Friday, 19 September 2025
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मोदी की अमरीका यात्रा के बाद दवाईयों की कीमतों मे बढौतरी क्यों

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अमरीका यात्रा के बाद नैशनल न्यूज चैनल ने एक वीडियो जारी किया है। इस वीडियो में प्रधानमन्त्री मोदी के साथ ब्रेकफास्ट में अमरीका की कुछ कंपनीयों के सीईओ शामिल हैं। न्यूज चैनल के खुलासे के मुताबिक यह सीईओ वहां की कुछ दवा निर्माता कंपनीयों के हैं और इनकी कंपनीयां भारत की कुछ कंपनीयों के साथ मिलकर भारत में भी कारोबार कर रही हैं। चैनल के खुलासे के अनुसार प्रधानमन्त्री की इस यात्रा के बाद इन कंपनीयों द्वारा बनाई जा रही 108 दवाईयों के दाम भारत में मंहगे हो गये हैं। मंहगाई का स्तर यह हो गया है कि कैंसर की जो दवाई पहले 8500 रूपये में मिलती थी अब उसकी कीमत एक लाख आठ हजार हो गयी है। ऐसे ही अन्य दवाईयों में भी कई गुणा बढ़ौत्तरी हुई है। यदि चैनल का खुलासा सही है तो अब गंभीर बिमारियों का ईलाज करवा पाना आम आदमी के बस के बाहर हो जायेगा। चैनल में दिखाये गये वीडियो का कोई खण्डन भारत सरकार द्वारा नही किया गया है और खण्डन न होने से इस वीडियो और उससे जुड़े खुलासे को सही मानने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नही रह जाता है। क्योंकि इन सीईओज़ के साथ प्रधानमन्त्री के ब्रेकफास्ट को सारे प्रशंसक चैनलों ने भी एक बड़ी उपलब्धि के रूप में दिखाया हुआ है। इन चैनलों ने इसके पीछे का सच नही दिखाया था अन्तर सिर्फ इतना ही है।
प्रधानमन्त्री की अमरीका यात्रा और यूएन में उनके भाषण के बाद कुछ चैनलों ने मोदी जी को विश्व विजेता और फादर आफ नेशन तक के संबोधन दिये हैं। इन चैनलों की राय ऐसी हो सकती है और उन्हे ऐसी राय रखने का अधिकार भी है। मैं उनके इस अधिकार पर कोई आपति नही उठा रहा हूं भले ही ओवैसी ने फादर आॅफ नेशन पर अपनी आपति दर्ज कराई है। मेरा यहां पर मोदी जी और उनके प्रशंसक चैनलों से इतना ही आग्रह है कि मोदी और ट्रंप की घनिष्ठ दोस्ती सबके सामने आ चुकी है। यदि इस दोस्ती के लाभ के रूप में ट्रंप भारतीय निर्यात पर लगाये गये उस शुल्क को वापिस ले लेते जिसके कारण देश के व्यापार को 38000 करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा हैं मैं यह आग्रह इस आधार पर कर रहा हूं कि जब मोदी जी ट्रंप के लिये ‘‘अब की बार ट्रंप सरकार ’’ का वातावरण बनाकर आये हैं और मोदी के इस नारे पर अमेरीकी भारतीयों ने भी अपनी मोहर लगा दी है तो बदले में देश को यह राहत तो मिलनी ही चाहिये थी। क्योंकि ऐसे अवसर बार-बार नही मिलते हैं और अब ट्रंप के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया भी शुरू हो गयी है और उससे यह आशंका बढ़ भी गयी है।
मोदी जी ने इस यात्रा में यू एन को संबोधित करते हुए पूरे विश्व को यह बताया है कि भारत में सब कुछ अच्छा है। विश्व को यही बताया जाना चाहिये था। इमरान खान ने यू एन में अपने 50 मिनट का भाषण में कश्मीर को लेकर जो कुछ विश्व को बताया है उसका व्यवहारिक जवाब मोदी जी को अपने देश में अपने आचरण से देना होगा। कश्मीर के हालात क्या हैं उसके बारे में देशवासी अपने तौर पर जानते हैं। देशवासी जानते हैं कि प्रधानमन्त्री का यू एन संबोधन शेष विश्व के लिये था। देश जानता है कि कश्मीर में अभी तक भी प्रतिबन्ध यथास्थिति बने हुए हैं। वहां कालेज और विश्वविद्याालय अभी तक बन्द चल रहे हैं। अभी भी संचार सेवायें पूरी तरह बहाल नहीं हुई हैं। फारूख अब्दुल्ला की गिरफ्तारी पर गृहमन्त्री के संसद में ब्यान और बन्दी प्रत्यक्षीकरण याचिका के बाद आये ब्यान में विरोधाभास खुल कर सामने आ चुका है। बंदी प्रत्यक्षीकरण पर मसूद अहमद भट्ट को लेकर उसकी पत्नी की याचिका पर जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय के जस्टिस अली मोहम्मद मैगरे के 25-9-19 को सुनाये फैसले से वहां प्रशासन की कार्यप्रणाली पर बहुत ही गंभीर सवाल खड़े हो जाते हैं। अदालत ने भट्ट की तुरन्त रिहाई के आदेश दिये हैं। दो नाबालिगों को भी इसी तरह बंदी बनाये जाने पर उच्च न्यायालय ने जम्मू कश्मीर सरकार से जवाब तलब किया है। ऐसे दर्जनों मामले जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक आये हुए हैं। ऐसे मामलों को देर तक लंबित रखने से अदालत की साख पर भी प्रश्न चिन्ह लगने की स्थिति आ जायेगी। भाजपा ने जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाये जाने के औचित्य को देश की जनता को समझाने के लिये पिछले दिनों संगठन की जिम्मेदारी लगाई थी और संगठन ने ऐसा हर राज्य में किया भी है। माना जा रहा है कि संगठन के इस प्रयास के बाद राज्य में हालात एकदम सामान्य हो जायेंगे और वहां से हर तरह के प्रतिबन्ध हटा लिये जायेंगे। लेकिन ऐसा हो नहीं सका है जिससे साफ हो जाता है कि इस सम्बन्ध में दिया जा रहा स्पष्टीकरण पूरी तरह लागों के गले नहीं उतर रहा है।
इस परिदृश्य मे यह सवाल उठना स्वभाविक है कि यह सब कुछ कब तक ऐसे चलता रहेगा और इसका अन्तिम परिणाम क्या होगा। आज जिस तरह से भ्रष्टाचार के नाम पर ई.डी. और सी.बी.आई. की सक्रियता कुछ विधानसभा चुनाव की पूर्व संध्या पर बढ़ती नज़र आ रही है उससे भी जनता में कोई अच्छा संकेत नहीं जा रहा है। क्योंकि आजम खान के मामले में बकरी चोरी, किताब चोरी और पेड़ चोरी जैसे आरोप लगने से संवद्ध प्रशासन की कार्यशैली पर ही सवाल उठने लगे हैं। चिन्मयानन्द के मामले में पीड़िता लड़की का जेल में होना इन्हीं सवालों की कड़ी को आगे बढ़ाता है। इसलिये आवश्यक है कि सारे राजनैतिक पूर्वाग्रहों को छोड़कर सारी वस्तुस्थिति पर समय रहते निष्पक्षता से विचार कर लिया जाये।

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