Friday, 19 September 2025
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सत्ता के दो वर्ष बाद

जयराम सरकार के सत्ता में दो वर्ष पूरे हो गये हैं। यह दो वर्ष पूरे होने पर सरकार ने शिमला के रिज़ पर एक बड़ी रैली का भी आयोजन किया जिसमें केन्द्रिय गृह मन्त्री राष्ट्रीय अध्यक्ष अमितशाह और कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा तथा केन्द्रिय वित्त राज्य मन्त्री अनुराग ठाकुर ने भाग लिया। इस रैली का आयोजन सरकार का रिपोर्ट कार्ड प्रदेश की जनता के सामने रखने के नाम पर किया गया था। इस रैली में प्रदेश के पूर्व मुख्यमन्त्री और अनुराग ठाकुर के पिता प्रेम कुमार धूमल भी शामिल हुए। लेकिन प्र्रदेश के वरिष्ठ नेता पूर्व मुख्यमन्त्री शान्ता कुमार रैली से गायब रहे। रैली के सभी बड़े वक्तांओं ने सरकार की पूरी पूरी प्रंशसा की। अमितशाह ने जयराम और मोदी के संबंधों को सरकार की सफलता का बड़ा कारण बताया। अनुराग ने जयराम को बड़ा भाई और जयराम ने अनुराग को छोटा भाई बताया। एक बड़ी रैली में अपना रिपोर्ट कार्ड जनता के सामने रखते हुए सरकार और संगठन को एक दूसरे की जो भी औपचारिक प्रंशसा करनी चाहिये थी वह रस्म अदायगी पूरी तरह से निभाई गयी। गोदी मीडिया ने  भी अपना ‘‘ जिसकी डफली उसी का राग’’ का धर्म पूरी निष्ठा से निभाया है और शायद इसी के चलते सरकार को गुड गवर्नैन्स का प्रमाण पत्र भी मिला है।
 किसी भी सरकार के सत्ता के पहले दो वर्ष प्राईम टाईम माने जाते हैं। क्योंकि नीतिगत महत्वपूर्ण फैसले इसी शुरू के समय में लिये जाते हैं। अगले दो वर्षों में उन फैसलों  पर अमल किया जाता है। अन्तिम वर्ष चुनाव का होता है और तब इस सब का परिणाम जनता के सामने स्वतः ही आ जाता है। इसलिये अक्सर दो वर्ष के बाद भी सरकारों को लेकर उनका सर्वे किये जाने का चलन भी आ चुका है। जयराम सरकार का भी एक ऐसा ही सर्वे सामने आया है। इस सर्वे में कहा गया है कि यदि आज चुनाव हो जायें तो भाजपा को 25 से 27 सीटें ही मिल पायेंगी। इसी सर्वे के मुताबिक इन्वैस्टर मीट का असर केवल 14% जनता पर ही है। भाजपा के उच्च सूत्रों के मुताबिक यह सर्वे हाईकमान में भी चर्चित हुआ है। सूत्रों का दावा है कि जिस तरह की राष्ट्रीय परिस्थितियां आज बनती जा रही हैं उन्हें सामने रखते हुए इस तरह के सर्वे अन्य प्रदेशों को लेकर भी करवाये गये हैं। ‘‘आई विटनैस’’ के इस सर्वे का यदि प्रदेश की परिस्थितियों के संद्धर्भ में आकलन किया जाये तो यह सर्वे जमीनी हकीकत के बहुत नजदीक लगता है।
 आज मीडिया और सरकारों में जिस तरह के संबंध बन चुके हैं और इन संबंधों के कारण सरकारों को जो श्रेष्ठता के प्रमाणपत्र मिल रहे हैं उनकी विश्वसनीयता भी उसी अनुपात में प्रश्नित हो चुकी है। पूर्व की धूमल और वीरभद्र सरकारों को थोक में यह श्रेष्ठता प्रमाण पत्र मिले हैं। यदि यह प्रमाण पत्र हकीकत के थोड़ा भी नजदीक होते तो यह सरकारें सत्ता में वापसी करती। लेकिन एक भी सरकार ऐसा नही कर पायी है। इससे सबसे ज्यादा मीडिया की अपनी विश्वसनीयता पर ही सवाल उठे हैं। इसलिये जयराम सरकार भी इस दिशा में कोई अपवाद सिद्ध नही हो पायेगी यह तय है। सरकार ने प्रदेश की जनता को इन दो वर्षों में क्या दिया है जिसका रिपोर्ट कार्ड लेकर यह सरकार जनता के सामने लेकर गयी है यदि उस पर निष्पक्षता से नजर डाली जाये तो स्थितियां बहुत निराशाजनक तस्वीर सामने रखती हैं। आम आदमी को रोजगार और मंहगाई सबसे ज्यादा प्रभावित करती है। क्योंकि इन्ही के कारण उसकी रसोई, शिक्षा और स्वास्थ्य का बजट प्रभावित होता है। सरकार ने कितने लोगों को दो वर्षों में रोजगार उपलब्ध करवाया है इसको लेकर विधानसभा के हर सत्र में सवाल आये हैं। इन सवालों के जवाब में कब क्या आंकड़े दिये गये है और कितनी बार यह कहा गया है कि सूचना एकत्रित की जा रही है। इसी को अगर इकठ्ठा रखकर कोई भी मंत्री या अधिकारी देखेगा तो शायद वह स्वयं ही शर्मसार महसूस करेगा क्योंकि यह सब कुछ सांख्यिकी विभाग द्वारा प्रकाशित अधिकारिक सूचनाओं से मेल नही खाता है। शैल यह सारे दस्तावेजी प्रमाण अलग-अलग समय पर पाठकों के सामने रख चुका है। शिक्षा और स्वास्थ्य की सही हालत क्या है इसका खुलासा प्रदेश उच्च न्यायालयों में आयी याचिकाओं से लग जाता है जहां अदालत को संबंधित सचिवों को व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित रहने के फरमान देने पड़े हैं। मंहगाई के प्रति सरकार की गंभीरता इसी से पता चल जाती है जब रसोई गैस और पैट्रोल-डीजल के दाम बढ़ाये गये तथा प्याज कम खाने की नसीहत दी गयी। लेकिन जो रिपोर्ट कार्ड जनता के सामने रखा गया उसमें इन मुद्दों का जिक्र तक नही किया गया।
 विकास की स्थिति यह है कि प्रदेश के लिये केन्द्र द्वारा घोषित राष्ट्रीय राज मार्ग अभी तक सिद्धान्त रूप से आगे नही बढ़े हैं। प्रदेश की सड़कों और अन्य कार्यों के लिये केन्द्र से चैहद हजार करोड़ की मांग की गयी है। लेकिन अपने लिये दो सौ से ज्यादा गाड़ियां खरीद ली गयी। अपने वेतन भत्ते बढ़ा लिये गये और उस पर उठे जन रोष के बाद भी उसे वापिस नही लिया गया। सरकार के खर्चे चलाने के लिये हर माह कर्ज लिया जा रहा है। बजट से पहले और बजट के बाद टैक्स लगाये जाते रहे हैं लेकिन बजट को टैक्स फ्री घोषित/प्रचारित किया जाता है। जब सार्वजनिक जीवन में इतनी भी सुचिता नही रह जायेगी कि हम अपनी जनता से स्पष्ट ब्यानी कर सकें तो फिर ऐसे आयोजनों से क्या लाभ मिलेगा। इसीलिये इन आयोजनों को कर्ज लेकर घी पीने की संज्ञा दी जा रही है। ऐसे में जब सरकार बजट के लिये सुझाव आमन्त्रित करने की बात करती है तब यही लगता है कि सरकार कैसे जनता को ना समझ मानकर चलती है। पिछले कई वर्षों से हर बजट टैक्स फ्री बजट दिया जाता रहा है और इसके बावजूद वस्तुओं और सेवाओं के दाम तथा सरकार की आय बढ़ती रही है। जयराम सरकार ने भी बजट के लिये सुझाव मांगे है ऐसे में सरकार से आग्रह है कि आप तो टैक्स फ्री बजट का झूठ अब जनता को न परोसने का साहस दिखायें। इसी के साथ यह सच्च भी स्वीकारें की बजट में दिखायी गयी पूंजीगत प्राप्तियां शुद्ध ऋण होती हैं और इस ऋण के साथ सरकार के कर्ज का आंकड़ा जनता के सामने रखने का साहस करें।       

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