Thursday, 18 September 2025
Blue Red Green

ShareThis for Joomla!

फिर होगी भ्रष्टाचार पर राजनीति की रस्म अदायगी


भाजपा ने सुरेश भारद्वाज की अध्यक्षता में गठित की आरोप पत्र कमेटी

शिमला/शैल। प्रदेश भाजपा ने वीरभद्र सरकार के खिलाफ आरोप पत्र तैयार करने के लिये पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष एवम् शिमला के विधायक सुरेश भारद्वाज की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया है। इस कमेटी के अन्य सदस्य है पूर्व मन्त्री एवम विधायक महेन्द्र सिंह, राजीव बिन्दल, जयराम ठाकुर रविन्द्र रवि, रणधीर शर्मा और विपिन परमार। यह कमेटी प्रदेश के सभी भागों और सरकार के सारे विभागों की कारगुजारी के बारे में सूचनाएं एकत्र करके आरोप पत्र तैयार करेगी। दिसम्बर में सरकार के चार साल पूरा होने पर यह आरोप पत्र सौंपा जायेगा। वीरभद्र के इस कार्यकाल में यह भाजपा का दूसरा आरोप पत्र होगा। पहला आरोप पत्र सरकार के तीस महीने पूरे करने पर सौंपा गया था और इसमें तीस ही आरोप थे। अब के आरोप पत्र में क्या कुछ रहता है इसका खुलासा तो आरोप पत्र के आने पर ही होगा।

लेकिन भाजपा के इस प्रस्तावित आरोप पत्र के परिदृश्य में जो सवाल उभरते हैं कि वह आरोप पत्र से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हंै क्योंकि सत्तारूढ़ सरकारों के खिलाफ आरोप पत्र जारी करना एक तरह से राजनीतिक संस्कृति बनता जा रहा है। ऐसे में यह स्वाल उठना स्वभाविक है कि आरोप पत्र से होगा क्या? क्या आरोप पत्र जारी करने से यह प्रमाणित होता है कि आरोप पत्र जारी करने वाला ईमानदारी से भ्रष्टाचार के खिलाफ है? क्या इससे यह प्रमाणित होता है कि आरोप पत्र जारी करने वाला सत्ता में आकर इन आरोपों की जांच करके भ्रष्टाचारियों को सजा दिलवायेगा? यदि पूरी व्यवहारिक ईमानदारी से इन सवालों की पड़ताल की जाये तो इनका जवाब नकारात्मक ही मिलता है। वीरभद्र के इसी कार्यकाल में भाजपा का यह दूसरा आरोप पत्र होने जा रहा है लेकिन भाजपा के पहले आरोप पत्र का क्या हुआ? उसकी जांच कहां तक पंहुची है? यदि सरकार ने उसकी जांच नहीं करवाई है तो भाजपा ने उन आरोपों को लेकर कहां किस अदालत में कथित दोषियों के खिलाफ कोई मामला दायर करके अदालत के माध्यम से जांच करवाने का आग्रह किया? भाजपा ने ऐसा कुछ नहीं किया है बल्कि आरोप पत्र जारी करने के बाद स्वयं भी उन्हीं आरोपों पर प्रदेश की जनता के बीच कोई बहस तक उठाने का साहस नहीं दिखाया है। 2003 में जब कांग्रेस वीरभद्र के नेतृत्व में सत्ता में आयी थी उस समय भी भाजपा ने बतौर विपक्ष सरकार के पूरे कार्यकाल में ऐसे तीन आरोप पत्र सौंपे थे। भाजपा-धूमल के नेतृत्व में फिर सत्ता में आयी। दिसम्बर 2012 तक भाजपा की सरकार रही। उस दौरान तीन में से केवल दो आरोप पत्र विजिलैंस को जांच के लिये भेजे। विजिलैंस ने इन आरोप पत्रों की पड़ताल करके जांच के लिये कुछ मुद्दे चिन्हित किये। इन मुद्दों पर अगली कारवाई की स्वीकृति लेने के लिए इन्हे सरकार को भेजा। लेकिन धूमल सरकार की ओर से इस संद्धर्भ में विजिलैंस को कोई निर्देश नहीं गये। विजिलैंस ने अपने स्तर पर इन मुद्दों को आगे नहीं बढ़ाया। जबकि विजिलैंस को जांच करने के लिये सरकार से अनुमति लेने की आवश्यकता ही नहीं थी। इस तरह उन गंभीर आरोपों पर आगे आज तक कोई कारवाई नहीं हुई है।
भाजपा भी उन आरोपों को भूल गयी है और कांग्रेस के जिन मन्त्रीयों और दूसरे लोगों के खिलाफ यह गंभीर आरोप लगाये थे उन्होने भी आरोप लगाने वालों के खिलाफ कोई कारवाई नहीं की है। इस संद्धर्भ में कांग्रेस का भी चाल, चरित्र और चेहरा भाजपा से कतई भिन्न नहीं है। कांग्रेस ने भी बतौर विपक्ष हर बार भाजपा सरकारों के खिलाफ ऐसे ही आरोप पत्र दागे हैं। सत्ता ने आने पर अपने ही आरोप पत्रों पर जांच करवाने का साहस नहीं दिखाया है। बल्कि 31 अक्तूबर 1997 को वीरभद्र सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जन सहयोग का आह्वान करते हुए एक रिवार्ड स्कीम अधिसूचित थी। इस स्कीम के तहत भ्रष्टाचार की शिकायतों पर एक माह के भीतर प्रारम्भिक जांच करवाने का प्रावधान किया गया है। लेकिन इस योजना के तहत आयी शिकायतों पर वर्षों तक कोई कारवाई नहीं हुई है। वीरभद्र अपनी ही अधिसूचित स्कीम पर अमल नहीं कर पाये हैं। इस तरह आज तक भ्रष्टाचार के खिलाफ जितने भी बड़े-बड़े दावे किये जाते हैं व्यवहार में उन पर कभी कोई अमल नहीं हुआ है।
सबसे रोचक पक्ष तो यह रहा है कि भ्रष्टाचार के किसी भी मामले का हमारे उच्च न्यायालय ने भी कभी कोई स्वतः संज्ञान नही लिया है। जबकि यह आरोप पत्र हर बार समाचार पत्रों में चर्चित रहे हैं। बल्कि उच्च न्यायालय के पास अवय शुक्ला की वह रिपोर्ट जिसमें जल विद्युत परियोजनाओं के नाम पर 65 किलोमीटर रावी नदी के ही लोप हो जाने का कड़वा सच्च दर्ज है आज तक लंबित है। जबकि अवय शुक्ला को रिटायर हुए भी अरसा हो गया है। इसी तरह जे.पी. उद्योग के थर्मल प्लांट के संद्धर्भ में उच्च न्यायालय ने ही एक एसआईटी पुलिस अधिकारी केसी सडयाल के तहत गठित की थी। एसआईटी की रिपोर्ट उच्च न्यायालय मे पहुंची हुई है। सडयाल रिटायर भी हो चुके हैं लेकिन इस रिपोर्ट पर आज तक कोई कारवाई सामने न आई है। ऐसे मे भ्रष्टाचार के खिलाफ किसी भी राजनीतिक दल या नेता के किसी भी दावे पर जनता आज विश्वास करने को तैयार नही है और यह आरोप पत्र जारी करना रस्म अदायगी से अधिक कुछ नही रह गया है।

Add comment


Security code
Refresh

Facebook



  Search