Thursday, 18 December 2025
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अभी लटक सकता है प्रदेश अध्यक्ष का फैसला

शिमला/शैल। हिमाचल कांग्रेस में एक लम्बे समय से यह तय नहीं हो पा रहा है कि पार्टी का अगला प्रदेश अध्यक्ष किसे बनाया जाये। अब तक करीब एक दर्जन नेताओं के नाम अध्यक्ष की चर्चा में आ चुके हैं। कई मंत्रियों के नाम चर्चा में उछले और यह आया कि मंत्री लोग अध्यक्ष की जिम्मेदारी के साथ मंत्री पद भी साथ रखना चाहते हैं। फिर यह आया कि रोहित ठाकुर मंत्री पद अध्यक्ष बनने के लिये छोड़ने को तैयार हैं। रोहित के साथ ही पूर्व अध्यक्ष कुलदीप राठौर का नाम चर्चा में जुड़ गया। लेकिन इनमें से किसी का नाम फाइनल होने से पूर्व ही इस चर्चा में विधायक आर.एस.बाली का नाम जुड़ गया। पिछले दिनों जब प्रदेश के छः बार मुख्यमंत्री रहे स्व. वीरभद्र सिंह की प्रतिमा के अनावरण के अवसर पर जिस तरह की भीड़ इस अनावरण पर इकट्ठी हो गयी थी उससे यह चल पड़ा है की हॉलीलॉज को नजर अन्दाज करना संभव नहीं होगा। कुल मिलाकर जिस तरह की परिस्थितियां अब तक निर्मित हो चुकी हैं उनसे यही लगता है कि अध्यक्ष का फैसला अभी और लटक सकता है। नया अध्यक्ष और नये पदाधिकारी बनाये जाने में हो रही देरी के लिये प्रदेश के सारे धड़ों के नेता हाईकमान को दोषी ठहरा चुके हैं। यह दोषी ठहराने में ही सारा खेल अटका हुआ है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि हाईकमान प्रदेश पर पूरी नजरें लगाये हुये बैठा है। हाईकमान जिस तराजू पर तोलकर प्रदेश नेतृत्व का आकलन कर रहा है यह समझना आवश्यक है। हिमाचल में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद देश में लोकसभा और हरियाणा तथा महाराष्ट्र विधानसभाओं के चुनाव हुये हैं। हिमाचल में कांग्रेस का सहप्रभारी पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल होकर आज केन्द्र में मंत्री बना हुआ है। लेकिन हिमाचल के किसी नेता को इसकी भनक तक नहीं लगी। लोकसभा में पार्टी चारों सीटें हार गयी। राज्य सभा की सीट पर भी हार गयी। आज प्रदेश में ई.डी., सी.बी.आई. और आयकर विभाग जैसी सारी केंद्रीय एजैन्सियां दखल दे चुकी हैं। इस दखल में हिमाचल के सहप्रभारी रहे और फिर भाजपाई बने नेता की भी भूमिका कही जा रही है। लेकिन हिमाचल का कोई भी नेता इस सब का पूर्व आकलन करके हाईकमान को अलर्ट नहीं कर पाया। बल्कि हिमाचल सरकार अपने कुछ विवादित फैसलों के लिये हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में चर्चा में रह चुकी है। व्यवहारिक तौर पर हिमाचल की कांग्रेस सरकार केन्द्र सरकार के आर्थिक एजैन्डे के बहुत निकट चल रही है। ऐसे में जो सरकार हाईकमान को न तो कोई लोकसभा की सीट दे पायी और न ही राज्यसभा की उसके राजनीतिक आकलन पर कोई भी हाईकमान कितनी निर्भरता बना सकती है। इसी सरकार की कार्यशैली के कारण प्रिंयका गांधी का नाम बैंस प्रकरण में चर्चा का विषय बन गया है। इस समय सी.बी.आई. और ई.डी. जिन मामलों में प्रदेश में दखल दे चुकी है उनमें अगले कुछ माह में बड़ा कुछ घटने की संभावनाएं बनती जा रही हैं। कांगड़ा केन्द्रीय सहकारी बैंक और स्व. विमल नेगी की मौत के प्रकरणों में चल रही जांच के छींटे बहुत दूर तक जायेंगे यह तय है। इन जांचों का प्रदेश के राजनीतिक माहौल पर भी गहरा असर पड़ेगा। जानकारों के मुताबिक राहुल गांधी प्रदेश के इन हालातों की पूरी जानकारी रख रहे हैं। ऐसा माना जा रहा है कि बिहार चुनाव के बाद कांग्रेस हाईकमान प्रदेश को लेकर महत्वपूर्ण फैसले लेगी। क्योंकि जब प्रदेश में स्थानीय निकायों और पंचायतों के चुनाव अभी होने ही नहीं जा रहे हैं जहां कार्यकर्ताओं की सीधी आवश्यकता होती है तो फिर प्रदेश अध्यक्ष और कार्यकारिणी का फैसला कुछ दिन और लटक जाता है तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बने हुये तीन वर्ष होने जा रहे हैं। इन तीन वर्षों में कांग्रेस का कार्यकर्ता सरकार के किसी फैसले पर जनता में सरकार की वकालत कर पायेगा क्योंकि पार्टी दस गारंटीयां देकर सत्ता में आयी थी आज इन गारंटीयों के आईने में कार्यकर्ता के पास क्या पॉजिटिव है जिसको लेकर जनता में जाया जायेगा। क्या कोई विधायक अपने ही गांव से दस आदमी ऐसे दिखा पायेगा जो कहे कि उन्हें गारंटीयों का लाभ मिल रहा है। जब सरकार हर समय वित्तीय संकट का ही राग अलापति रही है तो उसके पास कुछ भी करने के लिये पैसा ही कहां था। इस तरह जो व्यवहारिक स्थितियां बनी हुई है उनके परिदृश्य में प्रदेश अध्यक्ष का फैसला अभी और लटकने की संभावना है।

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