लेकिन प्रधान न्यायधीश की इन चिन्ताओं को हलके से नहीं लिया जा सकता। फिर सर्वोच्च न्यायालय से बड़ा कोई मंच भी नही है जहां इन सवालों का कोई हल निकल सकता है। इसलिये इस संद्धर्भ में कुछ और सवाल तथा तथ्य सर्वोच्च न्यायालय के सामने रखना समय की मांग हो जाता है। तबलीगी समाज का जब यह सम्मलेन हुआ उससे पहले देश में नागरिकता कानून के विरोध में दिसम्बर 2019 से ही आन्दोल शुरू हो चुका था। 15 दिसम्बर से शाहीनबाग आन्दोलन स्थल बन चुका था। आन्दोलन का विरोध करने वाले और आन्दोलन के समर्थक एकदम आमने सामने की स्थिति में आ गये थे। इस स्थिति का अन्तिम परिणाम 23 फरवरी से 29 फरवरी तक दिल्ली दंगों के रूप में सामने आया जिसमें 53 लोगों की जान चली गयी। इसमें मरने वालों में 17 हिन्दु थे दो की पहचान नहीं हो सकी और शेष सब मरने वाले मुस्लिम थे। उस आन्दोलन में किन बड़े नेताओं ने कैसे कैसे नारे लगाये हैं यह पूरा देश जानता है। इन नेताओं के खिलाफ भड़काऊ भाषण देने के लिये कोई करवाई नहीं हुई है। यह भी सबके सामने है। दिल्ली दंगो के लिये जिन लोगों को गिरफ्रतार किया गया और जिनके खिलाफ मामले बनाये गये आज उन मामलों की सुनवाई में दिल्ली पुलिस की कितनी फजी़हत हो रही है यह भी आज देश के सामने आता जा रहा है।
इसी सारे परिदृश्य के बाद जब 24 मार्च को कोरोना से बचाव के लिये पूरे देश में लॉकडाऊन लागू कर दिया गया। इसी दौरान तबलीगी समाज का निजामुदीन मरकज में सम्मेलन हो रहा था। लॉकडाऊन के कारण यातायात के सारे साधन एकदम बन्द हो गये। इसके कारण इस सम्मलेन में आये करीब बारह सौ लोग वहीं मरकज में बंध कर रह गये। इनमें से करीब चौदह लोग कोरोना संक्रमित हो गये। इनके संक्रमित होने से इन्हें ही कोरोना का कारण मान लिया गया। यह लोग मुस्लिम थे और विदेशों से लेकर देश के हर राज्य से आये हुए थे, इसलिये जब इनकी अपने-अपने यहां को वापसी हुई तब इन्हें कोरोना का कारण मानते हुए कोरोना बंब कह कर हर मीडिया ने प्रचारित करना शुरू कर दिया। इसमें सोशल मीडिया के मंच ही नहीं वरन् प्रिन्ट और इलैक्ट्रानिक मीडिया के भी मंच शामिल हो गये। पूरे कोरोना काल में किस तरह मीडिया के माध्यम से हिन्दु -मुस्लिम को बांटा गया यह किसी से छिपा नहीं है। इसमें सभी तरह का अधिकांश मीडिया बेलगाम हो गया था यह एक कड़वा सच है।
लेकिन कडवा सच यह है कि आज सभी राजनीतिक दलों ने अपने- अपने आईटी सैल खोल रखे हैं। इनके माध्यम से अपने विरोधीयों के खिलाफ प्रचार करने के लिये दर्जनों वैबन्यूज पोर्टल इन दलों ने खोल रखे हैं। इनके माध्यम से बड़े- बड़े नेताओं और अन्य लोगों का चरित्र हनन किया जा रहा है। इन्ही के माध्यम से हिन्दु-मुस्लिम की दीवार खींची जा रही है जो पूरे देश के लिये घातक सिद्ध होती जा रही है। इसलिये सोशल मीडिया के मंचों पर नियन्त्रण रखने के लिये राजनीतिक दलों के आई टी सैलों पर भी नज़र रचाना बहुत ज़रूरी है। इस संद्धर्भ में राजनीतिक दलों और राजनेताओं के लिये एक अलग से सहिंता रहनी चाहिये। क्योंकि जिस तरह से एक धारा विशेष के लोग हिन्दु-मुस्लिम फैलाते जा रहे हैं उसके परिणाम हरेक के लिये घातक होंगे। क्योंकि योजनाबद्ध तरीके से हिन्दु और मुस्लिम हिन्दु और मुस्लिम में दरार पैदा की जा रही है। इसमें जब तक भड़काऊ भाषण देने वाले नेताओं को दण्डित नहीं किया जायेगा तब तक कोई भी मंच बेलगाम ही रहेगा।