Friday, 19 September 2025
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सुक्खू सरकार ने भी किया भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरैन्स का दावा

  • क्या सरकार 1997 में अधिसूचित रिवार्ड योजना के नियम बनायेगी या इसे वापस लेगी
  • क्या कांग्रेस के 27-12-2021 को राज्यपाल को सौंपे ज्ञापन पर कारवाई होगी
  • ‘‘लूट की छूट’’ आरोपपत्र पर जांच कब होगी उठने लगा है सवाल

शिमला/शैल। मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिहं सुक्खू ने भी हिमाचल के पूर्ण राज्यत्व दिवस पर यह दावा किया है कि उनकी सरकार की भी भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरैन्स की नीति रहेगी। प्रदेश की हर सरकार यह दावा करने की रस्म ईमानदारी से निभाती आ रही है लेकिन व्यवहार में ऐसा कुछ भी देखने को नहीं मिलता है। इसलिये यह दावा करना एक रस्म अदायगी होकर रह गया है या सबसे छोटे कर्मचारी के खिलाफ कारवाई से आगे नहीं बढ़ पाया है। बल्कि बड़े लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार का बड़ा आरोप लगा हुआ होना एक बड़ी योग्यता बनकर बड़ी तरक्की का माध्यम बन जाता है। लेकिन यह भ्रष्टाचार ही है जो हर समस्या के मूल में खड़ा रहता है। कानूनी दॉव पेचों के जाल में भ्रष्टाचार ऐसे उलझ जाता है कि सी.बी.आई. का मामला झेल रहा व्यक्ति भी अपनी चालाकी से शीर्ष पर जा बैठता है और कोई कुछ नहीं कर पाता।
भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरैन्स के परिदृश्य में 31 अक्तूबर 1997 को तत्कालीन वीरभद्र सरकार ने एक रिवार्ड योजना अधिसूचित की थी। इस योजना में यह प्रावधान किया गया था कि भ्रष्टाचार की हर शिकायत पर तीस दिन के भीतर प्रारम्भिक जांच की जायेगी और यदि शिकायत की इस जांच में मामले को आगे बढ़ाने के तथ्य मिलते हैं तो शिकायतकर्ता को उसी स्टेज पर इनाम राशि का 25% तुरंत दे दिया जायेगा। शेष राशि जांच पूरी होने पर देने की बात की गयी। ईनाम की कुल राशि शिकायत से सरकार को होने वाले लाभ का 25% भाग रखा गया था। इस योजना के तहत कई शिकायतें सरकार के पास और विजिलैन्स के पास आयी हैं लेकिन एक भी शिकायत पर तीस दिनों के भीतर कोई प्रारम्भिक जांच तक नहीं हुई है। यहां तक कि इसकी अधिसूचना जारी होने के बाद इसमें जो नियम बनाये जाने थे वह आज तक नहीं बन पाये हैं और न ही इस योजना को निरस्त किया गया है। आज भी यह योजना सरकारी रिकॉर्ड में यथास्थिति बनी हुई है। यदि इस योजना के तहत आयी शिकायतों पर ईमानदारी से अमल किया जाता तो शायद प्रदेश कर्ज के गर्भ में डूबने से बच जाता। अदालत के निर्देशों तक की अनुपालन नहीं हुई है।
आज जब मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरैन्स का दावा कर रहे हैं तब भी प्रशासन उनको ऐसे मामलों की सही जानकारी नहीं दे रहा है। क्योंकि मण्डी में बन रहे शिवधाम के निर्माण हेतु मंगवाये गये 80 करोड की राशि के टेण्डर में ईएमडी केवल 20,000 ली गयी जबकि नियमों के मुताबिक यह कम से कम चालीस लाख होनी चाहिये थी। जब यह मामला उजागर होने के बाद भी इस पर कोई कारवाई नहीं हुई तब इस मामले की शिकायत विजिलैन्स में भी की गयी। विजिलैन्स ने संलग्न दस्तावेजों के अवलोकन के बाद मामले कि अपने स्तर पर जांच करके कारवाई करने के लिए पर्यटन निगम को भेज दिया। लेकिन पर्यटन निगम में अभी तक अपने स्तर पर न तो कोई कारवाई की है और न ही विजिलैन्स ने निगम से इस संबंध में कोई जानकारी मांगी है। ऐसी स्थिति डीजल में हुई स्मगलिंग के मामले की है। हिमाचल से झारखण्ड तक डीजल सम्गल हुआ है। मामला उजागर होने के बाद हरकत में आये तन्त्र ने नौ करोड का यह मामला बनाया है। लेकिन जिन टैंकरों से यह चोरी होती रही उनके खिलाफ कोई जांच या कारवाई नहीं हुई है। मामले को रफा-दफा करने के प्रयास हो रहे हैं।
कांग्रेस ने 27-12-2021 को प्रदेश के राज्यपाल को एक आठ पन्नों का ज्ञापन सौंपा था। इसमें सरकार के खिलाफ गंभीर हो आरोप लगाते हुए जांच की मांग की गयी थी। इसके बाद विधानसभा चुनाव के दौरान ‘‘लूट की छूट’’ शीर्षक तले एक आरोप पत्र सार्वजनिक रूप से जारी किया था। इसमें भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाते हुये यह कहा गया था कि सरकार बनते ही इन आरोपों की जांच के लिये एक कमेटी गठित की जायेगी और सारे घोटालेबाज जेल जायेंगे। लेकिन सरकार बनने के बाद हिमाचल दिवस पर आये ब्यान के अतिरिक्त और कोई कारवाई शुरू होने का संकेत तक नहीं है। ऐसे में यह सवाल भी उठने लगा है कि यदि अधीनस्थ सेवाएं चयन बोर्ड हमीरपुर में पेपर लीक का यह प्रकरण न घटता तो शायद वहां पर पिछले वर्षो में हुए चयन पर कोई सवाल ही उठता। क्योंकि इसी बोर्ड की तरह प्रदेश का लोक सेवा आयोग भी प्रदेश की राजपत्रित सेवाओं की चयन प्रक्रिया के तहत परीक्षाएं लेकर साक्षात्कार के माध्यम से चयन को अंजाम देता है। आयोग को लेकर भी ऐसी चर्चाएं उठती रही है कि कई परीक्षाओं के होने और उनके परिणाम घोषित करने के बाद उनके साक्षात्कार के परिणाम घोषित करने में लंबा अंतराल रहता रहा है। इस अप्रत्याशित अंतराल के कारण पूरी प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर ही सवाल उठते रहे हैं। ऐसे मामलों की जांच किये जाने की मांग भी उठती रही है। बल्कि 2018 में सदन में तत्कालीन मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का लोक सेवा आयोग को लेकर आया वक्तव्य बहुत महत्वपूर्ण था। परन्तु इस ब्यान के बाद कोई और कदम सामने नही आया था। आज भी लोक सेवा आयोग को लेकर इस सरकार की खामोशी से यही उभरता है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ा ब्यान देना हर सरकार के लिये एक आवश्यक रस्म अदायगी के अतिरिक्त और कुछ नहीं रह गया है।

 

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