Friday, 19 September 2025
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क्या अदानी का 280 करोड़ लौटाने के लिये जयराम सरकार दबाव में है

शिमला/शैल। हिमाचल सरकार ने 960 मैगावाट की जंगी थोपन पवारी जल विद्युत परियोजना के लिये वर्ष 2006 में निविदायें आमन्त्रित की थी। यह निविदायें आने के बाद यह परियोजना नीदरलैण्ड की कंपनी एनवी ब्रेकल को आबंटित कर दी गयी थी। लेकिन ब्रेकल इसमें तय समय के भीतर 280 करोड़ के अपफ्रंट प्रिमियम की रकम अदा नही कर पायी। इसके लिये कई बार समय की मोहलत लेने के बावजूद भी जब यह रकम जमा नही करवायी गयी तब इस पर रिलाॅन्यस इन्फ्रा ने ऐतराज उठाया क्योंकि वह निविदा में दूसरे स्थान पर था। इसको लेकर उच्च न्यायालय से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक मामला जा चुका है। जब ब्रेकल यह रकम जमा नही करवा पाया था तब उसके खिलाफ आपराधिक मामला तक दर्ज हुआ था। इस मामले की जांच में यह सामने आया कि इसमें ब्रेकल ने गलत ब्यानी की है। जिसे अधिकारियों/नेताओं ने नजरअन्दाज कर दिया हैं। इस नजरअन्दाज़गी के लिये संबंधित लोगों को जेल तक भेजा जा सकता था लेकिन ऐसा हुआ नही उल्टा ब्रेकल की ओर से यह 280 करोड़ अदानी पावर ने जमा करवा दिये। जबकि सरकार ब्रेकल को यह आबंटन रद्द करने का नोटिस तक दे चुकी थी।
अदानी पावर के माध्यम से ब्रेकल द्वारा यह 280 करोड़ जमा करवाने को लेकर रिलाॅयंस ने फिर अदालत में दस्तक दे दी। इस पर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में स्टैण्ड लिया कि उसने अदानी पावर से पैसा नही लिया है। यह ब्रेकल और अदानी के बीच व्यक्तिगत मामला है। सरकार का इससे कोई लेना देना नही है। रिलायंस की याचिका पर सरकार के स्टैण्ड को सामने रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस परियोजना के आबंटन को रद्द करके इसके लिये नये सिरे से प्रक्रिया शुरू करने को कहा था। यहीं पर सुप्रीम कोर्ट में सरकार यह भी कह चुकी है कि इस परियोजना में हुई देरी के कारण सरकार को अबतक 2713 करोड़ का नुकसान हो चुका है।
इस तरह यह परियोजना अबतक लटकी हुई है। सरकार सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के बावजूद इसका आवंटन नही कर पायी है। एसजेवीएनएल को यह परियोजना देने का फैसला भी अभी सिद्धान्तरूप में सहमति से आगे नही बढ़ा है। इसमें प्रदेश का लगातार नुकसान हो रहा है।
जहां इस परियोजना को लेकर एक ओर से प्रदेश का लगातार नुकसान हो रहा है वहीं सरकार अदानी के माध्यम से ब्रेकल से आये 280 करोड़ को अब तक जब्त नही कर पायी है। बल्कि उल्टे अदानी को यह रकम वापिस करने पर सहमत हो गयी है। 2015 में सरकार ने यह रकम लौटाने का फैसला ले लिया और अक्तूबर 2017 में अदानी को यह सूचित भी कर दिया कि सरकार इस फैसले को लागू करना चाहती है। अदानी ने यह सूचना मिलने पर सरकार का धन्यावाद भी कर दिया। लेकिन फिर दिसम्बर 2017 में यह फैसला लागू करने में असमर्थता भी जाहिर कर दी। अब 2019 में अदानी ने इस रकम को वापिस लेने के लिये प्रदेश उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर दी है। 19 मार्च को इसमें उच्च न्यायालय ने सरकार को जवाब दायर करके यह भी बताने के निर्देश दिये थे कि इस परियोजना के आवंटन पर क्या फैसला लिया गया है। ताकि जो रकम वापिस देने का फैसला लिया गया था उसके अनुसार यह रकम वापिस दी जा सके। अब 26 अप्रैल को इसमें सरकार ने जवाब देने के लिये और समय मांगा है ताकि इस पर मन्त्रिमण्डल फिर से विचार करके निर्णय ले सके। मंत्रीमण्डल चुनाव आचार सहिंता समाप्त होने के बाद इस पर फैसला लेगा।
वीरभद्र सरकार ने 280 करोड़ वापिस करने का फैसला लिया और अदानी को सूचित भी कर दिया। फिर अन्तिम दिनों में खुद ही यह फैसला बदल भी दिया। अब जयराम सरकार के सामने पैसा वापिस न करने का फैसला रिकार्ड पर मौजूद है लेकिन इसके बावजूद सरकार अभी तक उच्च न्यायालय में अपना जवाब नही दे पायी है। वह इस मामले को फिर मंत्रीमण्डल में ले जाना चाहती है। सरकार के इस रूख से स्पष्ट इंगित हो रहा है कि उसपर अदानी का पैसा वापिस करने का दबाव है। अदानी और प्रधानमन्त्री मोदी के अच्छे संबंध जगजाहिर हैं।

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