विंग कमांडर अभिनन्दन वतन वापिस आ गये हैं यह एक सुखद समाचार है। यह वापसी कैसे संभव हुई और इसका श्रेय किसको कितना मिलना चाहिये? इस पर हो सकता है कि लम्बे समय तक बहस और होड़ चलती रही क्योंकि अभी तत्काल में सवाल चुनाव का है। इसलिये इस पक्ष पर अभी सवाल को आगे बढ़ाना मेरी नजर में ज्यादा आवश्यक और महत्वपूर्ण नही है। यहां ज्यादा प्रमुख सवाल दूसरे हैं क्योंकि जब अभिनन्दन की वापसी हो रही थी तब भी सीमापार से गोलीबारी के समाचार बराबर आ रहे थे। इस गोलीबारी में हमारे जवानों के शहीद होने के समाचार बराबर आ रहे थे और यह सब कुछ चल ही रहा है। इस की न्यूज चैनलों में जिस ढ़ग से रिर्पोटिंग आ रही है उससे यही संकेत उभरे हैं कि युद्ध अवश्यंभावी है क्योंकि यह रिर्पोटिंग न्यूज एंकरों से ज्यादा उनके सेना और सरकार के अधिकारिक प्रवक्ता होने का अहसास करवा रहे हैं। सरकार इस रिर्पोटिंग पर खामोश चल रही है और खामोशी से इस अवधारणा को ही बल मिल रहा है। इस परिदृश्य में अब तक घटे पूरे घटनाक्रम पर फिर से नजर डालने की आवश्यकता हो जाती है।
घटनाक्रम के अनुसार पहले पुलवामा घटता है। इस आतंकी हमले में सी आर पी एफ के चालीस से ज्यादा जवान शहीद हो जाते हैं। जब इन जवानों के शव इनके पैतृक स्थानों पर पहुंचते हैं उस पर पूरे देश में आक्रोश फैल जाता है। देश के हर राज्य में लोग सड़कों पर कैण्डल मार्च पर उतर आते हैं। पाकिस्तान से कड़ा बदला लेने की मांग उठती है क्योंकि आम आदमी को यह बताया जाता है कि इस आंतकी घटना के पीछे पाकिस्तान का हाथ है। इस जनाक्रोश के बाद सरकार सेना को इससे निपटने के लिये खुला हाथ दे देती है और सेना एक बार फिर सर्जिकल स्ट्राईक करके आंतकियों के ठिकानों पर तेरह दिन बाद कारवाई करती है। न्यूज चैनलों के मुताबिक इस कारवाई में 150 से 350 तक आतंकी मारे जाते हैं। वैसे अधिकारिक तौर पर कहीं से कोई आंकडा जारी नही हुआ है। इस सर्जिकल स्ट्राईक को बड़ी कारवाई करार दिया जाता है। यह दावा किया जाता है कि पाकिस्तान के खिलाफ यह एक बड़ी कारवाई है। पाकिस्तान की एसैंम्बली में इसकी चर्चा उठती है और हमारे चैनल इस कारवाई को देश के लोगों के सामने परोसते हैं। पाकिस्तान एसैंम्बली में इमरान खान सरकार की निन्दा की जाती है और इस निन्दा का परिणाम होता है कि पाकिस्तान अपने जन दबाव में आकर बदले में सैनिक कारवाई कर देता है। इस कारवाई में पाकिस्तान का एक विमान नष्ट हो जाता है। हमारा भी एक विमान क्रैश हो जाता है। हमारा पायलट पाकिस्तान के कब्जे में चला जाता है। पाकिस्तान तुरन्त इस पायलट के उनके कब्जे मे होने की जानकारी सार्वजनिक कर देता है। यह जानकारी सार्वजनिक होते ही हमारी प्राथमिकता इस पायलट की सुरक्षा और इसकी घर वापसी हो जाती है। इस्लामाबाद हाईकोर्ट में पाकिस्तान का एक वकील इस पायलट पर पाकिस्तान में मुकद्दमा चलाने की मांग की एक याचिका दायर कर देता है। उच्च न्यायालय इस याचिका को रद्द करते हुये पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के फैसले को बहाल रखता है और अभिनन्दन की वापसी हो जाती है।
लेकिन इस वापसी के बाद भी घटनाएं जारी हैं इसलिये यह आवश्यक हो जाता है कि हम यह स्पष्ट हो पायें कि हमारी समस्या पाकिस्तान है या आतंकवाद। यदि समस्या पाकिस्तान है तो उस समस्या से निपटने के लिये क्या सैनिक कारवाई के अतिरिक्त और कोई दूसरा विकल्प है। इसके लिये तुरन्त एक सारे राजनैतिक दलों की बैठक बुलाकर उसमें यह फैसला लिया जाना चाहिये। यदि यह आम राय बनती है कि पाकिस्तान ही मूल समस्या है और युद्ध ही उसका एक मात्र हल है तो तुरन्त प्रभाव से एक राष्ट्रीय सरकार का गठन करके जिसमें सभी दलों का प्रतिनिधित्व हो एक फैसला लिया जाना चाहिये क्योंकि देश इसका स्थायी हल चाहता है। यदि समस्या आतंकवाद है तो उसके लिये घर के भीतर ही निपटना होगा जिस तरह से पंजाब और बंगाल में निपटा गया था। उसके लिये हमारी नीयत और नीति दोनो साफ होनी चाहिये। इस आतंकवाद से निपटने के नाम पर यह नही होना चाहिये कि हर मुसलमान आतंकी है। हर वह व्यक्ति जो हमारी विचारधारा से मेल नही खाता वह देश द्रोही है। आज उस देश में करीब पच्चीस करोड़ मुसलमान हैं जो वैसे ही नागरिक हैं जैसे हिन्दू और अन्य है। इतनी बड़ी मुस्लिम जनसंख्या के कारण ही आज हम इस्लामिक देशों के सम्मेलन में शामिल हो पाये हैं और जब हम इस सम्मेलन में शामिल हुए हैं तो इस अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय के सामने यह हमारी जिम्मेदारी और जबावदेही बन जाती है कि हमारे मुस्लिम नागरिकों की ओर से उन पर किसी तरह के भेदभाव करने के आरोप हमारी सरकार पर न लगें। भेदभाव का आरोप सरकार के साथ हमारे राजनीतिक दलों पर भी नही लगना चाहिये। परन्तु आज यह दुर्भाग्य है कि सतारूढ़ दल भाजपा ने पिछले लोकसभा चुनावों में एक भी मुस्लिम को टिकट देकर चुनाव नही लड़वाया। बल्कि लोकसभा चुनाव के बाद विधान सभा चुनावों में भी ऐसा ही हुआ है। आज भाजपा सरकार में जो भी मुस्लिम चेहरे हैं वह सब मनोनित होकर आये हैं चयनित होकर नही। बल्कि सरकार बनने के बाद लव जिहाद और गौ रक्षा जैसे जितने भी मुद्दे सामने आयें हैं उनमें मुस्लिम एक पीड़ित वर्ग के रूप में ही सामने आया है। ऐसा क्यों और कैसे हुआ है इसका कोई संतोषजनक जवाब सामने नही आया है। इन्ही कारणों से आज भाजपा की छवि एक मुस्लिम विरोधी दल का रूप ले चुकी है जो दुर्भाग्यपूर्ण है।
इसलिये आज जहां देश इस रोज-रोज की आतंकी समस्या के स्थायी हल की मांग कर रहा है वहीं पर सरकार की स्थिति बहुत कठिन होती जा रही है। क्योंकि जम्मू कश्मीर में धारा 370 पर आज सरकार चुनाव की पूर्व संध्या पर कारवाई की बात कर रही है जबकि इस पर एक विस्तृत बहस की आवश्यकता है जिसके लिये आज समय नही है। इसी तरह कुछ और सवाल हैं जिनपर सरकार की ओर से जबाव नही आया है। गुजरात दंगों को लेकर 28 दिसम्बर को सर्वोच्च न्यायालय में आयी रिपोर्ट में कुछ मामलों में पुलिस को स्पष्ट दोषी ठहराया गया है लेकिन कोई कारवाई सामने नही आई है। राणा अयूब की ‘‘गुजरात फाईल्ज’’ पर भी चुप्पी कई सवाल खड़े करती है। यही नही अभी पुलवामा के बाद एक न्यूज साईट में हाफिज सईद और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथ मिलाते हुए एक फोटो दिखाया गया है और दावा किया गया है कि यह फोटो आजम खान ने जारी किया है। लेकिन इस पर सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया नही आयी है। इसी तरह अब अभिनन्दन की वापसी के बाद यू टयूब में एक आडियो एवी डांडिया के हवाले से जारी किया गया है। यह सब कुछ सरकार की नीयत और नीति पर गंभीर सवाल खड़े करता है। लेकिन इस पर भी सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया जारी नही की गयी है। यह कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिन पर इस समय सरकार की ओर से प्रतिक्रिया आना आवश्यक है अन्यथा इस सबके परिणाम घातक होंगे।