शिमला/शैल। नेतृत्व जब किसी संकट में होता है और वह संकट चर्चा का विषय बन जाता है तब जन सामान्य का ध्यान बांटने के लिये नेता कोई बड़ा मुद्दा उछाल कर एक नयी बहस को जन्म देते हैं। आजकल प्रदेश में विधानसभा चुनाव इसी वर्ष होने की अटकलों के ब्यान धूमल और वीरभद्र के बीच बहस का विषय बने हुए हैं। धूमल संभावनाएं जता रहे हैं और वीरभद्र इन्हें खारिज करने में लगे हुए हैं। लेकिन दोनो नेता संकट और उससे ध्यान हटाने के गणित में पूरी तरह फिट बैठते हैं।
धूमल को वीरभद्र ने घेरने के लिये एचपीसीए, अवैध फोन टेंपिग, ए एन शर्मा प्रकरण के साथ ही आय से अधिक संपति जांच का प्रंसग भी छेड़ दिया है इन सारे मामलों पर स्वाभाविक रूप से भाजपा के अन्दर अपनी-अपनी तरह की चर्चाएं उठी हैं और इन चर्चाओं का परोक्ष/अपरोक्ष प्रभाव धमूल पर पडा भी है। इसी कारण से धूमल ने पिछले एक वर्ष से भी अधिक समय से प्रदेश में समय पूर्व चुनावों की संभावनाओं के ब्यान दागने शुरू कर दिये और आज इन ब्यानों पर वीरभद्र भी पार्टी बन गये हैं।
दूसरी ओर वीरभद्र भी इस कार्यकाल के शुरू से ही आयकर और सीबीआई जांच के घेरे में चलते-चलते ईडी द्वारा संपति अटैच के मुकाम तक पहुंच गये हैं। सीबीआई की पूछताछ भी दो दिन झेलआये हैं। फिर इस बार शुरू से ही मन्त्री मण्डल विस्तार निगमों/ बोर्डो की ताजपोशीयां राजेश धर्माणी, राकेश कालिया और जी एस बाली की समय-समय पर नाराजगीयां झेलते आ रहे हैं। इन मामलों में सहयोगी मन्त्रीयों और कभी-कभी पार्टी की ओर से भी वीरभद्र के पक्ष में ब्यान आ जाते थे लेकिन जब से सीबीआई ने पूछताछ की है तबसे वीरभद्र के पक्ष में कोई ब्यान किसी का भी नही आया है। सीबीआई अदालत में चालान डालने की तैयारी कर चुकी है। सीबीआई के चालान के साथ ही ईडी की पूछताछ का सिलसिला शुरू हो जायेगा। इस सबको निष्पक्षता से देखेें तो वीरभद्र और धूमल दोनों एक ही पायदान पर खडे नजर आ रहे है।
इस परिदृश्य में जनता का ध्यान बांटने के लिये केन्द्र सरकार ने प्रदेश को 60 हजार करोड़ के नैशनल हाईवेज की घोषणाएं थमा दी। जबकि नैशनलन हाईवे की घोषणा से पहले संबधित रोड का ट्रैफिक सर्वे होता है। इसके मानदण्डो का एक परफार्मा बना हुआ है जिसके अनुरूप रोड की समीक्षा की जाती है लेकिन इन व्यवहारिक औपचारिकताओं को पूरा किये बिना ही यह घोषनाएं कर दी गयी है। प्रदेश भाजपा के नेता इस व्यवहारिकता को समझते हुए प्रदेश सरकार से इन सड़को के लिये भूमि उपलब्ध करवाने की मांग करके इन घोषणाओं पर अमल न हो पाने की जिम्मेदारी शिफ्रट करने की नीति पर चल रही है।
इसी तरह मुख्य मन्त्राी वीरभद्र सिंह ने भी प्रदेश का दौरा इस तर्ज पर शुरू कर रखा है जिससे चुनाव प्रचार अभियान का संकेत स्पष्ट उभरता है क्योंकि हर जगह घोषणाओं के अंबार लगा दिये हैं। यह सारी घोषणाएं बजट से बाहर हैं। एक घोषणा को बजट प्रावधान तक एक लम्बी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। सबसे पहले संबधित विभाग रिपोर्ट तैयार करता है उसके बाद यह रिपोर्ट वित विभाग में जाती है औरउसके बाद मन्त्रीमण्डल की स्वीकृति तक पहुंचती है। लेकिन मुख्यमन्त्राी की इन सारी घोषणाओं को प्रक्रिया के इस दौर से अभी गुजरना है। ऐसे में केन्द्र से लेकर मुख्यमन्त्राी तक की इन घोषणाओं पर अमल के लिये ही हजारो करोड़ चाहिये जो कि सरकार के पास है नही।
ऐसे में केन्द्र और मुख्यमन्त्री की इन घोषणाओं के अघोषित चुनाव प्रचार अभियान मानने के अतिरिक्त जनता इसे और क्या समझे । इसलिए समय पूर्व चुनावों की अटकलें धूमल -वीरभद्र ज्योतिषी नही वरन जनता स्वंय लगा रही है और इन नताओं के पास ऐसी व्यानवाजी के अतिरिक्त और कोई विकल्प भी शेष नही बचा है।