दो जगह एक ही समय में मूल पोस्टिंग होना कैसे संभव हो सकता है
दो जगह सरकारी आवास मिलना क्या नियमों में है?
जब दिल्ली में भी मूल पोस्टिंग है तो दिल्ली यात्राओं पर टी ए, डी ए कैसे?
क्या सरकार ने इन अधिकारियों को अपने ट्रैप में ले लिया है?
क्या चुनावों में यह अधिकारी सरकार की इच्छा पूर्ति का साधन नहीं बनेंगे
आज प्रदेश का कर्ज भार जीडीपी के 38% से भी अधिक हो गया है। इस पर वित्त विभाग की खामोशी क्या इसी ट्रैप का परिणाम है?
शिमला/शैल। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के प्रधान सचिव शुभाशीष पाण्डा सहित प्रदेश सरकार के आधा दर्जन वरिष्ठ अधिकारी एक साथ शिमला और दिल्ली में तैनात हैं। दोनों जगह प्रदेश सरकार ने इन्हें मूल पोस्टिंग दे रखी है। दोनों जगह मूल पोस्टिंग होने के कारण यह लोग शिमला और दिल्ली में भी सरकारी आवास लिये हुये हैं। व्यवहारिक तौर पर यह लोग शिमला में ही सेवाएं दे रहे हैं। बल्कि शिमला सचिवालय में तैनात होने के कारण इस उपलक्ष में मिलने वाले सचिवालय वेतन का भी लाभ ले रहे हैं। दूसरी ओर दिल्ली में आवासीय आयुक्त के यहां भी मूल पोस्टिंग होने के कारण केन्द्र सरकार के संपदा निदेशालय से भी आवास लिये हुए हैं। संयोगवश केन्द्र के संपदा निदेशालय में भी हिमाचल कॉडर की ही अधिकारी निदेशक के तौर पर तैनात है और उसी के आदेशों से इन लोगों को दिल्ली में भी सरकारी आवास मिले हैं जबकि उसे यह जानकारी रही है कि इन अधिकारियों के पास शिमला में भी सरकार आवास हैं। लेकिन हिमाचल कॉडर और इन अधिकारियों से जूनियर होने के कारण इस पर एतराज नहीं कर पायी है।
नियमों के अनुसार कोई भी अधिकारी उसी स्थान पर सरकारी आवास लेने का हकदार होता है जहां उसकी मूल पोस्टिंग होती है। मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव का पद और उस पर अधिकारी की तैनाती उसी स्थान पर होगी जहां मुख्यमन्त्री है। अब जब विधानसभा का सत्र चल रहा था तो उस समय प्रधान सचिव दिल्ली में तैनात होकर इस पद की जिम्मेदारियां कैसे निभा सकता है। जबकि प्रधान सचिव शुभाशीष पांडा का 7 अक्तूबर 2021 से दिल्ली में बतौर एडवाईजर स्थानान्तरित और पोस्टेड हैं। इसी पोस्टिंग के आधार पर उन्होंने भारत सरकार की संपदा निदेशालय से दिल्ली में आवास के लिये आवेदन किया है और आवास मिल भी गया। अब उनके पास दोनों जगह शिमला और दिल्ली में एक साथ सरकारी आवास हैं। यही नहीं शिमला में सचिवालय विशेष वेतन का लाभ ले रहे हैं और दिल्ली में टूर पर जाने के लिये टी ए, डी ए का लाभ भी ले रहे हैं। ऐसा सभी आधा दर्जन अधिकारी जो शिमला और दिल्ली में एक साथ मूल पोस्टिंग पर तैनात हैं तथा आवास लिये हुये हैं। सवाल उठ रहा है कि ऐसा दोहरा वित्तीय लाभ लेना नियमों के अनुसार संभव है या नहीं। स्मरणीय है कि सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों का ऐसा आचरण एक कनिष्ठ अधिकारी को सचिवालय वेतन का लाभ न देने पर उठा था क्योंकि उसकी मूल पोस्टिंग तब किसी निदेशालय नहीं थी। तब यह सामने आया था कि सीनियर तो दो दो जगह सरकारी आवास लेकर बैठे हुए हैं और जूनियर को सचिवालय वेतन से भी वंचित रखा जा रहा है।
इस परिदृश्य में यह सवाल अहम हो जाता है कि जब सरकारी आवास लेने के नियमों में पोस्टिंग स्थल पर मूल पोस्टिंग होना अनिवार्य है और यह मूल पोस्टिंग एक समय में एक ही जगह हो सकती है तो सरकार ने दो-दो जगह मूल पोस्टिंग के आदेश क्यों कर दिये? क्या अधिकारियों ने मुख्यमंत्री को कानून के इस पक्ष की जानकारी ही नहीं होने दी? या फिर इन अधिकारियों को ही ऐसे ट्रैप में ला खड़ा कर दिया गया जहां यह सरकार के किसी भी गलत आदेश पर कोई प्रश्न ही न उठा सके। किसी के भी खिलाफ कोई भी मामला खड़ा करके राजनीतिक आकाओं को खुश कर सकें। आने वाले विधानसभा चुनावों में ऐसे फंसे हुए अधिकारी कुछ भी करने को नतमस्तक रहेंगे ही। इस समय प्रदेश के कर्ज को लेकर सवाल उठ रहे हैं। नियमों के मुताबिक कर्ज जीडीपी के तीन प्रतिश्त से अधिक नहीं हो सकता। कोविड काल में इसकी सीमा पांच प्रतिश्त तक बढ़ा दी गयी थी। लेकिन अब विधानसभा के मानसून सत्र में विधायक रोहित ठाकुर के एक प्रश्न के उत्तर में सरकार ने यह स्वीकारा है कि आज कर्ज जीडीपी 38% से भी अधिक हो गया है। कर्ज की सीमा की अनुपालना करना वित्त सचिव का दायित्व है लेकिन जब वित्त विभाग का मुखिया भी शिमला और दिल्ली में सरकारी आवास लेने का लाभार्थी होगा तो ऐसा अधिकारी नियमों के अनुपालन का साहस दिखा पायेगा यह सामान्य विवेक की बात है। जितने भी अधिकारी शिमला और दिल्ली में एक साथ मकानों के लाभार्थी हैं उनके विभागों की कारगुजारीयों में ऐसे कई मामले मिल जाएंगे बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा राज्य सरकार ही इन अधिकारियों को केन्द्र सरकार को चूना लगाने में प्रोत्साहित कर रही है ताकि चुनावों में इनसे मनचाहा सहयोग ले सके।
यह है जयराम का प्रशासन
शिमला/शैल। प्रदेश सरकार के दवा नियन्त्रक नवनीत मरवाह के खिलाफ बद्दी के एक सामाजिक कार्यकर्ता एम सी जैन ने भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुये एक शिकायत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम 29-4-2022 को भेजी थी। प्रधानमंत्री कार्यालय से जैन के नाम आये पत्र के मुताबिक यह शिकायत 14-5-2022 को मुख्य सचिव हिमाचल प्रदेश को कारवाई के लिए भेज दी गई थी लेकिन इस पर एक माह तक कोई कारवाई न होने पर जैन ने 4-6-2022 को फिर प्रधानमंत्री को एक पांंच पन्नों का शिकायत पत्र भेजा है। जैन ने इस के हर पन्ने पर हस्ताक्षर किये हुये हैं। जैन ने इस पत्र में कुछ और जानकारियां प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजी हैं। जिस तरह से जैन पुनः इस शिकायत को भेज रहा है उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि वह आरोपों के प्रति पूरी तरह आश्वसत है। जैन की यह शिकायत 30-7-2022 को मुख्य सचिव से प्रधान सचिव स्वास्थ्य को भी जा चुकी है। परंतु अभी तक शायद यह शिकायत विजिलैन्स तक नहीं पहुंच पायी है और न ही इस संद्धर्भ में कोई मामला दर्ज हो पाया है। जयराम सरकार में स्वास्थ्य विभाग सबसे अधिक चर्चा में रहा है। पत्र बम्बों का शिकार भी यह विभाग सबसे अधिक रहा है। इन्हीं विवादों के चलते स्वास्थ्य मंत्री को हटाया गया। विभाग के निदेशक के खिलाफ भी मामला दर्ज हुआ और गिरफ्तारी तक हुई। प्रदेश में बन रही दवाइयों के दर्जनों सैंपल फेल हो चुके हैं। लेकिन किसी भी मामले में किसी भी निर्माता का लाइसेंस तक रद्द नहीं हुआ है। सरकार सो कॉज़ नोटिस से अधिक कारवाई नहीं कर पायी है। इससे यह संदेश जाता है कि सरकार भ्रष्टाचार की शिकायतों का संज्ञान लेने के प्रति गंभीर नहीं है। क्योंकि यदि प्रधानमंत्री कार्यालय से आयी शिकायत पर भी चार माह में मामला दर्ज न हो पाये तो इसे कोई भी क्या मानेगा। जबकि चुनाव के वक्त में तो सरकारें भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस दिखाने के लिये ऐसे मामलों में तुरन्त कारवाई करती है। जैन द्वारा की गई शिकायत कितनी गंभीर है इसका आकलन पाठक शिकायत पढ़कर स्वयं कर सकते हैं।
प्रधानमंत्री कार्यालय से पत्र आने के बाद भी कार्रवाई न होने का अर्थ क्या है।
राज्य सरकार द्वारा पदोन्नति में सील्ड कवर प्रक्रिया न अपनाना बना बड़ा कारण
शिमला और दिल्ली में दोनों जगह सरकारी आवास होना भी है प्रभाव का परिणाम
शिमला/शैल। जयराम सरकार के अतिरिक्त मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदम्बरम के साथ आई एम एक्स मीडिया मामले में सह अभियुक्त हैं। यह मामला सीबीआई ने मई 2017 में भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम तथा अन्य अपराधिक धाराओं में दर्ज किया था। यह मामला दर्ज होने के बाद फरवरी 2020 में सक्सेना को इस में जमानत लेनी पड़ी है। इस मामले के चलते सक्सेना का नाम संदिग्ध आचरण श्रेणी के अधिकारियों की सूची में आ जाता है। इसी के साथ मामले के निपटारे तक सक्सेना को महत्वपूर्ण विभागों का प्रभार नहीं दिया जा सकता। पदोन्नति में भी उनका नाम सील्ड कवर में रखा जायेगा। ऐसा सरकार के नियमों में कहा गया है तथा सर्वाेच्च न्यायालय ने भी यह व्यवस्था अपने फैसलों में दी हुई है।
लेकिन जयराम सरकार ने सरकारी नियमों और सर्वाेच्च न्यायालय की व्यवस्था को अंगूठा दिखाते हुए सक्सेना को न केवल महत्वपूर्ण विभागों से नवाजा है बल्कि इस मामले के चलते उन्हें अतिरिक्त मुख्य सचिव भी पदोन्नत कर दिया है। यही नहीं सक्सेना को शिमला के साथ दिल्ली में भी समानान्तर तैनाती देकर वहां भी सरकारी आवास की सुविधा उपलब्ध करवा दी है। इससे सक्सेना के राज्य सरकार के साथ ही केंद्र में भी प्रभाव का पता चलता है। क्योंकि दिल्ली में आवास की सुविधा केन्द्र के ऐस्टेट निदेशालय द्वारा दी गयी है। राज्य सरकार ने जहां सक्सेना के मामले में सारे नियमों कानूनों को अंगूठा दिखाया है वहीं पर गैर कर्मचारियों के मामलों में इन नियमों का कड़ाई से पालन किया जा रहा है। सचिवालय में घटे सैनिटाइजर घोटाले में आरोपित एक कर्मचारी का मामला पदोन्नति के लिये विचार में ही नहीं लिया गया। जबकि कर्मचारी उसका मामला नियमों के अनुसार सील्ड कवर में रखने का आग्रह करता रहा। शायद इस डी पी सी के सक्सेना स्वयं एक सदस्य थे। अब जब सक्सेना का मामला सार्वजनिक रूप से चर्चा में आ गया है तबसे पूरे कर्मचारी वर्ग में यह चर्चा का विषय बन गया है। सरकार पर आरोप लग रहा है कि बड़े और प्रभावशाली अधिकारियों के लिए सरकार के नियम कानून और हैं तथा छोटे कर्मचारियों के लिये अलग हैं। जय राम सक्सेना पर जिस कदर मेहरबान हैं इससे उनके प्रभावशाली होने का सीधा प्रमाण मिल जाता है। स्वभाविक है कि जो अधिकारी शिमला में सरकारी आवास लेने के साथ ही दिल्ली में केन्द्र से भी आवास की सुविधा हासिल कर सकता है तो वह निश्चित रूप से अपने मामले के प्रबंधन का भी हर संभव प्रयास करेगा ही। क्योंकि प्रदेश सरकार पूरा सहयोग दे रही है। आईएएस अधिकारियों की पदोन्नति के मामले में सिविल सर्विसेज बोर्ड विचार करता है। सक्सेना की पदोन्नति से स्पष्ट हो जाता है कि बोर्ड ने सीबीआई में मामला दर्ज होने का संज्ञान नहीं लिया है। बोर्ड ने यह नजरअंदाजगी किसके दबाव या प्रभाव में की है यह एक अलग चर्चा का विषय बन गया है। अब जब से यह मामला समाचारों का विषय बना है तब से यह फिर सीबीआई में चर्चा का विषय बन गया है। यह प्रश्न खड़ा हो गया है कि जिस अधिकारी के लिये राज्य सरकार सारे स्थापित नियमों कानूनों को अंगूठा दिखा सकती है वह अपने मामले से जुड़े साक्ष्यों को प्रभावित करने का प्रयास क्यों नहीं करेगा। सीबीआई का सारा प्रयास इसी बात पर रहता है कि कोई भी कथित अभियुक्त मामले को प्रभावित न कर पाये। इस मामले में अधिकारी के प्रभाव के सारे प्रमाण सामने हैं। ऐसे में सीबीआई प्रबोध सक्सेना की जमानत रद्द करवाने पर विचार करने को बाध्य हो गयी है। क्योंकि सबकी नजरें अब इस मामले पर लग गयी हैं।
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