कोरोना को लेकर सरकारी स्तर पर चिन्ताएं 14-15 मार्च को सामने आयी थी जब शैक्षणिक, धार्मिक और अन्य सार्वजनिक स्थलों को बन्द कर दिया गया था। 22 मार्च को प्रधानमन्त्री के आह्वान पर एक दिन के कफ्रर्यू की अनुपालना की गयी थी1 24 मार्च से पूरे देश में लाकडाऊन चल रहा है। कुछ राज्यों ने तो कफ्रर्यू तक लगा रखा है। सारी आर्थिक गतिविधियों पर पूरा विराम लगा हुआ है। विपक्ष भी इस आपदा में पूरी तरह सरकार के साथ खड़ा है। कहीं से यह सवाल नही उठ रहा है कि आर्थिक गतिविधियों को पूरी तरह बन्द कर देना संकट का हल कैसे हो सकता है। इस महामारी से लड़ने के लिये सरकार की तैयारियों पर कोई सवाल नही उठाया गया है। इस समय सरकार के साथ एक-जुटता से खड़े होना ही सबकी प्राथमिकता बनी हुई है। लेकिन इसी दौरान जब दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज में मुस्लिम समाज के तबलीगी समुदाय का एक सम्मेलन हुआ तक उस सम्मेलन के बाद तबलीगी समुदाय को ऐसे प्रचारित किया गया कि देश में शायद कोराना इन्ही के कारण फैला है। पूरे देश में तबलीगीयों को चिन्हित करने उन्हे पकड़ने की मुहिम शुरू हो गयी। सैकड़ो लोगों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज कर लिये गये। सोशल मीडिया से लेकर इलैक्ट्रानिक मीडिया के एक बड़े हिस्से ने इन्हें कोरोना बम और तालिबानी के संबोधन तक दे दिये। कई जगहों पर हिंसा तक हो गयी।
मीडिया के एक बड़े वर्ग में जब इस समुदाय के खिलाफ एक सुनियोजित प्रचार चल रहा था तब सरकार की ओर से इस प्रचार को रोकने के लिये कोई कदम नही उठाये गये। सरकार की इस तटस्थता के बाद सर्वोच्च न्यायालय में कुछ मुस्लिम संगठनों की ओर से एक याचिका दायर हुई। इस याचिका में ऐसे प्रचार के खिलाफ कारवाई करने और मीडिया को दिशा निर्देश जारी करने का आग्रह किया गया था। याचिका में पूरे दस्तावेजी प्रमाण संलग्न किये गये थे। लेकिन इस याचिका पर कोई विशेष कारवाई नही हुई । फेक न्यूज़ को लेकर कुछ दिशा निर्देश जारी हुए और प्रैस कांऊसिल आफ इण्डिया से भी याचिका में लगाये गये आरोपों पर जवाब मांग लिया गया है। इन आरोपों की प्रमाणिकता का अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है जब 17 अप्रैल को दैनिक जागरण ने यह खबर छापी की मेरठ के कैंसर अस्पताल ने यह नोटिस चिपका रखा है कि मुस्लिम रोगी तभी यहां आये जब उसे कोरोना नैगेटिव घोषित कर दिया गया हो। उसी दिन एक्सप्रैस के अहमदाबाद संस्करण में भी यह छपा कि अहमदाबाद के अस्पताल में भी हिन्दु और मुस्लिम के लिये अलग-अलग वार्ड बना दिये गये हैं और यह सरकार के निर्देशों के अनुसार हुआ है। इन समाचारों का कोई खण्डन नही आया। बल्कि 18 अप्रैल को भारत सरकार के संयुक्त सचिव ने अपनी दैनिक ब्रिफिंग में आकड़े रखते हुए यह बताया की 14378 मामलों में से 4291 मामले तबलीगी समाज से हैं। तमिलनाडू के 84% दिल्ली के 63% तेलंगाना के 79% उत्तर प्रदेश के 59% और आंध्रप्रदेश के 61% मामले तबलीगी से जुडे़ हैं। आकंडो के इस तरह के विवरण से यह और पुख्ता हो गया कि यही समाज इस बिमारी का एक मात्र कारण होता जा रहा है।
इन खुलासों के बाद मुस्लिम समुदाय के खिलाफ जो नफरत का वातावरण बना है वह केवल भारत तक ही सीमित नही रहा है। बल्कि मुस्लिम देशो में बैठे कई उग्र हिन्दुवाद के समर्थक भारतीय, ईस्लाम और मुस्लिमों के खिलाफ घिनौने प्रचार में लग गये हैं। ईस्लामिक देशों के संगठनों ने इस प्रचार का कड़ा संज्ञान लिया है। बहुत सारे ऐसे दुष्प्रचारक अपनी पोस्टों में प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी का फोटो भी अपने साथ डालकर यह संकेत दे रहे हैं कि उन्हे प्रधानमन्त्री का आर्शीवाद प्राप्त है। वहां की सरकारों ने इसको गंभीरता से लिया है कि जो समर्थक यहां रोज़ी, रोटी कमाते हुए भी ईस्लाम और मुस्लिमों के खिलाफ ऐसा प्रचार कर रहे हैं वह अपने देश में क्या-क्या कर रहे होंगे । इन देशो में भीरतीयों के खिलाफ वातावरण बनना शुरू हो गया है। भारतीयों को वापिस भेजने की मांग उठनी शुरू हो गयी है। ऐसे एक दर्जन कट्टरवादीयों के खिलाफ कारवाई करते हुए उन्हे नौकरी से भी निकाल दिया गया है। संकेत और संदेश स्पष्ट है कि यदि मुस्लिमों के खिलाफ यह नफरत प्रचार बन्द न हुआ तो विदेशों में बैठे भारतीय गंभीर संकट में पड़ जायेंगे।