पायेगा यह माना जा रहा है।
अभी न्यायिक समीक्षा का परिणाम आने से पहले ही कांग्रेस के निष्कासित चैतन्य शर्मा के पिता उत्तराखण्ड से सेवानिवृत मुख्य सचिव राकेश शर्मा और हमीरपुर के निर्दलीय विधायक आशीष शर्मा एवं अन्य के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत भ्रष्टाचार किये जाने की एफ.आई.आर. शिमला के थाना बालूगंज में करवायी गयी है। आरोप है कि राज्यसभा चुनाव में पैसे का लेनदेन हुआ है। स्मरणीय है कि भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम जुलाई 2018 में हुये संशोधन के बाद भ्रष्टाचार होने की सूचना सात दिनों के भीतर देना अनिवार्य है। इस संशोधन के बाद रिश्वत देना भी अपराध है और इसके लिये सात वर्ष की कैद का भी प्रावधान है। वर्तमान मामले में यह शिकायत 10 मार्च को आयी है जबकि राज्यसभा की वोटिंग 27 फरवरी को हो गयी थी। तो क्या पैसे के लेन देन 27 के बाद हुआ है? यदि इस लेन देन की शिकायतकर्ताओं के पास पुख्ता जानकारी थी तो इसमें छापा मारकर रिकवरी क्यों नहीं करवाई गयी? कानून के जानकारों के मुताबिक यह मामला बनता नहीं है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि सरकार इस तरह के हाथकण्डां पर क्यों आ गयी है। यदि निष्कासित विधायकों को सर्वोच्च न्यायालय से राहत मिल जाती है तो उनकी सदस्यता बरकरार रहती है। वह कांग्रेस के सदस्य बने रहते हैं। लेकिन क्या इस एफ.आई.आर. के बाद भी वह सुक्खू को मुख्यमंत्री स्वीकार कर लेंगे शायद नहीं। यदि सर्वोच्च न्यायालय से राहत नही मिलती है तो इन छः स्थानों पर नये चुनाव होंगे। यह चुनाव लोकसभा के साथ ही हो जायेंगे और इनमें कांग्रेस कोई सीट जीत पायेगी यह संभव नहीं लगता। क्योंकि लोकसभा चुनावों और विधानसभा के इन चुनावों में सरकार द्वारा इस दौरान लिये गये फैसलों की व्यवहारिकता फिर जनचर्चा में आयेगी। महिलाओं को जो 1500 रूपये देने का फैसला लिया गया है और जो फॉर्म आवेदिका को भरना है उसके अनुसार लाभार्थी होने वालों का आकड़ा नगण्य होगा। बल्कि यह फॉर्म सामने आने पर और नुकसान होने की संभावना होगी। कर्मचारियों के संद्धर्भ में जारी की गयी अधिसूचना वापस लेनी पड़ी है उससे सरकार की नीयत और वित्तीय स्थिति दोनों का पता चलता है।
दूसरी और यदि यह सारा खेल भाजपा के ऑपरेशन लोटस का परिणाम है तो निश्चित है कि इसके लिये मुख्यमंत्री के निकट बैठे सलाहकार महत्वपूर्ण भूमिका निभाकर भाजपा को सहयोग दे रहे हैं। क्योंकि इस एफ.आई.आर.के बाद दोनों पक्षों में समझौते की कोई संभावना नहीं रह जाती है। पैसे के कथित लेनदेन के लिये जांच भाजपा नेताओं तक भी पहुंचेगी। भाजपा तक जांच पहुंचते ही केंद्रीय एजैन्सीयां सक्रिय हो जायेंगी। प्रदेश में भ्रष्टाचार को लेकर अधिकारियों के खिलाफ पत्र बम पहले ही रिकॉर्ड पर आ चुके हैं। उनकी जांच केंद्रीय एजैन्सीयों से करवाने की चुनौतियां पहले ही दी जा चुकी हैंं। ऐसे में इस एफ.आई.आर. के बाद केंद्रीय एजैन्सीयों को प्रदेश में आने का का न्योता सिद्ध होगी यह तय है और इसके परिणाम भयानक होंगे। क्योंकि अब आरोप-प्रत्यारोप व्यक्तिगत स्तर पर आ जायेंगे। उद्योग क्षेत्र बी.बी.एन को लेकर तो एक समय उद्योग मंत्रा भी बहुत कुछ कह चुके हैं। फार्माउद्योग लम्बे अरसे से आरोपों के घेरे में चल रहा है। यह सब इस आग में घी का काम करेगा जिसमें कई चेहरे झुलसेंगे।