Friday, 19 September 2025
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राहुल से माफी की मांग क्यों

नागरिकता संशोधन अधिनियम रेप इन इण्डिया और लगातार गिरती अर्थव्यवस्था ऐसे मुद्दे हैं जिन्होंने देश के हर व्यक्ति का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है।  नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ पूरा पूर्वोत्तर सफल रहा है। क्योंकि वहां इससे पहले एनआरसी घट चुका है। रेप और हत्या के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। इन मामलों पर 2013 में आज के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यहां तक कहा था कि दिल्ली रेप कैपिटल बन गयी है। मोदी तब गुजरात के मुख्यमंत्री थे। आज उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद रेप के मामलों की स्थिति यह हो गयी है कि भाजपा के विधायक कुलदीप सेंगर, पूर्व मन्त्री स्वामी चिन्मयानन्द जैसे लोगों पर यह आरोप लगे हैं। यही नहीं इन लोगों पर इन आरोपों की पीड़ित महिलाओं को जान से मारने के प्रयास तक के आरोप हैं। लेकिन इन लोगों के खिलाफ भाजपा ने कोई बड़ी कारवाई नही की है। बल्कि साक्षी महाराज जैसे सांसद इन आरोपियों के पक्षधर बन गये हैं। जेल की सलाखों के पीछे पहुंच चुके राम-रहिम पर लगे आरोपों को तो साक्षी महाराज ने सिरे से ही नकार दिया था। अब जब उन्नाव की पीड़िता की मौत हो गयी है। तब जो जनाक्रोष उभरा था उसके निशाने पर साक्षी महाराज भी रह चुके हैं लेकिन इस सबके बावजूद भाजपा के किसी भी नेता ने इनके खिलाफ संसद के अन्दर या बाहर कोई आवाज नही उठाई है। जब हैदराबाद का कांड घटा और पुलिस की कार्यशैली पर संसद में रोष प्रकट किया गया उसमें जया बच्चन और स्मृति ईरानी सबसे मुखर थी और दोषीयों को जनता के हवाले करने की मांग कर दी थी। लेकिन वही स्मृति ईरानी, संेगर और चिन्मयानन्द पर खामोश रही हैं।
आज रेप और हत्या के जो आंकड़े प्रतिदिन सामने आ रहे हैं उसको लेकर क्या कोई भी जिम्मेदार आदमी चुप बैठा रह सकता है। यदि संसद में इसके दोषीयों को जनता के हवाले करने की मांग आ सकती है तो क्या विपक्ष के जिम्मेदार नेता राहुल गांधी जनता के मंच पर ऐसे मामलों पर किसी भाषा में प्रतिक्रिया देंगे। क्या उन्हें मोदी को मेक इन इण्डिया के नारे के सामने यह याद नही दिलाना होगा कि जिसे आप मेक इन इण्डिया बनाने जा रहे थे वह तो रेप इन इण्डिया बनता जा रहा है। जब हर पन्द्रह मिनट के बाद एक रेप होने का आंकड़ा कड़वा सच बनता जा रहा है तो इस पर प्रतिक्रिया की भाषा क्या होनी चाहिये। ऐसे में जब राहुल गांधी ने रेप इन इण्डिया कह कर मोदी से उसकी खामोशी पर सवाल उठाया है तो इस पर स्मृति ईरानी के बवाल को कैसे जायज ठहराया जा सकता है क्या भाजपा के इन लोगों पर आरोप नही है और नेतृत्व खामोश बैठा रहा है। स्मृति ईरानी का गुस्सा क्या उनकी वैज्ञाणिक योग्यता के अलग- अलग रिकार्ड सामने आने पर उठे सवालों का प्रतिफल तो नही है। क्योंकि जो बात राहुल गांधी आज कह रहे हैं वही बात तो मोदी ने 2013 में कह दी थी। क्या स्मृति ईरानी मोदी के 2013 के ब्यान पर कोई प्रतिक्रिया देंगी। स्मृति जी आप आज सत्ता में हैं इस नाते इन बढ़ते अपराधों पर अंकुश लगाना आपकी जिम्मेदारी है जिसमें आपकी सरकार लगातार असफल हो रही है। ऐसे में राहुल की प्रतिक्रिया को मुद्दा बनाकर आप सच्चाई से भाग नही सकती है। राहुल ने हकीकत ब्यान की है उस पर माफी की मांग करके आप अपना ही पक्ष कमज़ोर कर रही हैं।
आज जब नागरिकता संशोधन अधिनियम पर देशभर में रोष उभर गया है। अमरीका और ब्रिटेन के मानवाधिकार संगठनों ने भारत के गृहमन्त्री पर प्रतिबन्ध लगाने की मांग की है। ढाका ने भारत के गृहमन्त्री पर प्रतिबन्ध लगाने की मांग की है। ढाका ने भारत के राजपूत को तलब कर लिया है। तब यह चिन्ता करना स्वभाविक हो जाता है कि भारत के इस कदम का अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर असर पड़ने जा रहा है। क्योंकि पहली बार भारत ने अपने पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बंगलादेश और अफगानिस्तान में अल्पसंख्यकों के खिलाफ धर्म के आधार पर प्रताड़ना होने की बात की है। यह प्रताड़ना हिन्दु, सिखों, पारसीयों, जैन, बौद्ध और ईसाईयों के खिलाफ हो रही है और यह लोग इस प्रताड़ना से पीड़ित होकर भारत में आ गये हैं यह हम नागरिकता संशोधन अधिनियम में कह रहे हैं। इस प्रताड़ना से बचाने के लिये हम इन्हें भारत की नागरिकता देने जा रहे हैं। लेकिन इसके लिये जब 31 दिसम्बर 2014 की तारीख की लकीर खींच दी जाती है तभी हमारी नीयत और नीति पर सवाल उठ खड़े होते हैं। इस तारीख के बाद क्या इन देशों में यह प्रताड़ना बन्द हो गयी है? क्या इसके लिये भारत ने इन देशों के साथ यह मुद्दा उठाया था जिसमें यह तय हुआ हो कि अब तुम यह प्रताड़ना बन्द कर दो और पहले से ऐसे प्रताड़ितों को हम अपने देश में नागरिकता दे देंगें क्या भारत के अन्य पड़ोसी देशों श्रीलंका, वर्मा, म्यांमार, भूटान आदि में ऐसी प्रताड़ना नही हो रही है। इस प्रताड़ना के लिये पड़ोसी मुस्लिम देश ही क्यों चुने गये? ऐसे बहुत सारे सवाल जिनके जवाब आने जरूरी हैं। फिर सरकार ने एनआरसी पूरे देश में लागू करने की बात की है। अकेले असम में ही 19 लाख लोग इस रजिस्टर के दायरे से बाहर हो गये हैं। पूरे देश में यह संख्या करोड़ों में पहुंच जायेगी यह स्वभाविक है। तब क्या नागरिकता संशोधन अधिनियम के तहत ऐसे लोगों को नागरिकता देने की बात नहीं आयेगी। क्या तब उन्हें देश से बाहर जाने की बात की जायेगी। आने वाले दिनों में ऐसे दर्जनों सवाल जवाब मांगेंगे। जब भी किसी देश में इस तरह की परिस्थितियां बनती हैं तब सबसे पहले अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है। आज ही अर्थव्यवस्था गंभीर सकंट से गुजर रही है। मंहगाई और बेरोजगारी इसके सीधे प्रतिफल हैं। आज आम आदमी भी इसके लिये सरकार को दोषी मानने लग गया है और यही सरकार का सबसे बड़ा डर है। राहुल से माफी की मांग को इसी ध्यान भटकाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।

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