Friday, 19 September 2025
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आनन्द शर्मा द्वारा सांसद निधि मुबई में देना आया सवालों में

 

 

शिमला/शैल। राज्यसभा सांसद और पूर्व केन्द्रिय मन्त्री आनन्द शर्मा न केवल प्रदेश के ही बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं। राज्यसभा में वह पार्टी के उपनेता भी हैं। हिमाचल कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप राठौर उनके विशेष विश्वस्त माने जाते हैं। बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि राठौर को बनवाने में उनका ही सबसे बड़ा हाथ रहा है। अपनी वरिष्ठता के नाते ही वह लोकसभा चुनावों में वह प्रदेश में पार्टी के स्टार प्रचारक थे। स्टार प्रचारक के साथ-साथ मीडिया को लेकर भी उनके पास बड़ी जिम्मेदारी थी। लेकिन यह सब होते हुए भी वह पार्टी को प्रदेश में कोई सफलता नही दिला पाये हैं। अब जब पार्टी को हार का समाना करना पड़ा है तब प्रदेश के सारे वरिष्ठ नेताओं की अब तक की प्रदेश के प्रति कारगुजारी और कार्यशैली पार्टी के कार्यकर्ताओं में चर्चा का विषय बनी हुई है। स्मरणीय है कि आनन्द शर्मा केन्द्र में वरिष्ठ मन्त्री रहे हैं लेकिन इस मन्त्री होने से प्रदेश को एक स्थायी पासपोर्ट कार्यालय के अतिरिक्त वह और कुछ बड़ा प्रदेश को नही दे पाये हैं।
राज्यसभा सांसद के नाते सांसद निधि के संद्धर्भ में पूरा प्रदेश उनका अधिकार क्षेत्र हो जाता है। वह प्रदेश के किसी भी कोने में सांसद निधि से पैसा दे सकते हैं। सांसद निधि किस तरह के कार्यों पर खर्च की जा सकती है इसके लिये वाकायदा नियम बने हुए हैं। किसी प्राकृतिक आपदा में राज्य सभा सांसद प्रदेश से बाहर भी पैसा दे सकता है लेकिन सामान्य स्थितियों में नही। आनन्द शर्मा ने 2017 में अपनी सांसद निधि में से नवीं मुबंई के एक न्यरोजन ब्रेन एण्ड स्पाईन इन्स्टिच्यूट को 23,56,653 रूपये दिये हैं। जबकि इसी दौरान जिला शिमला में 30 कार्यों के लिये 38,70,000/- रूपये आबंटित किये हैं लेकिन इस आंबटन में से मार्च 2019 तक 11,90,000/- रूपये राशी अभी भी जारी नही हुई है। स्वभाविक है कि जब प्रदेश के कार्यों के लिये अब तक पूरी राशी जारी न हो सकी हो तो यह चर्चा का विषय बनेगी ही क्योंकि मुबंई के इस संस्थान के लिये सारी राशी एकमुश्त जारी हो गयी है। इसी के साथ यह भी चर्चा है कि शायद मुबंई का यह संस्थान सरकार का न होकर रिलायंस का है। जबकि नियमों के मुताबिक किसी प्राईवेट संस्थान को इस निधि से आबंटन नही किया जा सकता। फिर इस प्राईवेट संस्थान ने इस पैसे से लिफ्ट का निर्माण किया है। यह पैसा जिलाधीश शिमला के कार्यालय के माध्यम से गया है ऐसे में यह जिलाधीश की भी जिम्मेदारी हो जाती है कि वह पैसा रिलीज करने से पहले यह सुनिश्चित करे की संस्थान सरकारी है या प्राईवेट। जिलाधीश शिमला के कार्यालय में इसको लेकर कोई जानकरी ही उपलब्ध नही है। स्वभाविक है कि जब पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की कारगुजारी इस तरह की रहेगी तो उसका जनता और कार्यकर्ताओं पर प्रतिकूल प्रभाव ही पड़ेगा।

 

 

क्या अदाणी पावर को 280 करोड़ लौटाने की फाईल गुम है?

शिमला/शैल। अदाणी पावर ने 280 करोड़ वापिस लेने के लिये प्रदेश उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर रखी है। इस याचिका पर अब तक हुई सुनवाई में सरकार के महाधिवक्ता ने उच्च न्यायालय से यह कहकर टाईम लिया था कि सरकार इस मामले पर फैसला लेने के लिये इसे मन्त्री परिषद की बैठक में ले जायेगी। लेकिन चुनावी आचार संहिता लागू होने के चलते अभी ऐसा नही कर पायी है। इस पर उच्च न्यायालय ने सरकार को समय देते हुए 19 जून को इसकी सुवनाई रखी है। मुख्यमन्त्री अपने विदेश दौरे से 17 को वापिस आयेंगे। ऐसे में क्या 18 जून को मन्त्री परिषद की बैठक हो पाती है या इसमें एक बार फिर अदालत से और समय दिये जाने की गुहार लगायी जाती है यह अभी साफ नही है। इस मामले को मन्त्री परिषद में ले जाया जायेगा अदालत में यह ब्यान 26 अप्रैल को महाधिवक्ता का है। लेकिन महाधिवक्ता के इस ब्यान का संज्ञान लेते हुए प्रधान सचिव पावर प्रबोध सक्सेना ने 27 अप्रैल को ही फाईल पर यह सवाल उठा दिया था कि महाधिवक्ता को अदालत में ऐसा आश्वासन देने के जब उन्होंने निर्देश नही दिये थे तब ऐसा किसके निर्देश पर हुआ और इसी के साथ फाईल मुख्यमन्त्री को भेज दी थी। लेकिन सूत्रों के मुताबिक यह फाईल अभी तक मुख्यमन्त्री के कार्यालय से वापिस प्रधान सचिव सक्सेना के यहां नही पहुंची है।
 स्मरणीय है कि अदाणी पावर जो 280 करोड़ सरकार से वापिस मांग रहा है उस पर कानूनन उसका कोई हक नही है क्योंकि जिस जंगी थोपन पवारी परियोजना के अपफ्रन्ट प्रिमियम के तौर पर अदाणी ने यह पैसा जमा करवाया था उसमें अधिकारिक तौर पर अदाणी का कोई लेना देना ही नही है। क्योंकि यह परियोजना नीदरलैण्ड की कंपनी ब्रकेल कारपोरेशन एनबी को आवंटित हुई थी। इसकी निविदाओं में अदाणी शामिल ही नही था और न ही ब्रेकल का कोई हिस्सेदार था। निविदाओं में रिलांयस दूसरे स्थान पर था। जब ब्रेकल इसमें समय पर 260 करोड़ का अपफ्रन्ट प्रिमियम जमा नही करवा पाया था। तब इस पर रिलांयस ने एतराज उठाया और मामला सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचा दिया। सर्वोच्च न्यायालय में भी सरकार ने अपना पक्ष रखते हुय कहा है कि उसने ब्रेकल को इसमें हुए 2700 करोड़ के नुकसान की भरपाई करने तक का नोटिस दे रखा है। सरकार के इस स्टैण्ड के बाद सरकार, ब्रेकल और रिलायंस के बीच कुछ पका तथा मामला वापिस ले लिया गया। अदाणी ने ब्रेकल की ओर से 280 करोड़ जमा करवा दिये क्योंकि ब्रेकल को 20 करोड़ का जुर्माना भी लग गया था।
जब रिलायंस ने ब्रेकल द्वारा अपफ्रन्ट प्रिमियम जमा न करवाने पर एतराज उठाया और अपना हक जताया तब सरकार ने ब्रेकल के दस्तावेजों की जांच की। इस जांच में ब्रेकल पर गलत ब्यानी करने का आरोप लगा और उसके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करवाने की संस्तुति की गयी। लेकिन यह मामला आज तक दर्ज नही हुआ। लेकिन इसी दौरान जब 2014 में केन्द्र में सरकार बदल गयी और वीरभद्र के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मामला गंभीर हो गया तब ब्रेकल प्रकरण पर सरकार की राय बदल गयी। तब 2015 में वीरभद्र सरकार ने अदाणी को यह 280 करोड़ देने का फैसला ले लिया। उस दौरान वीरभद्र के एक अतिविश्वस्त नौकरशाह और अदाणी के लोगों के बीच काफी वार्ताएं होने की चर्चा भी उठी थी। यहां तक कहा गया था कि सरकार अदाणी के यह 280 करोड़ वापिस देगी और बदले में अदाणी वीरभद्र की मद्द करेंगे क्योंकि वह प्रधानमन्त्री मोदी के विश्वस्त हैं। इन चर्चाओं का परिणाम तब सामने भी आ गया जब 26 अक्तूबर 2017 को वीरभद्र सरकार के तत्कालीन विशेष सचिव पावर और अतिरिक्ति मुख्य सचिव पावर के बीच चर्चा होने के बाद सरकार की ओर अदाणी को पत्र भेजकर सूचित कर दिया कि सरकार ने उसके 280 करोड़ वापिस करने का फैसला ले लिया है। सरकार का यह फैसला तब मीडिया की चर्चा का विषय भी बना था तब इस चर्चा के बाद फिर फैसला बदल दिया गया और 7 दिसम्बर 2017 को नये विशेष सचिव पावर के यहां से अदाणी को पत्र चला गया कि सरकार ने 2015 का फैसला रद्द कर दिया है और अक्तूबर में लिखा पत्रा वापिस समझा जाये।
अब सरकार बदलने के एक वर्ष बाद अदाणी फिर उच्च न्यायालय पहुंच गये हैं और 18% ब्याज सहित 28  करोड़ वापिस दिये जाने की मांग की याचिका दायर कर दी है। लेकिन जयराम सरकार ने दिसम्बर 2017 के फैसले के आधार पर इस याचिका को डिसमिस करने का आग्रह करने की बजाये इस मामले को मन्त्री परिषद में ले जाने का आश्वासन दे रखा है। कायदे से तो इस सरकार को इसमें आपराधिक मामला दर्ज करके जांच करवानी चाहिये थी। क्योंकि प्रदेश को हजारों करोड़ का नुकसान हो चुका है और सरकार ने स्वयं इस नुकसान का आाकलन किया है। लेकिन अब इस सरकार की नीयत भी सन्देह के घेरे में आ गयी है। इसमें सबसे रोचक तो यह हो गया है कि प्रधान सचिव पावर सक्सेना ने महाधिवक्ता के ब्यान पर सवालिया निशान लगाते हुए फाईल मुख्यमन्त्री को भेज दी जहां से यह अब तक वापिस नही आयी है और आशंका व्यक्त की जा रही है कि कहीं फाईल गुम तो नही हो गयी है।

20 लाख ईवीएम गायब होने का मामला हुआ गंभीर

शिमला/शैल। इस बार के लोकसभा चुनावों में जिस बढ़त से भाजपा प्रत्याशीयों को सफलता मिली है उससे इस चुनाव का विश्लेषण करना राजनीतिक पंडितों के लिये काफी कठिन हो गया है। हिमाचल में ही जो बढ़त उम्मीदवारों को मिली है उस अनुपात में उतनी बढत कभी वीरभद्र सिंह, शान्ता कुमार, पंड़ित सुखराम और प्रेम कुमार धूमल को भी नही मिली है। क्योंकि यह सभी नेता कभी न कभी प्रदेश से लोकसभा सांसद रह चुके हैं। फिर इस बार जो भी उम्मीदवार मैदान में थे वह सब इन पूर्व नेताओं के राजनीतिक कद से बहुत छोटे हैं यह सब मानते हैं। इसी कारण से चुनाव परिणामों का आकलन एक कठिन विषय बन गया है। इसमें जो स्थिति हिमाचल की रही है वही लगभग पूरे देश की है।
इस वस्तुस्थिति में जब से करीब 20 लाख ईवीएम मशीनों के गायब होने का मामला सामने आया है तब से पूरे चुनाव परिणाम को एक और नजरीये से देखना शुरू हो गया है। क्योंकि 20 लाख ई वी एम मशीने गायब होने का मामला पिछले वर्ष मार्च में सामने आया था जब एक मनोरंजन राय ने आरटीआई के माध्यम से यह सूचना जुटाई की भारत निर्वाचन आयोग ने 2017 में 39 लाख ई वी एम मशीने हैदराबाद, बैंगलोर में रिपेयर के लिये भेजी थीं। लेकिन इनमें से केवल 19 लाख मशीने ही वापिस आयोग में पहंुची। इस पर मनोरंजन राय ने भारत सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस भेजा। जिसका कोई जवाब नही आया। जवाब न आने पर राय ने मुंबई उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर दी। इस याचिका पर चुनाव आयोग का कोई स्पष्ट जवाब नही आया। उच्च न्यायालय ने फिर चुनाव आयोग को चार सप्ताह का समय देकर इसमें स्पष्ट जवाब दायर करने को कहा है। मुंबई उच्च न्यायालय में यह याचिका लंबित है।
इसी बीच अब 22 मई को मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की ग्वालियर बैंच में एक वरिष्ठ अधिवक्ता उमेश बोहरे ने एक जनहित याचिका दायर की है। इस याचिका में बोहरे ने कई अहम दस्तावेजों के आधार पर मुख्य चुनाव आयुक्त सहित 14 लोगों को पार्टी बनाया है। जिसमें निर्वाचन अधिकारी, कलैक्टर ग्वालियर,  कलैक्टर मुरैना, भिंड और गुना को भी पार्टी बनाया गया है। इसमें आरोप लगाया गया है कि गायब हुई मशीनों का उपयोग देश के अलग -अलग हिस्सों के साथ -साथ ग्वालियर और चंबल संभागों में भी हुआ है। इसमें  इन सभी के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करके सीबीआई जांच की मांग की गयी है। ग्वालियर उच्च न्यायालय ने इस याचिका पर फैसला सुरक्षित रख दिया है। कानून की जानकारी रखने वालों के मुताबिक इन आरोपों की सच्चाई तक पहंुचने के लिये सीबीआई जांच ही एक मात्र विकल्प रह जाता है। मुंबई और ग्वालियर उच्च न्यायालयों में आयी याचिकाओं के साथ ही अब वंचित बहुजन अगाड़ी पार्टी के नेता प्रकाश अम्बेदकर और उनके साथीयों ने भी यह आरोप लगाया है कि देश के 300 से अधिक लोकसभा क्षेत्रों मे जितने वोट पड़े हैं और जितने वोट गिनती में आये हैं उनमें भारी अन्तर सामने आया हैै। अम्बेदकर ने दावा किया है कि महाराष्ट्र के 22 क्षेत्रों के अध्ययन में यह अन्तर देखने को मिला है। इस अन्तर के लिये उन्होंने चुनाव आयोग से जवाब मांगा है। सन्तोषजनक जवाब न आने पर अदालत और आन्दोलन का रास्ता अपनाने का ऐलान किया है। इस तरह ई वी एम मशीनों का मुद्दा आने वाले दिनों में गंभीर होने जा रहा है इससे इन्कार नही किया जा सकता।

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