Friday, 19 September 2025
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किसानो के आगे हारा सरकार का बल और छल

किसान आन्दोलन के ट्रैक्टर मार्च में जो कुछ घटा है उससे जो सवाल उभरे हैं वह आन्दोलन के नेताओं, सरकार और आम आदमी सभी के लिये गंभीर हैं। क्योंकि किसी भी आन्दोलन की सफलता इसी बात पर निर्भर करती है कि वह कितनी देर हिंसा से बचा रहता है। जब भी हिंसा घट जाती है उसके बाद आन्दोलन के मुख्य मुद्दे गौण हो जाते हैं और हिंसा में हुआ नुकसान सर्वोपरि बन जाता है। हिंसा में जब प्रति हिंसा आ जाती है तब वह कानून और व्यवस्था का मुद्दा बन जाती है। ट्रैक्टर मार्च में हुई हिंसा का जवाब न तो किसानों ने प्रति हिंसा से दिया और न ही पुलिस ने। इसके लिये दोनों बराबर प्रशंसा के पात्र हैं। लेकिन इसी के साथ किसान नेताओं के लिये यह महत्वपूर्ण होगा कि यह भविष्य मेे ऐसे तत्वों से बचने के लिये क्या रणनीति अपनाते हैं क्योंकि आन्दोलन लम्बा चलेगा यह तय है। इस हिंसा से पुलिस नेतृत्व पर भी यह सवाल उठता है कि उपद्रवियों से निपटने के लिये पुलिस व्यवस्था पूरी क्यों नहीं थी? जब ट्रैक्टर मार्च तय समय से पहले ही शुरू हो गया और उसने निर्धारित रूट भी बदल लिया तो उसे वहीं पर क्यों नहीं रोका गया। यदि उन्हे वहीं पर रोक दिया जाता तो जो कुछ लाल किले पर घटा वह न घटता। इन सवालों के जवाब एक दिन सामने अवश्य आयेंगे।
इसी हिंसा की निन्दा हर आम आदमी कर रहा है और की भी जानी चाहिये क्योंकि लाल किले पर राष्ट्रीय ध्वज के अतिरिक्त किसी अन्य ध्वज का फहराया जाना राष्ट्रीय अपमान है जिसे कतई बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। आन्दोलन के अधिकारिक नेतृत्व ने भी हिंसा की निन्दा की है ऐसे लोगों को चिन्हित करके उन्हे सज़ा देने की भी मांग की है। ऐसे लोगों ने अपनी असंबद्धता भी प्रकट की है। लाल किले पर निशान साहिब के धार्मिक चिन्ह वाले भगवा झण्डे को फहराने का काम दीप सिद्धु ने किया है यह सामने भी चुका है। उसके खिलाफ भी एफआईआर दर्ज है। दीप सिद्धु का भाजपा सासंद सन्नी दयोल और पूरे परिवार के साथ निकटता भी वायरल हुए फेाटोज के माध्यम से सामने आ चुकी है। इसी निकटता के माध्यम से प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी और गृह मन्त्री अमित शाह के साथ भी सिद्धु के फोटोज़ वायरल हो चुके हैं। किसान नेताओं ने सिद्धु को सरकार का प्लांट करार दिया है। कांग्रेस ने हिंसा की जिम्मेदारी गृह मन्त्री पर डालते हुए उनके त्याग पत्र की मांग की है। सिद्धु की राजनीतिक पृष्ठभूमि की बजाये उसका यह कृत्य मुख्य विषय है। इस परिदृश्य में सिद्धु को पकड़कर उसे तुरन्त प्रभाव से जेल में डालकर राष्ट्रद्रोह का मामला चलाया जाना चाहिये। सरकार यह काम कितनी जल्दी और कितनी ईमानदारी से करती है उसका असर उसकी विश्वसनीयता पर पड़ेगा। सिद्धु की जो पृष्ठभूमि सामने आयी है उसके दृष्टिगत सिद्धु के खिलाफ कारवाई सरकार के लिये एक कसौटी होगा क्योंकि कारवाई में किसी भी तरह की ढिलाई का अर्थ किसानों के आरोप को प्रमाणित करना होगा।
सरकार ने किसान नेताओं के खिलाफ दो दर्जन से अधिक एफआईआर किये हैं। धरना समाप्त करवाने और घटना स्थल खाली करवाने के लिये बल प्रयोग के प्रयास पुलिस द्वारा किये गये। बहुत सारे संगठनों द्वारा आन्दोलन छोडकर वापिस जाने के समाचार तक आ गये। धरना स्थल पर भाजपा के कार्यकर्ता भी आ पहुंचे। किसाने नेता राकेश टिकैत गिरफ्तारी देंगे। इस तरह के समाचार आने से लगा पुलिस रात को आन्दोलनकारियों को खदेड़ देगी। लेकिन किसान नेताओं की रणनीति के आगे पुलिस के सारे प्रयास असफल हो गये। मीडिया के आकलन भी फेल हो गये। अब यह साफ होने लगा है कि आन्दोलन ऐसे खत्म नहीं करवाया जा सकता है। ट्रैक्टर मार्च में जितनी संख्या में किसान शामिल हुए हैं वह सरकार और मीडिया के अनुमानों से कहीं ज्यादा रहा है। इस आन्दोलन को असफल करवाने के लिये सरकार और उसके अन्ध समर्थक मीडिया का सारा बल-छल फेल हो गया है। अब किसान नेता इस छल की रणनीति के प्रति और सजग -सर्तक हो जायेंगे यह स्वभाविक है।
ट्रैक्टर मार्च में हुई हिंसा के लिये मुख्य जिम्मेदारी दीप सिद्धु और उसके साथियों की सामने आयी है। दीप सिद्धु की भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के साथ निकटता के फोटो वायरल हो चुके हैं। एफआईआर इन लोगों के खिलाफ दर्ज है। किसान नेता इनकी गिरफ्रतारी की मांग कर रहे हैं। इसलिये दीप सिद्धु की गिरफ्तारी सरकार के लिये एक कसौटी बन गया है। सिद्धु का आचरण आन्दोलन के नेताओं की ताकत और सरकार का कमजोर पक्ष बनता जायेगा यह तय है। जैसे जैसे सिद्धु की भूमिका का प्रचार होता जायेगा उसी अनुपात में आन्दोलन ताकत पकड़ता जायेगा। क्योंकि किसान नेताओं ने सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत जज से इसकी भूमिका की जांच करवाने और उसकी दो माह की काॅल डिटेल सामने लाने की मांग कर दी है। यह प्रकरण पहले से ही सर्वोच्च न्यायालय के पास लंबित है और ट्रैक्टर मार्च के बाद दो और याचिकाएं शीर्ष अदालत में दायर हो गयी है। ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय के लिये भी सिद्धु की भूमिका को नज़रअन्दाज करना संभव नहीं होगा। क्योंकि इसी आन्दोलन के परिदृश्य में सोलह विपक्षी दलों ने बजट सत्र पर राष्ट्रपति के भाषण के बहिष्कार का फैसला लिया है। सरकार के बल और छल का हारना किसानो की पहली जीत है।

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