शिमला/शैल। कांग्रेस संगठन पर अब तक यह फैसला नहीं हो पाया है कि अगला अध्यक्ष कौन होगा और उसकी कार्यकारिणी का स्वरूप क्या होगा ? यह सवाल इसलिये गंभीर और महत्वपूर्ण होता जा रहा है कि जिस तरह राष्ट्रीय स्तर पर राहुल गांधी भाजपा और मोदी सरकार से भीड़ते जा रहे हैं उन्हें उसी अनुपात में कांग्रेस शासित राज्यों से सहयोग चाहिये? इस समय देश के तीन ही राज्यों हिमाचल, कर्नाटक और तेलंगाना में कांग्रेस की सरकारें हैं। इनमें हिमाचल में लम्बे अरसे से प्रदेश से लेकर ब्लॉक स्तर तक सारी कार्यकारणीयां भंग चल रही हैं। कर्नाटक में कांग्रेस नेताओं द्वारा सदन में आरएसएस की प्रार्थना का गायन किया जाना कुछ ऐसे संकेत बनते जा रहे हैं कि कांग्रेस शासित राज्यों में सब ठीक नहीं चल रहा है। राहुल गांधी ने गुजरात के एक आयोजन में यह कहा था कि कांग्रेस में भाजपा के सैल कार्यरत है। लेकिन अभी तक इन सैलों को चिन्हित करके बाहर का रास्ता नहीं दिखाया जा सका है। लेकिन राहुल के कथन के बाद अधिकांश कांग्रेसियों को भाजपा के स्लीपर सैल के रूप में देखा जाने लग पड़ा है। इस समय बिहार में वोट चोरी के आरोप पर जिस तरह का जन आन्दोलन खड़ा होता जा रहा है क्या उसी अनुपात में कांग्रेस शासित राज्यों में भी उसी तरह का राजनीतिक वातावरण तैयार होता जा रहा है ? तो हिमाचल की स्थिति को देखते हुये कहा जा सकता है कि शायद नहीं। हिमाचल में संगठन की कार्यकारणीयां भंग होने के बाद कुछ अरसे तक यह संकेत उभरते रहे कि नई टीम का गठन भी प्रतिभा सिंह के नेतृत्व में ही होगा। लेकिन अब यह सन्देश स्पष्ट होता जा रहा है कि प्रदेश में कांग्रेस का अध्यक्ष भी बदला जायेगा। अभी जिस तरह से वोट चोरी के मुद्दे पर कांग्रेस कार्यालय में आयोजन रखा गया था और उसमें जिस तरह से प्रदेश प्रभारी के सामने ही मुख्यमंत्री सुक्खू और लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह के समर्थकों में अपने-अपने नेता के पक्ष में नारेबाजी की गयी उससे स्पष्ट हो गया कि प्रदेश कांग्रेस में सब कुछ अच्छा नहीं चल रहा है। इस नारेबाजी का प्रतिफल यह रहा है कि वोट चोरी का मुद्दा कांग्रेस कार्यालय से बाहर फील्ड में कहीं नहीं जा पाया है। बल्कि अब तो यह चर्चा भी दबी जुबान में चल पड़ी है कि यह नारेबाजी एक तय योजना के साथ की गयी थी कि इसे फील्ड में न ले जाना पड़े। कांग्रेस कार्यालय में हुई नारेबाजी के बाद संगठन के गठन की बात फिर बैक फुट पर चली गयी है। क्योंकि इस नारेबाजी में पार्टी के अन्दर बन चुकी गुटबाजी पूरी तरह खुलकर सामने आ गयी है। इस तरह की नारेबाजी के चलते कांग्रेस का हाईकमान से आया कोई भी निर्देश व्यवहारिक शक्ल नहीं ले पायेगा। इस समय अगले प्रदेशाध्यक्ष को लेकर चल रही खींचतान में यह स्पष्ट हो गया है कि मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू इस पद पर किसी अपने विश्वस्त को ही बैठना चाहते हैं। अध्यक्ष के लिये कोई भी मंत्री अपना मंत्री पद छोड़कर यह जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता है। मंत्रियों के बाद पूर्व मंत्रियों कॉल सिंह ठाकुर और आशा कुमारी भी चर्चाओं के अनुसार इसके लिये सहमत नहीं हो पाये हैं। अब मुख्यमंत्री शायद इस पद के लिये हमीरपुर जिले से विधायक सुरेश कुमार को अपनी पसन्द बना सकते हैं। लेकिन इस नाम पर औरों की सहमति हो पायेगी इसको लेकर संशय है। जब प्रदेश में किसी न किसी कारण से संगठन का गठन ही लटकना चला जायेगा तो हाईकमान को राष्ट्रीय मुद्दों पर प्रदेश से कितना व्यवहारिक सहयोग मिल पायेगा यह एक सामान्य समझ की बात है। प्रदेश सरकार इस वर्ष के अन्त में होने वाले निकाय चुनावों को टालने में सफल हो गयी है। बहुत संभव है कि किसी तरह पंचायत चुनावों को भी टालने का जुगाड़ कर ही लिया जायेगा। यह चुनाव ही सरकार के लिये एक परीक्षा होने जा रहे थे। जब यह परीक्षा ही टल जायेगी तो और कोई आवश्यकता ही नहीं रह जाती है और फिर राष्ट्रीय कार्यक्रमों को फील्ड में ले जाने की भी आवश्यकता नहीं रह जाती है।
शिमला/शैल। क्या हिमाचल को कांग्रेस हाईकमान ने अपनी सूची से खारिज कर दिया है? यह सवाल इसलिये उठने लगा है कि प्रदेश कांग्रेस की राज्य से लेकर ब्लॉक स्तर की कार्यकारिणीयां जो पिछले वर्ष नवम्बर में भंग कर दी गयी थी उनका पुनर्गठन अब तक नहीं हो पाया है। प्रदेश में इस वर्ष के अन्त में पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव होने हैं। ऐसे में इन चुनावों की तैयारी कांग्रेस संगठन के तौर पर कैसे और कब कर पायेगी यह सवाल हर कार्यकर्ता के दिमाग में उठने लगा है। राज्य में कांग्रेस की सरकार इसलिये बन पायी थी क्योंकि पार्टी ने विधानसभा चुनावों के दौरान दस गारंटियां प्रदेश की जनता को दी थी। इन गारंटियों पर जमीन पर कितना काम हुआ है यह चुनाव उसकी परीक्षा प्रमाणित होंगे। इन गारंटियों में प्रतिवर्ष प्रदेश के युवाओं को एक लाख रोजगार उपलब्ध करवाने और 18 से 60 वर्ष की हर महिला को 1500 रूपये प्रतिमाह देने पर प्रमुख थे। युवाओं को रोजगार का दावा कितना सफल हो पाया है इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि इस दौरान प्रदेश में बेरोजगारी में 9 सितम्बर 2024 को विधानसभा में आये एक प्रश्न के उत्तर के अनुसार वर्ष 2021-22 से वर्ष 2023-24 में 4% की वृद्धि हुई है और उद्योग पलायन करने लग गये हैं। महिलाओं को 1500 रूपये प्रति माह सिर्फ लाहौल स्पीति में ही मिल पाये हैं और जगह नहीं।
प्रदेश सरकार के फैसले भी अब जनता के गले नहीं उतर पा रहे हैं। क्योंकि सरकार एक ओर तो कठिन वित्तीय स्थिति का हवाला देकर जनता पर करों का बोझ लगातार बढा़ती जा रही है और दूसरी ओर इसी कठिन वित्तीय स्थिति में निगमों/बोर्डों के अध्यक्षों/उपाध्यक्षों/सदस्यों का मानदेय बढ़ा रही है। यह बढ़ौतरी भी आपदा काल में हुई है। शिमला से धर्मशाला रेरा कार्यालय को स्थानांतरित करना इसी कड़ी का एक और उदाहरण है। जिन कर्मचारियों ने कांग्रेस को सत्ता में लाने की प्रमुख भूमिका अदा की थी वह सारे वर्ग आज एक बड़े कर्मचारी आन्दोलन के लिये तैयार हो रहे हैं। यह पिछले दिनों कर्मचारी संगठनों के आवाहन पर जूटे अलग-अलग संगठनों की उपस्थिति से प्रमाणित हो गया है। शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सेवाओं का फील्ड में क्या हाल है यह जनता के बीच जाने से पता चलता है। आज सरकार की हालत यह हो गयी है कि कर्ज आधारित योजनाओं के अतिरिक्त और कोई काम नहीं चल रहा है। आज कर्ज और करों का निवेश उन योजनाओं पर हो रहा है जिनके परिणाम वर्षों बाद आने हैं। फिर इस कर्ज में भी किस तरह का भ्रष्टाचार हो रहा है उसका खुलासा पूर्व मंत्री धर्मशाला के विधायक सुधीर शर्मा के ब्यान से हो जाता है ।
आज कांग्रेस की सरकारें केवल तीन राज्यों हिमाचल, कर्नाटक और तेलंगाना में ही रह गयी हैं। कांग्रेस की नीतियों और कार्यक्रमों का आकलन यहां की सरकारों की परफारमेन्स के आधार पर होगा। इस समय कांग्रेस नेतृत्व बिहार में चुनाव आयोग से लड़ रहा है। यदि इस लड़ाई में हिमाचल की देहरा विधानसभा के उप-चुनाव में जो कुछ कांग्रेस शासन में घटा है उसका जिक्र उठा दिया गया तो यह सारी लड़ाई कुन्द होकर रह जाएगी। यह दूसरी बात है कि इस मुद्दे पर प्रदेश कांग्रेस और भाजपा में आपसी सहमति चल रही है। लेकिन जिस तरह से प्रदेश सरकार हर रोज जनाक्रोश से घिरती जा रही है उसमें संगठन का आधिकारिक तौर पर नदारद रहना क्या संकेत और संदेश देता है इसका अन्दाजा लगाया जा सकता है। क्योंकि प्रदेश अध्यक्षा स्वयं कई बार यह आग्रह हाईकमान से कर चुकी है की कार्यकारिणी का गठन शीघ्र किया जाये। परन्तु यह आग्रह जब अनसुने हो गये हों तो यही कहना पड़ेगा कि शायद कांग्रेस हाईकमान की सूची से हिमाचल को निकाल ही दिया गया है। क्या हाईकमान के प्रतिनिधि प्रदेश प्रभारीयों ने भी इस और आंखें और कान बंद कर रखे हैं। या आज यह स्थिति आ गयी है कि प्रदेश में कोई भी संगठन की जिम्मेदारी लेने को तैयार ही नहीं हो रहा है।
शिमला/शैल। क्या सुक्खू सरकार विधानसभा द्वारा पारित कार्य निष्पादन नियमों की भी अनदेखी करने लग गयी है। यह सवाल पर्यटन विकास निगम के चौदह होटलों को ओ.एन.एम आधार पर निजी क्षेत्र को सौंपने के प्रस्तावित फैसले पर निगम के ही अध्यक्ष द्वारा एक पत्रकार वार्ता में एतराज उठाये जाने के बाद चर्चा में आया है। पर्यटन निगम अध्यक्ष विधायक आर.एस.बाली ने पत्रकार वार्ता में स्पष्ट कहा है कि निगम की ओर से इस आश्य का कोई प्रस्ताव सरकार को न ही भेजा गया और न ही निदेशक मण्डल द्वारा कभी पारित किया गया। बाली ने यह भी स्पष्ट कहा कि शायद सरकार और मंत्रिमंडल के सामने सारे तथ्य रखे ही नहीं गये हैं। इस समय पर्यटन निगम लाभ कमा रही है और टर्नओवर अढ़ाई वर्ष में 70 करोड़ से बढ़कर 100 करोड़ से ऊपर हो गया है। फिर बीते अढ़ाई वर्षों में पर्यटन निगम को सरकार की ओर से कोई ग्रांट नहीं मिली है। जबकि इसकी मांग कई बार की गयी। ऐसे में स्पष्ट है कि पर्यटन निगम की कार्यशैली में काफी सुधार हुआ है और उसके कर्मचारी निगम को लाभ की ईकाई में बदलने में सफल हो गये हैं। इसलिये जो ईकाई लाभ कमाने में आ गई हो उसकी संपत्तियों को प्राइवेट सैक्टर को सौंपने का कोई औचित्य नहीं बनता। फिर जो चौदह ईकाईयां प्राईवेट सैक्टर को सौंपने का फैसला लिया गया उनके रैनोवेशन के लिये निगम को ही धन उपलब्ध करवाया जाना चाहिये क्योंकि वह बनी हुई इकाइयां है और शीघ्र ऑपरेटिव हो जायेंगी। इनके रखरखाव के लिए एशियन विकास बैंक द्वारा दिये जा रहे कर्ज में से पैसा उपलब्ध करवाया जा सकता है। इस परिदृश्य में सरकार को अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिये।
आर.एस.बाली मुख्यमंत्री के विश्वास पात्रों में गिने जाते हैं। ऐसे में बाली द्वारा यह सार्वजनिक करना कि निगम के प्रस्ताव के बिना ही इस तरह का फैसला ले लिया जाना अपने में कई सवाल खड़े कर जाता है। क्योंकि रूल्स ऑफ बिजनेस के अनुसार किसी भी कार्य का कोई भी प्रस्ताव निगम बोर्ड विभाग द्वारा सरकार में सचिव को भेजा जाता है। उस प्रस्ताव पर सचिव और विभाग के मंत्री में मंत्रणा होती है। यदि सचिव और मंत्री की राय में मतभेद हो तब उस विषय को मंत्रिपरिषद में ले जाया जाता है। यदि मंत्री और सचिव दोनों सहमत हो तो विषय को आगे ले जाने की आवश्यकता नहीं होती है। क्योंकि मंत्री अपने में सक्षम होता है। पर्यटन निगम के चौदह होटल को प्राइवेट क्षेत्र को सौंपने के प्रस्तावित फैसले को विपक्ष ने हिमाचल ऑन सेल की संज्ञा दी है। ऐसे में जब निगम सार्वजनिक रूप से यह कह दे कि उसके यहां से इस आश्य का कोई प्रस्ताव ही नहीं गया तब स्थिति काफी बदल जाती है। क्योंकि आने वाले दिनों में यह फैसले कई विवादों का कारण बनेंगे और तब मंत्रिमंडल की स्वीकृति का भी कोई अर्थ नहीं रह जाता है। सागर कथा मामले में इस तरह की स्थितियां एक समय प्रदेश में घट चुकी हैं। इसलिये पर्यटन विकास निगम के अध्यक्ष का यह खुलासा की उसकी ओर से कोई प्रस्ताव ही नहीं गया और इसके बाद मंत्रिमंडल का फैसला ले लेना अपने में कई सवाल खड़े कर जाता है।
शिमला/शैल। क्या हिमाचल में हर बरसात में ऐसे ही जान माल का नुकसान होता रहेगा? यह सवाल इसलिये उठ रहा है क्योंकि 2023 में भी आयी आपदा के दौरान मण्डी के थुनाग में आयी बाढ़ में बड़ी मात्रा में लकड़ी नालों में बहकर आयी थी। इस बार भी सैंज में बादल फटने से जीवा नाला में आयी बाढ़ में टनों के हिसाब से लकड़ी बहकर पंडोह डैम तक पहुंची है। सैंज में जहां बादल फटा है उस क्षेत्र में एक पॉवर प्रोजेक्ट का काम चल रहा था। यह काम एक इंदिरा प्रियदर्शनी कंपनी के पास है और कंपनी के पास सैकड़ो मजदूर काम कर रहे थे। पॉवर प्रोजेक्ट के काम में कई अनियमितताओं के आरोप लगे हैं जो जांच के बाद ही सामने आ पायेंगे। मजदूरों के पंजीकरण का भी आरोप है इसलिये मौतों के सही आंकड़ों को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। कांगड़ा के धर्मशाला में भी बादल फटने से बाढ़ आयी है जिसमें कई मजदूर बह गये हैं। इस क्षेत्र में भी ‘सोकनी दा कोट’ में एक पॉवर प्रोजेक्ट का काम चल रहा था जिसके निर्माण में कई अनियमितताओं के आरोप हैं। 2023 में जब बरसात में आपदा आयी थी तब नदियों के किनारे हो रहे खनन को इसका बड़ा कारण बनाया गया था। इस पर मंत्रियों में ही विवाद भी हो गया था। इस समय हिमाचल में चंबा से लेकर किन्नौर शिमला तक करीब साढे पांच सौ छोटी-बड़ी पॉवर परियोजनाएं चिन्हित हैं और अधिकांश पर काम चल रहा है। चंबा में रावी पर चल रही पॉवर परियोजनाओं में 65 किलोमीटर तक रावी अपने मूल बहाव से लोप है। यह तथ्य अवय शुक्ला की रिपोर्ट में दर्ज है और प्रदेश उच्च न्यायालय में यह रिपोर्ट दायर है। स्वभाविक है कि जब पानी के मूल रास्ते को रोक दिया जायेगा तो बरसात की किसी भी बारिश में जब पानी बढ़ेगा तो वह तबाही करेगा ही। अवय शुक्ला की रिपोर्ट का संज्ञान लेकर पॉवर परियोजनाओं में इस संबंध में क्या कदम उठाये गये हैं इसको लेकर कोई रिपोर्ट आज तक सामने नहीं आ पायी है। पॉवर परियोजनाओं के निर्माण से पूरे क्षेत्र का पर्यावरण संतुलन प्रभावित हुआ है और इसका असर गलेश्यिरों के पिघलने पर पढ़ रहा है। लाहौल-स्पीति और किन्नौर में कई परियोजनाओं पर स्थानीय लोगों ने आपत्तियां भी उठाई है और धरने प्रदर्शन भी किये हैं। ग्लेशियरों के पिघलने से कालांतर में परियोजनाओं पर भी प्रभाव पड़ेगा। इसलिये समय रहते इस सवाल पर ईमानदारी से विचार करके कुछ ठोस और दीर्घकालिक उपाय करने होंगे अन्यथा भविष्य में और भी गंभीर स्थितियों का सामना करना पड़ेगा।
2023 में जो लकड़ी थुगान में बहकर आयी थी उसका संज्ञान शायद अदालत ने भी लिया था और उस पर एक रिपोर्ट भी तलब की थी। इस रिपोर्ट में क्या सामने आया है इसको लेकर कोई जानकारी आज तक सामने नहीं आयी है। न ही किसी ने यह दावा किया है कि यह लकड़ी उसकी थी। उस अवैधता पर आज तक पर्दा पड़ा हुआ है। अब सैंज में बादल फटने से जो लकड़ी जीवा नाला से होकर पंडोह तक पहुंची है उसको लेकर भी रहस्य बना हुआ है कि यह लकड़ी किसकी है। टनों के हिसाब से पंडोह डैम में लकड़ी पहुंची है। वन निगम जिसके माध्यम से वन विभाग लकड़ी का निस्तारण करता है उसके उपाध्यक्ष ने साफ कहा है कि यह लकड़ी वन निगम की नहीं है। क्षेत्र के वन विभाग के अधिकारियों ने भी इस लकड़ी के बारे में स्पष्ट कुछ नहीं कहा है इसे बालन की लकड़ी कहकर पल्ला झाड़ने का प्रयास किया है। इस लकड़ी के जो वीडियो सामने आये हैं उनसे स्पष्ट हो जाता है कि यह करोड़ो की लकड़ी है। यदि किसी प्राइवेट आदमी की इतनी मात्रा में वैध लकड़ी इस तरह बह जाती तो वह तो तूफान खड़ा कर देता। परन्तु ऐसा भी कुछ सामने नहीं आया है। टनों के हिसाब से लकड़ी सामने है लेकिन इसका मालिक कोई नहीं है। सरकार के वन विभाग का लकड़ी के निस्तारण का काम वन विभाग के माध्यम से होता है और वन विभाग लकड़ी का मालिक होने से इन्कार कर रहा है तो स्वभाविक है कि यह लकड़ी अवैध कटान की ही है क्योंकि बारिश में आसमान से तो यह टपकी नहीं है? सरकार ने अभी तक इस लकड़ी का स्रोत पता लगाने के लिये कोई कदम नहीं उठाये हैं इस बारे में कोई जांच गठित नहीं की गयी है। वन विभाग का प्रभार स्वयं मुख्यमंत्री के पास है। सरकार में किसी मंत्री ने इस पर कोई सवाल नहीं उठाया है। केवल अखिल भारतीय कांग्रेस प्रवक्ता विधायक कुलदीप राठौर ने इसकी जांच किये जाने की मांग की है। सरकार की ओर से आधिकारिक रूप से इस पर कुछ न कहने से और भी कई सवाल खड़े हो जाते हैं। यहां तक पॉवर प्रोजेक्ट का निर्माण कर रही कंपनी तक सवाल उठने लग पड़े हैं।