Friday, 19 September 2025
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नोटबन्दी से अदानी एस.बी.आई. डील तक पहुंचा देश

इस समय केंद्र में 2014 से नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए सत्तारूढ़ है। 2014 में जब सत्ता परिवर्तन हुआ था तब देश में अन्ना हजारे के नेतृत्व में एक आंदोलन चल रहा था। भ्रष्टाचार इस आंदोलन का मुख्य बिन्दु था क्योंकि उस समय सीएजी की रिपोर्ट के माध्यम से यह सामने आया था कि 2जी में 1,76,000 करोड़ का घपला हो गया है। इसी के साथ एशियन गेम्स आदि और भी कई प्रकरण जुड़ गये थे। विदेशों में भारतीयों का लाखों करोड़ का काला धन जमा होने के कई आंकड़े उछाले जा रहे थे। कुल मिलाकर तबकि डॉ. मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार को भ्रष्टाचार का पर्याय घोषित कर दिया गया था। यह वादा किया गया था कि यूपीए हटने के बाद अच्छे दिन आयेंगे। हर भारतीय के खाते में पन्द्रह लाख जमा हो जायेंगे। इस प्रचार का असर होना स्वभाविक था और परिणामतः सत्ता बदल गयी नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बन गये। उस समय यह भी कहा गया था जहां देश ने कांग्रेस को साठ वर्ष दिये हैं वहीं पर मोदी भाजपा के लिये 60 महीने का समय मांगा गया था। 2014 के बाद 2019 में फिर चुनाव हुए और जनता ने एक बार फिर मोदी पर विश्वास करके भाजपा को इतना समर्थन दे दिया है कि उसे आज लोकसभा में एनडीए के अन्य सहयोगियों की भी आवश्यकता नहीं है।
नरेंद्र मोदी को केंद्र की सत्ता संभाले सात वर्ष हो गये हैं। इन सात वर्षों में 2014 के मुकाबले महंगाई और बेरोजगारी कहां पहुंच गयी है इसका दंश अब हर आदमी झेल रहा है। देश जिस आर्थिक स्थिति में पहुंच चुका है वहां पर महंगाई और बेरोजगारी के कम होने की सारी संभावनाएं समाप्त हो चुकी है क्योंकि यह सब सरकार के गलत आर्थिक फैसलों का परिणाम है। 2014 में यूपीए को भ्रष्टाचार का पर्याय करार दिया गया था इस नाते आज सरकार से यह पूछना हर व्यक्ति का कर्तव्य बन जाता है कि भ्रष्टाचार के कौन से मामले की जांच सात वर्षों में पूरी होकर मामला अदालत तक पहुंचा है। जिस सीएजी विनोद राय ने टूजी में 1,76,000 करोड़ का घपला होने का आंकड़ा देश को परोसा था और यह आरोप लगाया था कि कुछ सांसदों ने उन्हें यह आग्रह किया था कि इसमें प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का नाम नहीं आना चाहिये। इस आरोप के लिए विनोद राय ने अदालत में लिखित में माफी मांग ली है। 1,76,000 करोड़ के घपले को आकलन की गलती मान कर यह कह दिया है कि कोई घपला हुआ ही नही है। क्या इससे यह प्रमाणित नहीं होता कि 2014 में बड़े योजनाबद्ध तरीके से सरकार के खिलाफ अन्ना, रामदेव आन्दोलन प्रायोजित किये गये थे। क्यों मोदी सरकार डॉ. मनमोहन सरकार के खिलाफ कोई श्वेत पत्रा नहीं ला पायी है। आज जिस हालत में देश खड़ा हुआ है हर संवेदनशील व्यक्ति के लिये चिन्ता और चिन्तन का विषय होना आवश्यक है। क्योंकि आना आने वाला समय हर आदमी से हर घर में यह सवाल पूछेगा कि संकट के इस दौर में उसकी भूमिका क्या रही है।
अन्ना आन्दोलन के प्रतिफल रहे हैं नरेंद्र मोदी अरविन्द केजरीवाल और ममता बनर्जी। क्योंकि यह सभी अन्ना के आंदोलन के साथ परोक्ष-अपरोक्ष में जुड़े रहे हैं। यह ममता बनर्जी ही थी जिन्होंने अन्त में अन्ना के लिए आयोजन रखा था। यह दूसरी बात है कि पंडाल में जनता के न आने से अन्ना आयोजन स्थल तक जाने का साहस नहीं कर पाये थे। इसीलिए मोदी के आर्थिक फैसलों का विरोध यह लोग नहीं कर पाये हैं। नोटबंदी पहला और सबसे घातक फैसला रहा है क्योंकि जब 99.6% पुराने नोट नये नोटो के साथ बदल लिये गये तो वहीं से काले धन और टेरर फंडिंग के दावे हवा-हवाई सिद्ध हो गये। उल्टा नये नोट छापने और उनको ट्रांसपोर्ट करने का करीब 38,000 करोड़ का खर्च पड़ा। जून 2014 में बैंकों का एन पी ए जो करीब 2,52,000 करोड़ का था वह आज 2021 में दस खरब करोड़ तक कैसे पहुच गया। कारपोरेट घरानों का दस लाख करोड़ का कर्ज क्यों और कैसे माफ हो गया। क्या इन्ही फैसलों का परिणाम नही है कि आज सरकारी बैकों को प्राइवेट सैक्टर को सौंपने के लिये संसद के इसी सत्र में संशोधन लाया जा रहा है। आज किसानों की आय दो गुणी करने के लिये एस.बी.आई. और अदानी में समझौता हुआ है। अब एस.बी.आई. के माध्यम से अदानी किसानों को कर्ज बांटेगा। जिस अंबानी- अदानी को कृषि कानूनों का कारण माना जा रहा था आज वही अदानी कृषि कानून वापिस होने के बाद किसानों को कर्ज बांटेगा और एस.बी.आई. उसमें सहयोग करेगा। जबकि अदानी तो एस.बी.आई. का एक बड़ा कर्जदार है। क्या यह कृषि क्षेत्र पर अदानी के कब्जे का मार्ग प्रशस्त करने का पहला कदम नहीं माना जाना चाहिये।
एस.बी.आई. देश का सबसे बड़ा बैंक है। इस बैंक को अदानी कैपिटल प्रा. लि. के साथ मिलकर किसानों को ट्रैक्टर और कृषि मशीनों की खरीद के लिये कर्ज देने का पार्टनर बनाने की आवश्यकता क्यों पड़ी? एस.बी.आई. अदानी की इस डील पर ममता की चुप्पी क्यों है? क्या अदानी ने ममता से मिलकर बंगाल के कृषि क्षेत्र में ही इस तरह से निवेश की कोई बड़ी योजना तो नहीं बना रखी है? यह सारे सवाल इस डील और मुलाकात के बाद प्रसांगिक हो उठे हैं। क्योंकि इस सब को एक महज संयोग मानकर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

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