Friday, 19 September 2025
Blue Red Green
Home सम्पादकीय क्या कंगना प्रयोग सफल हो पायेगा?

ShareThis for Joomla!

क्या कंगना प्रयोग सफल हो पायेगा?

सिने तारिका हिमाचल की बेटी पद्मश्री कंगना रणौत ने 1947 में अंग्रेजों के तीन सौ वर्ष के शासन से मिली आजादी को भीख की संज्ञा दी है। कंगना के मुताबिक देश को सही में आजादी 2014 मे मिली है। कंगना के इस ब्यान से पूरे देश में प्रतिक्रियाएं उभरी हैं। ब्यान को स्वत़न्त्रता सेनानियों से लेकर संविधान का अपमान माना जा रहा है। पद्मश्री वापस लेने और देशद्रोह का मुकद्दमा दायर करने की मांग उठ रही है। कंगना के ब्यान पर सभी गैर भाजपा दल आक्रोषित हैं। केवल भाजपा ही इस ब्यान पर खामोश है। भाजपा की खामोशी से ही इस ब्यान के पीछे की राजनीति स्पष्ट हो जाती है। कंगना की उम्र और उसकी शैक्षणिक योग्यता को ध्यान में रखते हुए उसे क्षमा कर दिया जाना चाहिए। क्योंकि अभिनेता अभिनेत्रियां अधिकांश में दूसरों द्वारा लिखी स्क्रीप्ट पर ही अभिनय करते हैं और उसी से अवार्ड प्राप्त कर लेते हैं। ग्लैमर की दुनिया के लोगों को अपना प्रचार और पैसा चाहिए होता है और इसके लिए वह किसी की भी टयून पर डांस कर देते हैं। फिर जब से राजनेताओं को सुनने के लिए आने में जनता की रूची कम होने लगी है तब से राजनेता भीड़ जुटाने के लिए अभिनेताओं, अभिनेत्रियों और खिलाड़ियों का प्रयोग करने लगे हैं। लम्बे अरसे से यह लोग राजनीतिक दलों और मनोनयन के माध्यम से संसद में आ रहे हैं। लेकिन इनमें से कितने लोगों का संवैधानिक योगदान रहा है तो बड़ा कुछ भी रिकॉर्ड पर नहीं मिलता है। कंगना रणौत के ब्यान को भी इसी परिपेक्ष में देखना होगा। कंगना को जो पटकथा दी गयी उसने उसका पाठ कर दिया। अन्यथा जिस अभिनेत्री को झांसी की रानी के किरदार के लिए पदमश्री मिला हैं उससे आजादी को भीख करार देने का ब्यान आना अपने में ही एक अंतः विरोध हो जाता है।
ऐसे में यह समझना आवश्यक हो जाता है कि इस समय कंगना से यह ब्यान क्यों दिलाया गया। सुशांत सिंह राजपूत प्रकरण पर कंगना जिस तरह से मुखर हुई और उस मुखरता के बाद जो अदालती मामलों का सिलसिला शुरू हुआ है उससे बाहर निकलना कठिन होता जा रहा है। कंगना ने केस ट्रांसफर करने के लिए आवेदन किया था जिसे अदालत ने अस्वीकार कर दिया है। उस दौरान हिमाचल भाजपा का सारा शीर्ष नेतृत्व उसके गिर्द इक्कठा हो गया था। शिमला में उसके लिये प्रदर्शन किया गया था। मण्डी की लोकसभा सीट से कंगना के प्रत्याशी होने की संभावनाएं जताई जा रही थी। पद्मश्री मिलने पर मुख्यमंत्री ने विशेष रूप से बधाई दी है। अब उसे राज्यसभा में भेजने की चर्चाएं भी कुछ हल्कों में चल पड़ी है। यह सब प्रमाणित करता है कि कंगना को भाजपा समर्थन हासिल है। 2014 में जिस तरह से भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर भाजपा सत्ता में आयी थी उसका सच सामने आ चुका है कि एक भी मामले में कोई प्रमाण सामने नहीं आया है। भ्रष्टाचार के बाद दूसरा बड़ा मुद्दा गौ रक्षा और लव जिहाद का सत्ता में आने के बाद उठाया। इन मुद्दों से उभरा आक्रोष भीड़ हिंसा तक जा पहुंचा। इसके बाद नागरिकता कानून में संशोधन और 370 तथा तीन तलाक हटाने के मुद्दों का प्रयोग हुआ। राम मंदिर पर फैसला आया और निर्माण शुरू हुआ। लेकिन सारे मुद्दों का अंतिम परिणाम बंगाल के चुनावों में सामने आया। जहां ‘‘दो मई दीदी गई’’ के नारे की हवा निकल गयी। अब उप चुनावों के परिणामों ने भी भाजपा के सारे दावों का जमीनी सच जनता के सामने लाकर खड़ा कर दिया है।
इस समय भाजपा के सामने अगले वर्ष के शुरू में होने वाले पांच राज्यों के चुनाव हैं। इन चुनावों का कितना दबाव है इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि लंबे अन्तराल के बाद भी भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में न तो कोई किसी भी तरह का प्रस्ताव तक पारित नहीं हुआ। यहां तक की उपचुनावों के परिणामों पर भी कोई चर्चा नहीं हुई। 2014 से अब तक जितने भी चुनाव हुए हैं हरेक में देश के अन्दर वैचारिक विभाजन खड़ा करने की रणनीति पर काम किया गया। जबकि 2014 से लेकर अब तक के लिए सारे आर्थिक फैसलों ने आम आदमी को लगातार कमजोर किया है। केवल वैचारिक विभाजन से सफलता मिलती रही। आज किसान आन्दोलन ने सरकार के पावों से सारी जमीन खींच ली है। ऐसे में कंगना रणौत जैसी कमजोर बैसाखियों के सहारे फिर से एक वैचारिक विभाजन की जमीन तैयार करने का प्रयास किया गया है।

Add comment


Security code
Refresh

Facebook



  Search