Friday, 19 September 2025
Blue Red Green
Home सम्पादकीय कांग्रेस में उठते सवालों का औचित्य

ShareThis for Joomla!

कांग्रेस में उठते सवालों का औचित्य

बिहार विधानसभा और उसी के साथ हुए अन्य राज्यों के उपचुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा नही रहा है। इन परिणामों के बाद कांग्रेस में फिर एक विवाद खड़ा हो गया है। पूर्व मन्त्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने आरोप लगाया है कि इन चुनावों को गंभीरता से नही लिया गया। कपिल सिब्बल के आरोप का जबाव तो लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन और राजस्थान के मुख्यमन्त्री अशोक गहलोत ने दिया है। कपिल सिब्बल के बाद राज्यसभा में दल के नेता गुलाम नवी आज़ाद ने भी कहा है कि कांग्रेस का संपर्क आम आदमी से टूट गया है। कांग्रेस के अन्दर जो यह स्वर उठने लगे हैं उससे आम आदमी का ध्यान भी इस ओर आकर्षित हुआ है क्योंकि बिहार विधानसभा चुनावों से पहले भी कांग्रेस के करीब दो दर्जन नेताओं ने सोनिया गांधी को एक पत्र लिखकर कुछ सवाल खड़े किये थे। लेकिन जैसे ही यह पत्र वायरल हुआ था तब कई नेताओं का इस पर स्पष्टीकरण भी आ गया था। बिहार विधानसभा या अन्य राज्यों में हुए उपचुनावों की कोई अधिकारिक समीक्षा पार्टी की ओर से अभी तक सामने नही आई है। बिहार में पार्टी का गठबन्धन आर जे डी और अन्य दलों के साथ था। महागठबन्धन बनाकर तेजस्वी यादव के नेतृत्व में यह चुनाव लड़ा गया था। महागठबन्धन के चुनाव हारने को चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली को दोषी ठहराया गया है। जिस तरह के साक्ष्य इस संद्धर्भ में सामने आये हैं उनसे चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल उठते हैं।
ईवीएम की विश्वसनीयता को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने अक्तूबर 2013 को भाजपा नेता डा. स्वामी की याचिका पर दिये फैसले में ईवीएम के साथ वी वी पैट लगाये जाने का फैसला विश्वसनीयता के सन्देहों को दूर करने के लिये ही दिया था। यह सुनिश्चित किया था कि चुनाव परिणाम पर सवाल उठने के बाद वी वी पैट की पर्चीयांें की गिनती सुनिश्चित की जायेगी। बिहार चुनाव में यह आरोप लगा है कि कुछ मतगणना केन्द्रों में वी वी पैट की पर्चीयां ही गायब मिली हैं। इसका नुकसान आर जे डी और कांग्रेस दोनों के उम्मीदवारों को हुआ है। इसको लेकर आर जे डी अदालत में जाने का रास्ता देख रही है। आपराधिक छवि के लोगों को उम्मीदवार बनाने और उनके अपराधों की सूची को समुचित रूप से प्रचारित न करने तथा ऐसे लोगों को पार्टी का उम्मीदवार बनाने के कारणों को सार्वजनिक करने के लिये मुख्य चुनाव आयुक्त और बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी के खिलाफ आयी अदालत की अवमानना की याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने नोटिस जारी कर दिया है क्योंकि शीर्ष अदालत ने इस आशय के आदेश इसी वर्ष दे रखे हैं। इन आदेशों की अनुपालना न किया जाना भी चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाता है।
चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर 2014 में हुए लोकसभा चुनावों से लेकर आज बिहार विधानसभा तक हुए हर चुनाव पर सवाल उठे हैं। ईवीएम को लेकर आधा दर्जन से अधिक याचिकाएं सर्वोच्च न्यायालय मेें लंबित है। ईवीएम पर उठे सवालों से हर चुनाव परिणाम का आकलन किसी भी राजनीतिक दल की लोकप्रियता के रूप मेें किया जाना एकदम आप्रसांगिक हो गया है। फिर कांग्रेस के लिये तो उसके अपने ही नेताओं के ब्यानों ने हर चुनाव में कठिनाईयां पैदा की हैं। कभी शशी थरूर तो कभी सैम पित्रोदा जैसे नेताओं के ब्यानों पर कांग्रेस के विरोधीयों ने बवाल खडे किये हैं। अभी इन्ही चुनावों में कमलनाथ के ब्यान से पार्टी के लिये परेशानी खड़ी हुई है। इसलिये आज बिहार की हार के बाद यह कहना कि इन चुनावों को गंभीरता से नही लिया गया या पार्टी आम आदमी से कट गयी है यह सही आकलन नही होगा। क्योंकि इन चुनावों से ठीक पहले सामने आये पार्टी के वरिष्ठ तेईस नेताओं के पत्र से ही इस हार की पटकथा लिख दी गयी थी यह कहना ज्यादा संगत होगा।
आज जब तक ईवीएम की विश्वनीयता पर उठते सवालों का अन्तिम जबाव नही आ जाता है तब तक चुनाव परिणाम इसी तरह के रहेंगे यह स्पष्ट है। इसलिये आज पहली आवश्यकता ई वी एम के प्रयोग पर फैसला लेने की है। क्योंकि कोरोना काल में लाॅकडाऊन के कारण परेशानीयां झेल चुके मतदाता से यह उम्मीद करना कि उसने फिर उसी व्यवस्था को समर्थन दिया होगा यह उस प्रवासी मजदूर के साथ ज्यादती होगी। बिहार विधानसभा के चुनाव परिणामों में हार जीत का जो अन्तराल सामने आया है और उस पर जिस तरह के सवाल उठे हैं उससे चुनाव आयोग पर उठते सन्देहों को और बल मिलता है। इस परिदृश्य में आज कांग्रेस नेताओं को नेतृत्व पर परोक्ष/अपरोक्ष में सवाल उठाने से पहले इन बड़े सवालों पर विचार करना होगा। 2014 के चुनावों से पहले अन्ना आन्दोलन के माध्यम से भ्रष्टाचार के जो आरोप लगाये गये थे क्या उनमें से कोई भी छः वर्षों में प्रमाणित हो पाया है। क्या आम आदमी को सरकार के इस चरित्र के प्रति जागरूक करना आवश्यक नही है? आज राहुल गांधी के अतिरिक्त कांग्रेस के और कितने नेता हैं जो सरकार से सवाल पूछने का साहस दिखा रहे हैं। राहुल गांधी की छवि बिगाड़ने के लिये मीडिया में किस तरह से कितना निवेश किया गया है यह कोबरा पोस्ट के स्टिंग आप्रेशन से सामने आ चुका है लेकिन कांग्रेस के कितने नेताओं ने इसे मुद्दा बनाया है इस समय भाजपा जिस तरह के वैचारिक धरातल पर काम कर रही है उसका जबाव उसे उसी वैचारिकता की तर्ज पर देना होगा। इसलिये आज जिस तरह के सवाल कांग्रेस का एक वर्ग उठा रहा है उससे न तो संगठन का और न ही समाज का भला होगा।

Add comment


Security code
Refresh

Facebook



  Search