Friday, 19 September 2025
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20 लाख करोड़ का ज़मीनी सच

 

कोरोना तालाबन्दी के कारण एक उद्योगपति से लेकर मज़दूर तक हर आदमी प्रभावित हुआ है क्योंकि सारी आर्थिक गतिविधियों पर विराम लग गया था। इसमें हुए नुकसान से उबरने के लिये प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने सरकार की ओर से बीस लाख करोड़ की राहत के पैकेज की घोषणा की है। इस पैकेज में किस वर्ग को क्या और कैसे मिलेगा इसका विवरण वित्तमन्त्री ने अलग से घोषित किया है। 20 लाख करोड़ एक बहुत बड़ा आंकड़ा है और स्वभाविक है कि जब प्रधानमन्त्री किसी राहत की घोषणा करेंगे तो उसका आकार भी उस पद के अनुरूप होगा। इससे आम आदमी को कितनी उम्मीद बंधी होगी इसका अन्दाजा लगाना बहुत कठिन नहीं हैं। लेकिन अगर यह पैकेज आम आदमी की उम्मीदों के अनुरूप ज़मीनी शक्ल न ले पाया तब स्थिति क्या और कैसी हो जायेगी शायद इसका अन्दाजा इस समय नहीं लगाया जा सकता। इसलिये इस पैकेज से उम्मीदें बांधने से पहले यह समझना आवश्यक हो जाता है कि सरकार की अपनी वित्तिय सेहत कैसी है।

किसी भी सकरार की वित्तिय सेहत को समझने के लिये सबसे प्रमाणिक साक्ष्य उसका बजट दस्तावेज होता है। क्योंकि इस दस्तावेज में यह दर्ज रहता है कि एक वित्तिय वर्ष में सरकार का कुल खर्च, कुल आय और कुल ऋण दायित्व कितना है। इस संद्धर्भ में वित्तिय वर्ष 2020-21 के लिये जो बजट संसद द्वारा पारित किया गया उस पर नज़र डालना आवश्यक हो जाता है। इस वर्ष के बजट दस्तावेजों के अनुसार वर्ष 2020-21 में सरकार का कुल खर्च 37,14,893.47 करोड़ होगा। इसमें स्थापना का खर्च 6,09,584.79 करोड़ पैन्शन 2,10,682 करोड़ और ब्याज भुगतान 7,08,203 करोड़ रहेगा। यह कुल खर्च ही 15,28,469.79 करोड़ हो जाता है और शायद इस खर्च में कोई कटौती करना संभव नही होता है। ऐसे में यह स्पष्ट हो जाता है कि सरकार को इस आपदा में अपनी ओर से 20 लाख करोड़ की राहत प्रदान करने के लिये अपने सारे विकासात्मक खर्चों पर पूर्ण विराम लगाना पड़ता है। लेकिन अभी तक सरकार ने ऐसा कुछ भी देश को नही बताया है कि वह अपने कौन से खर्चों में कटौती करने जा रही है। बल्कि 20 हज़ार करोड़ के सैन्ट्रल बिस्टा कार्यक्रम को रोकने का फैसला नही लिया गया है जबकि पुराना संसद भवन एकदम ठीक है। उसके स्थान पर नया भवन बनाने की कोई आवश्यकता नही है। ऐसे कई प्रौजैक्ट हैं जिन्हें वर्तमान हालात में शुद्ध रूप से अनुपादक खर्चे कहा जा सकता है। इस वित्तिय वर्ष में सरकार की कुल अनुमानित आय 30,95,232.91 करोड़ है लेकिन आय के यह अनुमान जब लगाये गये थे तब देश में कोई कोरोना नहीं था कोई तालाबन्दी नही थी। जबकि 24 मार्च को तालाबन्दी लगाने से एक सप्ताह में ही कर संग्रह में 6000 करोड़ की कमी आई है। अप्रैल में यह कितनी और कम हुई है इसके आंकड़े अभी तक नही आये हैं। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि सरकार की जो वित्तिय स्थिति इन बजट दस्तावेजों से सामने आती है उनके आधार पर 20 लाख करोड़ सरकारी कोष से दे पाना किसी भी गणित से संभव नही है।
इस आपदा में सबसे ज्यादा मज़दूर वर्ग प्रभावित हुआ है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 23 करोड़ प्रवासी मज़दूर सरकार के रिकार्ड पर हैं। संभव है कि इतने ही और होंगे जो शायद सरकार के रिकार्ड से बाहर हैं। यह लोग अपने घरों को वापिस जाना चाहते हैं लेकिन इनके पास किराया तक नही है। जो 20 लाख करोड़ की राहत का पैकेज दिया गया है उसमें से इन मज़दूरों के लिये सिर्फ एक हज़ार करोड़ है। यह एक हज़ार करोड़ 23 करोड़ मज़दूरों में यदि बांटा जाये तो प्रत्येक के हिस्से में 50 रूपये भी नही आते है। फिर अभी सरकार ने लेबर नियमों में बदलाव कर दिया है। इस बदलाव से मज़दूरों को आठ घन्टे की जगह बारह घन्टे काम करना पड़ेगा। इस तरह के फैसलों का व्यवहारिक पक्ष क्या रहेगा इसका पता आने वाले दिनों में लगेगा। यह मज़दूर गांव वापिस आ रहे हैं यह उम्मीद है कि इन्हें मनरेगा में तो काम मिल जायेगा। लेकिन मनरेगा का सच यह है कि वर्ष 2019-20 में इसके लिये 71002 करोड़ का प्रावधान था और 2020-21 में इसे घटाकर 61500 करोड़ कर दिया गया है और अब पैकेज में भी इसमें कोई और बढ़ौत्तरी नही की गयी है। राहत पैकेज में किसी भी वर्ग को हाथ में कैश नही दिया गया है। किसान और रेहड़ी फड़ी वाले से लेकर उद्योगपति तक को बैंको से ऋण सुविधा का प्रावधान किया गया है कुछ को बिना किसी गंारटी के यह ऋण लेने का प्रावधान किया है। एक साल तक किस्त न चुकाने की सुविधा रहेगी। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या बैंकों के पास इतना पैसा है कि वह यह सारे ऋण दे पायेंगे। फिर देश में ऋण माफी का ऐजैण्डा तो 1977 मेें बनी जनता पार्टी की सरकार से शुरू हो गया था। यह ऐजैण्डा तब से लेकर अब तक किसी न किसी शक्ल में चल ही रहा है। बल्कि आज तो दिवालिया कानून के तहत बड़े बड़े उद्योग घराने हज़ारों करोड़ के ऋण खत्म करवा चुके हैं।
ऐसे में यह सवाल फिर अपनी जगह खड़ा रह जाता है कि क्या सरकार का यह राहत पैकेज आने वाले दिनों मेे बैंकों के लिये एक बड़ा संकट पैदा करने वाला है। क्योंकि 2018 में जो मुद्रा ऋण योजना शुरू की गयी थी उसमें लाखों करोड़ का ऋण बिना किसी गांरटी के दिया गया था जिसमें से शायद 70%से भी अधिक एनपीए हो चुका है। हिमाचल में भी इस योजना के तहत 2500 करोड़ से अधिक के ऋण दिये गये थे लेकिन इसमें से कितने एनपीए हो चुके हैं इसका कोई रिकार्ड सरकार के पास अब तक नही है। इसलिये फिर यह सवाल खड़ा रहता है कि जब सरकार के पास पैसा नही है बैंक पहले ही एनपीए के संकट में हैं तब प्रधानमन्त्री के इस ऐलान को अमली जामा कैसे पहनाया जायेगा यह सवाल उठना स्वभाविक है। फिर जो पैकेज दिया गया है यदि उस पर ईमानदारी से अमल किया जाये तो उससे उत्पादन ही बढ़ेगा जबकि आवश्यकता तो मांग के बढ़ने की है। मांग तब बढे़गी जब उपभोक्ता की क्रय शक्ति बढ़ेगी। परन्तु यह जो करोड़ों प्रवासी मज़दूर है यह उपभोक्ता का सबसे बड़ा आंकड़ा हैं और इसकी क्रय शक्ति पांच किलो अनाज़ से तो बढे़गी ही नही। फिर जिन हालात में इसे अब निकलना पडा़ है उससे इसका मनोबल एकदम टूट गया है। यह मज़दूर पूराने काम पर आसानी से लौट आयेगा इसकी संभावना इन परिस्थितियों में एकदम नही के बराबर है। ऐसे में इसका कोई जवाब नही दिखता है कि पैकेज से मांग कैसे बढ़ेगी। क्योंकि ऐसे पैकेज तो उद्योग के विभिन्न क्षेत्रों को कोरोना से बहुत पहले से दिये जाते रहे हैं और उनसे मांग पर कोई असर नही पड़ा है उल्टा आम आदमी के जमा पर बैंक लगातार ब्याज दरें कम करते आये हैं और संभव है कि इस पैकेज के बाद फिर इस जमा पर ब्याज दरें कम की जाये क्योंकि बैंकों के पास यही जमा आज आसानी से उपलब्ध है।

 

 

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