Friday, 19 September 2025
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बीस वर्षो में केवल 13 वर्गमीटर बढ़ा प्रदेश का वनक्षेत्र उच्च न्यायालय में आये हल्फनामें में हुआ खुलासा

वन संरक्षण अधिनियम 1980 की खुली अवहेलना
2183 सड़कों का हुआ निर्माण
मुख्यसचिव को 2 सप्ताह में शपथ पत्र दायर
करने के निर्देश
शिमला/शैल। प्रदेश उच्च न्यायालय कोटखाई के हलाला गांव के अनन्त राम नेगी के नाम से आये एक पत्र को जनहित याचिका करार देते हुए अदालत ने इस पर अतिरिक्त महाधिवक्ता को सरकार का पक्ष जानने और वन विभाग के प्रमुख को जबाबी शपथ पत्र दायर करने के निर्देश दिये। मुख्य न्यायधीश के नाम आये इस पत्र में आरोप लगाये गये थे कि कुछ लोगों ने अवैध पेड़ कटान करकेे वन भूमि पर अपने घरों के लिये सड़क निर्माण कर लिया है। हिमरी पंचायत में गांव थरमाला से बेरटु वाया गुथान बनायी गयी सड़क को लेकर विशेष आरोप था। अनन्त राम नेगी के पत्र के साथ ही अदालत के पास एक और पत्र आया और उसमें एक केशव राम डोगरा पर आरोप था कि उसनेे अपने बागीचे के लियेे पेड़ो का अवैध कटान करकेे सड़क बना ली है। इस पत्र में यहां तक आरोप था कि जिला शिमला में देवदार के 4000 पेड़ों का अवैध कटान करके 400 सड़कों का निर्माण किया गया है।
इन आरोपों की गंभीरता का संज्ञान लेते हुए अदालत ने प्रदेश के वन प्रमुख को शपथपत्र के साथ जवाब दायर करनेे के निर्देश दिये। वन प्रमुख ने अपने जवाब में इन आरोपों का खण्डन करते हुए अदालत को बताया कि वन संरक्षण अधिनियम 1980 के तहत वांच्छित अनुमति लेकर ही ऐसे निर्माण किये गये हैं। वन प्रमुख ने अपनेे शपथपत्र में यह भी खुलासा किया कि एक हैक्टेयर भूमि तक केे मामलों में वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत संबंधित डीएफओ सेे अनुमति ली गयी है । शपथपत्र में अदालत को यह भी बताया गया कि जनवरी 2016से 30.6.17 तक डीएफओ ठियोग ने 32 सड़को के निर्माण की अनुमति दी है और इसमें 16.1091 है वन क्षेत्र प्रभावित हुआ है। मुख्य न्यायधीश को आयेे पत्र में यह भी आरोप था कि प्रदेश का वन क्षेत्र कम होता जा रहा है। इस आरोप को नकारतेे हुए वन प्रमुख नेे अदालत को यह बताया कि 2015 के भारत सरकार के वन सर्वेक्षण के अनुसार प्रदेश के वनक्षेत्र में 13 वर्ग मीटर की बढ़ौत्तरी हुई है। While refuting the contention of the letter petitioner that forest cover in the State of Himachal Pradesh is decreasing, Principal Chief Conservator of Forests has stated in his affidavit that there is an increase of 13 sq metres of forest cover in the State of Himachal Pradesh as per Forest Survey of India report, 2015.  पत्र में हिमरी पंचायत के थरमाला-वेरटु वाया गुथान रोड़ को लेकर लगाये गये विशेष आरोप की जांच के निर्देश ठियोग और कोटखाई के रेंज अधिकारियों को दिये गये थे। इस जांच केे बाद अदालत को बताया गया कि संद्धर्भित 2 किलो मीटर सड़क का निर्माण पांच वर्ष पहले से ही हो चुका है और इस निर्माण को लेकर वन अधिनियम के तहत मामला भी दर्ज है। इसी के साथ अदालत को यह भी बताया गया कि थरमाला-वेरटु में 480 मीटर सड़क का निर्माण हुआ है। यह भी बताया गया कि केशव राम ने दस वर्ष पहले ही रास्ते को दो मीटर चैड़ा करकेे वाहन योग्य बना लिया था और इस पर 23.8.17 को मामला भी दर्ज कर लिया गया है। इस जांच में रेंज अधिकारी ने अनन्त राम नेगी का पक्ष जानने के लिये उनसे फोन पर संपर्क किया । इस संर्पक करने पर नेगी ने ऐसा कोई पत्र मुख्य न्यायधीश के नाम लिखने से इन्कार किया है।
भले ही अनन्त राम नेगी ने यह पत्र नही लिखा है लेकिन इस पत्र पर हुई कारवाई के माध्यम सेे जो जवाब अदालत में आया हैं उसमें इन आरोपों को सही पाया गया है। एक जगह पांच साल पहले सड़क बन गयी और दूसरी जगह दस साल पहले। लेकिन इन निर्माणों पर वन विभाग अब मामलें दर्ज कर रहा है। अदालत के सामने आयेे तथ्यों में यह भी आया है कि वनभूमि में अवैध तरीके से 2183 सड़कों का निर्माण हुआ है। As per own calculation of the Forest Department, approximately 2183 roads have been constructed in the State of Himachal Pradesh in violation of the Forest Conservation Act, which is a large number and can not be over looked. अदालत के पास वनभूमि पर हुए अतिक्रमणों और अवैध निर्माणों के मामले पहले से ही विचाराधीन चल रहे हैं। इसलिये इस याचिका को यहीं समाप्त करके अदालत ने सरकार से रिपोर्ट तलब की है कि वनभूमि पर बनी सड़कों कीे अनुमति के लियेे क्या कदम उठाये गये है इसकी विस्तृत जानकारी अदालत में रखी जाये।
इस जनहित याचिका में आरोप था कि वनक्षेत्र कम होता जा रहा है और इसके जवाब में वन प्रमुख ने 2015 की सर्वे रिपोर्टे के आधार पर दावा किया है कि 13 वर्ग मीटर वनक्षेत्र बढ़ा है। वनक्षेत्र की बढ़ौत्तरी के इस दावे पर यदि सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण में दर्ज आंकड़ों पर नज़र दौड़ाई जाये तो यह वस्तुस्थिति सामने आती है। 1996-97 की रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश का वनक्षेत्रा 36,986 वर्ग किलोमीटर था। उसके बाद 1997- 98 में यह बढ़कर 37,016 हो गया। इसके बाद 1998-99 में 37,033 हो गया और आज 2017 तक यह क्षेत्रा 37,033 ही चला आ रहा है। इसका अर्थ है कि पिछले बीस वर्षो में प्रदेश के वनक्षेत्र में कोई बढ़ौत्तरी नही हुई है। क्योंकि यह आंकड़े विधानसभा पटल पर रखे गये आर्थिक सर्वेक्षणों में दर्ज हैं। 13 वर्ग मीटर वनक्षेत्र बढ़ने का दावा वन प्रमुख उच्च न्यायालय को सौंपे शपथपत्र में कर रहें हैं। प्रदेश में प्रतिवर्ष वन महोत्सव के नाम पर पौधारोपण किया जाता है। पौधारोपण और वन संरक्षण पर हर साल करोड़ो रूपये खर्च किये जाते हैं। लेकिन इस खर्च के बाद जो परिणाम इस तरह से सामने है क्या उस पर सन्तोष व्यक्त किया जा सकता है? क्योंकि दोनो जगह रखे गये आंकड़े आपस में कोई मेल नही खाते हैं। बल्कि इन आंकड़ो को देखते हुए तो अदालत से ही गुहार लगानी पड़ेगी कि वह इस पर भी सरकार और विभाग से जवाब तलबे करे। क्योंकि इन कार्यक्रमों पर आम आदमी का पैसा खर्च हो रहा है।
सड़कों के हुए इस अवैध निर्माण का कड़ा संज्ञान लेते हुए उच्च न्यायालय ने मुख्य सचिव को निर्देश दिये हैं कि वह दो सप्ताह के भीतर शपथपत्र दायर करके यह बताएं कि कौन-कौन सी सड़क वन संरक्षण अधिनियम 1980 की अवहेलना करके बनी है और इनकी अनुमति लेने के लिये क्या कदम उठाये गये हैं।

Consequently, in view of discussion made herein above, present petition is disposed of with a direction to the Chief Secretary to the Government of Himachal Pradesh to file his personal affidavit, detailing therein number and names of roads constructed in the State of Himachal Pradesh, in violation of Forest Conservation Act. Chief Secretary may also indicate in his affidavit that what steps have been taken by the State for getting necessary permission from the Ministry of Environment and Forests, Government of India, for regularization of roads constructed in violation of Forest Conservation Act. Needful be done within a period of two weeks from today.

 

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