Thursday, 18 September 2025
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केन्द्र के 7 करोड़ का खुला दुरूपयोग और 49 लाख की उपयोगिता प्रमाण पत्र सवालों में

शिमला/शैल। प्रदेश के पर्यटन विभाग में सुनियोजित तरीके से बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार हो रहा है और इस पर प्रदेश उच्च न्यायालय के फैसलों का कोई असर नही हो रहा है यह आरोप लगाया है पर्यटन विकास निगम के पूर्व कर्मचारी नेता ओम प्रकाश गोयल ने। राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री, सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायधीश, राज्यपाल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश मुख्यमन्त्री केन्द्रिय वित्त मन्त्री, केन्द्र के केबिनेट सक्रेटरी सीएजी निदेशक सीबीआई और केन्द्रिय पर्यटन सविच के नाम भेजी 56 पन्नों की शिकायत में गोयल ने आरोप लगाया है कि प्रदेश के पर्यटन विेभाग में केन्द्र सरकार द्वारा भेजे इस करोड़ रूपये में घपला हुआ है। गोयल ने कहा कि जब उन्होने 2002 में इस आशय की एक याचिका उच्च न्यायालय में दायर की थी जिस पर 13.3.2003 को आये फैसले में सरकार को जो निर्देश दिये गये थे उनकी भी अनुपालना नही हुई है। इस संद्धर्भ में गोयल ने 2009 में उच्च न्यायालय में अवमानना याचिका भी दायर की थी। जिसके जवाब में तत्कालीन प्रधान सचिव पर्यटन अशोक ठाकुर ने अपने शपथ पत्र में स्वीकारा है कि विभाग ने भारत सरकार से आये 6,93,9000 रूपये बिना पूर्व अनुमति के दूसरे कार्यो पर खर्च कर लिये हैं। लेकिन इसके लिये उन्होने किसी की जिम्मेदारी तय नही की। बल्कि उच्च न्यायालय के फैसले को लागू करने के लिये जो निर्देश जारी किये थे उन पर आज तक कोई अमल नही हो पाया है बल्कि इस संद्धर्भ में पर्यटन निगम के तत्कालीन प्रबन्ध निदेशक ने भी 16.09.2007 को अदालत में गल्त शपथ पत्रा दायर किया है।

           पर्यटन विभाग का कारनामा           


गोयल का आरोप है कि पर्यटन विकास के लिये विभिन्न योजनाओं के नाम पर केन्द्र सरकार से जो पैसा मिल रहा है उसमें बडे़ स्तर पर घपला हो रहा है इन योजनाओं के लिये झूठे प्रमाणपत्रा भारत सरकार को भेजे जा रहे हैं। केन्द्रिय पैसे का पूरी तरह से दुरूपयोग हो रहा है। अपने आरोप को प्रमाणित करने के लिये गोयल ने सुंरगी टूरिस्ट कम्पलैक्स से जुड़े महत्वपूर्ण दस्तावेज आर टी आई के तहत प्राप्त करके अपनी शिकायत के साथ भेजे हैं। इन दस्तावेजों के मुताबिक 1995 में खदराला के लिये केन्द्र ने एक टूरिस्ट कम्पलैक्स स्वीकृत किया था। जिसे बाद में सुंगरी के लिये शिफ्रट कर दिया गया। इस प्रौजैक्ट के लिये 26.3.1996 को भारत सरकार से 46,11,600 रूपये की स्वीकृति प्राप्त हुई। इस टूरिस्ट कम्पलैक्स के लिये प्रदेश सरकार ने तीन लाख का योगदान दिया है। इसमें 38 बिस्तरों के लिये 19 कमरे और 12 बिस्तरों के लिये एक डारमैट्री तथा इनसे संबद्ध अन्य निमार्ण होना था। इसके लिये केन्द्र सरकार से 10.5.1996 को पहली, 7.8.1996 को दूसरी, 10.11.1998 को तीसरी और 24.8.2005 को अन्तिम किश्त भी जारी हो गयी। अन्तिम किश्त से पहले यू सी कम्पलीशन और कमीशनींग आदि के सारे प्रमाणपत्रा भी 31.12.2004 को भारत सरकार को भेज दिये गये। इसके बाद नियमों के अनुसार वांच्छित एग्रीमैन्ट भी भारत सरकार के साथ साईन हो गया और यह कम्पलैक्स एक रूपये प्रतिमाह की दर पर प्रदेश के पर्यटन विभाग को मिल गया। इस टूरिस्ट कम्पलैक्स से जुडी औपचारिकताएं पूरी हो गयी। इसके अनुसार प्रौजैक्ट पूरी तरह तैयार हो कर प्रदेश के टूरिज्म विभाग द्वारा प्रयोग में लाया जा रहा है।
लेकिन जब जुलाई 2006 में मुख्यमन्त्री यहां पहुंचे तो इस निमार्ण को अधूरा देखकर इसे पूरा करने के लिये लोक निर्माण विभाग को ट्रांसफर  करने के निर्देश दे दिये। मुख्यमन्त्री के इन निर्देशों पर अमल करते हुए 21.8.2006 एम टूरिज्म और लोकनिर्माण के अधिकारियों ने कम्पलैक्स स्थल का निरीक्षण किया। निरीक्षण की रिपोर्ट के बाद 16.7.2007 को कम्पलैक्स लोक निर्माण विभाग को ट्रांसफर हो गया। 16.7.207 को जो टूरिज्म और लोक निर्माण विभाग की संयुक्त रिपोर्ट के मुताबिक इसकी ग्राऊंड प्लोर पर पांच कमरे बने थे जो पूरी तरह से टूटे हुए थे और इस पर कोई छत नही थी पूरा निमार्ण पूरी तरह से क्षतिग्रस्त था।
2007 को लोक निर्माण विभाग को ट्रांसफर हो चुके इस कम्पलैक्स पर 2015 में जब अतिरिक्त मुख्य सचिव लोक निमार्ण यहां पहुंचे तो उन्होने इसे पूरा करने के निर्देश विभाग को जारी किये। इन आदेशों पर अमल करते हुए विभाग ने फिर इस स्थल का निरीक्षण करके रिपोर्ट तैयार की। इस रिपोर्ट के मुताबिक इस निमार्ण को तोड़कर नये सिरे से निमार्ण करना होगा। रिपोर्ट के मुताबिक कम्पलैक्स की साईट भी उचित नही है। नये निमार्ण पर 76 लाख खर्च होने का अनुमान है और विभाग ने इस खर्च की स्वीकृति भी 2016 में प्रदान कर दी है पर्यटन विभाग इस निमार्ण पर 46 लाख केन्द्र सरकार के और तीन लाख प्रदेश सरकार के खर्च कर चुका है। पर्यटन विभाग के दस्तावेजों के मुताबिक 31.12.2004 को 49 लाख की लागत से यह कम्पलैक्स पूरी तरह तैयार था और इस्तेमाल में था। लेकिन जुलाई 2006 में मुख्यमन्त्री इसे अधूरा पाते हैं। 2007 में जब लोक निमार्ण इसे अपने कब्जे में लेता है और टूरिज्म के साथ सयुंक्त निरीक्षण करता है तब यह कम्पलैक्स टूटा हुआ पाया जाता है यहां यह सवाल उठता है कि क्या 31.12.2004 को पर्यटन विभाग द्वारा केन्द्र सरकार को निर्माण से जुडे़ जो सर्टिफिकेट भेजे गये थे वह सब झूठ थे? या फिर उसके बाद एक वर्ष में ही यहां तोड़ फोड़ हो गयी? यदि ऐसा हुआ है तो पर्यटन विभाग क्या कर रहा था? जब 2007 में इस निर्माण के क्षतिग्रस्त होने की रिपोर्ट सरकार के पास आ गयी तो उस पर कोई कारवाई क्यों नहीं हुई? इस पर लगा 49 लाख रूपया पूरा बर्वाद हो गया है। दस्तावेजों के मुताबिक यह कम्पलैक्स कभी यूज में लाया ही नही गया है इसके निमार्ण में पूरी तरह घपला हुआ है और इसी कारण इसे भारत सरकार की अनुमति के बिना ही लेाक निमार्ण विभाग को ट्रांसफर कर दिया गया जबकि नियमानुसार ऐसा नही किया जा सकता है। रिकार्ड के मुताबिक यह आज भी भारत सरकार की संपति है।

































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