राहुल गांधी को मानहानि मामले में राहत नहीं मिली है। उच्च न्यायालय ने कहा है कि सजा को स्थगित न करने से प्रार्थी के साथ कोई अन्याय नहीं होगा। सजा स्थगित करने के कोई पर्याप्त आधार नहीं है। अदालत ने यह भी कहा है कि राहुल गांधी के खिलाफ ऐसे ही दस मामले लंबित हैं। एक शिकायत कैंब्रिज में वीर सावरकर के पोते ने राहुल गांधी के खिलाफ दायर कर रखी है। किसी मामले में प्रार्थी को राहत देना या न देना यह मान्य न्यायधीश का एकाधिकार है। ऐसा करने के लिये संदर्भित मामले के क्या गुण दोष मान्य न्यायधीश के विवेकानुसार उसके सामने हैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं की जा सकती है। लेकिन जब न्यायधीश यह तर्क दे कि प्रार्थी के खिलाफ ऐसे दस मामले लंबित हैं और एक मामला तो वीर सावरकर के पोते ने कैंब्रिज में दायर कर रखा है इसलिये यह राहत का हकदार नहीं है तो पूरा परिदृश्य ही बदल जाता है। क्योंकि लंबित मामलों से संदभित मामला कैसे प्रभावित होता है इस पर कुछ नहीं कहा गया है। क्या मान्य न्यायधीश यह मानकर चलें हैं कि लंबित मामलों में भी राहुल गांधी को सजा ही होगी। इसलिये अभी उसे राहत क्यों दी जाये। शायद न्यायिक इतिहास में यह पहला मामला होगा जिसमें प्रार्थी को इसलिये राहत नहीं मिली क्योंकि उसके खिलाफ ऐसे ही दस मामले लंबित हैं।
(Gandhi) is seeking a stay on conviction on absolutely non-existent grounds. Stay on conviction is not a rule. As many as 10 cases are pending against (Gandhi). It is needed to have purity in politics... A complaint has been filed against (Gandhi) by the grandson of Veer Savarkar at Cambridge... Refusal to stay conviction would not result in injustice to the applicant. There are no reasonable grounds to stay conviction. The conviction is just proper and legal.
गुजरात हाईकोर्ट के इस फैसले को गांधी सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देते हैं या जेल जाना चाहते हैं यह अगले कुछ दिनों में स्पष्ट हो जायेगा। लेकिन इस फैसले पर हर आदमी अपने-अपने तौर पर विचार करेगा कि क्या न्याय में ऐसा भी होता है। न चाहते हुये भी यह माना जायेगा कि जज पर राजनीतिक दबाव रहा है। यह कहना कि वीर सावरकर के पोते ने भी आपके खिलाफ मामला दायर कर रखा है अपने में एक लम्बी बहस का विषय बन जाता है। सर्वोच्च न्यायालय इन टिप्पणियों का क्या संज्ञान लेता है यह देखना रोचक होगा। क्योंकि वीर सावरकर के साथ वैचारिक मतभेद होने का यह अर्थ नहीं हो सकता कि उसके परिजन द्वारा आप के खिलाफ मामला दायर किया जाने से आप न्यायिक राहत के पात्र ही नहीं रह जाते हैं इस फैसले के राजनीतिक परिणाम बहुत गंभीर होंगे यह तय है।
क्या महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू के साथ वैचारिक मतभेद होने पर उनके खिलाफ टिप्पणी नहीं की जा सकती। ऐसी टिप्पणियां करने वाले के खिलाफ यदि इनका कोई परिजन कोई मामला दायर कर देता है तो क्या ऐसा मामला दायर होने के बाद टिप्पणी करने वाले को अन्य मामलों में भी राहत नहीं मिल सकती। क्या उच्च न्यायालय के इस फैसले से कई सवाल नहीं उठ खड़े होंगे। आज तक प्रधानमंत्री और दूसरे भाजपा नेताओं ने नेहरू, गांधी परिवार के खिलाफ जितनी भी ब्यानबाजी कर रखी है अब वह सारी ब्यानबाजी नये सिरे से चर्चा में आयेगी यह तय है। पूरी न्यायिक व्यवस्था पर एक नई बहस को जन्म देगा यह फैसला। मानहानि बाहर के देशों में एक सिविल अपराध है क्रिमिनल नहीं। क्योंकि सार्वजनिक जीवन में आपका हर व्यवहार वैयक्तिक होने से पहले सार्वजनिक होता है इसलिये सार्वजनिक मंचों से एक दूसरे के खिलाफ आक्षेप लगाये जाते हैं। इसलिये इस फैसले के बाद इस पर भी बहस हो जानी चाहिए कि मानहानि क्रिमिनल मामला होना चाहिये या नहीं। मानहानि को क्रिमिनल अपराध के दायरे में लाकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी अंकुश लग जाता है। राहुल गांधी के खिलाफ आये इस फैसले से जो राजनीतिक बहस आगे बढ़ेगी उससे भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी को राजनीतिक नुकसान होना तय है। क्योंकि गुजरात उच्च न्यायालय के फैसले को हर आदमी राजनीतिक से प्रेरित मानेगा।