यह कानून किसी के भी हक में नही है। शैल नौ जून से इस पर कटाक्ष कर लिखता आ रहा है। आज सरकार किसानों से बातचीत के लिये जिस तरह के प्रस्ताव भेज रही है। उनमें आवश्यक वस्तु अधिनियम का कोई जिक्र नही किया जा रहा है। क्योंकि इसी कानून के माध्यम से कीमतों और वस्तुओं के भण्डारण पर अंकुश लगाया जाता है। 1955 से चले आ रहे इस कानून को अब रद्द कर दिया गया है। अब अकाल महामारी और युद्ध की परिस्थिति में ही सरकार भण्डारण और कीमतों पर रोक लगा पायेगी। क्या इससे आने वाले समय में कीमतें नही बढ़ेंगी? 2014 में ही शान्ता कमेटी गठित की गयी थी जिसकी सिफारिशों का परिणाम है यह कानून। तभी से अदानी ने भण्डारण के लिये सीलो गोदाम बनाने शुरू कर दिये थे। आज करीब दस लाख मिट्रिक टन के भण्डारण की क्षमता अकेले उसी ने तैयार कर ली है। शान्ता कमेटी ने अपनी सिफारिशों में साफ कहा है कि एफसीआई की जगह अजान भण्डारण में प्राइवेट सैक्टर को लाया जाना चाहिये। जब प्राइवेट सैक्टर में एक बड़ा व्यापारी इस तरह का असिमित भण्डारण कर लेगा तो क्या उसका असर कीमतों पर नही पड़ेगा। अवश्य पड़ेगा और तब इन कथित सुधारों की असलियत सामने आयेगी। इसमें किस गणित से भाजपा आम आदमी का हित देख रही है? इसका खुलासा क्यों नही किया जा रहा है। इसे प्रस्तावित प्रस्तावों से बाहर क्यों रखा जा रहा है।
यदि इसी अकेले सवाल पर विचार किया जाये तो यह आशंका उभरना स्वभाविक है कि क्या सरकार आवश्यक वस्तु अधिनियम को चर्चा से ही बाहर रखने का वातावरण अपरोक्ष में तैयार कर रही है। क्योंकि यदि किसान को न्यूतनम समर्थन मूल्य की कानूनी गांरटी दे भी दी जाये और भण्डारण तथा कीमतों पर नियन्त्रण न किया जाये तो किसान को तो बतौर उत्पादक कोई फर्क नही पडेगा उसे तो न्यूनतम कीमत मिल जायेगी। इसमें हर उस उपभोक्ता पर असर पड़ेगा जो सीधे खेत नही जोत रहा है। इसका असर सस्ते राशन की खरीद योजना पर पड़ेगा। क्योंकि अदानी-अंबानी जैसे एम एस पी पर खरीद करके भण्डारण करने और कीमतें बढ़ाने के लिये स्वतन्त्र रह जाते हैं। अदानी-अंबानी की पहली आवश्यकता ही यही है कि उन्हे तो सारे अनाज का भण्डारण करके अपनी कीमतों पर बेचने की छूट चाहिये जो इस कानून से उन्हे मिल जाती है। इस वस्तुस्थिति को समझने और उसका आकलन करने की आवश्यकता राजनीतिक दलों को है क्योंकि किसानों और आम आदमी जो सस्ते राशन के डिपो के सहारे हैं सभी का वोट चाहिये। इसके लिये आम आदमी को यह समझने और समझाने की आवश्यकता है कि गरीब का नाम लेकर जितनी भी योजनाएं इस सरकार के कार्यकाल में शुरू हुई हैं उनमें अन्त में सबसे अधिक नुकसान इसी गरीब का हुआ है। जो उसे एक हाथ से दिया गया दूसरे हाथ से उससे उसका दो गुणा छीन लिया गया और उसे समझ भी नही आने दिया गया। नोटबंदी से लेकर आज इन कथित कृषि सुधारों तक सभी का भोक्ता वही है। नोटबंदी में उसकी सारी जमापंूजी बैंक तक पहुंचा दी। जनधन में जीरों बैलेन्स के खाते खुलवाकर न्यूनतम की शर्त लगाकर जुर्माना तक लगा दिया। हर तरह के जमा पर ब्याज घटा दिया। किसी भी योजना और फैसले का आकलन इसी बिन्दु पर पहंुचता है। आवश्यक वस्तुअधिनियम को खत्म करना इस दिशा में अन्तिम प्रहार है।